एक और मांझी: जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सड़क
- Ajay
- Published on 14 Nov 2021, 10:30 am IST
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हाइलाइट्स
- देशभर के नौकरशाहों के लिए मिसाल हैं मणिपुर के आईएएस अधिकारी आर्मस्ट्रांग पामे
- बिना किसी सरकारी सहायता के, खुद के प्रयासों से ही बनवा दी 100 किलोमीटर लंबी सड़क
- इस सड़क को आज 'पीपल्स रोड' के नाम से जाना जाता है
- आर्मस्ट्रांग पामे की सड़क (क्रेडिट – पामे के फेसबुक पेज से)
अब्राहम लिंकन का एक मशहूर कथन है – लोकतंत्र लोगों की, लोगों के द्वारा, और लोगों के लिए बनायी गयी सरकार है। इस कथन का मर्म हम अपनी कहानी में समझें, उससे पहले दुष्यंत कुमार के एक प्रेरक शेर को भी सुन लीजिए – “कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।” इन दोनों का आईएएस अधिकारी आर्मस्ट्रांग पामे की कहानी से गहरा नाता है। उन्होंने कुछ ऐसा किया जो जनता के लिए, जनता द्वारा और जनता का हो गया। वहीं जिस तरीके से और जिस परिस्थितियों में किया, उसने दुष्यंत के शेर को एक बार फिर से सही साबित कर दिया। शायद इसीलिए पामे को उत्तर-पूर्व भारत का ‘मिरेकल मैन’ यानी ‘चमत्कारी आदमी’ कहा जाता है।
उत्तर-पूर्व भारत के अहम राज्य मणिपुर के एक दूर-दराज के क्षेत्र में बिना किसी सरकारी सहायता के पामे ने जनभागीदारी के माध्यम से 100 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण करा दिया। एक 11 वर्षीय गरीब बच्ची लालरिंडिका जिसके बचपन से ही होंठ कटे हुए थे, उसकी सर्जरी के लिए अपने पैसे से व्यवस्था की। इस तरह की कहानियां हर रोज सुनने को नहीं मिलतीं। उनकी उपलब्धियों, खासकर सड़क के काम ने सोशल मीडिया दिग्गज फेसबुक का भी ध्यान आकर्षित किया। 2015 में, सोशल मीडिया की अग्रणी कंपनी फेसबुक ने पामे को संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित अपने कार्यालय में आमंत्रित किया था।
आर्मस्ट्रांग पामे मूल रूप से मणिपुर के तमेंगलांग जिले के हैं और वह नागालैंड के ‘जेमे जनजाति’ से आने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के पहले अधिकारी हैं। पामे की प्रेरणादायक कहानी को महानायक अमिताभ बच्चन अपने टेलीविजन शो ‘आज की रात है जिंदगी’ में भी दिखा चुके हैं, तो वहीं मीडिया दिग्गज सीएनएन-आईबीएन द्वारा उन्हें सार्वजनिक सेवा श्रेणी में ‘इंडियन ऑफ द ईयर’ पुरस्कार के लिए मनोनीत किया जा चुका है।
जनता की सड़क
आर्मस्ट्रांग की अद्भुत कहानी को शुरू करने के लिए, उनकी बनाई सड़क पर बात करने से बेहतर क्या हो सकता है। दशकों से मणिपुर के तौसेम गांव के लोग अपनी ही दुनिया में रहते थे, बाहरी दुनिया से उनका वास्तविक संपर्क नहीं था। इसका कारण था कि उनके गांव के बाहर कहीं भी आने-जाने के लिए ढंग की सड़क ही नहीं थी।
राज्य सरकार की ओर से सड़क के लिए फंड को लेकर पामे ने बहुतेरे प्रयास किए लेकिन सब जाया गए। थक-हारकर उन्होंने दूसरा आइडिया ‘जनभागीदारी’ का निकाला और अपने प्रशासनिक कौशल का उपयोग किया। लेकिन इस जनकल्याण की शुरुआत उन्होंने खुद से की, खुद की बचत के पैसों से लाखों रुपए इस पहल के लिए दिये। उनकी मां ने अपनी एक माह की पेंशन दी, तो वहीं उनके भाइयों और बहनों ने भी योगदान दिया। साथ ही उन्होंने फेसबुक पर एक पेज बनाया और इसके जरिए लगभग 40 लाख रुपये इकठ्ठा किए और सड़क का काम शुरू कर दिया। जैसे ही उनकी इस नेक पहल की खबरें मणिपुर में फैली, बड़ी संख्या में लोग सड़क निर्माण कार्य के लिए स्वयंसेवकों के रूप में उनके साथ जुड़ गए।
