जब एक कलेक्टर ने कोरोना के यमराज को शहर से बाहर धकेल दिया!
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 2 Nov 2021, 2:01 pm IST
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हाइलाइट्स
- उज्जैन के जिला कलेक्टर आशीष सिंह ने कोविड-19 के कारण देश में सबसे अधिक मृत्यु दर को यहां लगभग शून्य कर दिया।
- एक अस्पताल का निरीक्षण करते उज्जैन के जिलाधिकारी आशीष सिंह
कोरोना महामारी के काल में पिछले साल अप्रैल के अंत तक उज्जैन ने कोविड-19 के कारण देश में उच्चतम मृत्यु दर होने की अनचाही पहचान अर्जित की थी। हालांकि उज्जैन में 184 कोविड रोगियों का आंकड़ा मध्य प्रदेश के कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित शहर इंदौर के 1681 से काफी कम था। लेकिन यह आंकड़ा मौतों को मामले में बहुत अलग था। इंदौर में जहां 81 मौतें हुईं, वहीं उज्जैन में 40 व्यक्तियों की मृत्यु हुई थी, यानी लगभग 23% मृत्यु दर।
5 मई, 2020 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आईएएस अधिकारी आशीष सिंह को उज्जैन के जिला कलेक्टर के पद पर तैनात करते हुए, विकराल होती स्थिति को नियंत्रण में लाने का जिम्मा सौंपा।
सिंह ने आते ही स्थिति की गंभीरता का आंकलन बेहतर तरीके से किया। उस वक्त हालात काफी खराब थे। शहर में स्थित एकमात्र मेडिकल कॉलेज कोविड-19 के परीक्षण के लिए पूरा नहीं पड़ रहा था। अस्पताल की स्थिति दयनीय थी। लोग आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज जाने से भी डरते थे, भले ही उनमें कोविड के लक्षण नजर आ रहे हों। उन्होंने घर पर ही ट्रीटमेंट को प्राथमिकता दी और फिर मेडिकल कॉलेज अस्पताल गए। अधिकांश लोगों की मुकम्मल परीक्षण और उपचार के बिना ही मृत्यु हो गई थी क्योंकि परीक्षण रिपोर्ट, नमूना संग्रह लेने के 15 दिन बाद आती थी।
इसके अलावा, उज्जैन में ऐसा कोई विशेष क्षेत्र भी नहीं था, जिसकी पहचान कोरोना हॉटस्पॉट के रूप में की गई हो। लगभग पूरे शहर से मामले सामने आ रहे थे। इसलिए एक संपूर्ण क्षेत्र को बंद करना अथवा लॉकडाउन लगाना या किसी विशेष क्षेत्र को नियंत्रण क्षेत्र (कन्टेन्मन्ट जोन) घोषित करना एक व्यवहारिक और संभव विकल्प नहीं दिख रहा था।
सामने से नेतृत्व करना
उज्जैन डीसी के रूप में कार्यभार संभालने के तुरंत बाद, आशीष सिंह ने खुद ही इस बचाव की लड़ाई में आगे आए, एक पीपीई किट पहनी और जायजा लेने सड़कों पर उतर गए। उन्होंने न केवल मेडिकल कॉलेज अस्पताल में बल्कि कोविड वार्ड और आईसीयू में भी स्थिति का आंकलन किया। उन्होंने मरीजों, डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ से बुनियादी समस्याओं को समझने के लिए बात की और जो भी संभव था, उसके लिए तुरंत व्यवस्था की। सिंह ने इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए कहा, “हमारे पास कोई और रास्ता नहीं था। मुझे पता था कि अगर मैं आगे आकर नेतृत्व नहीं करूंगा, तो स्थिति को नियंत्रित नहीं किया जा सकेगा।”
इसने उन लोगों में आत्मविश्वास पैदा किया और वे परीक्षण और उपचार के लिए आगे आने लगे। कम से कम 400 ऐसी टीमें एक समय में काम कर रही थीं, घर-घर 10-15 बार पहुंचकर लोगों को कोरोना, इसके लक्षण, बचाव, इम्युनिटी बूस्टर परीक्षण और उपचार के बारे में शिक्षित कर रही थीं। उन्होंने मूल रूप से वहां के लोगों में प्रचलित कई तरह की अफवाहों और भ्रांतियों का भंडाफोड़ किया।
मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में एक अजीब तरह की आशंका चल रही थी, क्योंकि उनके खिलाफ देशव्यापी भावनाओं का उबाल उमड़ रहा था। यह उबाल भी इस लिए था कि लोगों में एक अभियान के तहत छवि बनाई गई कि वायरस का व्यापक प्रसार और प्रकोप एक धार्मिक मण्डली (जमात) के कारण हुआ है जिसमें देश के सभी हिस्सों से मुसलमानों लोगों ने भाग लिया है।
इसीलिए उन्होंने ऐसे इलाकों में मोहल्ला क्लीनिक स्थापित किए और लोगों में विश्वास जगाने के लिए उन्हीं के समुदाय से डॉक्टरों को तैनात किया। मोहल्ला क्लीनिक में इन स्थानीय डॉक्टरों के बीच बाद में विशेषज्ञ डॉक्टर भी लाये गए। वो कहते हैं, “हमारे बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) में बहुत से लोग बाहर आने लगे और चीजें बेहतर होने लगीं।”
बाद की स्थिति
इस सबसे उज्जैन में स्थितियां धीरे-धीरे सुधरने लगी और नियंत्रण में आने लगी। अगस्त के आखिर तक उज्जैन में 1024 रोगियों का कुल आंकड़ा था, जिनमें से 813 कोरोना पीड़ितों का सफलतापूर्वक इलाज किया जा चुका था। 5 मई, 2020 को जो आंकड़ा 40 मौतों का था, वो लगभग 4 महीने बाद 1 सितंबर, 2020 को बढ़कर 71 हो गया था। इसका मतलब है कि पिछले चार महीनों के दौरान सिर्फ 31 और मौतें हुई थीं। यह उस जिले के लिए के लिए कोई खराब उपलब्धि नहीं थी, जो कभी देश में सबसे ज्यादा मृत्यु दर वाला शहर था।
मध्य रात्रि के उपरांत जीवन बचाना
आशीष एक अत्यधिक काम करने वाले व्यक्ति हैं। हाल ही में उन्होंने आयुष्मान हेल्थ इंश्योरेंस कार्ड को एक पुराने मोची को रात 1.35 बजे जारी किया, क्योंकि वह व्यक्ति कोमा की अवस्था में अस्पताल भर्ती था। उसके परिवार के पास निजी अस्पताल में महंगी सर्जरी के लिए पैसे नहीं थे, और न ही उनके पास आयुष्मान कार्ड था। जब आशीष को इस स्थिति का पता चला, तो वह आधी रात को काम करने के लिए निकल गए और मध्य रात्रि के बाद 1.35 बजे कार्ड जारी किया। परिणामस्वरूप अगले दिन ही सुबह उस बूढ़े व्यक्ति की सर्जरी हो गई और उसकी जान बचाई जा सकी।
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