केके पाठक नाम है मेरा, झुकता नहीं…
- Indian Masterminds Bureau
- Published on 9 Aug 2023, 12:27 pm IST
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हाइलाइट्स
1990 बैच के आईएएस अधिकारी केके पाठक का जन्म 1968 में हुआ। शुरुआती पढ़ाई उत्तर प्रदेश से की। 1990 में पाठक की पहली पोस्टिंग कटिहार में हुई।
केशव कुमार पाठक नाम है मेरा, झुकता नहीं…। केके के नाम से चर्चित 1990 बैच के इस आईएएस अधिकारी के लिए बिहार में ऐसी ही बातें की जा रही हैं। बता दें कि यह दक्षिण भारतीय फिल्म पुष्पा का मशहूर डायलॉग है, जिसे केके पाठक पर चस्पां किया जा रहा है।
इसकी वजहें हैं। अव्वल तो वह लगभग 33 वर्ष पहले आईएएस में शामिल होते समय के समाज-देशसेवा वाले जज्बे को अभी तक याद रखे हुए हैं। दूसरे, मानते हैं कि इच्छाशक्ति हो तो सड़े-गले सिस्टम को भी सुधारा जा सकता है। इसकी मिसाल है-बिहार की शिक्षा व्यवस्था। इसमें वह राजनीतिक मोहरा बनने से भी नहीं डरते। असल मकसद है केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग द्वारा जारी प्रदर्शन ग्रेडिंग इंडेक्स (पीजीआई) 2021-22 में नीचे से चौथे स्थान पर परे बिहार को ऊपर लाना। बिहार से भी बदतर प्रदर्शन करने वाले और ग्रेड तीन में शामिल केवल तीन राज्य हैं- अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और मिजोरम। बिहार ग्रेड दो में आखिरी पायदान पर है।
श्री पाठक जब से शिक्षा विभाग में एडिशनल चीफ सेक्रेटरी बने हैं, लोकप्रियता का उनका ग्राफ आसमान छूने लगा है। उनके प्रयासों से सरकारी स्कूलों में शिक्षक और बच्चे लगभग शत-प्रतिशत आने लगे हैं। लेट होने या बिना छुट्टी लिए नहीं आने वाले शिक्षकों की सैलरी कट जाती है। यानी ऊपर से नीचे तक के तमाम नट-बोल्ट टाइट किए जा रहे हैं। ऐसी ही मांग करने वाली पब्लिक बेहद खुश है।
लेकिन राजनीति करने वाले उतने ही दुखी हैं। इनमें सबसे ऊपर हैं-शिक्षा मंत्री डॉ. चंद्रशेखर। वह लालू-तेजस्वी यादव की पार्टी राजद से मंत्री हैं। वह शिक्षा विभाग को राजनीतिक लाभ-हानि के आधार पर चलाना चाहते हैं। इसमें पाठक नाम का रोड़ा उन्हें बुरी तरह अखर गया है। वह राशन-पानी लेकर पीछे पड़ गए हैं। जबकि लालू-तेजस्वी यादव की पार्टी राजद के साथ सरकार होने के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनके समर्थन में खड़े हैं। इसलिए कि केके पाठक के कामों से उनकी सुशासन बाबू की इमेज और मजबूत हुई है। इतना ही नहीं, अपराध के बढ़ते ग्राफ से बिहार में जंगलराज की वापसी वाली चर्चा अधिकारी पाठक के प्रयासों की वजह से कहीं पीछे छूट गई है। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस पॉजीटिव नोट पर कोई बड़ा राजनीतिक दांव तक खेलने को तैयार हैं।
कौन हैं केके पाठकः
1990 बैच के आईएएस अधिकारी केके पाठक का जन्म 1968 में हुआ। शुरुआती पढ़ाई उत्तर प्रदेश से की। 1990 में पाठक की पहली पोस्टिंग कटिहार में हुई। फिर गिरिडीह में भी एसडीओ रहे। पहली बार डीएम के रूप में पोस्टिंग 1996 में मिली। गिरिडीह की कमान मिली। 2005 में नीतीश कुमार की सरकार बनी तो पाठक को बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण (BIADA) का मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया। वह बिहार आवास बोर्ड के सीएमडी भी रहे। वह 2010 में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे। 2015 में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद नीतीश ने उन्हें वापस बुलाया। 2015 में आबकारी नीति लागू करने में केके पाठक ने बड़ी भूमिका निभाई थी। पाठक 2017-18 में फिर से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली गए, जहां से 2021 में प्रमोशन पाकर पटना लौटे। 2021 में फेम इंडिया मैगजीन ने भारत के 50 असरदार नौकरशाह की एक सूची निकाली थी, जिसमें केके पाठक का भी नाम था।
विवादों से पुराना नाताः
अपनी कार्यशैली से वह पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव की मुश्किलें भी बढ़ा चुके हैं। पाठक ने 2015 में सनकी कहने पर पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी को लीगल नोटिस भेज दिया था। शिक्षा विभाग से पहले वह एक्साइज डिपार्टमेंट में थे। वहां उनका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें गाली-गलौज करते दिखे थे। इसकी सीएम ने जांच की घोषणा भी की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इतना ही नहीं, जब राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं, तब उनके गृह जिले गोपालगंज के डीएम रहे। गोपालगंज में एमपीलैड फंड से बने एक अस्पताल का उद्घाटन उन्होंने सफाईकर्मी से करा दिया था। जबकि यह फंड राबड़ी देवी के भाई साधु यादव ने दिलाया था। इसके अलावा 2008 में हाईकोर्ट ने पाठक से नाराज होकर जुर्माना भी लगा दिया था।
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