एक सुपरह्यूमन नौकरशाह जिनकी सलाह से अब यूपीएससी में मिलती है सफलता!
- Indian Masterminds Bureau
- Published on 4 Dec 2021, 5:30 pm IST
- 1 minute read
हाइलाइट्स
- वीरेन्द्र ओझा सिर्फ एक सिविल सेवक नहीं हैं, बल्कि एक सुपरह्यूमन हैं। यकीन न हो, तो उनके बारे में यहां जान लीजिए।
- वह एक अल्ट्रा-डिस्टेंस रनर यानी मैराथन धावक हैं जो सैकड़ों किलोमीटर हर सप्ताह दौड़ते हैं।
- वो यूपीएससी छात्रों के लिए एक मेंटर हैं, साथ ही एक उपन्यासकार और एक कवि भी हैं।
- इलाहाबाद की कोचिंग में अपने छात्रों के साथ ओझा
क्या कोई एक कवि और एक उपन्यासकार और एक अल्ट्रा डिस्टेंस रनर और एक सेवारत सिविल सेवक होने के साथ-साथ, यूपीएससी के छात्रों के लिए मेंटर भी हो सकता है? शायद आप कहेंगे नहीं, यह बिलकुल नामुमकिन सा लगता है, क्योंकि एक सिविल सेवक होना ही अपने आप में वक्त की पाबंदियों के सांचे बैठा देता है। हालांकि कुछ हद तक आप सही भी हैं, लेकिन वीरेंद्र ओझा नाम के इस शक्स के बारे में जब आप जान पाते हैं, तो गलत हो जाते हैं। वीरेंद्र के पास दो वेबसाइटें, एक यूट्यूब चैनल, दो फेसबुक पेज और एक टेलीग्राम चैनल हैं, जहां वो हर दिन दो बार यूपीएससी परीक्षा के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए अपने ऑनलाइन लेक्चरों (व्याख्यानों) को प्रसारित करते हैं।
गुजरात के अहमदाबाद में आयकर आयुक्त के रूप में तैनात ओझा हर सुबह 10-15 किलोमीटर दौड़ते हैं, अपने एक आने वाले उपन्यास के लिए रोजाना कम से कम 2000 शब्द लिखते हैं, 9 बजे से 6 बजे तक अपने कार्यालय में उपस्थिति दर्ज कराते हैं और यूपीएससी के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए ऑनलाइन लेक्चर लेते हैं। वह एक दी दिन में इतना सब कुछ कैसे मेनेज कर लेते हैं? इंडियन मास्टरमाइंड्स की टीम के इस सवाल के जवाब में, वो बेहद विनम्रता से कहते हैं, “मैं सुबह 4 बजे उठता हूं और अपने दैनिक वॉक के लिए बाहर जाता हूं। वापस आने के बाद, मैं कार्यालय जाने से पहले अपने उपन्यास का अगला भाग ‘इलाहाबाद डायरी’ लिखने के लिए खुद को समर्पित कर देता हूं।
फिर शाम को आप छात्रों को पढ़ाते होंगे? हमारी टीम ने उत्सुकता से पूछा, और इसके प्रत्युत्तर में, वो कहते हैं, “शिक्षण के लिए समय निकालना सबसे कठिन हिस्सा है। मैं दोपहर के भोजन के दौरान ही 45 मिनट का ऑनलाइन लेक्चर लेता हूं। मैंने इसके लिए अपने दोपहर के भोजन का समय पूर्व निश्चित किया है। दूसरा व्याख्यान देर रात तक होता है। इस बीच जब भी मुझे वक्त मिलता है और मेडे दिमाग में विचार आते हैं, मैं कविता लिखता हूं।”
1993 बैच के आईआरएस अधिकारी और इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से ताल्लुक रखने वाले ओझा के लिए, पढ़ना, लिखना और दौड़ना उतना ही जरूरी है, जितना कि उनके लिए शिक्षण, ये सभी काम उनके लिए अब जनून बन चुके हैं। सिविल सेवाओं में चयन के तुरंत बाद, उन्होंने यूपीएससी के छात्रों को पढ़ाना शुरू कर दिया था। लेकिन, फिर दौड़ना और लिखना इतना समय ले लेता था कि 2015 में उन्होंने सिर्फ पढ़ाने के लिए खुद को समर्पित करने का फैसला ले लिया। उन्होंने ‘मार्गदर्शन’ नाम से मुफ्त कोचिंग शुरू की, जहां सिविल सेवा के लगभग आधा दर्जन अपने जैसे ही समान विचारों वाले सहयोगियों की मदद से वो गरीब तबके के इच्छुक यूपीएससी उम्मीदवारों को तैयार करते हैं।
गरीबों के लिए मुफ्त कोचिंग
