सरिस्का के बाघों की रोचक कहानी, अधिकारी की जुबानी
- Pallavi Priya
- Published on 25 Jul 2023, 11:14 am IST
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हाइलाइट्स
- सरिस्का के बाघों की रोचक कहानी, अधिकारी की जुबानी
- ग्लोबल टाइगर्स डे 2023 के अवसर पर इंडियन मास्टरमाइंड्स का विशेष• रिटायर आईएफएस अधिकारी सुनयन शर्मा ने लिखी है किताब- 'वाइल्ड ट्रेजर्स एंड एडवेंचर्स: ए फॉरेस्टर्स डायरी'
- जंगल में चार दशक तक रहने के दौरान हुए अनुभवों और देखी घटनाओं पर आधारित कहानियों का संग्रह है यह
सरिस्का टाइगर रिजर्व और भरतपुर वन्यजीव अभयारण्य में फिर से जान फूंकने का श्रेय रिटायर आईएफएस अधिकारी सुनयन शर्मा को है, जिन्होंने जंगल में लगभग चार दशक बिताए। अधिकारी अभी भी वन्यजीव संरक्षण पर काम जारी रखे हुए हैं। वह सरिस्का टाइगर फाउंडेशन के अध्यक्ष भी हैं। इस यात्रा में उन्होंने कई खतरनाक स्थितियों का सामना किया। जंगली जानवरों से जहां कई बार आमना-सामना हुआ, वहीं आदिवासी लोगों के साथ और उनके लिए मिलकर काम किया। इन सब ने जंगली और वन्यजीवों के प्रति उनकी धारणा और नजरिये को बदल दिया।
‘वाइल्ड ट्रेजर्स एंड एडवेंचर्स: ए फॉरेस्टर्स डायरी’ नामक अपनी नई किताब में राजस्थान कैडर के 1971 बैच के इस अधिकारी ने अपने अनुभवों और घटनाओं को याद किया है। इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए श्री शर्मा ने इस बारे में काफी कुछ बताया।
लोगों को प्रकृति से फिर जोड़ना
श्री शर्मा ने कहा, “पहले जिम कॉर्बेट जैसे कई शिकारी और रुडयार्ड किपलिंग जैसे लेखक जंगल और जंगल के जीवन के बारे में किताबें लिखा करते थे। हाल के दशकों में इसमें गिरावट आई है। लोगों का प्रकृति से जुड़ाव खत्म हो रहा है। मेरा मानना है कि साहित्य उन्हें दोबारा जुड़ने में मदद करने का एक बड़ा माध्यम हो सकता है। इसी मकसद से यह पुस्तक है।”फॉरेस्ट अफसर से लेखक बने श्री शर्मा की यह चौथी पुस्तक है। इससे पहले वह सरिस्का पर “सरिस्का: द टाइगर रिजर्व रोअर्स अगेन” और “बर्ड्स इन पैराडाइज अबाउट भरतपुर” नाम से किताब लिख चुके हैं। इन दोनों के विपरीत “वाइल्ड ट्रेजर्स एंड एडवेंचर्स” में ऐसी कहानियां हैं, जो उन घटनाओं और अनुभवों पर आधारित हैं जहां अधिकारी मौजूद थे। अपने लेखन की कहानी शैली के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि वह पाठकों को बांधे रखना चाहते हैं और कहानियां ऐसा करने का एक शानदार तरीका हैं।
बाघों से मुठभेड़
श्री शर्मा फॉरेस्टर बनने से पहले इंजीनियर थे। वह दरअसल वन्य जीवन के प्रति अपने जुनून के कारण इंडियन फॉरेस्ट सर्विस में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि बहुत से लोग वन्यजीवों का अनुभव लेने के लिए जंगल सफारी बुक करते हैं या चिड़ियाघरों का दौरा करते हैं, लेकिन वास्तव में यह उससे कहीं अधिक है। जंगलों में रहते हुए उनका वन्यजीवों से कई बार सामना हुआ। यहां तक कि बाघ से भी। ऐसी ही एक घटना का जिक्र किताब में भी है, जिसके बारे में उन्होंने कहा, “यह 1991 की बात है। तब मैं पहली बार सरिस्का में फील्ड डायरेक्टर के तौर पर तैनात हुआ था। मुझे तब तक बाघों को लेकर कोई अनुभव नहीं था। मेरे स्टाफ ने बताया कि एक बाघिन ने कांकवारी किले (सरिस्का में) पर कब्जा कर लिया है। मैं नया-नया था और उसके बारे में नहीं जानता था। उत्साह में आकर मैं बाघ को देखने के लिए अपने कर्मचारियों को साथ ले गया। वहां पहुंचने पर हमें बाघिन के पंजों के निशान साफ नजर आ रहे थे। गंध भी इतनी ताजा थी कि ऐसा लग रहा था मानो बाघिन हमारी टीम को देखकर ही वहां से अभी-अभी चली गई हो। मैं महसूस कर सकता था कि वह पास में छुपी हुई है और हमें देख रही है।” यह वास्तव में एक करीबी मुठभेड़ थी और बाद में श्री शर्मा ने अपने कर्मचारियों से उनकी जान खतरे में डालने के लिए माफी मांगी।