परिकिपंडला नरहरि: बदलाव का वो नायक जिनकी बनाई योजनाओं ने लड़कियों की तकदीर बदल दी!
- Pallavi Priya
- Published on 12 Dec 2021, 12:01 pm IST
- 1 minute read
हाइलाइट्स
- दो दर्जन से अधिक दूसरे राज्यों ने मध्य प्रदेश की बेहद सफल ‘लाड़ली लक्ष्मी योजना’ की तर्ज पर अपनी परियोजनाएं बनाई हैं।
- इतनी चर्चित और कामयाब योजना की परिकल्पना 2001 बैच के एक बेहद विनम्र आईएएस अधिकारी ने की थी।
- दूसरों की मदद को हमेशा तैयार रहने वाले अधिकारी के साथ-साथ एक गीतकार और लेखक नरहरि सिर्फ प्रेरणा भर नहीं हैं, बल्कि और बहुत कुछ हैं जो जीवन के असल मायने समझाता है।
- पी नरहरि, कमिश्नर (तकनीकी शिक्षा विभाग)
जब भी भारत में कोई स्कीम या मिशन लॉन्च किया जाता है, तो उसकी सफलता का श्रेय हमेशा सरकार को जाता है। चाहे वह मनरेगा हो या सर्वशिक्षा अभियान या जनधन योजना हो या उज्ज्वला स्कीम, श्रेय हमेशा सरकारों को मिलता रहा।
साल 2006-07 में, जब मध्य प्रदेश में ‘लाड़ली लक्ष्मी योजना’ शुरू की गई, तब शिवराज सिंह चौहान की सरकार को खूब प्रशंसा मिली। इस उल्लेखनीय योजना के कारण वह राज्य सत्ता में वापस आ गए। यहां तक कि मध्य प्रदेश के लोगों ने उन्हें ‘मामा’ बुलाना शुरू कर दिया। इस सब के बीच, हमेशा की तरह हम उन सिविल सेवकों को भूल गए जो इस तरह की किसी भी योजना या कार्यक्रम को सफल बनाने और जन-जन तक पहुंचाने के लिए दिन रात काम करते हैं। इस बार वह अधिकारी थे, परिकिपंडला नरहरि जिन्हें पी नरहरि नाम से जाना जाता है।
2001 बैच के आईएएस अधिकारी पी नरहरि एक गीतकार भी हैं और आप उन्हें ‘लाड़ली योजना’ का प्रमुख पटकथा लेखक भी कह सकते हैं। मध्य प्रदेश की लाखों लड़कियों को लाभान्वित करने वाली इस योजना और उसके कार्यान्वयन के पीछे उन्हीं का दिमाग और मेहनत थी।
इसके बारे में इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए नरहरि ने कहते हैं, “मैं महिला और बाल विकास विभाग में आईसीडीएस के परियोजना निदेशक के रूप में तैनात था। उस दौरान मैंने बहुत यात्रा की और राज्य में महिलाओं की स्थिति के बारे में जाना। ग्वालियर और चंबल जैसे क्षेत्रों में कन्या भ्रूण हत्या और शिशु हत्या आम थी। यह मेरे लिए बहुत बेचैन करने वाला था। लड़कियों को लेकर रूढ़िवादी परिवारों की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव लाने की आवश्यकता थी। इसी ने ‘लाड़ली लक्ष्मी योजना’ के लिए राह दिखाई।”
यह योजना अप्रैल, 2007 में लागू हुई और बहुत बड़े पैमाने पर सफल रही। इसका अंदाजा आप इससे लगा लीजिये कि मध्य प्रदेश के बाद, 15 अन्य राज्यों ने भी ऐसी ही योजनाएं महिलाओं के लिए शुरू कीं। यहां तक कि राष्ट्रीय स्तर पर शुरू किया गया ‘बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ’ अभियान भी कुछ हद तक इसी से प्रेरित है।
‘लाड़ली योजना’ लड़कियों को उनके जन्म से लेकर 21 वर्ष की उम्र होने तक, उनकी शिक्षा और विकास के लिए वित्तीय सहायता सुनिश्चित करती है। मध्य प्रदेश में अब तक लगभग 25 लाख लड़कियों को इस योजना के माध्यम से मदद दी गई है। इसकी सफलता का जिक्र करते हुए नरहरि कहते हैं, “मैंने अपने कैरियर में कई योजनाओं को शुरू किया है और कई अभियानों पर काम किया है, लेकिन ‘लाड़ली’ पर मुझे सबसे ज्यादा गर्व महसूस होता है। इससे मुझे जो संतुष्टि मिली है उसकी तुलना किसी से भी नहीं हो सकती। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस योजना ने राज्य में लाखों लड़कियों के जन्म को सुनिश्चित और आश्वस्त किया है।”
