नैतिक आचरण के बिना सिविल सेवा का कोई अर्थ नहीं
- Pallavi Priya
- Published on 5 Jul 2023, 2:00 am IST
- 1 minute read
हाइलाइट्स
- उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव ने रखी अपनी राय
- रिटायर आईएएस अधिकारी आलोक रंजन ने 'एथिक्स फॉर सिविल सर्विसेज: विद 100 केस स्टडीज' नाम की पुस्तक लिखी है
- किताब 2013 से 2019 के बीच एथिक्स पेपर में आए सभी विषयों और लेखक के वास्तविक जीवन के अनुभवों से संबंधित है
- मुख्य सचिव पद तक पहुंचे अधिकारी का कहना है कि नैतिक होने से आपको काफी संतुष्टि मिलती है
सिविल सर्वेंट कौन होते हैं? कानून और भारतीय संविधान का ज्ञान रखने वाला एक ऐसा जानकार व्यक्ति, जिसे लोगों को सर्वोत्तम संभव सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए नियुक्त किया गया है। उन्हें जनता के सर्वोत्तम हित में कार्य करने के लिए ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के साथ नेतृत्व करना होगा। हालांकि, ये गुण कम हो रहे हैं और केंद्र सरकार के तहत सिविल सेवकों के लिए भर्ती आयोग यूपीएससी के लिए चिंता का विषय बन गए हैं।इस पर कार्रवाई करते हुए सिविल सेवा के मेन्स के सिलेबस में ‘नैतिकता, अखंडता और योग्यता’ जैसा विषय जोड़ा गया था। अब सवाल यह उठता है कि क्या विषय जोड़ना काफी था? शायद नहीं, लेकिन यह निश्चित रूप से एक अच्छा कदम था। यह कहना है कि 1978 बैच और उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी और अनुभवी नौकरशाह आलोक रंजन का।आलोक रंजन ऐसे अधिकारी हैं, जो यूपी के मुख्य सचिव बने और तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सलाहकार के रूप में भी काम किया। उन्होंने हाल ही में एथिक्स फॉर सिविल सर्विसेज: विद 100 केस स्टडीज नाम से अपनी एक किताब लिखी है। इसके अलावा मेकिंग ए डिफरेंस, आईएएस ऐज ए करियर जैसी किताब लिखने वाले रंजन ने न केवल नैतिक अवधारणाओं पर चर्चा की है, बल्कि 2013-2019 के बीच एथिक्स पेपर में आए सभी मामलों का भी विश्लेषण किया है।
नैतिक ढांचा
एथिक्स पेपर मुख्यतः दो भागों में बंटता है। पहला भाग नैतिक अवधारणाओं से संबंधित है और दूसरा केस स्टडीज से संबंधित है, जो 125 अंकों का है। एक प्रकाशक ने इस विषय पर पुस्तक के लिए रंजन से संपर्क किया, क्योंकि तब तक बहुत कुछ उपलब्ध नहीं था। सिलेबस का अध्ययन करते समय रंजन को अहसास हुआ कि विषय वास्तव में अच्छा है, क्योंकि इसमें विभिन्न अवधारणाएं, प्रशासनिक संकेत शामिल हैं, जो निश्चित रूप से उम्मीदवारों और सफल उम्मीदवारों की मानसिकता को प्रभावित कर सकते हैं। साथ ही, उनके पास स्वयं ऐसी समझौतापरक स्थितियों से निपटने के वास्तविक जीवन के बहुत सारे अनुभव थे। इसलिए, वह किताब लिखने के लिए सहमत हो गए।
इसके वास्तविक उद्देश्य के बारे में रंजन कहते हैं कि पिछले कुछ दशकों में समाज अधिक भौतिकवादी हो गया है और नैतिक आचरण में गिरावट आई है। हालांकि, यह एक अच्छा कदम था। कुछ लोग इसे सिर्फ एक स्कोरिंग विषय के रूप में ले सकते हैं लेकिन इस विषय को सीखने की प्रक्रिया दिमाग में एक नैतिक ढांचा विकसित करने में मदद करती है। उन्होंने यह भी बताया कि इस कदम के मूल्यांकन की वास्तव में आवश्यकता है। तथ्य यह है कि हर कोई नहीं बदल सकता है, लेकिन कुछ निश्चित रूप से बदलेंगे।
टोटल इंटेग्रिटी
नैतिकता सिर्फ भ्रष्टाचार तक ही सीमित नहीं है। अधिकतर लोगों का मानना है कि ईमानदारी केवल अधिकारी के लिए आवश्यक गुण है। हालांकि, ऐसा नहीं है। सिविल सेवकों के लिए वित्तीय इंटेग्रिटी से समझौता करना बिल्कुल मना है, लेकिन पूर्ण ईमानदारी भी बहुत महत्वपूर्ण है। पूर्व नौकरशाह कहते हैं, ‘सिविल सेवक संविधान के प्रति समर्पित हैं। उन्हें लोगों, खासकर कमजोर वर्गों को अच्छी सेवाएं देनी होंगी। केवल वे ही सार्वजनिक धन का सर्वोत्तम संभव उपयोग सुनिश्चित कर सकते हैं।’उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सिविल सेवाओं के लिए ईमानदारी एक बुनियादी आवश्यकता है। यह कोई गर्व करने वाली बात नहीं है। एक अधिकारी को हमेशा ऐसा सिस्टम बनाने का प्रयास करना चाहिए, जहां हर कोई पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ काम करे।
आगे होता है फायदा
इस किताब में अधिकारी ने विभिन्न मामलों को उठाया है। इनमें किसी परियोजना की गुणवत्ता से समझौता करना या राजनीतिक दबाव से निपटना शामिल है। एक सिविल सेवक के जीवन में ऐसी स्थिति आम है। ये सभी वास्तव में लुभाते हैं, लेकिन अगर व्यक्ति समझौता नहीं करता है, तो लंबे समय में इसका हमेशा फल मिलता है।रंजन ने कहा कि अगर एक ईमानदार अधिकारी की प्रतिष्ठा सावधानी से बनाई जाए तो कोई भी उन्हें कुछ भी लीक से हटकर करने के लिए नहीं कहेगा। ट्रांसफर या पनिशमेंट पोस्टिंग जैसी थोड़े समय के लिए कोई बात हो सकती है, लेकिन अंततः हर सिस्टम को कुशल अधिकारियों की आवश्यकता होती है।अपने जीवन से एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि मैं एक बार विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के रूप में तैनात था। पहले दिन लोगों ने यह कहकर मुझे कमीशन देने की कोशिश की कि यह सिस्टम है। मैंने साफ इनकार कर दिया। इससे मुझे प्राधिकरण के तहत चल रहे सभी कार्यों पर सवाल उठाने का नैतिक साहस मिला। नैतिक होने से आपके काम में मदद मिलती है और अंत में आपको पुरस्कृत किया जाता है। ज्यादातर लोग सार्वजनिक सेवा के लिए सिविल सेवा में आते हैं और नैतिक आचरण के बिना यह संभव नहीं है। रंजन सभी सिविल सेवकों को सीख देते हुए कहते हैं कि रिटायरमेंट पर आपको सब कुछ पीछे छोड़ना होगा। एक चीज जो आप अपने साथ ले जा सकते हैं-वह है सेवा से संतुष्टि। यह तभी संभव है जब आप अपने काम में ईमानदार हों। जनता ही नहीं, बल्कि पूरा सरकारी तंत्र आपकी इस विशेषता की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकता।
END OF THE ARTICLE