जब सिविल सेवा छोड़कर प्राइवेट सेक्टर में चले गए अधिकारी, आखिर क्यों हुआ ऐसा और क्या था उनका विजन?
- Indian Masterminds Bureau
- Published on 15 Nov 2021, 6:10 pm IST
- 1 minute read
हाइलाइट्स
- पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने पिछले साल अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और अब वो निजी क्षेत्र में अपनी सेवाएं दें रहे हैं
- संयुक्त राज्य अमेरिका में पूर्व भारतीय राजदूत सहित कई सिविल सेवकों ने पहले भी यह किया है
- अशोक लवासा अब एडीबी के साथ काम कर रहे हैं
हरियाली चरागाहों की खोज मानव जाति के लिए एक आगे बढ़ाने वाले प्रेरक बल की तरह रही है। लाखों साल पहले, हमारे महान पूर्वजों ने अपनी गुफाओं का आश्रय छोड़ दिया और अफ्रीका, अमेरिका, मध्य-यूरोप और एशिया के घास के मैदानों में फैल गए। पिछले साल, जब पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने निजी क्षेत्र (फिलिपींस स्थित एशिया विकास बैंक) के लिए अपनी वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़ने का फैसला किया था, तो शायद वह भी अपने महान पूर्वजों की राह पर चलने की कोशिश कर रहे थे।
वास्तव में अगर देखा जाए, तो लवासा के फैसले में कुछ भी गलत नहीं था। महान भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी विशेषता ही यही है कि यह सभी को अपने सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सभी मौके देता है।
लेकिन लवासा के फैसले में एक और सच्चाई की अभिव्यक्ति निहित है। इसमें संदेह नहीं कि भारतीय प्रशासनिक सेवाएं ताकतवर, प्रतिष्ठित और बड़ी प्रेरणा के रूप में पहचानी जाती हैं, लेकिन यह एक अति-महत्वाकांक्षी व्यक्तित्व के लिए आखिरी पड़ाव नहीं हो सकती हैं। इसके विपरीत, यह कहा जा सकता है कि जोखिम लेने वालों के लिए यह एक प्रभावी लॉन्च-पैड यानी आगे बढ़ने का जरिया रही हैं – अभी भी और पहले भी।
ट्रेंड सेटर्स
लगभग दो दशक पहले, यूनियन टेरिटरी (यूटी) कैडर के वरिष्ठ अधिकारी राजीव तलवार प्रिंट मीडिया और टेलीविजन चैनलों के पसंदीदा ‘मीडिया बॉय’ हुआ करते थे। हमेशा हंसमुख और मददगार। फिर एक सुबह उन्होंने अपने शानदार कैरियर के बीच में प्रशासनिक सेवाओं को छोड़ने के अपने निर्णय की घोषणा करके सभी को चौंका दिया।
उन्होंने ऐसा क्यों किया, यह कुछ ही दिनों में साफ हो गया। रियल एस्टेट सेक्टर की उत्तर भारत की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक डीएलएफ की एक आधिकारिक घोषणा आई। डीएलएफ ने तलवार को एक बेहद वरिष्ठ पद का प्रस्ताव दिया गया था जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। आज वह डीएलएफ के सीईओ हैं।
ऐसे ही, 1973 बैच की हाई-प्रोफाइल आईएफएस अधिकारी मीरा शंकर का मामला है। मीरा शंकर ने संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत के राजदूत के रूप में काम किया और फिर निजी क्षेत्र में कदम रखा। अब वह आईटीसी (ITC) और अडानी ट्रांसमिशन के निदेशक मंडल में हैं।
लवासा की कहानी
सिविल सेवा से निजी क्षेत्र में जाने वाले सबसे ताजे मामले की बात करें, तो चुनाव आयुक्त के रूप में अपने कार्यकाल से पहले ही पद छोड़ने वाले अशोक लवासा भारत के इतिहास में दूसरे चुनाव आयुक्त हैं। इससे पहले, हेग स्थित इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में न्यायाधीश का पद स्वीकारने के बाद, चुनाव आयुक्त नागेंद्र सिंह भी चुनाव आयोग से समय से पहले ही विदा हो गए थे।
