पंजाब की ‘हनीमून ब्राइड्स’ और उन्हें न्याय दिलाता एक ‘आईपीएस नायक’
- Pallavi Priya
- Published on 12 Oct 2021, 1:21 pm IST
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हाइलाइट्स
- पंजाब की उन हजारों महिलाओं के लिए वो एक नायक हैं, जो 'एनआरआई पतियों' द्वारा 'सुविधा विवाह’ का शिकार बनीं
- मानव जीवन की एक बड़ी त्रासदी के सामने लड़कर ऐसी महिलाओं को न्याय और उनका अधिकार दिलाया है
- ऐसे साहस और प्रेरणा की मिसाल पेश करने वाले आईपीएस अधिकारी सिबास कविराज की कहानी
जैसा कि नाम से ही जाहिर है- ‘हनीमून ब्राइड्स’ यानी युवा और कमजोर महिलाओं को फंसाकर बुरी नियत से शादी करना और फिर उन्हें उनके हाल पर छोड़ देना, पंजाब और उसके आस-पास यह एक अवैध धंधा बन चुका है। ऐसे सभी मामलों में, तथाकथित पति एक अनिवासी भारतीय (एनआरआई) है। वह अपने साथ विदेश ले जाने के वादे के साथ भारत में एक महिला से शादी करता है। हालांकि ये वादा एक वादे तक ही सीमित रहता है और असल में वह ऐसा करता नहीं है। फिर एक बार जब भारत में उनका ‘हनीमून’ खत्म हो जाता है, तो कथित प्यारा पति नई शादीशुदा पत्नी को छोड़ देता है और जहां से आया था, वहीं अकेले ही विदेश लौट जाता है।
लेकिन अब ऊंट पहाड़ के नीचे आ चुका है। वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सिबास कविराज ‘सुविधा शादी’ कर औरतों की जिंदगी तबाह करने वाले ऐसे फरार पतियों का जीवन नरक बनाने का फैसला कर चुके हैं। वह खतरनाक जाल में फंसी हुई इन दुल्हनों के लिए एक बड़े पालनहार और रक्षक बन कर उभरे हैं।
इस अभियान में कविराज की सफलता दर सुखद रूप से आश्चर्यजनक है। उन्होंने ऐसे आरोपियों से संबंधित 450 पासपोर्ट जब्त करने में कामयाबी हासिल की है। और उनमें से 73 दोषियों को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे भी भेजा है।
रियल लाइफ केस
यह साल 2013 था और भारत के एक खूबसूरत राज्य पंजाब के पटियाला की एक साधारण लड़की अमृत, इंग्लैंड में काम कर रही थी। उसके माता-पिता उसकी शादी करवाना चाहते थे। इसलिए अमृत एक आदर्श जीवनसाथी के ख्वाब अपनी आंखों में सजाकर भारत वापस आयीं। भारत में उनकी मुलाकात एक एनआरआई से हुई जो एक ऑस्ट्रेलियाई नागरिक था। अमृत के माता-पिता के अनुसार, इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता था क्योंकि वह व्यक्ति उनकी बेटी के लिए एकदम सही इंसान लग रहा था। उनका विवाह एक गुरुद्वारे में हुआ और ढेर सारे आशीर्वाद के साथ अमृत को उनके ससुराल भेज दिया गया। जैसा कि उसके पति ने वादा किया था, वह कुछ हफ्तों में ऑस्ट्रेलिया के लिए रवाना होना चाहती थीं। वह बहुत खुश थीं और उस वक्त उन्हें बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि एक ऐसा तूफान उसके जीवन में आने वाला है जिसमें शायद उसके सभी सपने उड़ जाने थे।
अपनी शादी के दूसरे दिन ही उसे अपने पति और उसकी मां की खतरनाक इरादों के बारे में पता चल गया। वे उसे प्रताड़ित करने लगे और उसके माता-पिता से पैसे भी मांगने को कहा। जब उसने इंकार कर दिया, तो उन्होंने उसे ‘अगले दिन’ आकर साथ ले जाने का वादा करके, उसके माता-पिता के पास वापस भेज दिया। अब लगभग सात साल से अधिक का वक्त हो गया है, लेकिन ‘अगला दिन’ आज तक नहीं आया है। शादी के एक साल बाद उनके पति ने उन्हें तलाक का नोटिस भेजा। इसने अमृत को बुरी तरह तोड़ दिया, उसके सारे सपने मिट्टी में मिल चुके थे। इतना ही नहीं, अमृत को यह भी पता चला कि उस एनआरआई व्यक्ति ने सिर्फ उसे ही धोखा नहीं दिया था, बल्कि उसके पहले भी दिल्ली में एक और पंजाब में दो लड़कियों से शादी कर चुका था।
