बोर्ड परीक्षाओं में 100 फीसदी अंक के पीछे की सच्चाई
- Anil Swarup
- Published on 30 Jun 2023, 3:52 pm IST
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हाइलाइट्स
- सीबीएसई और राज्य बोर्ड छात्रों का प्रदर्शन सुधारने के लिए उनके अंकों में 10 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी कर रहे हैं
- सभी राज्य बोर्ड 2016-17 में 'मॉडरेशन' प्रथा को रोकने के लिए सहमत हुए थे
- नतीजतन 2017 में कर्नाटक के नतीजों में 8 फीसदी की गिरावट आई और पंजाब के नतीजे 10 फीसदी से ज्यादा गिर गए
- वैसे सीबीएसई ने ऊपरी दबाव में इसका पालन नहीं किया और अभी भी अंक बढ़ा रहा है
- Anil Swarup
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के नतीजे हाल ही में जारी हुए हैं। अपने बच्चों के प्रदर्शन से गौरवान्वित माता-पिता ने सोशल मीडिया पर उनके नतीजे साझा भी किए हैं। हालांकि बच्चे इस प्रोत्साहन के पात्र हैं, लेकिन उन्हें और उनके माता-पिता को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि इसका सही से मूल्यांकन करें। इसको करने में किसी तरह की अति न करें।
कुछ साल पहले एक अंग्रेजी अखबार में खबर छपी थी कि दिल्ली विश्वविद्यालय के एलएसआर कॉलेज ने तीन ग्रेजुएशन कोर्स के लिए 100 फीसदी कटऑफ तय किया है। संयोग से अब ऐसी स्थिति नहीं है, क्योंकि कॉलेजों में दाखिला लेने के लिए प्रवेश परीक्षा होती है।
शत-प्रतिशत अंकों का खेल वास्तव में बहुत लंबा सफर तय कर चुका है। 2016 में केंद्रीय स्कूली शिक्षा सचिव का पद संभालने के एक साल के भीतर मैंने भी इस खेल को जान लिया। भारत में कई छात्र अंग्रेजी साहित्य (इंग्लिश लिटरेचर) में शत-प्रतिशत अंक प्राप्त कर रहे थे। ह्यूमैनिटीज के अन्य विषयों के बारे में भी यही सच्चाई थी।
जांच करने पर पता चला कि कई एग्जामिनेशन बोर्ड मॉडरेशन के नाम पर अंक बढ़ा रहे थे। पूरी कवायद जाहिर तौर पर कक्षा 10 और 12 के छात्रों को पास करने के लिए ग्रेस मार्क्स प्रदान करने के साथ शुरू हुई थी। लेकिन धीरे-धीरे यह इन बोर्डों के परीक्षार्थियों को केंद्रीय विश्वविद्यालयों (मुख्य रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय) में प्रवेश दिलाने की कवायद में बदल गई।
10 फीसदी तक अंक बढ़ा रहेः
व्यापक रूप से देखें तो अगर कोई छात्र किसी विशेष विषय में 16 फीसदी अंक लाता है और वह लगभग 5 फीसदी ग्रेस मार्क्स के साथ पास हो सकता है, तो सभी विषयों के मामले में यह आंकड़ा लगभग 10 फीसदी हो गया है। इस प्रकार, हमारे पास एक ऐसा परिदृश्य था जहां जिन छात्रों को एक लंबे अंतर से फेल होना चाहिए था, वे आसानी से पास कर गए। एक और समस्या यह थी कि लगभग हर छात्र को उसके वास्तविक योग्यता से 10 फीसदी अधिक अंक मिलते थे।
इससे एक ऐसी स्थिति पैदा हुई, जहां बड़ी संख्या में छात्रों ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) में 95 फीसदी अंक प्राप्त किए, क्योंकि यह बोर्ड द्वारा निर्धारित अंक बढ़ाने की सीमा थी। प्रभावी रूप से जो छात्र 85 फीसदी और 95 फीसदी के बीच अंक लाता था, उसे 95 फीसदी अंक दिए जा रहे थे।
100 फीसदी अंकों का रहस्यः
इससे बड़ा तमाशा और क्या होगा कि कुछ बोर्डों में अधिकतम सीमा 100 फीसदी तक थी। इसका परिणाम यह हुआ कि छात्रों ने भाषा (अंग्रेजी और हिंदी) में भी 100 फीसदी अंक प्राप्त किए। यह देख कर शेक्सपियर वास्तव में अपनी कब्र में बेचैन हो गए होंगे। लेकिन भारत में स्थिति को इतना गंभीर नहीं माना गया, क्योंकि भविष्य की कीमत पर वर्तमान को फायदा हो रहा था।
इस उपहास के बावजूद, सीबीएसई में देश भर में 80 फीसदी छात्रों के नतीजे हमारी शिक्षा प्रणाली की खराबी दर्शाते थे। अंकों की इस वृद्धि को रोक दिया गया होता, तो पास होने वालों की प्रतिशत में काफी गिरावट आ जाती। सच्चाई का सामना करने के लिए कोई तैयार नहीं था। एक राज्य बोर्ड के अध्यक्ष ने तथ्यों का सामना करना चुना और अंक बढ़ाने अनुमति नहीं दी, तो उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।
सीबीएसई की मॉडरेशन नीति इन सिद्धांतों के आसपास बनी थी-
1. प्रश्नों की गलत व्याख्या/अस्पष्टता और त्रुटियों के कारण यदि छात्र को किसी तरह की कोई परेशानी आती है, तो इसे ठीक करने के लिए कैंडिडेट को कम्पनसेट करना।
2. उतार-चढ़ाव की भरपाई करना और मूल्यांकन प्रक्रिया में एकरूपता लाना।
