दुर्घटनाएं कम करने के लिए आईएएस अधिकारी का अनोखा कदम: बस ड्राइवरों की आंखों की होती है जांच, चालान के बदले बाइकर्स को दिखाई जाती फिल्म
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 26 Jul 2023, 11:14 am IST
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हाइलाइट्स
- सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए बीकानेर के कलेक्टर ने शुरू की अनूठी पहल
- बड़े वाहनों के ड्राइवरों की आंख की जांच के लिए लगता है कैंप
- बिना हेलमेट बाइक चलाने वालों का चालान काटने के बजाय उन्हें फिल्म देखने पर मजबूर किया जाता है
सड़क दुर्घटनाओं से बचने के लिए ड्राइविंग के कई नियम हैं। फिर भी दुर्घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही हैं। ड्राइवरों के लिए यह एक बड़ी चिंता रहती है, चाहे वह चार पहिया वाहन चलाए या दोपहिया। राजस्थान के बीकानेर जिले में 2011 बैच के आईएएस अधिकारी भगवती प्रसाद कलाल ने इस समस्या को लेकर एक अनूठी पहल शुरू की है। यह गति पकड़ रही है और अच्छे रिजल्ट भी दे रही है। हाईवे और राज्य की सड़कों पर दुर्घटनाओं को कम करने, ड्राइवरों को सुरक्षा उपाय सिखाने के लिए उन्होंने कुछ अनोखे कदम उठाए हैं। जैसे ड्राइवरों के लिए उन्होंने मुफ्त में नेत्र जांच शिविर लगाने की पहल की।
इतना ही नहीं, चालान काटने के बजाय वह ट्रैफिक को लेकर जागरूकता वाली फिल्म देखने को कहते।अच्छी बात यह है कि इन नए कदमों के अच्छे परिणाम आ रहे हैं। यह पहल लगभग चार महीने पहले शुरू हुई थी। बता दें कि इन महीनों में दुर्घटनाओं में वाकई कमी आई है। बिना हेलमेट या सीट बेल्ट के गाड़ी चलाने के मामलों की संख्या में भी कमी आई है।
इस पहल के बारे में अधिक जानने के लिए इंडियन मास्टरमाइंड्स ने बीकानेर के जिला कलेक्टर भगवती प्रसाद कलाल से बात की।
आंख की जांच
जिले के टोल प्लाजा और रोडवेज बस स्टैंड कैंपस में आई कैंप यानी नेत्र जांच शिविर लगाए जाते हैं। ये कैंप ट्रक और बस जैसे बड़े वाहनों के ड्राइवरों के लिए होते हैं। जांच के बाद यदि किसी को स्टैंडर्ड नंबर की आंख की समस्या है, तो प्रशासन उन्हें मुफ्त में चश्मा भी दिला रहा है।ये कैंप सालासर टोल प्लाजा, लाखासर टोल नाका, खारा टोल प्लाजा और रोडवेज बस स्टैंड कैंपस में लगाए गए। अब तक पांच कैंपों में हजार से अधिक ड्राइवरों की आंखों की जांच की गई। इनमें से 162 ड्राइवरों को चश्मे के नंबर दिए गए और 110 ड्राइवरों को मुफ्त चश्मे दिए गए। इसी तरह, 25 रोगियों को मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने की सलाह दी गई और 62 को जरूरी दवाएं मुफ्त में दी गईं। इस तरह देखने में दिक्कत के कारण होने वाली दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है।
इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए श्री कलाल ने कहा, “दुर्घटनाओं के बढ़ते मामलों के पीछे कई कारण हैं। इनमें लापरवाही से गाड़ी चलाने से लेकर सुरक्षा संबंधी सावधानी नहीं बरतने तक शामिल हैं। जुर्माने या चालान की कार्रवाई लगातार की जा रही है, फिर भी जागरूकता की कमी साफ नजर आ रही है। कई बार हेलमेट ना पहनने पर 1000 रुपये का चालान कट जाता है, लेकिन गरीब लोग इसका भुगतान नहीं कर पाते। फिर हाइवे पर सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं। इसके अलावा एक पहलू यह भी है कि ट्रक और बस ड्राइवरों की आंखें कमजोर होती हैं। इस वजह से रात में गाड़ी चलाते समय दुर्घटना होने का खतरा रहता है। थोड़ी-सी भी गलती बड़ा नुकसान करा सकती है।”
फिल्म दिखाई जाती
वहीं हेलमेट या सीट बेल्ट नहीं लगाने वालों को अब चालान के बजाय कैंप में ट्रैफिक नियम से संबंधित जागरूकता फिल्म देखनी होती है।
जिले के सभी टोल नाकों पर बिना हेलमेट के गुजरने वाले दोपहिया ड्राइवरों को रोककर हेलमेट नहीं पहनने से होने वाले नुकसान से संबंधित छोटी फिल्में दिखाई जाती हैं और उन्हें हर हाल में हेलमेट पहनने के लिए कहा जाता है। इसके लिए प्रत्येक टोल प्लाजा पर एलईडी स्क्रीन लगाई गई हैं, जहां लगातार ऐसी फिल्में दिखाई जाती हैं। इन टोल नाकों पर ट्रैफिक पुलिस वालों की शिफ्टिंग के आधार पर राउंड द क्लॉक ड्यूटी लगाई गई है। अधिकारी ने कहा, ” आंकड़ों से पता चलता है कि इन फिल्मों को देखने के बाद जिले में हेलमेट पहनने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है। नियमित निगरानी के लिए इन टोल प्लाजा पर चौबीसों घंटे यातायात पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया है।”रोजाना औसतन 50 से 70 लोग बिना हेलमेट या सीट बेल्ट के पकड़े जाते हैं। उन्हें यह फिल्म दिखाई जाती है, जिसमें स्थानीय स्तर की घटनाओं और ट्रैफिक नियमों को दिखाया जाता है।
असर
जिले में दुर्घटना की आशंका वाली जगहों का अध्ययन कर दुर्घटनाओं के कारणों पर रिपोर्ट तैयार की जा रही है, ताकि इस दिशा में मिशनरी मोड पर कार्रवाई की जा सके। इन सभी नए उपायों और जागरूकता संबंधी गतिविधियों से सड़क दुर्घटनाओं में हताहतों की संख्या में कमी आई है। पिछले साल जनवरी से जून तक सड़क हादसों में 178 लोगों की मौत हो गई और 327 लोग घायल हो गए थे। इस साल के पहले छह महीनों में 166 लोगों की मौत हो गई और 261 घायल हो गए।
श्री कलाल ने कहा, “इन उपायों से संख्या में कुछ हद तक कमी आई है। वैसे इन कदमों को उठाए अभी केवल चार महीने हुए हैं, फिर भी रिजल्ट काफी पॉजिटिव हैं। फिल्म देखने के बाद लोग हेलमेट पहन रहे हैं और सीट बेल्ट बांध रहे हैं। इसके अलावा, रात में रोशनी से ध्यान भटकने से बचाने के लिए सड़क पर रिफ्लेक्टर लगाए जा रहे हैं। सड़क की डिजाइन पर भी ध्यान दिया जा रहा है।”
बता दें कि हर साल भारतीय सड़कों पर लगभग 1.5 लाख लोग मरते हैं। इस तरह औसतन हर दिन 1130 दुर्घटनाएं और 422 मौतें या हर घंटे 47 दुर्घटनाएं और 18 मौतें होती हैं।
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