एक आधिकारिक बयान में, एडीबी ने अशोक लवासा के बारे में घोषणा की थी। लवासा ने दिवाकर गुप्ता की जगह ली, जिनका कार्यकाल 31 अगस्त, 2020 को समाप्त हो गया था।
हरियाणा कैडर के 1980 बैच के आईएएस अधिकारी लवासा ने भारत सरकार के साथ-साथ हरियाणा सरकार में भी कई अहम पदों पर कार्य किया। वह हरियाणा के जींद और गुरुग्राम जिलों में प्रधान सचिव और वित्त आयुक्त (नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत और शक्ति) के साथ-साथ जिला मजिस्ट्रेट भी रहे हैं।
केंद्र के साथ लवासा के सफर की शुरुआत साल 2014 में हुई थी, जब उन्हें नागरिक उड्डयन सचिव नियुक्त किया गया था। इसके बाद वह केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन सचिव बनें। चुनाव आयोग में पद संभालने से पहले वह भारत के वित्त सचिव थे।
एक स्थापित लकीर
दरअसल अशोक लवासा अपने सामने अन्य कई सिविल सेवकों द्वारा खींची गई लकीर पर ही चल रहे थे। उनसे पहले इस लकीर पर चलने वाले कुछ अधिकारियों की शानदार सूची पर एक नजर डालिए-
विनोद राय– 1972 बैच के केरल कैडर के एआईएस (AIS) अधिकारी जिन्होंने भारत के ताकतवर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के रूप में कार्य किया। वर्तमान में, वह अपोलो टायर्स और आईडीएफसी के निदेशक मंडल (बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स) में हैं।
जीके पिल्लई– 1972 बैच के केरल कैडर के आईएएस अधिकारी, जो केंद्र सरकार में गृह सचिव और वाणिज्य सचिव के रूप में कार्य करते थे, साथ ही डब्ल्यूटीओ में भारत के मुख्य वार्ताकार भी थे। पिल्लई अब जुअरी एग्रो केमिकल्स और बर्जर पेंट्स के निदेशक मंडल में हैं। वह अडानी पोर्ट्स के स्वतंत्र और गैर-कार्यकारी निदेशक भी हैं।
एस. नारायण- प्रधानमंत्री के पूर्व आर्थिक सलाहकार एस नारायण अब डाबर इंडिया के निदेशक मंडल में हैं, साथ ही वह अपोलो टायर्स और गोदरेज प्रॉपर्टीज के भी निदेशक मंडल में हैं।
रविकांत- रामक्या एनवायरो इंजीनियर्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक के रूप में कॉर्पोरेट क्षेत्र में शामिल होने से पहले रविकांत 12 साल तक बंगाल कैडर के आईएएस अधिकारी रहे। अब वह इन्फ्रास्ट्रक्चर कंसल्टेंसी फर्म वायंट्स (Voyants) सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं।
के वी चौधरी- सतर्कता आयुक्त (विजिलेंस कमिश्नर) के वी चौधरी अपनी सेवानिवृत्ति के चार महीने के अंदर ही एक स्वतंत्र निदेशक के तौर पर रिलायंस इंडस्ट्री में शामिल हो गए।
एम. दामोदरन- त्रिपुरा के 1971 बैच के आईएएस अधिकारी एम. दामोदरन सेबी और आईडीबीआई के अध्यक्ष के रूप में और वित्त मंत्रालय में काम कर चुके हैं। अब वह लार्सन एंड टुब्रो, हीरो मोटोकॉर्प, टेक महिंद्रा, सीआरआईएसआईएल, बायोकॉन और एक्सपेरियन इंडिया के बोर्ड में हैं। साथ ही वह इंडिगो में गैर-कार्यकारी स्वतंत्र निदेशक और बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं।
यह एक बहुत बड़ी सूची है और लवासा निश्चित रूप से आकर्षक निजी क्षेत्र में जाने वाले आखिरी सिविल सेवक नहीं होंगे। भारत जैसे तेजी से विकसित हो रहे देश में उभरते हुए निजी क्षेत्र की उपेक्षा कर पाना किसी के लिए भी आसान नहीं हैं, काबलियत के धनी प्रशासनिक अधिकारियों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं।
END OF THE ARTICLE