वो आईएएस अधिकारी जिसे किस्मत हमेशा हराना चाहती थी, लेकिन वो हमेशा जीता!
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 18 Oct 2021, 11:19 am IST
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हाइलाइट्स
- 2018 बैच के मध्य प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी नवजीवन पवार की कहानी
- परीक्षा के वक्त बेतहाशा मुश्किलों ने जकड़ा लेकिन पहले प्रयास में ही बने आईएएस
- मेंस परीक्षा की आंसर राइटिंग (उत्तर लेखन) को मानते थे बेहद अहम, तैयारी के पहले दिन से की प्रैक्टिस
- 2019 बैच के आईएएस अधिकारी, नवजीवन पवार (क्रेडिट: उनका इंस्टाग्राम)
अपनी सफलता की संघर्षों से भरी ये कहानी बताते हुए 2018 बैच के आईएएस अधिकारी नवजीवन पवार हर किसी को एक उम्मीद देते हैं कि परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, यस यू कैन! यानी आप हर हालात में वो सब कर सकते हैं जो करना चाहते हैं। अपनी किस्मत का रोना वो लोग रोते हैं जिन्हें खुद पर भरोसा नहीं।
सिर्फ 26 साल की उम्र में आईएएस बनने वाले नवजीवन का हाथ देखकर एक ज्योतिषी ने कहा था कि तुम कभी आईएएस नहीं बन सकते, दिल्ली में सिर्फ मस्ती करने आए हो और करके चले जाओगे। लेकिन वो निराश नहीं हुए और उन्होंने वही किया जो इंडियन मास्टरमाइण्ड्स से बात करते हुए उन्होंने हर यूपीएससी उम्मीदवार से करने को कहा – “खुद पर हर परिस्थिति में भरोसा रखें और दूसरों से कभी अपनी तुलना न करें। प्रतियोगिता करनी ही है तो खुद से करें और हर रोज इसके लिए प्रयास करें कि कैसे खुद को पहले से बेहतर बनाया जाए।”
शुरुआत
महाराष्ट्र के नासिक जिले के एक छोटे से कस्बे नवी बेज के रहने वाले नवजीवन पवार के पिता एक किसान और उनकी मां प्राइमरी स्कूल में टीचर हैं। नवजीवन अपने पिता की मदद के लिए बचपन से ही खेतों में काम करने जाते थे और हल हलाया करते थे। वो पढ़ाई में हमेशा से अच्छे रहे और बचपन से ही सिविल सेवा में जाने के ख्वाब देखते थे। इसके पीछे भी उनके माता-पिता की ही प्रेरणा थी, क्योंकि उनको लगता था कि उनका बेटा एक दिन समाज को बेहतर बनाने के लिए कुछ काम करेगा।
मई, 2017 में सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक पूरा होने के बाद, वो यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने के लिए दिल्ली चले गए। जून, 2018 में अपने पहले ही प्रयास में उन्होंने देश की सबसे कठिन मानी जाने वाली यूपीएससी परीक्षा की पहली सीढ़ी यानि प्रारम्भिक परीक्षा पास कर ली।
यूपीएससी परीक्षा
इंडियन मास्टरमाइण्ड्स से एक खास बातचीत में नवजीवन पवार कहते हैं, “यूपीएससी की मेंस परीक्षा से करीब एक महीने पहले मुझे डेंगू हो गया था और तबीयत इतनी खराब थी कि अस्पताल में भर्ती में हो गया। लेकिन मैंने वहां भी अपनी पढ़ाई जारी रखी। अस्पताल में डॉक्टर एक हाथ में इंजेक्शन लगा रहे होते थे, तो वहीं मेरे दूसरे हाथ में किताब होती थी। मेरी बहन और 12वीं कक्षा में पढ़ रही भांजी अस्पताल में ही नोटस तैयार करने में मेरी मदद करती थी। लेकिन अपने पहले प्रयास में ही बीमारी से लड़ते हुए मैंने परीक्षा पास कर ली। जब इंटरव्यू की तैयारी कर रहा था, तभी मुझे ये खयाल आया कि अगर कोई शख्स मेरा भविष्य बता सकता है, तो मैं खुद उसे बदल क्यों नहीं सकता।”
आखिरकार अपने इसी जज्बे के साथ नवजीवन ने यूपीएससी में पूरे देशभर में 316 वीं रैंक हासिल की और आईएएस अधिकारी बन गए। यूपीएससी में उनका वैकल्पिक विषय समाजशास्त्र था।
भरोसा सबसे जरूरी
वर्तमान में मध्य प्रदेश के धार जिले में एसडीएम के रूप में कार्यरत नवजीवन कहते हैं, “यूपीएससी परीक्षा पास करने से पहले मुझे कभी डेंगू हुआ तो कभी डायरिया। एक बार कुत्ते ने काट लिया और एक बार तो कीमती डाटा से भरा मेरा फोन ही गुम हो गया। मेरे साथ इतने सारे हादसे एक साथ हो रहे थे कि दोस्तों के कहने पर मैं ज्योतिष के पास चला गया। ज्योतिष की बात सुनकर एक बारगी तो मैं निराश हुआ, फिर मैंने मन ही मन में खुद से मशहूर शायर मिर्जा गालिब का एक शेर कहा – ‘हाथों की लकीरों पर मत जा ए गालिब, नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते।’ मैंने खुद की मेहनत पर भरोसा रखा और मुझे कामयाबी मिली।”
यूपीएससी पास करने के बाद अपने माता-पिता के ख्वाबों को पूरा करते हुए नवजीवन महाराष्ट्र में एक मुहिम से जुड़े, जहां वो कई ऑफिसर के साथ मिलकर रूरल एरिया के स्कूल-कॉलेजों में जाकर छात्रों से मिलते हैं और सिविल सेवा से जुड़े उनके सवालों के जवाब देते हैं।
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