हालांकि ‘लाड़ली लक्ष्मी योजना’ उनकी उपलब्धियों का सिर्फ एक हिस्सा भर है। अपने दो दशक लंबे करियर के दौरान नरहरि ने हमेशा खुद को एक ऐसे कुशल और संवेदनशील अधिकारी के रूप में साबित किया है जो जरूरतमंदों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता है। उनका जन्म तेलंगाना के करीमनगर जिले में हुआ था लेकिन उनकी कर्मभूमि मध्य प्रदेश की धरती बनी। उनकी पहली पोस्टिंग राज्य के छिंदवाड़ा जिले में हुई। अपनी पहली पोस्टिंग से लेकर अब तक अपनी अनूठी कार्यशैली और नए अभियानों के कार्यान्वयन के साथ उन्होंने लगातार लोगों को प्रभावित किया है।
ग्वालियर में लिंग-निर्धारण पर नियंत्रण
2011-12 में नरहरि ग्वालियर के जिलाधिकारी के रूप में तैनात थे। उस समय उन्होंने विभिन्न अस्पतालों और सोनोग्राफी केंद्रों में ‘सक्रिय खोजी उपकरणों’ (एक्टिव ट्रैकर डिवाइसेस) को स्थापित किया ताकि अवैध लिंग-निर्धारण से संबंधित गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। वो कहते हैं, “लाड़ली लक्ष्मी योजना पर काम करते वक्त मुझे इससे संबन्धित बहुत सारा डाटा मिला। हालांकि जब मैं ग्वालियर आया तो मुझे पता चला कि यह एक प्रकार का फलता-फूलता रैकेट है और कन्या भ्रूण हत्या के पीछे का एक प्रमुख कारण भी है। शहर में ही अकेले 100 सोनोग्राफी सेंटर थे। यह पता चलने के बाद मुझे यकीन हो गया कि सिर्फ जागरूकता से मदद नहीं मिलने वाली और हमें कुछ कठोर कदम उठाने की जरूरत थी। इस बीच मुझे गिरीश के बारे में पता चला जिसने इस अवैध गतिविधि पर अंकुश लगाने में मदद के लिए एक ‘सक्रिय खोजी उपकरण’ विकसित किया था।” गिरीश की मदद से नरहरि ने उपकरण की व्यवस्था की लेकिन इसको संबंधित जगहों पर लगाना (इंस्टालेशन) सबसे मुश्किल काम था। शुरुआत में हर वो अस्पताल और डॉक्टर जिससे उन्होंने संपर्क किया, इससे बचने की कोशिश की, लेकिन राज्य के अधिकारियों ने अंत में उन्हें राजी कर लिया।
इस उपकरण के माध्यम से नरहरि और उनकी टीम ने कई अपराधियों को पकड़ा। कई सोनोग्राफी सेंटरों के खिलाफ आपराधिक मामले भी दर्ज किए गए। एक झोला-झाप डॉक्टर को गैरकानूनी आचरण और लिंग-निर्धारण के अपराध के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जेल भी भेज दिया गया।
बाधा मुक्त पड़ोसी
पी नरहरि उन चंद अधिकारियों में भी शुमार किए जाते हैं जिन्होंने दिव्यांग-जनों की जिंदगियों को आसान बनाने की कोशिश की है। जब वो सिवनी के जिलाधिकारी के पद पर तैनात थे, तो उन्होंने विकलांग व्यक्तियों की बेहतरी के लिए बहुत मेहनत की। वो कहते हैं, “दिव्यांग-जनों का जीवन कठिन है और उन्हें जिंदगी में हर कदम पर संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन ज्यादातर मामलों में उनका परिवार उन्हें समर्थन करता है। लेकिन मानसिक विकलांगता के मामले में यह परिदृश्य पूरी तरह से अलग है। उनके परिवार उन्हें स्वीकार नहीं करते हैं और व्यावहारिक रूप से उन्हें बहिष्कृत कर दिया जाता है। मैंने कुछ ऐसे मामलों को भी देखा है, जहां मानसिक विकलांगता वाले व्यक्ति को परिवार द्वारा घर में ही जंजीरों से बांध दिया जाता था। यह मुख्यतः निम्न-मध्यम वर्गीय परिवारों में ज्यादा हुआ। लेकिन यह पूरी तरह से अस्वीकार्य था। जब मैं इन परिस्थितियों के लिए कोई रास्ता निकालने की कोशिश कर रहा था, तो मुझे ‘कानूनी-अभिभावक के प्रावधान’ के बारे में पता चला जिससे उन्हें संपत्ति और पेंशन योजना में भी समान अधिकार दिया जाता है।”
