अमेरिकी उपराष्ट्रपति का भी है भारतीय सिविल सेवा से विशेष संबंध!
- Indian Masterminds Bureau
- Published on 6 Oct 2021, 5:57 pm IST
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हाइलाइट्स
- अमेरिका की नव-निर्वाचित उपराष्ट्रपति का भारतीय सिविल सेवा से है एक विशेष संबंध
- कमला हैरिस के नाना एक सिविल सेवक थे, उनके रिश्तेदार अभी भी दिल्ली और चेन्नई में रहते हैं
- जानिए कमला किस तरह अपने हिंदुस्तानी नाना को याद करती हैं और कैसे देखती हैं भारत को?
- आखिर क्यों अपने चुनाव के वक्त कमला ने भारत में अपनी मौसी से मंदिर में नारियल तोड़ने के लिए कहा?
किसी दूसरे देश की राजनीति में भारतवंशियों का होना अपने देश के लिए गौरव का पल होता है। यह एहसास दिलाता है कि भारतीय मूल के लोग चाहे जहां कहीं भी रहें, अपनी मेहनत और बुलंद इरादों के दम पर, वे हमेशा सफलता के झंडे गाड़ते रहते हैं और एक बेहतर दुनिया के कल के निर्माण के लिए अपना योगदान देते रहते हैं। दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका की राजनीति में शीर्ष पद पर पहुंचना किसी भी भारतीय-अमेरिकी समुदाय के लिए गौरवान्वित होने का वक्त है।
अमेरिका की नव-निर्वाचित डेमोक्रेटिक उपराष्ट्रपति और भारतीय मूल की कमला हैरिस बेहद कम समय में इतने बड़े मुकाम तक पहुंच गईं। वह अमेरिका की पहली महिला और पहली अश्वेत उपराष्ट्रपति हैं। कमला हैरिस भले ही विदेश में ही पली-बढ़ी हैं, लेकिन भारत से उनका बहुत खास नाता है। उनके नाना भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी थे। कमला हैरिस को अभी तक याद है कि कैसे वह अपने नाना के साथ मंदिरों और चेन्नई के समुद्र तटों पर जाया करती थीं। उनके नाना पीवी गोपालन ने भारतीय सिविल सेवाओं में 30 वर्षों तक सरकार को अपनी सेवाएं दी थीं।
गोपालन भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान ‘शाही सचिवालय सेवा’ में शामिल हुए और बाद में केंद्रीय सचिवालय सेवा में आ गए थे। उन्होंने परिवहन मंत्रालय में भारत सरकार के अवर सचिव के रूप में कार्य किया। 1950 के दशक में, वह बॉम्बे में एक वरिष्ठ वाणिज्यिक अधिकारी के रूप में तैनात रहे। उन्होंने भारत में पूर्वी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के पुनर्वास पर भी काम किया।
पदोन्नति के माध्यम से बढ़ते हुए, गोपालन को बाद में श्रम, रोजगार और पुनर्वास मंत्रालय में भारत सरकार के संयुक्त सचिव के रूप में तैनात किया गया। बाद में उन्हें जाम्बिया सरकार में प्रतिनियुक्त किया गया। वह जांबिया की राजधानी लुसाका में, जांबिया को दक्षिणी रोडेशिया (अब जिम्बाब्वे) से शरणार्थियों की आमद का प्रबंधन करने में मदद करने के लिए राहत उपायों और शरणार्थियों के निदेशक के रूप में काम करते थे। गोपालन के चार दशक लंबे कैरियर की शुरुआत 1930 के दशक में हुई थी, जब भारत में ब्रिटिश शासनकाल अपने अंतिम वर्षों था और कॉलेज से पास होने के बाद वह सरकारी सेवाओं में शामिल हुए थे।
अपने प्रचार अभियान के दौरान, हैरिस अक्सर अपने भारतीय संबंधों के बारे में बताती रहीं। वह अपने नाना गोपालन और अपनी दिवंगत मां श्यामला का जिक्र करती रहती थीं। श्यामला का 2009 में कोलोन कैंसर से निधन हो गया था। वह स्तन कैंसर शोधकर्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता थीं। उन्होंने कमला और उनकी छोटी बहन माया को उत्कृष्टता के लिए हमेशा प्रयास करते रहने और दूसरों के भी जीवन स्तर को उठाने की शिक्षा दी।