इस तरह अपने इरादों और दृढ़-संकल्प के साथ एक युवा अधिकारी ने 100 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण कर डाला। चूंकि यह लोगों की, लोगों के द्वारा और लोगों के लिए बनाई गयी सड़क थी, इसलिए इसे नाम भी दिया गया – ‘पीपल्स रोड’ यानी जनता की सड़क। अब यह आम लोगों के लिए तैयार है। एक पिछड़े और वंचित गांव के लोग आसानी से बाकी दुनिया से जुड़ सकते हैं।
इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ बात करते हुए पामे कहते हैं कि वो खुद को कई मामलों में भाग्यशाली मानते हैं। पामे के शब्दों में, “मैं भाग्यशाली और गौरवान्वित हूं कि मुझे यहां नियुक्त होने का सौभाग्य मिला। उच्च अधिकारियों ने मेरा पूरी तरह से सहयोग किया और लोगों का भी पूरा समर्थन मिला।”
अपने अभूतपूर्व ‘सड़क प्रोजेक्ट’ के लिए खुद को दिये जाने वाले श्रेय पर पामे विनम्रता से कहते हैं, “यह किसी एक आदमी का काम नहीं है। मैंने केवल परियोजना शुरू की थी। यह आम लोग थे, जिन्होंने इसका नेतृत्व किया और इसे अंजाम तक पहुंचाया।”
मांझी- द माउंटेन मैन और मिरेकल मैन पामे
हर कोई पामे के इस बेमिसाल काम की तुलना बिहार के माउंटेन मैन नाम से मशहूर रहे ‘दशरथ मांझी’ के साथ करता है। बिहार के गया जिले से आने वाले मांझी ने अकेले ही सिर्फ हथौड़े और छेनी से पहाड़ का सीना चीर डाला था। 22 साल तक अपनी अनवरत जुनूनी मेहनत के दम पर मांझी ने 110 मीटर लंबे और 30 फीट चौड़े रास्ते को एक छोटी पहाड़ी को काटकर बनाया था। 2016 में, भारत सरकार ने भी मांझी की उपलब्धि का सम्मान करते हुए उन पर एक डाक टिकट जारी किया।
बॉलीवुड भी सिनेमा के पर्दे पर इस अद्भुत कहानी को दिखाने के लिए बेचैन रहा और साल 2015 में दशरथ मांझी के गुजरने के ठीक 8 साल बाद ‘मांझी-द माउंटेन मैन’ फिल्म आई, जिसमें लोकप्रिय अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने मांझी की भूमिका निभाई। मांझी की कामयाबी कितनी बड़ी थी, यह इससे समझा जा सकता है कि मांझी के गहलौर पहाड़ का सीना चीरने से गया के अतरी और वजीरगंज ब्लॉक का फासला 80 किलोमीटर से घटकर सिर्फ 13 किलोमीटर रह गया।
करुणामय दिल
आर्मस्ट्रांग पामे के सड़क के लिए किए गए विशेष प्रयासों का एक मानवीय पक्ष भी है। इस सफलता और उद्देश्य के पीछे सिर्फ एक ऊर्जावान आईएएस अधिकारी का उत्साह और जुनून बताना सही नहीं होगा। करुणा से भरी उनकी आंखें तौसेम गांव के निवासियों की सभी कठिनाइयों को देख चुकी थीं। मुख्य धारा से यह इलाका कैसे कटा हुआ था, इसका कुछ अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि एक साल गांव में कई उष्णकटिबंधीय (ट्रोपिकल) बीमारियों का एक प्रकोप हुआ था। इससे गांव में बड़ी संख्या में लोग बीमार पड़ गए।
लेकिन मोटर-कारों के चलने योग्य कोई सड़क गांव में नहीं थी। यहां तक कि पास के जिला अस्पताल तक पहुंचने के लिए भी दो दिनों की पैदल यात्रा करनी पड़ती थी। गांव में सैकड़ों लोग बीमार थे, उन्हें अब लकड़ी के फौरी तौर पर जुगाड़ से बनाए गए स्ट्रेचर (पालकी) पर अस्पताल ले जाया गया। लेकिन उनमें से बहुत से तो अस्पताल तक पहुंच ही नहीं पाए और रास्ते में ही दम तोड़ दिया। बहुतों को बचाया जा सकता था, लेकिन जब बीमार आदमी 2 दिन के सफर के बाद अस्पताल पहुंचेगा, शायद तब नहीं।
