21 वर्ष में ही रिक्शा चालक का वेटर बेटा बना आईएएस अफसर
- Pallavi Priya
- Published on 7 Oct 2021, 5:03 pm IST
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हाइलाइट्स
- एक रिक्शा चलाने वाले के बेटे और चाय की दुकान पर काम करने वाले, अंसार अहमद शेख ने दृढ़-संकल्प नाम के शब्द को फिर से परिभाषित किया है।
- भारत की सबसे कठिन परीक्षा यूपीएससी पास करने वाले वो देश के सबसे कम उम्र के युवाओं में से एक हैं।
- फर्श से अर्श तक का उनका यह सफर हर युवा के लिए एक प्रेरणा है।
- अपने माता-पिता के साथ आईएएस अधिकारी अंसार शेख
“खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी राजा क्या है।”
पिछली सदी के सबसे बेहतरीन शायरों में शुमार अल्लामा इकबाल के लिखें इन हर्फों का मर्म समझता तो हर इंसान है, लेकिन उसे जिदंगी में उतार पाने का सलीका बहुत कम लोगों को आता है। सिर्फ 21 साल की उम्र में अंसार शेख ने उन सलीकों को अपनी जिदंगी में शब्द दर शब्द उतार लिया था।
यह अचंभित कर देने वाली कहानी यही बताती है कि जीवन में अक्सर मुश्किलें इंसान को तोड़ देती हैं और इस कदर चोट पहुंचाती हैं कि वह जिंदगी की दौड़ शुरू होने से पहले ही हार जाता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो उन्हीं मुश्किलों को सीढ़ियां बनाते हुए उनसे ऊर्जा प्राप्त करते हैं और सफलता हासिल करते हैं। अंसार शेख अब एक ऐसा ही नाम हैं जो देश के हजारों-लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। वह सिर्फ 21 साल की उम्र में यूपीएससी परीक्षा पास करने वाले सबसे कम उम्र के सफल उम्मीदवारों में से एक हैं।
महाराष्ट्र के जालना जिले के शेलगांव नाम के गांव में बेहद गरीब परिवार में जन्में अंसार शेख उन सभी बुनियादी सुख-सुविधाओं से वंचित थे, जिन्हें हम शहरों में बहुत आसानी से पा जाते हैं। उनके पिता एक एक रिक्शा चालक थे जिनकी अंसार की औपचारिक शिक्षा में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वहीं उनकी मां एक खेतिहर मजदूर के रूप में काम करती थीं। इसीलिए अंसार के माता-पिता के लिए परिवार के सदस्यों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करना भी बेहद मुश्किल था। लेकिन वो कहते हैं न कि पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं, इस गरीबी के बावजूद अंसार को बचपन से ही सीखने और शिक्षा प्राप्त करने की प्रबल इच्छा थी।
शिक्षक बने फरिश्ते
जब अंसार कक्षा चौथी क्लास में थे, तो उनके पिता चाहते थे कि वह पढ़ाई छोड़ दें और परिवार का हाथ बंटाने के लिए कुछ काम करना शुरू कर दें। लेकिन अंसार साफ तौर पर न केवल इसलिए पढ़ाई जारी रखना चाहता थे कि वह पढ़ने में बहुत अच्छे थे, बल्कि उन्हें इसमें मजा भी आ रहा था। उस समय उनके क्लास टीचर उनके लिए किसी फरिश्ते की तरह सामने आए और उनके माता-पिता को समझाया कि वो अंसार को आगे पढ़ाई करने दें।
अपने शुरुआती दिनों के बारे में इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए अंसार शेख कहते हैं, “अगर मैं पढ़ाई करने का मौका खो देता तो यह वास्तव में मेरे लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होता। मैं सच में अपने स्कूल से प्यार करता था लेकिन मेरे हाथ में उस वक्त कुछ भी नहीं था। मैं अपने उन शिक्षकों के प्रयासों को कभी नहीं भूल सकता जिन्होंने मेरे माता-पिता को आश्वस्त किया। मैं वास्तव में भाग्यशाली था कि मेरे पिता ने भी इसे समझा और उसके बाद से मेरा समर्थन करना शुरू कर दिया।”
यहां तक कि जिस सरकारी स्कूल में उन्होंने पढ़ाई की, वहां के शिक्षकों की भी बहुत तारीफ करते हैं और उनके आभारी हैं। अंसार कहते हैं, “वो (शिक्षक) बेहतर क्षमता वाले छात्रों की पहचान करते थे और उन्हें कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित करते थे। ऐसा कहा जाता है कि एक अच्छा शिक्षक आपको बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। मैं भाग्यशाली हूं कि 12 वीं कक्षा तक मुझे कुछ बहुत अच्छे शिक्षक मिले। मेरे परिवार के सदस्यों के अलावा, वहीं हैं जिन्हें मेरी सफलता का श्रेय मिलना चाहिए।”
