खास रिपोर्ट: पर्यावरण मंत्रालय के मुख्य सचिव ने बताया कि कैसे लागू होगी बिहार में सम्पूर्ण पॉलिथीन बंदी!
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 31 Oct 2021, 6:19 pm IST
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हाइलाइट्स
- बिहार के पर्यावरण मंत्रालय का मसौदा, सरकार 15 दिसंबर से लागू करेगी पॉलिथीन बंदी
- गांवों से लेकर शहरों तक नियम का पालन कराने के लिए बनी टास्क फोर्स
- कई विभागों के साथ मिलकर काम कर रहा है पर्यावरण मंत्रालय
- इंडियन मास्टरमाइण्ड्स से बात करते हुए मुख्य सचिव ने बताई आगे की योजना
2016 में एक रिपोर्ट आई थी, उसके अनुसार भारत में प्रतिदिन 15000 टन प्लास्टिक अपशिष्ट निकलता है। और यह संख्या हर रोज लगातार बढ़ती जा रही है। यह बेहद खतरनाक है। पूरी दुनिया में प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि पूरी दुनिया में मौजूद प्लास्टिक से धरती को 5 बार लपेटा जा सकता है। यह एक बेहद गंभीर तरह का प्रदूषण बन चुका है जो पर्यावरण को लगातार हानि पंहुचा रहा है और धीरे-धीरे इसका असर मानव जीवन पर भी दिखने लगा है। इसके सबसे बुरा प्रभाव है, प्लास्टिक की थैलियों यानी पॉलिथीन के रूप में इसका उपयोग होना।
इसीलिए पॉलिथीन के बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए सरकारों ने प्लास्टिक की थैलियों पर कई जगह प्रतिबंध भी लगाया है। हालांकि इस योजना को पूरे देश मे लागू नहीं किया जा सका। लेकिन अब बिहार सरकार ने सम्पूर्ण शराबबंदी की तर्ज पर पॉलिथीन बंदी करने जा रही है। इसे बिहार सरकार का एक बहुत बड़ा कदम माना जा रहा है। एक बड़े राजस्व के हिस्से की तिलांजलि देकर राज्य में शराबबंदी लागू करने की नजीर की पूरे देश में तारीफ हुई थी। उसी तरह सरकार का 15 दिसम्बर से पूरे राज्य में पॉलिथीन बंद करने का कदम भी खूब सराहा जा रहा है। केंद्र सरकार्व देश भर में पॉलिथीन बंद करने की तारीक अगले साल 1 जुलाई तय कर चुकी है, लेकिन बिहार सरकार लगभग 6 महीने पहले ही ये कदम उठाने जा रही है।
बिहार के पर्यावरण मंत्रालय के मसौदे के अनुसार, इस साल 14 दिसम्बर की आधी रात से बिहार में पॉलिथीन और प्लास्टिक-थर्माकोल का उत्पादन, भंडारण, खरीद, विक्री और उपयोग पर पूरी तरह प्रतिबंध होगा। राज्य की सीमा के अंदर इन उत्पादों का उपयोग करते हुए पकड़े जाने पर 5 लाख रुपए जुर्माना या एक साल की जेल या फिर दोनों सजाएं हो सकती हैं। बिहार सरकार ने इसके लिए जून में ही अधिसूचना जारी कर दी थी। वहीं, सरकार की सख्ती और जागरूकता के बाद प्लास्टिक-थर्मोकोल के 70 फीसदी उत्पादकों ने दूसरे विकल्पों की तरफ देखना शुरू कर दिया है।
पर्यावरण मंत्रालय का मसौदा
1992 बैच के आईएएस अधिकारी और राज्य के पर्यावरण मंत्रालय के प्रमुख सचिव दीपक कुमार सिंह ने इंडियन मास्टरमाइण्ड्स से बात करते हुए कहा, “पॉलिथीन का उपयोग सिंगल यूज के तहत आता है और ये रिसाइकल भी नहीं होती है। इस तरह इससे कई नुकसान होते हैं। ये जल से लेकर मिट्टी तक को बुरी तरह प्रदूषित करती है। इसीलिए ये नियम लाया जा रहा है और इसका सख्ती से पालन कराया जाएगा। हम इसके लिए कई विभागों के साथ समन्वय भी बिठा रहे हैं। इसमें पंचायती राज विभाग, नगर विकास मंत्रालय और उद्योग विभाग सहित कई अन्य मंत्रालय क्षमाइल हैं, जिनके साथ मिलकर हम कमा कर रहे हैं। हमने पंचायती राज विभाग को ग्रामीण क्षेत्रों में और नगर विकास मंत्रालय को शहरी क्षेत्रों में कार्यान्वयन देखने के लिए नोडल विभाग नामित किया है। साथ ही इसके लिए टास्क फोर्स भी बनाई गयी है। तहसील से लेकर जिला स्तर तक का काम यही देखेगी।”
दीपक कुमार सिंह का कहना है राज्य के सभी उत्पादकों से जल्द ही पॉलिथीन के अन्य विकल्प तलाशने के लिए कह दिया गया है। बहुत से उत्पादकों ने तो कपड़े के थैले का प्रयोग भी शुरू कर दिया है।
वहीं, सरकार की सख्ती का असर अभी से दिखने लगा है। आंकड़ों के अनुसार राज्य में पिछले साल के अंत तक प्लास्टिक और थर्मोकोल के उत्पाद बनाने वाले लगभग 70 हजार कारोबारी थे। जबकि बीते चार महीनों में इनकी संख्या घटकर सिर्फ 20 हजार रह गई है।
अभी तक क्या था नियम
अभी तक के नियम के अनुसार प्लास्टिक के बैग, थैलियां, कैरी बैग और पैकेजिंग पर उसके निर्माता का नाम और पता लिखा होना आवश्यक होता है। इसके साथ ही प्लास्टिक से बने कैरी बैग की मोटाई 40 माइक्रॉन से कम नहीं होनी चाहिए। लेकिन इन नियमों का पालन शायद ही कहीं होता हो।
आंकड़ों में प्लास्टिक से नुकसान
प्लास्टिक उत्पादों से किस कदर प्रदूषण हो रहा है, इसको ऐसे देखिये कि विश्व से प्रतिवर्ष करीब 5 से 13 मिलियन तक प्लास्टिक कचरा समुद्रों में चला जाता है। करीब दस लाख पानी की प्लास्टिक बोतलें एक मिनट में इस्तेमाल होती हैं। पॉलिथीन तो बहुतायत में जाने कितनी जगहों पर इस्तेमाल हो रही है। लेकिन पॉलीथीन या प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं का एक बार प्रयोग करने के बाद दुबारा प्रयोग में नहीं लिया जा सकता है और इन्हें फेंकना पड़ता है। लेकिन ये नष्ट नहीं होती, जहां भी होती है जमीन की उर्वरा शक्ति कम कर देती है। इसके नीचे दबे बीज भी अंकुरित नहीं हो पाते हैं। इस तरह भूमि बंजर हो जाती है। प्लास्टिक प्रदूषण एक नए खतरे के रूप में उभरकर हमारे सामने आ रहा है।
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