जब एक कलेक्टर ने बाइक एम्बुलेंस की शुरूआत कर ‘राइट टू हेल्थ’ की मुहिम छेड़ दी!
- Raghav Goyal
- Published on 17 Dec 2021, 10:56 am IST
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हाइलाइट्स
- यदि किसी ‘एम्बुलेंस’ को गांव में प्रवेश करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, तो इसकी जगह ‘बाइक एम्बुलेंस’ का उपयोग करें
- यह छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ नौकरशाह द्वारा शुरू की गई कई अनूठी और नवीन पहलों में से एक है, जिसको हर तरफ से सराहना मिल रही है
- सांगी एक्सप्रेस ऑपरेशन का जायजा लेते आईएएस अवनीश शरण
बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच का भारत के अधिकतर ग्रामीण हिस्सों में अभाव है, जहां लोग बड़े मेडिकल बिल और समय पर परिवहन की कमी के कारण अस्पतालों में जाने से बचते हैं। आपने सुना होगा कि कई ग्रामीण स्थानों पर, गर्भवती महिलाएं प्रसव के समय अस्पतालों में जाने से बचती हैं, इसके बजाय वे स्थानीय दाइयों की मदद लेती हैं। हालांकि इससे मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य को अधिक खतरा होता है।
इसी तरह, छत्तीसगढ़ के कुछ जिले भी ऐसी ही समस्याओं से जूझ रहे थे, जिनकी न तो सुनवाई हो रही थी और न ही कोई निराकरण। भौगोलिक बाधाओं के कारण, चार-पहिया एंबुलेंस समय पर रोगी तक नहीं पहुंचती, जिससे अक्सर बीमार व्यक्ति की मौत हो जाती थी। इसलिए जरूरतमंदों की आधारभूत चिकित्सा सुविधाओं को पूरा करने के लिए, छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस और बलरामपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी अवनीश शरण ने साल 2018 में जिले में ‘बाइक एम्बुलेंस’ पहल की शुरुआत की, जिसे बाद में कवर्धा सहित कई अन्य जिलों ने अपनाया।
जिलाधिकारी के रूप में ‘बाइक एम्बुलेंस’ पहल की तैयार करना
वर्तमान में शरण तकनीकी शिक्षा, रोजगार और प्रशिक्षण के निदेशक रूप में सेवारत हैं, साथ ही में उनके पास छत्तीसगढ़ के कौशल विकास विभाग के सीईओ का अतिरिक्त प्रभार भी है। शरण ने इस पहल को बहुत ही सटीक तरीके से अपनाया, क्योंकि बस्तर के माओवाद प्रभावित क्षेत्र में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) द्वारा बीमार और घायल लोगों को बचाने के लिए इसका पहले से ही इस्तेमाल किया जा रहा था।
शरण ने इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ बातचीत करते हुए कहा, “बाइक एंबुलेंस एक साइड-कार के साथ काम करती थी, जहां संगी एक्सप्रेस चालक और आशा कार्यकर्ता अपने सभी प्राथमिक उपचार उपकरणों और आपूर्ति के साथ मरीजों को उनके घर से उठाया करते थे और उन्हें पास के क्लिनिक में छोड़ते थे। उपचार के बाद, वही बाइक एम्बुलेंस रोगियों को घर पर वापस भी छोड़ती थी।”
हर गांव के लिए, एक बाइक एम्बुलेंस आवंटित की गई। लोग गांव को आवंटित विशेष नंबरों पर पीएचसी (PHC), सीएचसी (CHC) प्रभारी (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र), या संगी एक्सप्रेस चालक से संपर्क करते थे। यह सभी नंबर स्थानीय ‘पंचायतों’ द्वारा व्यापक रूप से हर घर में और बाइक एम्बुलेंस के प्रचार को लेकर आयोजित किए गए सभी सत्रों में खूब साझा किए गए।
