सुंदरबन: फॉरेस्ट विभाग के प्रयासों से बदल गई जिंदगियां, पढ़िए कहानी देश का पारंपरिक शुद्ध शहद बनाने वालों की!
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 11 Nov 2021, 2:02 pm IST
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हाइलाइट्स
- सुंदरबन का बनफूल शहद अब पूरे देश में लोकप्रिय हो चुका है
- 2008 बैच के आईएफएस अधिकारी और सुंदरबन में डीएफओ रहे संतोषा गुब्बी आर के प्रयासों ने बदली हनी क्लेक्टर्स की जिंदगी
- फ्लेवर्ड हनी भी मिलता है बिना किसी मिलावट के
कुछ वक्त पहले एक खबर आई थी, जिसके दावे ने भारत में बेचे जा रहे तमाम छोटे-बड़े ब्रैंड के शहद की पोल खोल कर रख दी थी। इस दावे के अनुसार भारत में मिलने वाला अधिकतर शहद मिलावटी बताया गया था, इन सभी ब्रैंड के सैंपल जर्मनी की लैब में हुई जांच में फेल हो गए थे। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शहद की कहानी बताने जा रहे हैं जो कि न केवल पूरी तरह शुद्ध है, बल्कि शहद का काम करने वाले पारंपरिक लोगों के संरक्षण और उनकी आजीविका में योगदान भी देता है।
हम बात कर रहे हैं पश्चिमी बंगाल के मशहूर मैंग्रोव जंगल सुंदरबन के बनफूल शहद की। ये शहद सुंदरबन के पारंपरिक शहद संग्राहकों (कलेक्टर) द्वारा बनाया जाता है। 2008 बैच के आईएफएस अधिकारी और 2018 से 2020 के बीच सुंदरबन में डीएफओ रहे संतोषा गुब्बी आर के प्रयासों से यह शहद अब सुंदरबन से निकलकर पूरे देश में लोकप्रिय हो रहा है। सबसे खास बात यह है कि यह बिलकुल शुद्ध है और खास सुंदरबन की पालतू मधुमक्खियों के छत्तों से निकाल कर बनाया गया है।
बनफूल शहद और समस्याएं
कैसे निकला हल!
वर्तमान में पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग में अपर सचिव के रूप में तैनात संतोषा कहते हैं, “इस समस्या का हल निकालने के लिए फॉरेस्ट विभाग ने एक पहल की। सबसे पहले इन शहद कलेक्टर्स को व्यावसायिक तरीके से मधुमख्खी पालन की ट्रेनिंग दी गयी और फिर इन्हें फॉरेस्ट विभाग के कैम्पस में ही जगह दी गयी, जिससे कि ये मधुमख्खी पालन बिना किसी खतरे के कर सकें। साथ ही हमने सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाए, जिससे कि उन्हें आर्थिक सहारा मिल सके। इसके साथ ही उन्हें आसानी से लोन दिलाने के लिए 3 को-ऑपरेटिव सोसाइटी बनाई गईं। इसमें पंचायत विभाग के अधिकारियों से भी बहुत मदद मिली। इस तरह शुरुआत में हमने लगभग 72 परिवारों को फॉरेस्ट कैम्पस में मधुमख्खी पालन के लिए जगह दी और उन्हें 42 लाख रुपए का लोन दिलाया, जिससे कि वे ‘बी बॉक्स’ (मधुमख्खी पालन के जरूरी बॉक्सेस) खरीद सकें जिनकी कीमत लगभग 3 हजार से 4 हजार तक होती है।”
इसके साथ ही फॉरेस्ट विभाग ने उन्हें देशी मधुमख्खी (ऐपिस सेरेना – Apis Cerana) से लेकर यूरोपियन (ऐपिस मेलफेरा – Apis Mellifera) तक की जानकारी दी और उन्हें उपलब्ध कराया। शहद के संग्रहण के लिए विभाग ने हजारों बोतलें भी उपलब्ध कराई। वहीं, एक बेहतर मार्केट उपलब्ध कराने के लिए, शुरूआत में मार्च 2020 में शहद को लांच किया गया और जून 2020 में यह अमेजन पर मिलना शुरू हो गया। बाद में इनका खुद का भी पोर्टल बनाया गया। इन सभी प्रयासों के बाद अब यह शहद 660 रुपए किलो मिलता है। ये एक बहुत बड़ी कामयाबी है। पहले लगभग 72 परिवार फॉरेस्ट विभाग के साथ ये काम कर रहे थे, अब लगभग 130 परिवार ये काम करने लगे हैं।
फ्लेवर क्यों है ओर्गेनिक
इस शुद्ध शहद के कई फ्लेवर बाजार में आने वाले हैं। खास बात यह है कि ये सभी फ्लेवर भी एक दम शुद्ध और ओर्गेनिक हैं। अगर आप मैंग्रोव शहद का सेवन कर रहे हैं, तो उस शहद के लिए मधुमख्खियों द्वारा अमृत और पराग (Nectar & Pollen) मैंग्रोव से लिया गया होगा, फ्लेवर के बाद में कुछ भी नहीं मिलाया जाता है। इसी तरह अगर आप कोरियंडर (धनिया) फ्लेवर शहद ले रहे हैं, तो उसके लिए भी पराग और अमृत धनिया के पौधों से लिया गया होता है और इस तरह ये फ्लेवर नैचुरल तरीके से तैयार होता है।
फ्लेवर वाले शहद का आइडिया कैसे आया इसकी कहानी भी बहुत दिलचस्प है। संतोषा बताते हैं कि मैंग्रोव शहद के लिए मधुमख्खियों को फूल मार्च से लेकर जुलाई तक मिलते हैं। लेकिन बी तो साल भर बॉक्सेस में रहेंगी। इसलिए इनका माईग्रेसन करवाते हैं और सितंबर से ओक्टोबर तक कोरियंडर फील्ड में रखते हैं। उसके बाद लीची बागान में ले जाते हैं। इस तरह रॉ शहद कलेक्ट होता है और नैचुरल फ्लेवर आता है, बिना किसी मिलावट का।
शायद इसीलिए शेष भारत के शहद से यह शहद बहुत बेहतर है और इसकी इतनी मांग है। 2020 में इस शहद का उत्पादन लगभग 37 मीट्रिक टन था, वहीं इस साल इसका उत्पादन 50 मीट्रिक टन हुआ है। पश्चिम बंगाल सरकार ने भी बनफूल (वन के फूल) को बेचने के लिए एक अलग ब्रांड बनाया है। मैंग्रोव वन से निकाले गए शहद को बनफूल जंगली शहद भी कहा जाता है।
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