परिवार के एक रिश्तेदार कहते हैं, “श्यामला निश्चित रूप से अपने पिता से बहुत प्रभावित थीं और उसका असर कमला पर भी पड़ा। 1958 में, श्यामला ने यूसी बर्कले में एक मास्टर प्रोग्राम के लिए आवेदन करके अपने माता-पिता को लगभग हैरान कर दिया था। वह उस वक्त सिर्फ 19 साल की थीं और चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। इससे पहले उन्होंने कभी भी भारत से बाहर कदम नहीं रखा था। उनके माता-पिता ने उनकी पहले साल की फीस और रहने की लागत का भुगतान करने के लिए अपनी (गोपालन की) सेवानिवृत्ति बचत को भी दांव पर लगा दिया।”
तमिलनाडु से शुरू हुई कहानी
गोपालन का जन्म 1911 में चेन्नई (तब मद्रास) के दक्षिण में लगभग 180 मील दूर मंदिरों से घिरे हुए एक गांव पैंगनाडु में हुआ था। गोपालन की शादी राज्य के ही उनके एक नजदीकी जिले में पली-बढ़ी राजम से हुई थी। उन्होंने एक आशुलिपिक (स्टेनोग्राफर) के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की। लेकिन जैसे-जैसे वह सिविल सेवा में पदोन्नति पाते गए, दिल्ली से मुंबई और वहां से कोलकाता परिवार के साथ स्थानांतरित होते रहे।
1950 के दशक में गोपालन को भारत के सबसे व्यस्ततम व्यापारिक केंद्र में एक मुंबई (तब बॉम्बे) में वरिष्ठ वाणिज्यिक अधिकारी के रूप में तैनात किया गया। उस वक्त, उन्होंने घर के लिए बिल्कुल साफ नियम बना रखे थे- ‘रिश्वत देने की कोशिश करने वाले व्यवसायियों से बचने के लिए शहर के मध्य में पेडर रोड स्थित उनके घर पर किसी भी अजनबी को प्रवेश की अनुमति नहीं थी। साथ ही बच्चों को भी किसी अजनबी से कुछ भी लेने की मनाही थी।’
मां एक नागरिक अधिकार कार्यकर्ता थीं
दिल्ली के लेडी इरविंग कॉलेज में ‘गृह विज्ञान’ का अध्ययन करने के बाद, श्यामला बर्कले में ‘पोषण और एंडोक्रिनोलॉजी’ की पढ़ाई के लिए चली गईं और आखिर में इसी विषय में पीएचडी प्राप्त की। तब अधिकांश भारतीय परिवारों के पास फोनलाइंस की सुविधा नहीं थी। भारत और कैलिफोर्निया के बीच पत्राचार की यात्रा में लगभग दो सप्ताह लगने वाले पत्रों के माध्यम से परिवार संपर्क में रहता था। वह अश्वेत नागरिक अधिकार आंदोलन में शामिल हुईं, जहां उनकी मुलाकात डोनाल्ड हैरिस नाम के अर्थशास्त्र के एक मेधावी जमैकन छात्र से हुई। 1963 में उन्होंने हैरिस से शादी कर ली, लेकिन यह उनके रिवाजों के लिए बड़ी चुनौती थी, क्योंकि उन्होंने इसके बारे में अपने माता-पिता से पहले से कुछ भी साझा नहीं किया था।
कुछ साल बाद, श्यामला और डोनाल्ड अपनी बेटियों को जाम्बिया ले आए। कमला तब 4 या 5 साल की रही होंगी और माया दो साल छोटी। उनकी तब की धुंधली सी याद में, लाल रंग की चमक वाली तांबा मिश्रित लुसाका की मिट्टी अभी भी ताजा है। 1970 के दशक की शुरुआत में डोनाल्ड को तलाक देने के बाद, श्यामला अपनी बेटियों के साथ एक सिंगल मां के तौर पर अक्सर भारत वापस आती थीं। आमतौर पर वह चेन्नई आती थीं, जहां उनके माता-पिता गोपालन के सेवानिवृत्त होने के बाद बस गए थे। कमला अक्सर अपने नाना गोपालन के साथ होती थीं, जब वह अपने सेवा निर्वत्त दोस्तों के साथ, भारत में लोकतंत्र के निर्माण और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के बारे में परिचर्चा कर रहे होते थे।
