सरकारी काम में क्यों आती हैं दिक्कतें
- Anil Swarup
- Published on 1 Jul 2023, 2:26 am IST
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हाइलाइट्स
- AI की सीमाओं को समझना जरूरी है, यह सभी चीजों के कारगर साबित नहीं हो सकता है
- अन्य टेक्नोलॉजी की तरह AI भी एक टूल है और इसे उपयोग करने वाला व्यक्ति लाभान्वित होगा
- AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के बिना अन्य AI (एटीट्यूडिनल इंटेलिजेंस) का कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा
हाथरस जैसी स्थितियों को संभालने या शासन में सुधार के लिए हकीकत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए दृष्टिकोण और सहानुभूति की आवश्यकता होती है, जो भावनात्मक बुद्धिमत्ता का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। आइए हम ‘आर्टिफिशियल’ के हाथों बिक जाने से पहले ‘असली’ हो जाएं। मेरे इस ट्वीट ने ट्विटर पर लोगों का ध्यान खींचा।हाल ही में सरकार में एआई के उपयोग पर प्रकाश डालने वाले कई लेख आए हैं। इसके उपयोग के बारे में शायद कोई संदेह नहीं है, जैसा कि दुनिया के कुछ हिस्सों में पहले से ही चल रहा है। इसलिए, एआई को समझने, आगे बढ़ाने और इसकी उपयोगिता, प्रभावकारिता और आवश्यकता को सभी लोगों को आसानी से समझाने की जरूरत है। यह भी जरूरी है कि इसकी सीमाओं को समझें और इसे सभी चीजों के लिए कारगर उपाय के रूप में प्रस्तुत न करें। अन्य सभी तकनीकों की तरह (एआई भी एक विकसित तकनीक है) एआई भी एक टूल है। यह उतना ही अच्छा है, जितना इसका उपयोग करने वाला व्यक्ति। हालांकि, किसी भी तकनीक का उद्देश्य, खासकर सरकार के संदर्भ में, आम आदमी के जीवन को आसान बनाना है।
असली समस्या दृष्टिकोण में है
केंद्र और राज्य यानी दोनों सरकारों में काम करने का मेरा 38 साल का अनुभव मुझे आश्वस्त करता है कि वास्तविक समस्या टेक्नोलॉजी के साथ नहीं, बल्कि दृष्टिकोण के साथ है। एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के बिना अन्य एआई (एटीट्यूडिनल इंटेलिजेंस) का कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। हाथरस, जहां 19 साल की दलित लड़की के साथ दुष्कर्म किया गया, इस बात का उदाहरण है कि अगर रवैया सही नहीं है तो तकनीक कुछ नहीं कर सकती। ऐसी अधिकांश स्थितियों में और एक प्रशासक के लिए ऐसी परिस्थितियां हर दिन खड़ी होती हैं। टेक्नोलॉजी बहुत कम उपयोगी हो सकती है। ऐसी स्थितियों में संवेदना की आवश्यकता होती है और इसका टेक्नोलॉजी से कोई लेना-देना नहीं है। विडंबना यह है कि टेक्नोलॉजी के उपयोग के लिए भी सही दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
टेक्नोलॉजी ने शासन में बदलाव किया
सही मायने में अगर देखा जाए तो टेक्नोलॉजी शासन को बड़े पैमाने पर बदल सकती है। जैसा कि बार-बार देखने में भी आता है। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) और इससे पहले की राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RASBY) टेक्नोलॉजी पर आधारित हैं। 2015-16 के दौरान पारदर्शी कोयला ब्लॉक नीलामी और 2013-14 के दौरान परियोजना निगरानी समूह की सुविधा के माध्यम से रिकॉर्ड संख्या में परियोजनाओं को मंजूरी भी टेक्नोलॉजी के उपयोग के कारण हुई। कागज रहित और पारदर्शी लेनदेन को सफल मॉडल के रूप में सराहा गया। इसलिए, टेक्नोलॉजी उपलब्ध है और इसका उपयोग किया जा रहा है।
लेकिन, उम्मीद से कम
वैसे जिस स्तर पर शासन में सुधार होना चाहिए था, वैसा नहीं हुआ। मूल समस्या रवैये की है। आप इसे और कैसे समझाएंगे कि केंद्र सरकार के कई मंत्रालय-विभाग अभी भी डिजिटल नहीं हुए हैं? उनके पास अभी भी सचिवालय के गलियारों में भारी मात्रा में फाइलें घूम रही हैं (यदि चल भी रही हैं), जबकि प्रधानमंत्री ने बार-बार टेक्नोलॉजी के उपयोग पर ध्यान दिलाया है। हर कोई इस बात से सहमत है कि टेक्नोलॉजी जीवन को आसान बना सकती है, यह प्रक्रियाओं को पारदर्शी बना सकती है और जवाबदेही में सुधार ला सकती है।तो फिर मौजूदा स्थिति का कारण क्या हो सकता है? क्या यह जड़ता है या अज्ञात भय के कारण है? या शायद गैर-जवाबदेह बने रहने के लिए? या इनमें से एक संयोजन है? कारण चाहे जो भी हो, इसका श्रेय ‘रवैया’ को दिया जा सकता है। वास्तव में ‘पर्याप्त’ तकनीक उपलब्ध है और यह कई समस्याओं का समाधान भी कर सकती है। जब टेक्नोलॉजी का संबंध ‘हमसे’ होता है, तो हम टेक्नोलॉजी का उपयोग करने में तत्पर रहते हैं (जिस तरह से हम सभी अपने व्यक्तिगत जीवन में डिजिटल हो गए हैं, वह काफी अविश्वसनीय है), लेकिन जब समस्या किसी और से संबंधित होती है, तो हम टेक्नोलॉजी का उपयोग करने से बचते हैं। इसलिए कि हम उन्हें अपनी समस्याओं के रूप में देखते हैं। यानी हम ‘दूसरे’ और ‘अपना’ करने लगते हैं।इसलिए, यह एक व्यावहारिक समस्या है। इसका टेक्नोलॉजी से कोई लेना-देना नहीं है। यदि हम सरकार में बैठे लोगों को मौजूदा तकनीक का उपयोग करने के लिए प्रेरित करने में असमर्थ हैं, तो हम उनसे अधिक जटिल और गूढ़ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?
