बांसुरी बजाने वाला आईपीएस अधिकारी, जिसकी धुन पर सब मोहित हैं!
- Pallavi Priya
- Published on 22 Dec 2021, 10:56 am IST
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हाइलाइट्स
- एक ऐसे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी, जो अपने प्रशासनिक कार्यों के अलावा, अपने बांसुरी वादन और इंजीनियरिंग कौशल के लिए भी पूरे देश में जाने जाते हैं।
- यकीन मानिए, 1988 बैच के एजीएमयूटी कैडर के आईपीएस अधिकारी डॉ. मुक्तेश चंदर जैसे लोग कभी-कभार ही मिलते हैं।
- आईपीएस अधिकारी डॉ. मुक्तेश चंदर
किसी को इस पर बहुत आश्चर्य हो सकता है कि कैसे एक आईएएस या एक आईपीएस अधिकारी अपने काम और जुनून दोनों को एक समान ऊर्जा और जोश के साथ कर सकता है। ऐसे कई उदाहरण हैं। लेकिन अगर हम आपसे कहें कि एक आईपीएस अधिकारी ऐसे हैं जो अपने एक नहीं बल्कि दो जुनूनों का पीछा करते हुए अपनी प्रशासनिक नौकरी भी सभी कर्तव्यों के साथ निभा रहे हैं, तो इस पर किसी के लिए भी यकीन करना मुश्किल हो सकता है। जी हां, लेकिन यह सच है, आईपीएस डॉ मुक्तेश चंदर एक ऐसे अधिकारी हैं जो अपनी व्यस्त प्रशासनिक नौकरी के साथ-साथ एक ही समय पर तकनीक से जुड़ी रचनात्मकता के साथ-साथ एक संगीत विधा में भी पारंगत हैं, और ये दोनों सिर्फ उनके लिए शौक नहीं हैं, बल्कि जुनून भी बन चुके हैं।
एजीएमयूटी कैडर के 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी, डॉ. चंदर एक अनुकरणीय बांसुरी वादक भी हैं। इसके साथ-साथ उनकी रचनात्मकता के कई अन्य आयाम भी हैं। अपने खाली समय में, डॉ. चंदर लोगों के घरों और मजबूत बनाने के उद्देश्य से उपकरणों का निर्माण करते हैं।
हालांकि वो एक प्रशिक्षित बांसुरी वादक नहीं है, लेकिन उनका वादन उनके श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता है। अब तक, डॉ. चंदर ने लगभग 100 से अधिक बांसुरी वादन की प्रस्तुतियां दी हैं। उनका एक ऑडियो एल्बम आ चुका है और दो आने वाले हैं।
इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ विस्तृत बातचीत में वो कहते हैं, “मैंने बांसुरी नहीं चुनी। बल्कि, बांसुरी ने मुझे चुना। मेरी उम्र 10 या 12 साल की रही होगी, जब इस वाद्य यंत्र के साथ मेरा रोमांस शुरू हुआ था। एक दिन, मेरे पिता के दोस्तों में से एक, जो बांसुरी बजाते थे, हमसे मिलने आया। हमने उनसे हमारे लिए बांसुरी बजाने का अनुरोध किया। उनके वादन के बाद, मैं और मेरे भाई भी बांसुरी पर हाथ आजमाना चाहते थे। यह एक पेशेवर बांसुरी थी। वह हमें अपना वाद्य यंत्र कुछ वक्त के लिए देने को तैयार हो गए। इसके साथ ही, उन्होंने उस बच्चे को एक पुरस्कार के रूप में अपनी बांसुरी देने की घोषणा की, जो सबसे अच्छा वादन करेगा। और सौभाग्यशाली रहा कि मेरे प्रदर्शन को उनके द्वारा सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया, मैंने एक ‘ट्रॉफी’ जीती। इस तरह बांसुरी मेरे जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन गई।”
डॉ. चंदर वर्तमान में दिल्ली सरकार में विशेष आयुक्त (ऑपरेशन एंड लाइसेंसिंग) हैं। उन दिनों के बारे में बताते हुए, जब उन्होंने बांसुरी बजाना शुरू किया था और उस पर धीरे-धीरे महारत हासिल कर ली थी, उन्होंने कहा, “जब मैं एक आईपीएस अधिकारी नहीं रहूंगा, तब भी मैं हमेशा एक बांसुरी वादक रहूंगा।”
सार्वजनिक जगहों पर वादन
यह बात भी मजेदार है कि इतने शानदार बांसुरी वादक आईपीएस डॉ. चंदर को संगीत में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिला। वह धुन सीखने के लिए बार-बार गाने सुनते थे। समय के साथ, उन्होंने अच्छी तरह से बांसुरी बजाना शुरू कर दिया। सबसे पहले, उन्होंने अपने परिवार और दोस्तों के सामने अपनी कला का प्रदर्शन करना शुरू किया। फिर उनकी प्रतिभा का धमक उनके स्कूल तक पहुंच गई और उन्होंने सांस्कृतिक उत्सवों में वादन शुरू कर दिया।