वह इकलौती करीबी मुठभेड़ नहीं थी। 2008 में तो वह एक बाघिन से लगभग टकरा ही गए थे, जो शिकार के लिए बैठी थी। अधिकारी को तब बाघों को बसाने की जांच के लिए सरिस्का में तैनात किया गया था। बरसात का मौसम था। घासें ऊंची थीं। एक बाघिन तीन दिन से लापता थी। तीसरे दिन उन्होंने जीपीएस से बाघिन का पता लगाया, तो पता चला कि वह सड़क पार कर आबादी वाले इलाकों की ओर बढ़ रही है। चूंकि यह घातक साबित हो सकता था, इसलिए श्री शर्मा तुरंत बाघ को देखने के लिए दो स्टाफ सदस्यों के साथ चले गए। इस प्रक्रिया में वह सचमुच उस बाघिन से टकरा गए, जिसने हाल ही में एक सांभर को मार डाला था। उन्होंने कहा, “हम भाग्यशाली थे कि वह भाग गई, क्योंकि उसे इंसानों की उम्मीद नहीं थी। वरना शिकार पर निकला बाघ या अपने बच्चों के साथ बाघिन सबसे खतरनाक होते हैं।”
काले देवता
श्री शर्मा आदिवासी लोगों के बारे में अपनी धारणा बदलने में मदद करने के लिए फॉरेस्ट सर्विस के भी आभारी हैं। जंगल में अपने शुरुआती दिनों के दौरान वह आदिवासी वाले घने इलाकों में तैनात थे। उन्होंने उनके साथ बहुत समय बिताया। साथ खाना खाया और उनके घरों में भी रहे। पहले उन्हें बताया गया था कि आदिवासी अपराधी होते हैं, क्योंकि वे जंगल के रिसोर्स का उपयोग करते हैं या वन भूमि पर कब्जा करते हैं। उन्होंने कहा, ”जब मैं उनके साथ था, तब मुझे पता चला कि हमने मन से नियम बनाए और उन्हें आदिवासियों पर अपराधी मानकर थोप दिया। लेकिन, हमारे नियम उनकी संस्कृति के अनुरूप नहीं हैं। मैंने उनके रहन-सहन को करीब से देखा। जाना कि वे हमसे कहीं अधिक सभ्य और प्रोग्रेसिव हैं।”उन्होंने अपनी किताब में आदिवासियों को ‘ब्लैक गॉड्स’ कहा है, क्योंकि उन्होंने उनसे बहुत-सी चीजें सीखी हैं। उन्होंने एक घटना का वर्णन किया है, जहां उन्होंने एक ‘बारात’ देखी थी। दूल्हा बांस की छड़ी लेकर जा रहा था और उसके चेहरे पर कुछ सजावट थी। उनके साथ करीब 9-10 लोग थे, जो कुछ बक्से ले जा रहे थे। बांस उसके दूल्हा होने का प्रतीक था। यह देखकर अधिकारी चकित रह गए। बक्सों के बारे में जानने को उत्सुक हुए। बाद में पता चला कि बारात में लोगों की संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि दुल्हन पक्ष ने कितने लोगों पर सहमति जताई है। अगर लोग ज्यादा हैं, तो दूल्हा पक्ष उनके लिए खाना लेकर जाता है। यह जानकर अधिकारी चकित रह गए। इसलिए कि मुख्यधारा के समाज में लड़की वाले को लड़का वाले परिवार के स्वागत की सभी जिम्मेदारियां उठानी पड़ती हैं। सब कुछ करने के बाद भी कई बार उन्हें अपमानित होना पड़ता है।
अपनी नई पुस्तक के माध्यम से श्री शर्मा पाठकों को प्रकृति की ओर आकर्षित करना चाहते हैं और आदिवासियों के बारे में जानना चाहते हैं। उनका मानना है कि चूंकि जानवर वोट नहीं देते, इसलिए उनकी गिनती नहीं की जाती, जबकि आदिवासियों के साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जाता। जब अधिक लोग इनके बारे में जागरूक होंगे, तभी अपनी इकोलॉजी और विभिन्न जनजातियों की समृद्ध संस्कृतियों को बचाया जा सकेगा।
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