तेलंगाना में कलेक्टर और यूपीएससी-17 के टॉपर ने अपने इस फैसले से पूरे देश में बटोरी तारीफें, कई अधिकारियों ने पहले भी दिया है ऐसा सामाजिक संदेश!
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 13 Nov 2021, 2:10 pm IST
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हाइलाइट्स
- यूपीएससी-2017 के टॉपर और भद्राचलम जिले के कलेक्टर अनुदीप दुरीशेट्टी ने अपनी पत्नी को प्रसव के समय सरकारी अस्पताल में कराया भर्ती
- राज्य के मंत्री से लेकर अधिकारी तक कर रहे उनकी तारीफ, बताया बड़ा सामाजिक संदेश
- पहले भी कई अधिकारी सरकारी अस्पताल से लेकर आंगनवाड़ी तक का उपयोग कर दे चुके हैं आम लोगों को मेसेज
साल 2018 में यूपीएससी-2017 के जब परिणाम आए तो तेलंगाना के रहने वाले अनुदीप दुरीशेट्टी ने अपने पांचवे प्रयास में सिविल सेवाओं में टॉप करते हुए पहली रैंक हासिल की थी। देश के बेहद प्रतिष्ठित बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालजी एंड साइन्स (बिट्स), पिलानी से पढे हुए अनुदीप ने यूपीएससी के लिए अपनी गूगल जैसी दुनिया की शीर्ष कंपनी की नौकरी भी छोड़ दी थी।
अब लगभग 3 साल बाद अनुदीप ने फिर से एक ऐसा काम किया है जो यह दिखाता है कि वास्तव में वो सिविल सेवा में ही नहीं, बल्कि जीवन के हर हिस्से में शीर्ष स्थान पाने और आम लोगों को प्रभावित करने की काबलियत रखते हैं। वर्तमान में तेलंगाना के भद्राद्री-कोठागुडम (भद्राचलम) जिले के कलेक्टर अनुदीप ने अपनी पत्नी के प्रसव के लिए किसी महंगे निजी अस्पताल के बजाय एक सरकारी अस्पताल को चुना और व्यपाक तौर पर समाज में एक बड़ा संदेश दिया। तेलंगाना के जगित्याल जिले के मेटपल्ली कस्बे के रहने वाले अनुदीप को 2018 में उनका होम कैडर यानी तेलंगाना आवंटित किया गया था। तब से वो वहीं अपनी सेवाएं दे आढ़े हैं।
सरकारी अस्पताल में भी बेहतर सुविधाएं
अनुदीप ने अपनी गर्भवती पत्नी माधवी को जिले के एक ग्रामीण इलाके के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती कराकर मिसाल कायम की है। अस्पताल में माधवी का सी-सेक्शन ऑपरेशन हुआ और उन्होंने एक प्यारे बच्चे (लड़के) को जन्म दिया है। वास्तव में एक ऐसे समय में जब अधिकतर लोग सरकारी अस्पतालों में जाने से कतरा रहे हैं, अनुदीप ने अपनी पत्नी को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराकर एक बड़ा सामाजिक संदेश दिया है। अस्पताल में वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ सुरपनेनी श्रीक्रांति और भार्गवी ने यह सर्जरी अंजाम दी। मां और बच्चा दोनों अब स्वस्थ हैं।
आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित मंदिरों के शहर कहे जाने वाले भद्राचलम के जिला अस्पताल के डिप्टी सुपरिटेंडेंट एम. रामाकृष्णा ने मीडिया से कहा, “जिला कलेक्टर अनुदीप की इस पहल से सरकारी अस्पतालों में आम जनता का भरोसा फिर से मजबूत होगा। साथ ही उनका यह फैसला हमेशा एक मिसाल के तौर पर लिया जाएगा। कलेक्टर चाहते तो अपनी पत्नी को किसी बड़े निजी अस्पताल में ले जा सकते थे, लेकिन उन्होंने सरकारी अस्पताल चुना। उन्होंने सभी को यह दिखाया कि हमारे सरकारी अस्पताल भी निजी अस्पतालों से कम नहीं हैं। इतना ही नहीं, एडमिट होने से पहले भी उनकी पत्नी हमारे यहां रेगुलर चेक-अप के लिए आती रहती थीं।”
मंत्री ने की तारीफ
