रोचक: 50 फीसदी से अधिक ‘सिविल सेवक’ सरकारी नौकरी करने वाले परिवारों से
- Raghav Goyal
- Published on 5 Nov 2021, 2:05 pm IST
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हाइलाइट्स
- हाल के कुछ रोचक आंकड़ों से पता चलता है कि बड़ी संख्या में यूपीएससी पास करने वाले उम्मीदवार सरकारी सेवा करने वाले परिवारों से आते हैं।
- लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, ये उन परिवारों से नहीं हैं, जो सिविल सेवा में हैं।
- लाल बहादुर शास्त्री नैशनल अकादमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन में आधिकारिक प्रशिक्षु (क्रेडिट: फेसबुक)
चाहे इस साल का संघ सेवा लोक आयोग (यूपीएससी-2020) का परिणाम हो या पिछले साल का, परिणाम घोषित होने के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों और विभिन्न अन्य क्षेत्रों के लोगों की कई सफलता की कहानियां सामने आती हैं। इस साल ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले बिहार के कटिहार जिले के शुभम कुमार ने टॉप किया। वहीं पिछले साल हरियाणा के एक किसान परिवार से नाता रखने वाले प्रदीप सिंह ने अपने सभी प्रतियोगियों को पीछे छोड़ते हुए प्रथम स्थान हासिल किया था और टॉपर बने थे।
लेकिन एक उभरते हुए रुझान ने बहुत अलग तस्वीर की ओर इशारा किया है। साल 2014 के बाद से, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (एलबीएसएनएए) का रिकॉर्ड यह बताता है कि चयनित उम्मीदवारों में से 50 प्रतिशत से अधिक उम्मीदवार सरकारी सेवा करने वाले परिवारों से आते हैं।
पिछले साल तक, मेरिट के हिसाब से जो उम्मीदवार भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के लिए सेवा देने वाले होते थे, उन्हें सिविल सेवा अकादमी एलबीएसएनएए द्वारा हर साल आयोजित फाउंडेशन कोर्स (एफसी) में भाग लेना होता था। हालांकि इस साल से सरकार ने हर सेवा के लिए यह कोर्स अनिवार्य कर दिया है, चाहे वह आईएएस हो या आईफएस या आईपीएस, या अन्य कोई और।
आंकड़े
एलबीएसएनएए की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार, 2014 बैच के 89 वें फाउंडेशन कोर्स में कुल 285 उम्मीदवारों ने भाग लिया। बैच प्रोफाइल में, 171 भर्तियां सरकारी कर्मचारियों के परिवारों से थीं, जो लगभग 60 फीसदी हुईं। बाकी उम्मीदवार बिजनेस, किसान, निजी/कॉर्पोरेट और स्व-रोजगार पृष्ठभूमि से थे। यह प्रोफाइल केवल अधिकारी प्रशिक्षु (ऑफिसर ट्रेनी-ओटी) के पिता के पेशे को दर्शाता है और इसमें उनकी मां का पेशा शामिल नहीं है।
वहीं साल 2015 बैच के 90 वें एफसी में, कुल 350 भर्तियों में से 200 प्रशिक्षुओं के पिता सरकारी सेवा में काम कर रहे थे, जो कि कुल का 57 फीसदी है।
इसी तरह, 2016 में 377 सफल उम्मीदवारों में से 208 अधिकारी प्रशिक्षु सरकारी सेवाओं में सेवा करने वाले परिवारों से संबंधित थे, जो कि 55.1 प्रतिशत है। यक आंकड़ा साल 2017 बैच में 57 प्रतिशत और 2019 में 50 प्रतिशत है।
लेकिन यहां एक अच्छा छोटा सा अंतर भी है। यहां सिविल सेवकों के परिवारों से संबंधित आधिकारिक प्रशिक्षुओं का प्रतिशत बहुत मामूली है, इसका मतलब है कि अधिकतर ट्रेनी विभिन्न अन्य सरकारी सेवा क्षेत्रों से आ रहे हैं, जिन्हें भारतीय प्रसाशनिक सेवाओं से कमतर माना जाता है।
उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी का बयान
इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए 1978 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी और उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी विजय राघव पंत कहते हैं, “भारत में जिस पेशे में किसी व्यक्ति के माता-पिता या पूर्वज काम कर रहे होते हैं, उसकी आने वाली पीढ़ियां भी अधिकतर वही करती हैं। चाहे यह एक इंजीनियर हो या एक डॉक्टर या सिविल सेवक या कोई वकील आदि। हालांकि हर मामले की तरह अपवाद यहां भी होते हैं, और यह हमेशा एक जैसा मामला कहीं-कहीं बदला हुआ भी हो सकता है। मेरा ही उदाहरण देख लीजिए, मेरी दोनों बेटियों ने सरकारी सेवाओं का विकल्प नहीं चुना है, एक वास्तुकार है और दूसरी एक मनोवैज्ञानिक। लेकिन अपने यहां बच्चों में समान पेशा चुनने की सामान्य प्रवृत्ति होती है।”
देश की सबसे कठिन प्रतियोगी परीक्षाओं में से एक सिविल सेवा परीक्षा पास करने के लिए के लिए जुनून और समर्पण की आवश्यकता होती है, सिर्फ सरकारी अधिकारी के परिवार से होने का विशेषाधिकार काम नहीं करेगा। “हालांकि विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए एक मामूली लाभ तो है ही।” जैसा कि पंत भी आगे कहते हैं।
पंत अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, “एक सिविल सेवक के परिवार में बड़े होने वाले उम्मीदवारों की बेहतर शिक्षा और एक अलग तरह की जीवन-शैली तक पहुंच होने की अधिक संभावना है। वे एक विशेष माहौल में भी रहते हैं और बड़े होते हुए एक सिविल सेवक के जैसे मनोविज्ञान का निर्माण खुद में करते हैं। इसके अलावा, यूपीएससी परीक्षा के लिए उपस्थित होने के दौरान उनके पास एक व्यक्तिगत मार्गदर्शक होता है जो उनकी कठिनाइयों को हल कर सकता है।”
वो कहते हैं, “मैं एक ऐसे परिवार में पला-बढ़ा था, जहां मेरे पिता नैनीताल में बैंक मैनेजर थे और मेरी मां गृहिणी थीं। मेरे परिवार का कोई भी सदस्य सरकारी सेवा में नहीं था। फिर भी मैं अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण से यूपीएससी में सफल हुआ। अंत में ‘योग्यता’ की ही बात होती है और तैनाती, नियुक्ति और पदोन्नति सब इसी पर निर्भर करते हैं।”
गैर-सिविल सेवा परिवारों के बीच से प्रेरणा
एक अन्य वरिष्ठ नौकरशाह अशोक कुमार ने भी इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ इस मुद्दे पर बात की। कुमार उत्तराखंड के कानून और व्यवस्था महानिदेशक के रूप में कार्य कर रहे हैं। वो कहते हैं, “सरकारी सेवा में काम करने वाले माता-पिता, हमेशा अपने बच्चों से सरकारी सेवाओं में उच्च श्रेणी की नौकरी हासिल करने की आकांक्षा रखते हैं। उनके बच्चे सिविल सेवाओं की तैयारी करें, यह उनकी सबसे बड़ी इच्छा होती है क्योंकि वे जानते हैं सिविल सेवा एक नेतृत्व करने वाला रुतबा है और इसका समाज में शीर्ष स्थान है।”
कुमार इस पर और स्पष्ट करते हुए कहते हैं, “सिविल सेवकों के बच्चे दूसरों की तुलना में अधिक लाड़-प्यार करने वाले होते हैं। दूसरी ओर, गैर-सिविल सेवकों के बच्चों के बीच प्रेरणा का स्तर काफी अधिक है, लेकिन इसके पीछे एक अलग कारण है। वे अपने माता-पिता की तुलना में जीवन में एक उच्च स्थान और ओहदा प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए आधिकारिक प्रशिक्षुओं का बहुत कम प्रतिशत सिविल सेवकों की पारिवारिक पृष्ठभूमि से संबंधित होता है।”
कुमार कहते हैं, “गैर-सरकारी सेवा के कर्मचारियों के परिवारों से संबंधित शेष आधिकारिक प्रशिक्षुओं के लिए दरवाजे खुले हैं। चूंकि सरकार देश में कर्मचारियों की सबसे बड़ा प्रदाता है, इसलिए सरकारी सेवाओं के परिवारों से संबंधित 50 फीसदी आधिकारिक प्रशिक्षुओं का अनुपात होना बहुत सामान्य है। अंतत: परीक्षा भी योग्यता पर आधारित होती है, इसलिए उम्मीदवार की कड़ी मेहनत और लगन ज्यादातर परिणाम के नतीजों पर निर्भर करेगा।”
तो आखिर इसका मतलब क्या समझा जाए! अंत में शायद यही कि यूपीएससी के लिए एक इच्छुक उम्मीदवार की प्रेरणा और जुनून बहुत मायने रखता है। लेकिन हां सरकारी कर्मचारी के परिवार में पैदा होना भी कुछ हद तक इस पैमाने को एक ओर झुका देता है।
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