इस आईएएस अधिकारी की पहल से 7 दशकों बाद इस गांव तक पहुंची रोशनी!
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 17 Oct 2021, 11:09 am IST
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हाइलाइट्स
- 2013 बैच के आईएएस अधिकारी और सिंहभूमि जिले के उपायुक्त सूरज कुमार के प्रयासों से रोशन हुआ एक गांव
- झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के सूर्याबेड़ा गांव में दशकों से न बिजली थी, न ढंग की सड़क
- सूर्याबेड़ा के बच्चे पहले ढिबरी-बाती से रात में करते थे पढ़ाई, शाम होने के बाद कोई ग्रामीण गांव से बाहर नहीं निकलता
- घने जंगल और पहाड़ों की तलहटी में बसे एक गांव सूर्यबेड़ा ने दशकों बाद बिजली देखी है (क्रेडिट: ट्विटर @WeAreJharkhand)
जरा सोचकर देखिए और कल्पना कीजिए एक ऐसी जगह की, जहां अभी भी बिजली नहीं है, बेहतर सड़के नहीं है, पीने को पानी नहीं है! सोचकर ही रूह कांप उठती है न। और खयाल आता है कि दिन-प्रतिदिन आधुनिक होती जा रही दुनिया में भला ऐसी जगह कहां होगी! तो रुकिए, अपने ही देश में ऐसी जगह थी, जहां आजादी के 73 सालों बाद भी ये सुविधाएं नहीं थीं। लोगों का जीवन बद से भी बदतर हो चुका था। लेकिन 2013 बैच के आईएएस अधिकारी और सिंहभूमि जिले के उपायुक्त आईएएस सूरज कुमार के प्रयासों से आज वहां ये सभी आधुनिक सुविधाएं मिल पा रही हैं। सूर्याबेड़ा गांव बिजली की दूधिया रोशनी से रोशन हो रहा है, सड़कों का निर्माण हो रहा है और पानी भी लोगों तक सुलभता से पहुंच रहा है।
झारखंड राज्य के पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी प्रखंड मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर सूर्याबेड़ा गांव अब तक विकास से महरूम था। बिजली, पानी और सड़क जैसी मूलभूति सुविधाएं भी यहां नहीं पहुंच पाईं थीं। लेकिन घने जंगलों और पहाड़ की तलहटी में बसा सूर्याबेड़ा गांव में उम्मीद की किरण तब पहुंची, जब सिंहभूमि जिले के उपायुक्त आईएएस सूरज कुमार ने पहल की। सूरज को जब इस समस्या का पता चला, तो उन्होंने गांव में जनता दरबार लगाकर लोगों की परेशानियां सुनी और मूलभूति सुविधाओं से भी वंचित ग्रामीणों की बातें सुनकर वो अचंभित रह गए। उन्होंने उसी वक्त ग्रामीणों से वादा किया कि जल्द से जल्द उनकी समस्या को हल किया जाएगा।
न बिजली, न सड़क
इंडियन मास्टरमाइण्ड्स से एक खास बातचीत करते हुए आईएएस सूरज कहते हैं, “मुझे पता चला कि हमारे यहां एक ऐसा भी गांव है, जिसने 70 सालों में न बिजली की रोशनी देखी है और न ही उन तक पहुंचने के लिए कोई सड़क है। यहां तक कि पानी के लिए भी उन्हें बेतहाशा संघर्ष करना पड़ता है। दरअसल सूर्याबेड़ा पहाड़ों के बीच बसा हुआ गांव है। सूरज भी यहां देर से उगता है और जल्दी डूबता है। लेकिन उनकी समस्या सुनकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ, क्योंकि जमशेदपुर की वजह से सिंहभूमि समान्यता बेहतर सुविधाओं वाला जिला समझा जाता है। मैंने वहीं ये वादा किया की मैं इस समस्या का जल्द ही हल निकालूंगा।”
आईएएस सूरज बताते हैं कि अपनी टीम के साथ जब वो गांव के दौरे पर जा रहे थे, तो वहां जाने के लिए एक बेहतर सड़क तक नहीं थी। मोटरसाइकिल पर सवार होकर उन्हें तीन बड़े नाले पार करने पड़े। रास्ता इतना दुरूह था कि उनकी मोटरसाइकिल पंचर हुई और कई साथी रास्ते में गिरे भी। तभी उन्हें गांव के लोगों की कठिनाइयों का एहसास हो गया था।
आखिर क्यों महरूम रहा विकास से सूर्याबेड़ा!
आखिर सात दशकों तक इस गांव में ये मूलभूत सुविधाएं भी क्यों नहीं पहुंच सकीं? इंडियन मास्टरमाइण्ड्स के इस सवाल पर आईएएस सूरज कहते हैं, “कई बार एक अतिरिक्त प्रयास की कमी कुछ भी बड़ा या बेहतर होने से रोक देती हैं। यहां भी कुछ ऐसा था। फॉरेस्ट के क्लियरेंस के कुछ मुद्दे थे, जिन्हें हल करने के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं किया गया। रास्ते खराब थे, उनके लिए कोई सरकारी फंड भी नहीं था, उन्हें बेहतर करने के लिए भी कभी कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं किए गए थे। लेकिन जमशेदपुर एक ऐसी जगह है, जहां बहुत से प्रभावशाली और अमीर लोग हैं जो मदद के लिए आगे आते, अगर उनकी मदद ली जाती। लोग भी कई बार आगे आकर नहीं बोलते। अगर लोग खुद आवाज नहीं उठाएंगे, तो सरकार भी ध्यान नहीं दे पाती है। हालांकि ये हमारी कमी है और मैं इसे मानता हूं। इसके अलावा शायद एक कारण नक्सलवाद भी रहा है। शायद इसी वजह से लोग अपनी समस्या नहीं बता पा रहे होंगे।”
कैसे आया बदलाव
अपने वादे के बाद आईएएस सूरज ने सदियों से घुप अंधेरे में जी रहे सूर्याबेड़ा गांव में बदलाव की बयार लाने के लिए तेजी से प्रयास शुरू कर दिये। सबसे पहले बिजली के खंभों को लगाने के लिए जो फॉरेस्ट के क्लियरेंस की दिक्कत थी, फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के साथ मिलकर उसे दूर किया गया। फिर उन्होंने अपने निजी फंड से पीसीसी पथ (सीमेंटेड रोड) बनवाने का काम शुरू किया। वहीं इस विकास कार्य में जनप्रतिनिधि क्षेत्रीय (घाटशिला) विधायक रामदास सोरेन का भी सहयोग मिला। लगभग 500 फीट का पीसीसी पथ विधायक रामदास ने अपने फंड से बनवाया है और लगभग 1500 फीट का पीसीसी पथ आईएएस सूरज ने अपने निजी फंड से बनवा रहे हैं, जिसका काम अभी भी चल रहा है। इसके अलावा साढ़े 4 किलोमीटर की गांव से प्रखंड मुख्यालय की तरफ जाने वाली मेन रोड को बनाने के लिए सरकार से फंड मांगा गया है। गांव की सड़कों पर स्ट्रीट लाइट्स भी लगाई गई हैं, जिससे ग्रामीणों में काफी खुशी है।
“मैं हमेशा कहता हूं कि हम लोग शायद हर जगह नहीं पहुंच सकते, क्योंकि हमारी भी कुछ सीमाएं हैं। लेकिन जनता अगर हम तक पहुंचती है और अपनी समस्याएं बताती है, तो हम पूरा प्रयास करते हैं कि उनकी हर संभव मदद हो सके।”
“आईएएस सूरज”
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