यूपीएससी के लिए एक मुफ्त कोचिंग शुरू करने का विचार आखिर उन्हें आया कैसे? वो कहते हैं, “मैं एक अल्ट्रा-डिस्टेंस (लंबी दौड़ यानी मैराथन) रनर हूं, जो शहरों के अंदर सप्ताहांत (इंटर-सिटी वीक-एंड) दौड़ता है। इसी तरह की एक रनिंग के दौरान था कि मैंने स्कूली-बाउंड छात्रों को अपनी लाल बत्ती लगी हुई गाड़ी के आस-पास मंडराते हुए देखा। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या वे भी इस लाल बत्ती वाली गाड़ी को प्राप्त कर सकते हैं और उसी क्षण उन वंचित बच्चों को देखते हुए मुझे यह खयाल आया कि इनके जैसे इच्छुक यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए मुफ्त प्रशिक्षण देना बहुत जरूरी है, तभी शायद ये लोग भी एक दिन सिविल सेवक के मुकाम तक पहुंच सकते हैं।”
लेकिन, शिक्षण इतना आसान काम भी नहीं है, खासकर यूपीएससी के छात्रों को पढ़ाना, जिन्होंने पहले ही अधिकतर चीजें गहनता से पढ़ रखीं हों। उनका मार्गदर्शन करना और उन्हें सही रास्ते पर ले जाना कठिन काम है। उन्हें पढ़ाने के लिए पूरी तरह से तैयार होने के लिए, ओझा ने डेढ़ साल तक स्वयं गहन अध्ययन किया। फिर उन्हें इलाहाबाद में कुछ उनके जैसे ही कुछ मददगार लोग मिले, जिनके साथ उन्होंने दो साल पहले 5000 वर्ग फुट की एक जगह में कोचिंग स्थापित की। इस परिसर में यूपीएससी की तैयारी के लिए आवश्यक सभी पुस्तकों और साहित्य के साथ एक पूरी तरह से भरी हुई लाइब्रेरी है और ओझा की ऑनलाइन कक्षाओं के लिए अत्याधुनिक प्रोजेक्टर के साथ क्लासरूम बनाया गया है।
हर जगह से आए छात्र
छात्रों की मदद के लिए, उनके लेक्चर फेसबुक, यूट्यूब और उनकी वेबसाइटोंके माध्यम से पूरे देश में प्रसारित किए जाते हैं। उनके इलाहाबाद केंद्र पर, उनकी हर क्लास में 45-50 छात्रों भाग लेते हैं, वहीं इसके अलावा लगभग 3000 छात्र देश के विभिन्न हिस्सों से उनकी ऑनलाइन क्लास में शामिल होते हैं।
प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ, यह महत्वपूर्ण नहीं है कि शिक्षक इलाहाबाद या अहमदाबाद में मौजूद हैं या नहीं, या उनके छात्र बलिया में हैं या बीकानेर में, ये सभी कहीं से भी क्लास पढ़ा सकते हैं और क्लास में उपस्थित हो सकते हैं। शिक्षण अब तकनीक की वजह से बहुत आसान हो गया है, बस शिक्षक को अपने ज्ञान, वाक्पटुता और शिक्षण शैली के साथ छात्रों को लुभाने में सक्षम होना चाहिए।
जैसे-जैसे शिक्षण कार्य आगे बढ़ाया, सिविल सेवाओं से ही ओझा के लगभग आधा दर्जन सहयोगियों ने उनकी मदद के लिए अपने हाथ आगे बढ़ा दिए। इनमें उनकी पत्नी इति सिंह आईआरटीएस, केपी सिंह आईपीएस, शिशिर श्रीवास्तव आईआरएस, सुकृती माधव मिश्रा आईपीएस, ऋषभ शुक्ला आईआरएस, आदर्श तिवारी आईआरएस, मोहित जैन आईआरएस, राजगोपाल शर्मा आईआरएस, मनोज गुप्ता आईआरएस, मोटिवेशनल वक्ता अमित सेठ के अलावा प्रस्तुति (प्रेजेंटेशन) विशेषज्ञ रचना तिवारी और अनामिका श्रीवास्तव जैसे लोग शामिल थे।
इन लोगों ने छात्रों से शिक्षण के लिए एक भी पैसा नहीं लिया, उल्टे जरूरतमंद मेधावी छात्रों को खुद के पैसों से मदद की। जरूरतमंदों के लिए, यह अपने आप में बड़ा भाव था। वे उन मेधावी छात्रों को पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन भी दे रहे हैं, जो इस महंगे उपकरण का खर्च वहन नहीं कर सकते। कोचिंग अपने भावी और इच्छुक छात्रों के चयन के लिए परीक्षा और एक साक्षात्कार आयोजित करती है।
कोचिंग से 12 वीं रैंक!