अन्य AI विकसित करे
जो भी हो, असली समस्या टेक्नोलॉजी की न होना नहीं है। मुद्दा यह है कि जहां टेक्नोलॉजी कोई मुद्दा नहीं है (हाथरस जैसी घटनाओं में) और जहां टेक्नोलॉजी शासन के संदर्भ में गेम-चेंजर हो सकती है, दोनों संदर्भों में रवैया कैसे बदला जा सकता है?मुद्दा यह है कि इस अन्य AI (एटीट्यूडिनल इंटेलिजेंस) को कैसे विकसित किया जाए? यह आसान नहीं है, लेकिन यह किया जा सकता है। अल्पावधि में, टेक्नोलॉजी की प्रभावकारिता और उपयोगिता को उपयोगकर्ताओं के सामने प्रदर्शित किया जा सकता है। यह पहले से ही किया जा रहा है, लेकिन इसे और अधिक बढ़ावा देने की जरूरत है। यह ऐसे मामलों पर लागू होगा, जहां टेक्नोलॉजी का उपयोग शासन को प्रभावित करता है।सेवाओं की आपूर्ति के लिए सरकारी अधिकारियों और आम आदमी के बीच भौतिक इंटरफेस को खत्म करने के लिए हरियाणा में जो प्रयास किया जा रहा है, उसे देश के अन्य हिस्सों में भी दोहराया जाना चाहिए। टेक्नोलॉजी और पारदर्शिता का उपयोग नौकरशाहों को राजनीतिक क्रॉस-फायर में फंसने से कैसे बचा सकता है, यह सिविल सेवकों को टेक्नोलॉजी का उपयोग करने के लिए काफी प्रेरित कर सकता है। टेक्नोलॉजी बहुत सारे कठिन परिश्रम को भी कम कर सकती है। ये सब बहुत मुश्किल नहीं है।शायद इससे भी अधिक जटिल है हाथरस जैसी स्थितियों से निपटने में रवैये में बदलाव। यह रातोरात नहीं हो सकता। जैसा कि ‘एथिकल डाइलेमा ऑफ ए सिविल सर्वेंट’ में उल्लेख किया गया है, कि इस मुद्दे को सिविल सेवा के प्रबंधन के एक भाग के रूप में व्यापक रूप से देखना होगा। वास्तव में जो करने की ज़रूरत है वह यह देखना है कि भर्ती कैसे होती है, सेवा में प्रशिक्षण, मार्गदर्शन, स्थानांतरण, अधिकारियों का मूल्यांकन, प्रोत्साहन और महत्वपूर्ण पदों पर पदोन्नति और चयन के तरीकों को हतोत्साहित किया जाता है।
रवैया बदलना जरूरी
उद्देश्य ऐसे व्यक्तियों का चयन करना होना चाहिए, जिनमें नेतृत्व के गुण या लीडर बनने की क्षमता हों। प्रशिक्षण सकारात्मक और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण के निर्माण पर भी केंद्रित होना चाहिए। प्रधानमंत्री द्वारा घोषित मिशन कर्मयोगी हमें बहुत आशा देता है। दरअसल टेक्नोलॉजी का व्यापक उपयोग और प्रशासन में सुधार के लिए किया जा सकता है। शायद तब ‘आर्टिफिशियल’ (एआई) ‘असली’ बन सकता है। फिर भी, हमें टेक्नोलॉजी के उपयोग के माध्यम से सरकार और उसकी एजेंसियों द्वारा एकत्र किए गए व्यक्तिगत डेटा के संभावित दुरुपयोग के बारे में आम आदमी की चिंताओं के प्रति सचेत रहना होगा। आधार को ऐसे मुद्दों का सामना करना पड़ा। फिर हमें एआई के लिए ऐसी नींव तैयार करनी होगी, जो किसी भी संदेह से परे हो। यानी पारदर्शिता से मदद मिलेगी, लेकिन कोई पारदर्शी होना चाहता है या नहीं यह तकनीक पर नहीं बल्कि उसके दृष्टिकोण पर निर्भर करता है
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