3. मूल्यांकन में शामिल सब्जेक्टिविटी के तत्व कारण समानता लाना।
4. मल्टीपल सेट स्कीम के तहत प्रश्न पत्रों के विभिन्न सेटों के कठिनाई स्तर में अंतर के कारण कैंडिडेट के सेट-वार प्रदर्शन में औसत उपलब्धियों को बराबर करना।
5. विषयवार और समग्र रूप से पिछले वर्षों की तुलना में मौजूदा साल में कैंडिडेट के पास होने का प्रतिशत लगभग समान रखना।
6. परीक्षकों की क्षमता में भिन्नता के कारण मनमाने और लापरवाह मूल्यांकन पर भी बचाव करना।
सभी के लिए जीत की स्थितिः
इसमें पांचवीं बात सबसे जरूरी थी कि ‘विषयवार और समग्र रूप से पिछले वर्षों की तुलना में मौजूदा साल में कैंडिडेट्स के पास होने की दर को लगभग बनाए रखने के लिए।’ इस प्रावधान के कारण ही इस पास करने की हास्यास्पद दर को जारी रखने की अनुमति दी गई थी। एक बार की गई गलती को बनाए रखना मजबूरी बन जाती है।
यह किन्हीं अन्य कारणों से भी जारी रहा। इस भ्रम से सभी खुश थे। छात्र जाहिर तौर पर खुश थे, क्योंकि उन्हें अधिक अंक मिले थे। वे जानबूझकर इस तथ्य से बेखबर थे कि वह उतने अंकों के हकदार नहीं थे। शिक्षक खुश थे क्योंकि, औसतन प्रत्येक बच्चे ने अधिक अंक प्राप्त किए। स्कूल विशिष्टता का दावा कर सकता है, भले ही वह वास्तव में अस्तित्व में ही न हो। सरकारें खुश थीं, क्योंकि राज्य अच्छा प्रदर्शन कर रहा था।
खतरनाक भ्रमः
कानूनी तौर पर कुछ भी गलत नहीं था, लेकिन यह सभी लोगों के मन में भ्रम पैदा कर रहा था। यह देश के लिए अच्छा नहीं था। इसलिए इसे ठीक करने की आवश्यकता थी। इस समस्या से निपटने के लिए एक रणनीति बनाई गई। राज्यों की मेरी यात्राओं के दौरान संबंधित अधिकारियों के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की गई। लगभग सभी इस बात पर सहमत थे कि इस हानिकारक प्रथा को बंद किया जाना चाहिए, लेकिन वे इसे जारी रखने के लिए मजबूर थे, क्योंकि अन्य लोग इसे बंद नहीं कर रहे थे।
फिर इस मुद्दे पर चर्चा के लिए एक बैठक बुलाई गई। आश्चर्यजनक रूप से एक आम सहमति बन गई। केरल को छोड़कर सभी राज्य बोर्डों ने चालू वर्ष से अंकों में संशोधन या फिर बढ़ोतरी के लिए अंकों में मॉडरेशन देना बंद करने का निर्णय लिया है। तय किया कि यदि आवश्यक हुआ तो राज्य नियमों में संशोधन किया जा सकता है। हालांकि, केरल बोर्ड ने पुष्टि की कि वह अगले वर्ष से मॉडरेशन को समाप्त कर देगा।
इस निर्णय से संबंधित राज्य सरकारों ने मॉडरेशन के नाम पर अंकों में बढ़ोतरी को समाप्त कर दिया। कर्नाटक में पास करने के प्रतिशत में लगभग 8 फीसदी की गिरावट आई। केंद्रीय मंत्री ने इस सफलता के लिए राज्य सरकार की सराहना भी की। पंजाब में पास प्रतिशत 10 फीसदी से अधिक गिर गया। कई अन्य राज्यों ने भी सच्चाई का सामना करने का फैसला किया।
सीबीएसई भी अब इसे खत्म करने के लिए कमर कस रहा है। लेकिन दिल्ली के छात्रों के प्रभावशाली माता-पिता इसके आधार पर उच्च प्रतिशत का भ्रम छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। विडंबना यह है कि इस सूची में नेता, नौकरशाह और वकील शामिल थे, जिनके बच्चे बारहवीं में जब गए तो बढ़े हुए अंकों का लाभ छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे।
प्रभावी अधूरी सच्चाईः
मीडिया भी इसमें शामिल हो गया और इसे बरकरार रखने वाले लोग भी मीडिया को आधा-अधूरा सच बताने में कामयाब रहे। हाई कोर्ट में भी याचिका दायर की गई थी और आरोप लगाया गया था कि सीबीएसई बीच में ही ‘गोल पोस्ट’ बदल रही है। यह समझ पाना मुश्किल था कि अंकों में बढ़ोतरी को दूर करने को ‘गोल पोस्ट बदलने’ के रूप में कैसे समझा जा सकता है।
हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि अंकों का मॉडरेशन पिछले वर्षों की तरह ही जारी रखा जाना चाहिए। आदेश में अंक बढ़ाने का कोई जिक्र नहीं था। सीबीएसई ने केंद्रीय मंत्री के निर्देश पर आदेशों का पूरी तरह पालन करने का निर्णय लिया। पास प्रतिशत नहीं गिरने से सभी खुश नजर आए।
असल में जो बलिदान दिया गया, वह अंक बढ़ाने को दूर करने के लिए एक सैद्धांतिक रुख था। मेरे लिए यह बहुत बड़ी शर्मिंदगी थी, क्योंकि हम अपने शब्दों पर खरे उतरने में असफल रहे। इसने मुझे आज इस प्रणाली के तहत मूल्यांकन किए गए छात्रों के वास्तविक शैक्षणिक प्रदर्शन के बारे में भी चकित कर दिया।
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