लेकिन क्या इन सबकी निस्वार्थ भाव से की गई इस अथक मेहनत का कुछ सकारात्मक परिणाम आया? इस सवाल के जवाब में चेहरे पर खुशी के कई भाव लिए ओझा बताते हैं, “जी हां, बिलकुल, अजय जैन नाम के एक कोचिंग में मेरे साथी शिक्षक की देश भर में 12 वीं रैंक आई है। हम अभी सिर्फ दो साल के हैं और हमे अपनी उपलब्धियों के आकाश को अभी खोजना है। लेकिन एमएलएन इंजीनियरिंग कॉलेज, इलाहाबाद से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में स्नातक जैन ने 2017 में देश भर में 399, 2018 में 141 और इस बार यानी 2019 में 12 वीं रैंक पाई है। उन्होंने वैकल्पिक विषय के रूप में भूगोल को लिया था।”
उनका स्वभाव निरंतर प्रयोग करने का है। यही कारण है कि उन्होंने अपनी रणनीति बदलने की योजना बनाई है। वो कहते हैं, “मैं उन्हें उनकी 19-20 साल वाली की उम्र में भविष्य के लिए तैयार करने जा रहा हूं, इससे वे अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करते हुए यूपीएससी की तैयारी कर सकेंगे। मेरे पास पहले से ही इस आयु वर्ग में कुछ बेहतरीन प्रतिभाशाली छात्र हैं और मुझे यकीन है कि वे अंतिम परीक्षा को पास करेंगे।” ओझा कभी भी लिखित नोट्स नहीं देते हैं। वह बस लेक्चर देते हैं, और आशा करते हैं कि छात्र अपने हिसाब से अपने नोट्स स्वयं तैयार करेंगे। अब तक उनकी वेबसाइट और यूट्यूब चैनल पर 600 से अधिक लेक्चर और 100 मॉक टेस्ट डाले जा चुके हैं। और हर गुजरते दिन के साथ यह संख्या बढ़ती रहती है।
लेकिन, क्या इतनी दौड़ लगाना शारीरिक रूप से उन्हें थकाता नहीं है? कविताओं और उपन्यासों को लिखने, अपने कार्यालय के काम को पूरा करने और फिर देर रात तक पढ़ाने के लिए, आखिर उन्हें इतनी ऊर्जा कैसे मिलती है? उनके व्यक्तिगत जीवन को लेकर हमारी टीम के इन सवालों के जवाब में, वो कहते हैं, “जी नहीं, इसके विपरीत, यह मुझे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से सकारात्मकता में प्रभावित करता है। यह बिलकुल रोज खाने-पीने जैसी आदत है।”
सप्ताह में 100 किलोमीटर की दौड़
उन्होंने गुवाहाटी-शिलॉन्ग (100 किलोमीटर), गुवाहाटी-चेरापूंजी (54 किलोमीटर), मुंबई-लोनावाला (83 किलोमीटर), मुंबई-पुणे (176 किलोमीटर), शिमला-कालका (96 किलोमीटर) और डरबन-पीटरमैरिट्जबर्ग (74 किलोमीटर) जैसे अंतर-शहरीय दौड़ में शामिल हो चुके हैं। वह आमतौर पर शुक्रवार या शनिवार की रात लगभग 11 बजे दौड़ना शुरू करते हैं और सुबह लगभग 7-8 बजे यह खत्म होती है। वो कहते हैं, “मेरा एक सप्ताह में कम से कम 100 किलोमीटर दौड़ने का लक्ष्य होता है। मैं सप्ताह के दिनों में 10-15 किलोमीटर दौड़ता हूं और सप्ताह के अंत में लक्ष्य पूरा कर लेता हूं।” वह सामान्य तौर पर 10 किलोमीटर की दौड़ को पूरा करने में सिर्फ 45 मिनट लगाते हैं।