वहीं, वर्तमान में तेलंगाना के वित्त मंत्री टी हरीश राव, जिन्हें हाल ही में चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग आवंटित किया गया था, ने भी कलेक्टर के अपनी पत्नी की डिलीवरी के लिए एक सरकारी अस्पताल चुनने पर खुशी व्यक्त की। उन्होंने सोशल मीडिया का सहारा लेते हुए लिखा, “अनुदीप और उनकी पत्नी को हार्दिक बधाई। मुझे उम्मीद है कि मां और बच्चा दोनों ठीक हैं। यह देखकर हमें बहुत गर्व होता है कि कैसे सीएम केसीआर गारू के कुशल नेतृत्व में राज्य का चिकित्सा ढांचा लोगों की पहली पसंद साबित हुआ है।”
पहले भी कई अधिकारियों ने सरकारी अस्पताल को दी वरीयता
इससे पहले भी प्रशासनिक सेवा के कई अधिकारियों ने इस तरह के काम करते हुए सामाजिक संदेश दिये हैं। हाल ही में, तेलंगाना के ही खम्मम जिले की अतिरिक्त जिला कलेक्टर स्नेहा लता मोगिली ने भी सरकारी अस्पताल में अपनी बच्ची को जन्म देकर राज्य के लोगों के लिए नजीर पेश की थी। उस वक्त भी पूरे देश में इसकी प्रशंसा हुई थी। इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ एक विशेष बातचीत में, आईएएस अधिकारी ने कहा था, “अस्पताल में मेरा बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया गया और खूब खयाल रखा गया। नर्सों और डॉक्टरों का काम बहुत ही अच्छा था। खास बात ये है कि वहां डॉक्टरों की एक बहुत अच्छी टीम थी जिसमें तीन स्त्री रोग विशेषज्ञ, एनेस्थिसियोलॉजिस्ट और बाल रोग विशेषज्ञ शामिल थे। वहां विभिन्न विभागों के डॉक्टरों की एक टीम मिली, जो निजी सेट-अप में इस तरह नहीं होती।”
वहीं, कुछ वक्त पहले मध्य प्रदेश के आईएएस अधिकारी प्रवीण सिंह ने भी जिला अस्पताल के प्रसूतिगृह में अपनी पत्नी का सुरक्षित प्रसव करवाया। प्रवीण भिण्ड में जिला पंचायत सीईओ के पद थे।
कई अफसर ला चुके हैं बदलाव की मीठी बयार
गौरतलब है कि देश के कई दूर-दराज के क्षेत्रों में तैनात नेकनीयत नौकरशाहों के पास एक अपना तरीका होता है, जो आम लोगों की मानसिकता को बदलने के लिए काम आता है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां आईएएस अधिकारी समाज को संदेश देने के लिए जानबूझकर कई ऐसे काम करते हैं। ऐसे ही कई अधिकारी अपने बच्चों को आंगनबाड़ी स्कूलों में भी दाखिला दिला चुके हैं। इससे समाज में एक संदेश गया कि सरकारी प्राथमिक स्कूल भी निजी स्कूलों से कम तर नहीं हैं।
2012 बैच की आईएएस अधिकारी और उत्तराखंड के चमोली जिले की डीएम स्वाति भदौरिया 2 स्वाति भदौरिया ने अपने बेटे अभ्युदय का आंगनबाड़ी स्कूल में प्रवेश दिलाकर एक मिसाल कायम की। छत्तीसगढ़ कैडर के 2009 बैच के आईएएस अधिकारी अवनीश शरण ने अपनी बेटी को शुरुआती छह महीने के लिए आंगनबाड़ी भेजा और फिर उसे सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाकर एक बड़ा संदेश दिया है।
ऐसा ही एक अन्य उदाहरण मध्य प्रदेश कैडर के 2012 बैच के आईएएस अधिकारी पंकज जैन का है जिन्होंने अपनी बेटी पंखुड़ी को एक आंगनबाड़ी स्कूल में भेजा। वहीं, पूर्व सिक्किम के जिला कलेक्टर और 2009 बैच के आईएएस अधिकारी राज यादव ने अपने दो बच्चों को एक सरकारी स्कूल में भर्ती कराया। इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ फोन पर बातचीत में उन्होंने कहा, “मैंने अपने बच्चों को शुरुआती छह महीनों के लिए एक निजी स्कूल में भेजा, लेकिन इससे उन्हें बहुत ज्यादा मानसिक दबाव में पाया। मैंने फिर उन्हें सिक्किम के सरकारी स्कूल में स्थानांतरित कर दिया।”
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