इससे कोई भी समझ सकता है कि सड़क निर्माण का कार्य इलाके के लिए कितना महत्वपूर्ण था। यह भी दीगर है कि साल 1981 में केंद्र सरकार ने सड़क के लिए 101 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, लेकिन यह कभी सही जगह पहुंचे ही नहीं। 30 वर्षों तक सड़क का सपना लिए एक पीढ़ी जवान हो गयी तो एक अपने बुढ़ापे में पहुंच गई। लेकिन अंततः एक युवा उनकी अपनी ही जनजाति से फरिश्ता बनकर आया, जिसने उनकी दशकों पुरानी ख्वाहिश को आखिरकार मुकाम तक पहुंचा दिया। अपने एक और विशेष कार्य में पामे ने कुछ साल पहले हर हफ्ते स्कूली बच्चों को अपने साथ सरकारी बंगले पर डिनर करने का मौका दिया था। उन्होंने पांचवीं से दसवीं क्लास तक के 10 चुने हुए बच्चों बुलाने का फैसला लिया था। उनका मानना था कि इससे छात्रों को जिले की प्रशासनिक व्यवस्था देखने का मौका मिलेगा।
कोरोनोवायरस के बढ़ते प्रकोप के दौर में भी पामे अपने कई कर्तव्यों के प्रति सचेत रहे। इनमें से एक था, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKAY) के तहत दूर-दराज के गांवों में राशन की आपूर्ति करना, पामे ने इसे पूरी तत्परता के साथ निभाया और मुश्किल वक्त में लोगों तक हर मदद पहुंचाई।
सिविल सेवा के उम्मीदवारों के लिए सलाह देते हुए पामे इंडियन मास्टरमाइंड्स से कहते हैं, “किसी को खुद से ही पूछना चाहिए कि वह आईएएस अधिकारी क्यों बनना चाहता है। मुझे लगता है कि किसी के लिए भी सिविल सेवाओं में शामिल होने का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि वो दूसरों के लिए जीवन जीना चाहता है और उनके जीवन को बदलना चाहता है।”
वास्तव में यही वह दृष्टिकोण है, जो उन सभी सिविल सेवकों में पाया जाता है जो समाज में कई मायने में सार्थक बदलाव लाए हैं या लाना चाहते हैं, फिर वह चाहे आईएएस हो या आईपीएस, आईआरएस या कोई अन्य सेवा।
भाई की भावुक पोस्ट
2015 में, ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ ह्यूमन राइट्स, लिबर्टीज एंड सोशल जस्टिस ने आर्मस्ट्रांग पामे को भारत के सबसे प्रतिष्ठित आईएएस अधिकारी के रूप में सम्मानित किया। बाद में उस पल को याद करते हुए, उनके बड़े भाई और दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर जेरेमिया पामे ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा:
(तो आर्मस्ट्रांग, तुम एक आईएएस अधिकारी क्यों बनना चाहते हो? – इंटरव्यू बोर्ड के अध्यक्ष ने पूछा
आर्मस्ट्रांग पामे ने दृढ़ विश्वास और पूरी ईमानदारी के साथ जवाब दिया,
“सर, मेरे लोगों को अभी भी आईएएस अधिकारी की जरूरत है। अभी असम, मणिपुर और नागालैंड में मेरे लोग जानते हैं कि मैं सिविल सेवा की आखिरी बाधा (इंटरव्यू) का सामना कर रहा हूं। वे मेरे लिए प्रार्थना और उपवास कर रहे हैं। मुझे उन लोगों के लिए बहुत कुछ करना है। मेरे पास उनके उत्थान के लिए बहुत कुछ है। मुझे पूरे भारत को आगे ले जाना है।”
तब अध्यक्ष महोदय अपनी कुर्सी से उठे, पामे से हाथ मिलाया और कहा, “हमें यही चाहिए।” बाकी इतिहास है…
यह आप सबके लिए –
आज, जब हम पीछे देखते हैं, तो इस अवसर पर उन सभी को धन्यवाद देते हैं जो हमारी यात्रा का हिस्सा रहे हैं।
दूसरों के लिए, आईएएस अधिकारी बनना जीवन में बस एक और कामयाबी हो सकती है।
लेकिन हमारे लिए, आईएएस अधिकारी बनना एक ख्वाब था, एक प्रतिबद्धता थी।
यह बहुत सारे लोगों की प्रार्थना और समर्थन के कारण ही संभव है।
यह पुरस्कार उन सभी को समर्पित है, जिन्होंने हमारी मदद की और हर तरीके से हमारा समर्थन किया।
यह उसके लिए है, जो कुछ हमने साथ में किया है… खास कर ‘जनता की सड़क।’
हमारे सभी बलिदानों, योगदानों और प्रार्थनाओं को मान्यता दी गई है।
यह पुरस्कार अकेले आर्मस्ट्रांग का नहीं है।
यह आप सभी का है।
हम साथ में खुशियां मनाएंगे…। भगवान हम सभी को आशीर्वाद देते रहें…।)
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