और वह अपने लेखन पर कैसे काम करते हैं? इंडियन मास्टरमाइंड्स की टीम के इस सवाल पर वो बताते हैं, “यह (लेखन) आंतरिक संतुष्टि के लिए है। मेरी पहली किताब ‘कुछ शब्द मेरे’ (कविता संग्रह) दो साल पहले तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र और पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी द्वारा इलाहाबाद में विमोचित की गयी थी। मेरी दूसरी पुस्तक ‘कुछ संवाद मेरे’ (कविता संग्रह के खिलाफ) प्रकाशन के लिए एक प्रकाशक के पास है। मैं वर्तमान में एक साथ तीन उपन्यास भी लिख रहा हूं।”
फेसबुक पर पहली किताब
एक साथ तीन उपन्यास! क्या यह उनके लिए बहुत ज्यादा नहीं है? वे कहते हैं कि वह एक शहरी त्रिकोणीय-प्रेम पर एक उपन्यास लिख रहे थे और बीच में एक और कथानक आया, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक वंचित हिंदी माध्यम के छात्र अनुराग शर्मा का यूपीएससी पास करना। उन्होंने अपने दूसरे उपन्यास ‘इलाहाबाद डायरी’ की झलक, अपने फेसबुक पेज पर डाली और इसे जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली। इस प्रकार उन्होंने अन्य उपन्यासों को कुछ वक्त के लिए किनारे कर दिया और फेसबुक पर ‘इलाहाबाद डायरी’ को अपनी पोस्ट के क्रमबद्ध लिखने लगे। यह वास्तव में, फेसबुक पर एक अप्रकाशित पुस्तक को क्रमबद्ध तरीके से लिखने का पहला प्रयास है।
यह उपन्यास अनुराग शर्मा की सिविल सेवाओं की तैयारी, विश्वविद्यालय में उनके प्रतिद्वंद्वियों और उसके बाद उनकी शादी करने की पागल दौड़ के बारे में है। वो पहले ही 280 एपिसोड्स लिख चुके हैं, प्रत्येक में लगभग 1500-2000 शब्द लंबे हैं। इसका अंत कब होगा?
वो कहते हैं, ““मुझे अगले साल की शुरुआत में इसके पूरा करने की उम्मीद है। कई ट्विस्ट और टर्न पाठकों का इंतजार कर रहे हैं। मुझ पर प्रति दिन दो एपिसोड लिखने का बहुत दबाव है, लेकिन मेरे व्यस्त कार्यक्रम को देखते हुए यह संभव नहीं है। हर रोज, मुझे प्रत्येक दिन के एपिसोड पर 150-200 संदेश और प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं।”
उन्होंने इन सभी प्रकरणों को एक पुस्तक में संकलित करने की योजना बनाई है। वो कहते हैं, “यह इतनी अच्छी तरह चल रहा है और प्रशंसा प रहा है कि जब मेरे नायक अनुराग शर्मा का सिविल सेवा में चयन हुआ, तो मुझे इतनी अधिक प्रशंसा और बधाई मिली, जितनी 1994 में मेरे चयन पर भी मुझे नहीं मिली थी।”
ऐसा प्रतीत होता है कि हमें अनुराग शर्मा पर ही नहीं, बल्कि वीरेंद्र ओझा पर भी अभी बहुत कुछ सुनना बाकी है, जो कि अपने 26 साल के अनुभव को सिविल सेवा के लिए इच्छुक उम्मीदवारों को बताने और उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए बहुत ज्यादा उत्सुक हैं।
END OF THE ARTICLE