संगी एक्सप्रेस का संचालन और उद्देश्य
चूंकि चार-पहिया वाली एंबुलेंस को लाभार्थी तक पहुंचने में बहुत ज्यादा समय लगता था, साथ ही जिले के अधिकतर अंदरूनी क्षेत्रों में रास्ते ऐसे थे कि वहां कोई भी चार-पहिया वाहन समय से नहीं पहुंच सकता था। इसलिए लोग पास के अस्पताल या क्लिनिक तक पहुंचने के लिए निजी वाहनों की बुकिंग करते थे। यह अक्सर अधिकांश लोगों के लिए बहुत महंगा होता था, फिर भी कई बार लोग वक्त पर नहीं पहुंच पाते थे। लेकिन बाइक एम्बुलेंस ने लोगों के लिए एक सही विकल्प के रूप में काम किया, क्योंकि इसे रोगी के दरवाजे तक पहुंचने में बहुत कम समय लगता था और यह बहुत ही किफायती भी था क्योंकि यह बिलकुल मुफ्त है।
शरण कहते हैं, “सबसे पहली बात, बाइक एम्बुलेंस का मुख्य उद्देश्य उपचार की आवश्यकता वाले महत्वपूर्ण घंटों के भीतर ही लोगों को परिवहन सुविधा देकर मातृ/शिशु/बाल मृत्यु दर को कम करना था। दूसरी बात, इसने दुर्घटना पीड़ितों और अन्य लोग जो किसी आघात से पीड़ित थे, उन्हें ‘इमरजेंसी रिस्पांस सर्विस’ के साथ बहुत ही अधिक आवश्यकता वाली ‘परिवहन सुविधा’ प्रदान की। आखिर में, यह वास्तव में उन लोगों की मदद करता था, जो दूर-दराज के इलाकों में रहते थे। वहीं इस तत्काल चिकित्सा सेवा की पहुंच से मृत्यु दर में कमी आई।”
उन्होंने यह भी कहा, “यह सेवा कोविड-19 महामारी के दौरान भी काम करते हुए आम जनता की मदद कर रही है।”
अपना निजी नंबर, स्कूली छात्रों और अस्पतालों तक पहुंचाना
शरण ने न केवल इन आदिवासी क्षेत्रों की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को बदला, बल्कि वह लोगों को व्यक्तिगत रूप से मदद प्रदान करने के लिए जमीनी स्तर तक गए। इस तरह के एक उदाहरण को देखें, तो उन्होंने जिले के सभी स्कूलों, कॉलेजों और अस्पतालों में अपना व्यक्तिगत नंबर प्रदान किया और जब भी किसी को मदद की आवश्यकता हो, सीधे उन्हें कॉल करने के लिए कहा।
शरण ने इंडियन मास्टरमाइंड्स से कहा, “एक जिलाधिकारी के रूप में यह मेरी नैतिक जिम्मेदारी थी कि मैं उन्हें अपना संपर्क नंबर प्रदान करूं। और इससे छात्रों को जुड़ने में बहुत मदद मिली और मैं स्कूलों के औचक निरीक्षण से कई समस्याओं को हल कर सका जिससे स्कूलों के बेहतर कामकाज में भी मदद मिली। मुझे दिन में कई फोन आते थे और मैं स्कूली बच्चों सहित बहुत से लोगों की मदद कर पाता था।
उन्होंने यह भी कहा, “मेरे इस कोरोना महामारी के दौरान आम जनता को व्यक्तिगत नंबर प्रदान करने के कारण कई लोगों को बहुत मदद मिली, क्योंकि मेरे जिले के कई निवासी जो अन्य राज्यों में फंसे हुए थे, उन्हें आवश्यक उत्पादों (राशन) और पैसे को लेकर बहुत मदद मिल रही थी।” इसने जनता से सीधा संपर्क स्थापित किया और उन्हें अपने जिले के लोगों के लिए अधिक सुलभ बनाया। लेकिन संगी एक्सप्रेस पहल ने न केवल इन आदिवासी क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान कीं, बल्कि ‘स्वास्थ्य के अधिकार’ को लेकर और उस क्षेत्र की महिलाओं के लिए चिकित्सा सुविधाओं की आसान पहुंच के बारे में जागरूकता फैलाई।
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