पोछा लगाने से लेकर रेस्टोरेंट में खाना परोसने तक
निरंतर व्यक्तिगत प्रयासों और कुछ नेक दिल लोगों की मदद से अंसार ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर ली। लेकिन सिर्फ पढ़ाई में अच्छा होना ही पर्याप्त नहीं था और इससे उनकी यात्रा बिल्कुल आसान नहीं रहने वाली थी। उन्हें हमेशा आर्थिक रूप से संघर्ष करना पड़ा। अतिरिक्त पढ़ाई के लिए आवश्यक धन की कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने कई तरह के काम किए। जिंदगी ने उन्हें कभी भी आसानी से कुछ नहीं दिया। एक समय उन्होंने अपने गांव के एक रेस्टोरेंट में चाय देने के काम से लेकर टेबल साफ करने और फर्श पर पोछा लगाने तक का काम किया।
उन दिनों के बारे में बात करते हुए अंसार ने कहा, “10 वीं बोर्ड परीक्षा के बाद मेरी दो महीने की छुट्टी थी। मैं इसका बेहतर इस्तेमाल करना चाहता था और कंप्यूटर कोर्स करने की इच्छा थी। लेकिन मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि मुझे इसकी अनुमति मिल सके। इसलिए मैंने कोर्स की फीस चुकाने के लिए एक रेस्टोरेंट में काम करना शुरू कर दिया। मैं वहां सुबह से शाम तक काम करता और बीच में एक घंटे की क्लास के लिए जाता।”
12 वीं कक्षा में संस्कृत
कई बड़ी कठिनाईयों और सराहनीय उपायों से आखिरकार अंसार ने अच्छे अंकों के साथ मराठी माध्यम में 12 वीं पास की। मजे की बात यह है कि उन्होंने अपने पांचवें विषय के रूप में संस्कृत को चुना। संस्कृत के चयन पर अंसार कहते हैं, “मुझे विभिन्न भाषाओं से विशेष प्रेम है। मैंने अपनी स्कूली शिक्षा मराठी में की और हिंदी मेरी मातृभाषा है। मुझे उर्दू भी आती है। इसलिए मैंने संस्कृत को चुना क्योंकि मैं कुछ अलग सीखना चाहता था। मुझे वास्तव में खुशी है कि मैं इसमें भी अच्छा करने में सफल रहा।”
12 वीं बोर्ड के परिणामों के बाद अंसार के जीवन में एक बड़ा बदलाव आया। वे पुणे के प्रसिद्ध फर्ग्यूसन कॉलेज में प्रवेश पाने में सफल रहे और वहां से राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री पूरी की। जैसा कि अंसार कहते हैं कि इस कॉलेज में प्रवेश पाना उनका सपना था। वह जानते थे कि मेरिट सूची में स्थान पाने के लिए उन्हें 86 फीसदी से अधिक अंक लाने होंगे। इसलिए उन्होंने दोगुनी मेहनत की और मेरिट लिस्ट में जगह बनाई। यह उस वक्त तक उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी।
लगभग बदल दिया माध्यम
उन्होंने बड़ी आकांक्षाओं और सपनों के साथ कॉलेज में प्रवेश किया। उन्हें अपने माता-पिता और भाई का समर्थन था, जिसने तब काम करना शुरू कर दिया था और उन्हें खर्च के लिए पैसे भी भेजने लगा था। लेकिन मुख्य चुनौती अब कॉलेज में खुद को साबित करने की थी। वह अंग्रेजी माध्यम में स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे जो कि उनके लिए थोड़ा मुश्किल था। वह एक मराठी माध्यम के छात्र थे और अच्छी अंग्रेजी बोलने में सहज नहीं थे। दो महीनों में ही तंग आकर उन्होंने हार मान ली और अपने माध्यम परिवर्तन के लिए आवेदन कर दिया। लेकिन फिर से उनके लिए शिक्षक फरिश्ता बनकर आए और उन्हें अच्छे प्रोफेसरों का आशीर्वाद मिला, जिन्होंने उन्हें किसी भी तरह प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित किया। अंसारी ने भी एक और कोशिश करने की ठानी और अन्य साथियों के साथ सिर्फ एक महीने के समय में ही सुधार कर लिया।