अमृत अकेली नहीं हैं जो ऐसे घिनौने कृत्य का शिकार हुई हैं। अमृत जैसी 30,000 से अधिक लड़कियां हैं, जो उनके जैसी दुर्दशा का सामना कर रही हैं और कुछ भी नहीं कर सकती हैं। लेकिन अगर सामाजिक मान्यताओं पर जाएं तो जब भी पाप की दुनिया हद से ज्यादा बढ़ती है तो कोई न कोई फरिश्ता जरूर आता है, जो बुराइयों से लड़ता है और समाज को एक नई दिशा देता है। यहां भी इन लड़कियों के लिए उम्मीद की एक किरण बनकर फरिश्ते के रूप में एक नौकरशाह आया, 1999 बैच के आईपीएस अधिकारी और अब समाज सुधारक का रुतबा पा चुके सिबास कविराज उस वक्त ‘क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी’ के रूप में चंडीगढ़ में तैनात थे। चंडीगढ़ के पासपोर्ट कार्यालय में लाखों लंबित पासपोर्टों के बैकलॉग को मंजूरी देने के लिए कबिराज को पहले ही विदेश मंत्रालय से सराहना मिल चुकी थी।
इस पासपोर्ट कार्यालय में काम करते हुए कबिराज को ‘हनीमून ब्राइड्स’ की दुर्दशा के बारे में पता चला। फिर क्या था, सहृदय कबिराज ने ऐसे आरोपियों को पकड़ने और उनके अपराधों को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाने का फैसला किया। उन्हें पता चला कि कुछ एनआरआई पति शादी के एक सप्ताह के भीतर ही अपनी पत्नियों को छोड़कर चले गए थे। यहां तक कि उन महिलाओं के मामले में जिनके बच्चे थे, यह साफ हो गया कि अनिवासी भारतीयों के लिए ये केवल फायदा उठाने के लिए किया गया ‘सुविधा विवाह’ था। कबिराज ने उन सभी महिलाओं की हरसंभव मदद करने का फैसला किया।
इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, “जब मैं लंबित पासपोर्ट मुद्दे पर काम कर रहा था, तो 15 लड़कियों के एक समूह ने मुझसे मुलाकात की और अपनी कहानी मेरे साथ साझा की। उनकी बहुत कम उम्मीदें बची हुई थीं क्योंकि एनआरआई कमीशन या पुलिस ने उनकी बात को जायद तवज्जो नहीं दी थी। लेकिन उनके लिए मुझे कुछ करना था और मुझे बेहद खुशी है कि लड़कियों की ही मदद से मुझे एक रास्ता मिल गया। ‘पासपोर्ट अधिनियम’ की धारा 10 आरपीओ (RPOs- क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी) को यह अधिकार देती है कि यदि ‘धारक’ का कोई आपराधिक मामला लंबित है या वह घोषित अपराधी है, तो उसके पासपोर्ट को जब्त या रद्द करने का अधिकार है। अब मुझे एनआरआईयों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए उपयुक्त दस्तावेज चाहिए थे। इसलिए मैंने एक और कदम आगे बढ़ाया।”
साथ मिलकर हम कर सकते हैं
किसी के पासपोर्ट को जब्त या रद्द करना एक लंबी प्रक्रिया है क्योंकि इसमें पुलिस और अदालत भी शामिल होते हैं। कविराज को इसके लिए एक टीम की आवश्यकता थी। इसलिए उन्होंने अपने अभियान में पीड़ितों को शामिल किया। उन्होंने एक सेमिनार का आयोजन किया जहां लड़कियों को कानून के बारे में बताया गया। उन्हें प्रशिक्षित किया गया ताकि वे अधिकारियों की सहायता कर सकें।
आईपीएस अधिकारी ने कार्यालय में लड़कियों के लिए एक जगह की व्यवस्था की जहां बैठकर वे काम कर सकें। अब वे लड़कियां अन्य दो महिला अधिकारियों के साथ काम कर रही हैं जिन्होंने इस कार्य में स्वयं-सहायता की है। साथ मिलकर वे एफआईआर, वारंट जैसे सभी दस्तावेजों की व्यवस्था करते हैं और उचित प्रारूप में कागजी दस्तावेज भी तैयार करते हैं। इसके बाद फाइलें कबिराज के डेस्क पर भेजी जाती हैं, जहां वह इसकी जांच करते हैं और अपराधी का पासपोर्ट जब्त करने का आदेश देते हैं। उन्होंने एक हेल्पलाइन नंबर भी बनाया है, जहां पीड़ित बिना किसी डर और मदद के पहुंच सकते हैं।