इस जानकारी के साथ नरहरि ने ऐसे मामलों की पहचान करने के लिए एक सर्वेक्षण शुरू किया और सरकारी योजना के अंतर्गत उनकी पेंशन जारी की। हालांकि पेंशन राशि केवल 500 रुपये प्रति माह थी, लेकिन गरीबी रेखा से नीचे या निम्न-मध्यम-वर्ग आय वाले परिवार के लिए यह एक बड़ी राशि थी। ऐसा होने के बाद परिवारों ने भी उनकी अच्छी देखभाल करनी शुरू कर दी।
इस बीच नरहरि को दिव्यांग-जनों की ऐसी विभिन्न समस्याओं के बारे में बहुत से आवेदन प्राप्त हुए, जिनका सामना वे सार्वजनिक कार्यालयों और क्षेत्रों में प्रवेश करने के दौरान करते थे। इन मामले को सुलझाने के लिए, उन्होंने ‘पद्मश्री पुरस्कार’ प्राप्त उमा तुली की मदद ली। उमा दिव्यांग-जनों के लिए बहुत सारे काम कर चुके थे। उनकी मदद से उन्होंने रैंप और रेलिंग डिजाइन किए, जिससे इन जगहों पर उनके लिए रास्ते आसान हो गए। इससे न केवल दिव्यांग-जनों को बल्कि वरिष्ठ-नागरिकों और गर्भवती महिलाओं को भी मदद मिली।
नरहरि ने आगे भी अपने न सभी कार्यों को जारी रखा। भविष्य में जब उनकी पोस्टिंग इंदौर और ग्वालियर जैसी जगहों पर हुई, तब भारत सरकार की ‘सुगम्य भारत योजना’ के तहत उन्होंने इस पर काम किया। उनके प्रयासों से, ग्वालियर 95% बाधा-मुक्त राज्य बन गया। उनकी उपलब्धियों के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा उन्हें तीन बार सम्मानित किया गया, जब वो सिवनी, ग्वालियर और इंदौर के जिलाधिकारी के रूप में कार्य कर रहे थे।
इंदौर को सबसे साफ शहर बनाने में अहम भूमिका
इंदौर के जिलाधिकारी के रूप में नरहरि ने शिक्षा और स्मार्ट सिटीज मिशन पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत इंदौर को सबसे स्वच्छ शहर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने स्वच्छता के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए कुछ गाने भी लिखे। उनके द्वारा लिखित और शान द्वारा गाया गया ‘हो हल्ला’ गीत शहर के साथ-साथ राज्य के लिए भी ‘सफाई गान’ बन गया।
किताबें
एक उल्लेखनीय अधिकारी के रूप में नरहरि व्यक्तिगत जीवन में भी प्रभावित करने से नहीं चूकते। वह एक उत्कृष्ट लेखक और गीतकार भी हैं। उन्होंने अब तक पांच किताबें लिखी हैं जिनमें ‘हू ओवन्स महू?’, ‘द ग्रेट टेल ऑफ हिंदूइज्म’ और ‘मेकिंग ऑफ लाड़ली लक्ष्मी योजना’ जैसी चर्चित पुस्तकें भी शामिल हैं। उनकी एक और किताब ‘बेटियां’ भी हाल ही में आई है और विक्री के लिए उपलब्ध है। यह किताब ग्वालियर में कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ उनके किए गए कामों और सक्रिय खोजी उपकरणों के कार्यों जैसे मुद्दों पर आधारित है। पुस्तकों के अलावा नरहरि ने कुछ लोकप्रिय अभियानों के गीत भी लिखे हैं। हाल ही में उन्होंने कोरोना महामारी के दौरान दो गीत लिखे, जिसमें गायक शान द्वारा गाया गया ‘जीना-जीना’ भी शामिल है। इसके साथ ही ‘जय हो’, ‘चौका’, ‘है-हल्ला’ उनके लिखे कुछ अन्य लोकप्रिय गीत हैं।
लोगों के अधिकारी
नरहरि कुछ उन चुनिंदा अधिकारियों में से एक हैं जो जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने कर्तव्यों से परे भी चले जाते हैं। डीसी के पद पर काम करते हुए उन्होंने ‘जन-सुनवाई’ का आयोजन किया जहां अधिकारी घंटों आम लोगों की समस्याओं को सुनते थे। ग्वालियर में उन्होंने सैकड़ों परिवारों को अपना घर पाने में मदद की, जो कुछ गुंडों या बिल्डरों द्वारा अतिक्रमण के तहत हथिया लिए गए थे और वे तय समय पर नहीं दिये जा रहे थे। उन्होंने बहुत से परिवारों को उनके बच्चों की शिक्षा पूरी करने में भी मदद की।