यह उनके कॉलेज और आईपीएस अकादमी में भी जारी रहा। लोग उनके संगीत के प्रशंसक बनते चले गए। डॉ. चंदर कहते हैं, “चूंकि मैंने संगीत सीखा नहीं है, इसलिए मैं शास्त्रीय संगीत नहीं बजा सकता। लेकिन इसके अलावा, किसी भी तरह के बॉलीवुड या पश्चिमी संगीत के लिए मुझे केवल 9 से 10 बार एक गाना सुनना होगा और उसके बाद मैं उसका वादन आपके सामने प्रस्तुत कर दूंगा। वैसे मैं अधिकतर भक्ति और हिंदी फिल्मी गाने बजाता हूं। हालांकि, देशभक्ति के गाने बजाने में मुझे हमेशा संतुष्टि मिलती है और गर्व महसूस होता है।”
डॉ. चंदर को दूरदर्शन के लिए कई कार्यक्रमों में वादन कर चुके हैं और उन्हें खूब प्रशंसा मिली है। अपने पसंदीदा वादनों में से एक को याद करते हुए, डॉ चंदर ने हमें बताया, “मुझे एक बार दूरदर्शन द्वारा ‘स्वरंजली’ के लिए संपर्क किया गया था। यह लाइव कार्यक्रम उन सभी शहीदों के लिए एक संगीतमय श्रद्धांजलि थी, जिन्होंने हमारे महान देश के लिए अपना बलिदान दिया। तत्कालीन रक्षा मंत्री, थल सेना, नौसेना और वायु सेना प्रमुखों के साथ-साथ पैरा मिलिट्री फोर्सेस के अधिकारी जैसे कई वीआईपी दर्शक गण इस कार्यक्रम में मौजूद थे। मैंने मशहूर हिंदी फिल्म ‘बार्डर’ से एक बेहद मशहूर गाना ‘संदेशे आते हैं’ बांसुरी पर बजाया, वादन सुनकर कार्यक्रम में मौजूद सभी की आंखे नाम हो गईं, हर एक की आंखों में आंसू थे। यह मेरे लिए बहुत ही अच्छा पल था। मैं अब भी गर्व और धन्य महसूस करता हूं कि मुझे ऐसा अवसर मिला, जो शायद जीवन में एक बार आता है।”
उनका एक और पसंदीदा प्रदर्शन तब का है, जब उन्होंने मशहूर बॉलीवुड संगीत निर्देशक जोड़ी ‘आनंद-कल्याण’ में से महान संगीतज्ञ आनंद वीरजी शाह के सामने वादन किया था। उस दिन इन महान संगीत निर्देशक का जन्मदिन था और डॉ. चंदर ने उनकी फिल्मों जैसे कोरा कागज, जब जब फूल खिले आदि से गानों पर बहुत मनमोहक वादन किया। इसके अलावा एक बार उन्होंने गोवा के राजभवन में आयोजित एक कार्यक्रम में भी भाग लिया।
गोवा में अपने वादन के बारे में बताते हुए, डॉ. चंदर कहते हैं, “यह भी मेरे दिल के बहुत करीब है। मैं उस पल को कभी नहीं भूल सकता। यह गोवा के तत्कालीन राज्यपाल द्वारा आयोजित एक सुंदर कार्यक्रम था। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि कार्यक्रम पूर्णिमा के दिन हो। तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के साथ-साथ राज्य के अन्य मंत्रियों ने भी कार्यक्रम को अपनी उपस्थिति सुशोभित किया। वहां कोई अन्य रोशनी नहीं थी और मैंने लगभग 10 गानों पर वादन किया, ये सभी चंद्रमा पर लिखे गए थे। यकीन मानिए, दर्शकों की तरफ से तलियां रुक ही नहीं रही थीं। इसलिए, यह भी मेरा एक पसंदीदा वादन है।”
डॉ. चंदर दिल्ली और गोवा के विभिन्न आर्केस्ट्रा के साथ भी बांसुरी वादन कर चुके हैं। आमतौर पर उन्हें अभ्यास के लिए पर्याप्त समय मिलता है, लेकिन अपनी ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा के साथ वह दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहते हैं। अपनी प्रेरणा के बारे में वो बताते हैं, “शुरुआती दिनों में, मैं पन्नालाल घोष के काम को घंटों तक सुनता रहता था। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है। उनके अलावा, मैं हरि प्रसाद चौरसिया और रोनू मजूमदार का भी बहुत बड़ा प्रशंसक हूं। इन दोनों का मुझ पर बहुत प्रभाव है, और इन दोनों के काम ने मुझे अपने जुनून को आगे बढ़ाने में मदद की है।”