जब वह दूसरे वर्ष में था तब उन्हें सिविल सेवाओं के बारे में पता चला। उनके स्कूल के एक शिक्षक का राज्य सेवा परीक्षा में चयन हो गया था। इससे उन्हें अपने करियर के बारे में एक दृष्टि मिली और उन्होंने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी। वह महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (एमपीसीसी) में अपने पहले प्रयास में असफल रहे। लेकिन वो अंग्रेजी में कहते हैं न- ‘ब्लेसिंग इन डिसगाइज’ यानी दुख के भेष में सुख। अंसार के साथ भी यही हुआ क्योंकि 2015 में उन्होंने इतनी कम उम्र में अपने पहले ही प्रयास में 361 रैंक के साथ यूपीएससी परीक्षा पास कर इतिहास रच दिया।
उसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन्हें तीन महीने की अवधि के लिए भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में नियुक्त किया गया। उसके बाद वह भारत सरकार के एमएसएमई और कपड़ा विभाग में ‘विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी’ (ओएसडी) के पद पर नियुक्त हुए। वर्तमान में वह दिनहाटा के एसडीएम के रूप में कार्यरत हैं।
‘अन्नपूर्णा’ और ‘बन्धवी’
अंसार को प्रशासनिक अधिकारी के रूप में काम करते हुए अभी लगभग तीन साल से अधिक का ही वक्त हुआ हैं। लेकिन उन्होंने अभी से एक अच्छे और दूरदर्शी नौकरशाह के संकेत देने शुरू कर दिए है। वह अपने क्षेत्र में कुछ जमीनी बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं। अपनी आंखों में उम्मीद की रोशनी लिए हुए अंसार ने कुछ ऐसे अभियान शुरू किए हैं जिनको खूब प्रशंसा मिल रही है।
जिले में कई शिविरों का आयोजन करके, अंसार ने उन हजारों शारीरिक-विकलांग लोगों को प्रमाण-पत्र प्रदान किए, जो अभी तक इस सर्टिफिकेट के महत्व के बारे में नहीं जानते हैं या उन्हें नहीं पाता कि इन्हें कैसे प्राप्त किया जाए। इसके साथ ही उन्होंने सामुदायिक रसोई ‘अन्नपूर्णा’ की व्यवस्था की, जहां लॉकडाउन के कठिन समय में 100 दिनों तक हर रोज 2000 व्यक्तियों को भोजन दिया गया।
अंसार कहते हैं, “ये लोग महामारी से सबसे बुरी तरह से प्रभावित थे। उनके लिए कुछ किया जाना चाहिए था। वो मुश्किल दौर था, उस वक्त हर कोई संघर्ष कर रहा था। इसलिए हमने उन्हें भोजन देने के लिए प्रशासनिक स्तर पर यह अभियान शुरू किया। अब कई अन्य व्यक्ति भी इसमें हमारा समर्थन कर रहे हैं।”
मासिक धर्म के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए, अंसार और उनकी टीम ने जिले में ‘बन्धवी’ (जिसका अर्थ है – दोस्त) नामक एक अभियान तैयार किया। इस कार्यक्रम में जिले के 38 उच्च विद्यालय पहले से ही नामांकित हैं। इस कार्यक्रम के तहत, स्कूलों के तीन छात्रों को मासिक धर्म को लेकर मिथकों और तथ्यों के बारे में प्रशिक्षित किया गया। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्हें अपने स्कूल और पड़ोस में इसका प्रचार करना था।
इसके प्रोग्राम के बारे में बात करते हुए अंसार कहते हैं, “शिक्षा और विकास के मामले में दिनहाटा सबसे पिछड़े जिले में से एक है। लगभग 50% आबादी अनुसूचित जाति की है और यहां सैनिटरी नैपकिन का उपयोग बहुत कम है।”
वो कहते हैं, “केवल 29% महिलाएं और लड़कियां सैनिटरी नैपकिन का उपयोग कर रही हैं। मैं इस बारे में कुछ करना चाहता था, इसीलिए इस विचार के साथ आया। अभियान का प्रारंभिक चरण सफल रहा है। लड़कियों को प्रशिक्षित भी किया गया, लेकिन लॉकडाउन के कारण हम इसे और आगे नहीं ले जा सके। हालांकि मैं सकारात्मक हूं कि हम इसे फिर से उसी उत्साह के साथ शुरू करेंगे और अपेक्षित परिणाम हासिल करेंगे।”
एक आईएएस अधिकारी के रूप में अपनी आकांक्षाओं के बारे में पूछे जाने पर, अंसार कहते हैं, “जब मैं अधिकारी बनकर आया तो मेरे दिमाग में केवल दो चीजें थीं। पहली, मैं गरीब लोगों की मदद के लिए सरकार द्वारा पहले से ही बनाए गए कार्यक्रमों को लागू करने की पूरी कोशिश करूंगा। अगर मैं ऐसा करने में सक्षम हूं तो भी मैं खुद को सफल मानूंगा। दूसरी, मैं अपनी हर नियुक्ति में कुछ नवीन विचारों को सामने लाना और उसे लागू करना चाहता हूं। इससे मुझे असली खुशी और संतुष्टि मिलेगी।”
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