कमला ने अपने संस्मरण में लिखा है, “मेरे नाना ने नागरिक अधिकारों के समर्थन, समानता और अखंडता के लिए लड़ने के महत्व के बारे में बहुत दृढ़ता से महसूस किया। मुझे याद है कि वे हमेशा ‘भ्रष्ट बनाम असली सेवक’ के बारे में बात करते रहे।”
प्रगतिशील दृष्टिकोण
उनके नाना भले ही किसी अन्य नौकरशाह की तरह दिखते हों, लेकिन उन्होंने अपने युग की रूढ़िवादी धारणाओं को नकार दिया था। उन्होंने सार्वजनिक सेवा को लेकर एक प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाया और महिलाओं के लिए समर्थन को बढ़ावा दिया, खासकर उनकी शिक्षा के संदर्भ में जो कि अपने समय से बहुत आगे का दृष्टिकोण था।
यह बहुत दिलचस्प है कि हैरिस ने पारिवारिक कार्यक्रमों के लिए कई बार साड़ी भी पहनी है और अपने रिश्तेदारों के साथ कुछ तमिल वाक्यांश भी बोले हैं। हैरिस ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि उनकी मां श्यामला इस बात के लिए दृढ़ थीं कि उनकी दोनों लड़कियां भारत के साथ अपने जुड़ाव को बनाए रखें। कमला और उनकी बहन की परवरिश उनकी सिंगल हिंदू मां ने ही की। खबरों के अनुसार, कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल चुनावों के दौरान खुशकिस्मती के लिए कमला ने चेन्नई में अपनी मौसी सरला गोपालन से एक मंदिर में नारियल तोड़ने के लिए कहा। मौसी ने 108 नारियल तोड़े, वहीं कमला ने कुल पड़े 95.44 लाख मतदान में से 0.8 प्रतिशत के बेहद कम अंतर से जीत हासिल की।
गोपालन का निधन
फरवरी,1998 में हैरिस को सैन फ्रांसिस्को में सहायक जिला अटॉर्नी नियुक्त किया गया और उनके राजनीतिक पटल पर उनके कैरियर की शुरुआत हुई। इसी महीने वो 86 वर्षीय बीमार गोपालन से मिलने भारत की यात्रा पर आई थीं। उनकी यात्रा के दो सप्ताह बाद ही गोपालन का निधन हो गया।
गोपालन के अंतिम सालों की हैरिस की सबसे पसंदीदा यादों में से एक वह पल था, जब 1991 में उनका 80 वां जन्मदिन मनाने के लिए पूरा परिवार चेन्नई में इकट्ठा हुआ था। लगभग 20 साल बाद सभी लोग एक जगह जमा हुए थे। उनकी नानी राजम और माया की बेटी मीना सहित सभी ने जोर देकर कहा कि वे सभी अपने तीन बेडरूम वाले अपार्टमेंट में रहेंगे, जो कि एक शांत, पेड़ों से घिरी सड़क पर समुद्र तट से कुछ ब्लॉक दूर स्थित था। हैरिस उस समय लगभग 27 साल की थीं, लेकिन उस वक्त का घर का रोचक माहौल अब भी उनके जहन में ताजा हैं, जहां मजबूत व्यक्तित्व वाले उनके मामा और मामी अचानक बच्चों की भूमिका निभाने लगे थे।
लगभग 15 साल पहले जब कमला हैरिस सैन फ्रांसिस्को की जिला अटॉर्नी थीं, तो एक पुलिस अधिकारी की हत्या के आरोपी एक व्यक्ति के मृत्युदंड का विरोध करने के लिए उन्हें तीव्र आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। पुलिस अधिकारियों और राज्य के कुछ शीर्ष राजनेताओं के बेतहाशा दबाव के बावजूद वह झुकी नहीं।
नाम न जाहिर करने की शर्त पर एक रिश्तेदार बताते हैं, “यह उन्हें उनकी मां से मिला है, उनकी मां ने उन्हें सिखाया है- किसी को भी खुद पर धौंस न जमाने दो।”
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