राष्ट्रीय स्तर के तैराक सतेंद्र सिंह लोहिया अपनी सफलता का श्रेय उन्हें देते हैं। 19-पदक जीतने वाले दिव्यांग तैराक ने अपने एक साक्षात्कार में कहा कि नरहरि थे उन्हें प्रेरित किया और उनके प्रशिक्षण में भी मदद की। वो कहते हैं, “वो नाम से नहीं बल्कि काम से भी नरहरि (मानव-देव) हैं।”
लोगों से मिलने वाले प्यार और आशीर्वाद के बारे में नरहरि कहते हैं, “जब मैं एक बच्चा था तो मैंने कभी जिलाधिकारी को नहीं देखा। हम जानते थे कि जिलाधिकारी एक ऐसा व्यक्ति है जो शक्तिशाली है और बड़ी सी गाड़ी में आता है। लेकिन मैं वह नहीं बनना चाहता था। मैंने हमेशा अपने आप को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा, जो किसी की जरूरतमंद के लिए हमेशा सुलभ और उपलब्ध हो।”
नरहरि कुछ उन आईएएस अधिकारियों में से एक हैं जो सोशल मीडिया का उपयोग लोगों तक पहुंचने और उनकी समस्याओं को हल करने के लिए कर रहे हैं। वह मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग में सोशल मीडिया विंग की स्थापना के लिए भी जाने जाते हैं।
प्रेरणा
इस दृढ़-संकल्प और कड़ी मेहनत के साथ आखिर कौन बड़ी संख्या में लोगों के लिए प्रेरणा नहीं बनेगा? उन्होंने अपना सारा जीवन लोगों की भलाई के लिए काम किया है। उन्हें 2017 में देश के 10 सबसे प्रेरक आईएएस अधिकारियों में भी शामिल किया गया था। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि इसने उन्हें उनका स्टार और हीरो बना दिया है। इस साल के यूपीएससी टॉपर्स प्रदीप सिंह ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि उन्होंने नरहरि के काम से प्रेरित होने के बाद सिविल सेवाओं में आने का फैसला किया।
इस सब पर उनकी भावनाओं के बारे में पूछे जाने पर नरहरि जवाब देते हुए कहते हैं, “मैं एक विनम्र पृष्ठभूमि और निम्न-मध्यम वर्ग के परिवार से आता हूं। मेरे पिता एक दर्जी थे और हम पांच भाई-बहन थे लेकिन उन्होंने हमारी शिक्षा के साथ कभी कोई समझौता नहीं किया। उच्च-अध्ययन के लिए मुझे हमेशा सरकारी योजनाओं और छात्रवृत्ति से मदद मिली। अब मेरी बारी है कि मैं दूसरे आकांक्षी छात्रों को हर संभव मदद करूं। लेकिन जब भी मैं इन कहानियों के बारे में सुनता हूं, तो खुशी से भर जाता हूं। ऐसा लगता है कि जैसे मेरा जीवन पूरा हो गया है क्योंकि मैं किसी को प्रेरित करने में सक्षम हो सका।”
2001 बैच के मध्य प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी नरहरि ने कई जिलों के डीएम रहने के अलावा, मध्य प्रदेश सरकार में सचिव (राजस्व) का पद और सचिव और आयुक्त जनसंपर्क विभाग का पदभार भी संभाला है। साथ ही वह हाल ही में तकनीकी शिक्षा विभाग के आयुक्त के पद पर भी रहे थे। इतना ही नहीं, उन्होंने कुछ वक्त के लिए ‘माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय’ के वीसी के रूप में भी कार्य किया। वर्तमान में वह देश की सहकारी विपणन समितियों की मध्य प्रदेश में राज्य स्तरीय शीर्ष संस्था ‘मध्यप्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ मर्यादित’ जिसे सामान्य तौर पर ‘मार्कफेड’ भी कहा जाता है, के एमडी पद पर तैनात है।
हमें उम्मीद है कि वह इस देश को सभी के लिए एक बेहतर जगह बनाने के अपने प्रयासों को जारी रखेंगे…।
END OF THE ARTICLE