कबिराज कहते हैं, “टास्क में पीड़ितों को शामिल करने का सबसे बड़ा उद्देश्य यह था कि वे अधिक संवेदनशील हैं और इस काम को करने की इच्छुक हैं। चूंकि उन्होंने इसी तरह की स्थिति का सामना किया है, इसलिए वे अन्य पीड़ितों को त्वरित सहायता प्रदान करते हैं, जब वे कार्यालय में उनके पास पहुंचते हैं या हेल्पलाइन नंबर के माध्यम से उनसे बात करते हैं। इससे इस पूरी प्रक्रिया को गति देने में भी मदद मिली है।”
अमृत के चेहरे पर मुस्कान आई
कबिराज के अभियान के बारे पता चलते ही, लगभग 2000 महिलाएं चंडीगढ़ के आरपीओ कार्यालय पहुंच गईं। इस महामारी की स्थिति में भी, उन्हें रोजाना 2-3 शिकायतें मिल रही हैं और वे पीड़ितों की मदद करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
अब टीम के साथ काम कर रही अमृत कहती हैं, “इन अनिवासी भारतीयों की एक ही कमजोरी है, और वह है उनका पासपोर्ट। हम जानते थे कि पासपोर्ट जब्त करने से उन पर असर पड़ेगा क्योंकि वे उस देश में नहीं जा सकते जहां वे रहते हैं या फिर यहां भारत वापस नहीं आ सकते अगर वे अपने माता-पिता या रिश्तेदारों से मिलना चाहते हैं। हमें अपेक्षित परिणाम मिले। प्रक्रिया में आगे बढ़ने से पहले ही, उनमें से कुछ लोग संबंधित पीड़ितों के साथ संपर्क बना रहे हैं। वे अदालत के बाहर ही निपटारे के लिए तैयार हैं और पीड़ित को उनका गुजारा-भत्ता देते हैं। मेरे मामले में, केवल मेरी सास का पासपोर्ट जब्त किया गया। मेरे पति के बारे में कुछ नहीं कर सकते क्योंकि उसके पास ऑस्ट्रेलियाई नागरिकता है। मुझे उचित न्याय तो नहीं मिला, फिर भी मुझे खुशी है कि मैं दूसरों की लड़ाई में मदद कर सकती हूं।”
सिबास के नेतृत्व में उनकी टीम ने अब तक 450 से अधिक पासपोर्ट जब्त किए हैं। वहीं सैंतीस पासपोर्ट निरस्त भी कर दिए गए हैं और वे 134 अन्य मामलों पर काम कर रहे हैं। भारत आने के बाद सत्तर अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है। अपनी इस उपलब्धि के बारे में बात करते हुए आईपीएस सिबाश कहते हैं, “यह सिर्फ एक शुरुआत भर है। मुझे उम्मीद है कि आने वाले दिनों में हमें और बेहतर परिणाम मिलेंगे। जब मैंने अपना काम शुरू किया, मुझे पता था कि इस प्रक्रिया में बहुत समय लगेगा और व्यस्तता रहेगी। कुछ मामलों के लिए मुझे कोर्ट-कचहरी के चक्कर भी लगाने पड़ेंगे, लेकिन जब हम कोई केस जीतते हैं और पीड़िता और उसके परिवार वाले मुझसे मिलने आते हैं और धन्यवाद कहते हैं, तो मैं बता नहीं सकता कि मुझे कितनी संतुष्टि मिलती है।”
वहीं अमृत कहती हैं कि सिबास उनके लिए किसी फरिश्ते की तरह थे। वो तब हमारे साथ खड़े थे जब हमारी मदद के लिए कोई आगे नहीं आया।
विदेश मंत्रालय से मिली पहचान
सिबाश के प्रयास अब उनके मूल राज्य पंजाब तक सीमित नहीं है। उनकी उपलब्धियां विदेश मंत्रालय तक पहुंच गई हैं। एमईए ने आईपीएस के प्रयासों और उपलब्धियों की सराहना करते हुए, अब आरपीओ को अन्य स्थानों पर भी ऐसा करने का निर्देश दिया है।
सिबाश को ‘हनीमून ब्राइड्स’ के लिए की जा रही अपनी मदद पर गर्व है। एक उम्मीद यह भी है कि अन्य राज्य भी इस पर तत्परता से काम करना शुरू कर देंगे और अपराधियों को पकड़ने के लिए उसी तरह से काम करेंगे जिस तरह से पंजाब पुलिस ने किया है।
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