इस मुश्किल दौर में परेशान हर महिला की मदद करने वाला आईपीएस अधिकारी!
- Pallavi Priya
- Published on 6 Nov 2021, 5:20 pm IST
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हाइलाइट्स
- रायपुर के एसएसपी आरिफ शेख ने मुश्किलों में फंसी महिलाओं की मदद के लिए कई नवीन योजनाएं शुरू की हैं।
- ‘चुप्पी तोड़’ एक ऐसी ही एक बेहद सराहनीय और सफल पहल है।
- आरिफ शेख डीआईजी, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, रायपुर, छत्तीसगढ़
नोवेल कोरोनावायरस की वजह से भारत सहित दुनियाभर में तालाबंदी ने कई तरह की समस्याओं को पैदा किया है। इनमें से एक है, घरेलू हिंसा की घटनाओं में अचानक वृद्धि। इसका सबसे स्पष्ट कारण नौकरियां जाना और रोजगार के अवसरों में भारी कमी प्रतीत होती है, खासकर पुरुषों के मामले में जिसकी वजह से कई परिवारों में तनाव बढ़ गया।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर भी ऐसी बहुत सी घटनाओं की गवाह बनी है। लेकिन यहां वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) आरिफ शेख के नवीन प्रयासों और फौरी तौर उठाए गए कदमों की वजह से स्थितियां बेहतर हुई, बाद में उनकी पहलों का दूसरे राज्यों ने भी अनुसरण किया। उन्होंने अपनी पहल को ‘चुप्पी तोड़’ नाम दिया, यानी शांत रहने की जगह अपनी बात कहना। दरअसल, यह पूरी पहल रायपुर की महिलाओं के लिए है, और इसका उद्देश्य एक विशेष आग्रह के साथ यह है कि जिन औरतें के साथ हिंसा या घरेलू हिंसा हुई है, वो आगे आकर अपने साथ हुए अत्याचारों के बारे में खुलकर बोलें।
शेख कहते हैं, “लॉकडाउन से पहले, रायपुर में घरेलू हिंसा के औसतन लगभग 30 मामले प्रति माह सामने आते थे। लॉकडाउन के दौरान यह तेजी से बढ़े। लॉकडाउन के दौरान पुरुष समाज घर पर ही रहने को मजबूर था, और महिलाओं को अक्सर इसका खामियाजा भगतना पड़ा, उन्हें मानसिक और शारीरिक हमले भी झेलने पड़े।
चुप्पी तोड़
मोहक नारे ‘चुप्पी तोड़’ से उत्साहित होकर, शहर की पीड़ित महिलाएं रायपुर पुलिस के पास जाने लगीं। आने वाले दिनों इनकी संखता निरंतर बढ़ती गई। पुलिस अपनी ओर से तैयार थी, घरेलू हिंसा के मामलों को सही से देखने और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए, कई टीमें पहले ही गठित कर दी गई थीं। शिकायत मिलते ही, पुलिस ने स्थानीय पुलिस नियंत्रण कक्ष और महिला पुलिस थानों के साथ इन मामलों की क्रॉस चेकिंग (दोबारा जांच) कर के तत्काल कार्रवाई की। एक बार तथ्य की पुष्टि हो जाने के बाद, बहुस्तरीय रणनीतियों के माध्यम से तेजी से कार्रवाई की गई। शेख कहते हैं, “शिकायतों की स्कैनिंग के माध्यम से डेटाबेस निर्माण इस अभियान का एक प्रमुख हिस्सा था, जिसमें प्रभावित लोगों या जिनके बारे में आशंका थी कि वो संभावित पीड़ित हो सकते हैं, ऐसे लोगों के संपर्क विवरण निकाले गए। इसके बाद पुलिस कर्मियों ने प्रतिदिन इन लोगों से संपर्क करना शुरू कर दिया, जिससे उनमें आत्मविश्वास पैदा हुआ।
शेख उन शुरुआती बाधाओं को याद करते हैं, जहां कि महिलाएं अपने पति के खिलाफ फोन पर भी विस्तार से बात करने में संकोच करती थीं। कई बार पति फोन उठाते, जिससे कि संचार बाधित होता। इसलिए शेख की टीम ने एक नई तकनीक तैयार की। उन्होंने एक प्रश्नावली तैयार की, जिसमें एकल बिंदु प्रश्न शामिल थे और महिलाओं को सिर्फ हां या ना में उत्तर देने की जरूरत थी। इसने पुलिस के काम को आसान कर दिया और इससे उन्हें महिलाओं की हिचकिचाहट पर काबू पाने में मदद मिली।
कई मामलों में, ‘हस्तक्षेप करने वाली’ पुलिस टीमों को पीड़ितों के घरों पर भेजा गया और मामले को वहीं सुलझाया गया। भोजन की कमी के कारण हिंसा जैसे मुद्दों को पुलिस ने वहीं पर स्वयं ही सुलझा लिया।
सोशल मीडिया की ताकत
शेख याद करते हुए बताते हैं कि घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए, ‘चुप्पी तोड़’ पहल का एक बहुत महत्वपूर्ण तत्व फेसबुक पेज बनाना, एक व्हाट्सएप नंबर देना और एक टोल फ्री नंबर जारि करना था। पीड़ितों से जुड़ने के लिए यह बहुत जरूरी था। शेख कहते हैं हैं कि असल में इन उपायों का ऐसा प्रभाव था कि रायपुर पुलिस को राजस्थान, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों से शिकायतें आनी शुरू हो गईं।
दिलचस्प बात यह है कि चूंकि ‘चुप्पी तोड़’ एक लैंगिक समानता वाली पहल थी, इसलिए पुलिस को बहुत से ऐसे पुरुषों की तरफ से भी शिकायत मिली, जिनके साथ हिंसा की गयी थी। इन मामलों में पुलिस पुरुषों के समर्थन में सामने भी आई।
शेख को मिली अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना
आईपीएस अधिकारी के रूप में आरिफ शेख के 12 वर्षों के कार्यकाल के दौरान की गई कई पहलों में से ‘चुप्पी तोड़’ सिर्फ एक पहल है। वह उन कुछ चुनिंदा आईपीएस अधिकारियों में से एक हैं, जिन्हें इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ चीफ (आईएसीपी) से ‘कम्युनिटी पुलिसिंग’ के लिए लगातार तीन पुरस्कारों के रूप में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिला है।
अमेरिका के वर्जीनिया स्थित आईएसीपी, पुलिस नेताओं के लिए दुनिया का सबसे बड़ा पेशेवर संघ है, जो 40 साल की उम्र से पहले सामुदायिक पुलिसिंग के क्षेत्र में किए गए उत्कृष्ट कार्यों को सम्मान देता है। शेख का मानना है कि पुलिस बल का एक मानवीय चेहरा होना चाहिए, जिससे कि लोगों के साथ जुड़ें और उनमें विश्वास की भावना पैदा करें।
शेख की एक अन्य पहल ‘खाकी के साथ राखी’ ने 1400 से अधिक महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की। इसे 2018 में गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में जगह दी गई।
शेख कहते हैं, “अपराध का पता लगाने और रोकथाम वाली पारंपरिक पुलिसिंग और सामुदायिक पुलिसिंग एक साथ चलती है। लेकिन पुलिस बल के लिए समान रूप से यह भी महत्वपूर्ण है कि वह लोगों के साथ लगातार जुड़े रहे और उन्हें हिंसा और अन्याय के खिलाफ लड़ाई में भागीदार बनाएं।”
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