अचानक से सिविल सेवा में आना
डॉ. चंदर ने दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से बीटेक किया और आईआईटी दिल्ली से सूचना सुरक्षा में पीएचडी की है। उन्हें डिफेंस एकेडमी में साइबर सिक्योरिटी फेलोशिप के लिए भी चुना गया था। तीन दशकों से भी अधिक समय के अपने करियर में, वह केंद्र निदेशक साइबर डिवीजन (एनटीआरओ), संयुक्त पुलिस आयुक्त (प्रधानमंत्री सुरक्षा), डीआईजी गोवा और दिल्ली में विशेष आयुक्त (यातायात) के रूप में विभिन्न बड़े पदों पर रहते हुए देश के सबसे बेहतरीन अधिकारियों में से एक रहे हैं।
हालांकि, सिविल सेवा उनका बचपन से ही सपना कभी नहीं था। यह उनके लिए एक क्षणिक या यूं कहें कि तत्कालिक लिया गया फैसला था। वो कहते हैं, “बीटेक के बाद, मैंने भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) में काम करना शुरू कर दिया। मैंने हमेशा तकनीक से प्यार किया और अपनी नौकरी से भी काफी संतुष्ट था। कुछ साल नौकरी करने के बाद एक घटना ने मेरी जिंदगी बदल दी। एक महत्वपूर्ण परियोजना का नेतृत्व करने के लिए एक कम योग्य सहयोगी ने मेरी जगह ले ली। इस अनुचित व्यवहार से मैं अत्यन्त दुःखी था। मैंने उसी वक्त नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया और सिविल सेवाओं की तैयारी शुरू कर दी। मैं खुशकिस्मत हूं कि मैंने अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास कर ली।”
तकनीक के साथ अटूट बंधन
डॉ. चंदर एक कुशल इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं और कंप्यूटर कोडिंग भी अच्छे से जानते हैं। प्रशासनिक सेवा में आने के बाद भी उन्होंने कभी इंजीनियरिंग नहीं छोड़ी। जब भी उन्हें खाली समय मिलता है, वह उपकरणों पर काम करते हैं और उन्हें विकसित करते हैं। इनमें से कईयों का उपयोग साइबर और गृह सुरक्षा में किया गया है। उनका कहना है कि प्रौद्योगिकी के साथ उनका बंधन अटूट है। उन्हें केवल दो चीजों से प्यार है – बांसुरी और तकनीक।
उन्होंने एक गृह सुरक्षा प्रणाली भी विकसित की है। वह कहते हैं कि ‘सीसीटीवी’ घर की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं करता है। यह एक घटना के बाद दोषियों की पहचान करने में उपयोगी हो सकता है, लेकिन उस घटना को रोकने में उपयोगी नहीं है। मेरे दोस्त के घर में चोरी हुई थी और यहां तक कि सीसीटीवी फुटेज भी दोषियों की पहचान करने और उन्हें गिरफ्तार करने में मददगार नहीं साबित हुई।
इसने मुझे सीसीटीवी के अलावा किसी दूसरे तरह के अलार्म सिस्टम का उपयोग करने के बारे में सोचने पर मजबूर किया, जिससे कि मकान मालिकों को घुसपैठ के बारे में सतर्क किया जा सके। विदेशों में, इस प्रकार की प्रणालियां पहले से ही उपयोग में हैं, लेकिन यहां हमारे पास ऐसा नहीं है। मैंने अपने दोस्तों के लिए उस डिवाइस को बनाना शुरू किया। इसमें मोशन सेंसर सहित सभी तरह के सेंसर हैं। यदि कोई गलत तरीके से घर में घुसने की कोशिश करता है, तो उपयोगकर्ता द्वारा चुने गए तीन व्यक्तियों को चेतावनी संकेत भेजा जाता है। ऐसा होने से यह घटना को होने से पहले ही रोकने में मदद करता है।”
कई लोग डॉ. चंदर को सुझाव दे रहे हैं कि वे सुरक्षा उपकरणों का व्यावसायिक उद्देश्य से उत्पादन शुरू करें। लेकिन वह इन सुझावों पर हंस पड़ते हैं। वो कहते हैं, “मैंने इसे एक दोस्त के लिए बनाया है।” लेकिन निश्चित रूप से, इन उपकरणों को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद की योजनाओं में जगह दी जा सकती है। और हां, बांसुरी तो उन योजनाओं में अनिवार्य रूप से रहे रहेगी ही!
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