कैसे गोलियों और आग का सामना करते हुए आईपीएस अधिकारी ममता सिंह ने नूंह के एक मंदिर से 2500 से अधिक लोगों को बचाया
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 8 Aug 2023, 1:59 am IST
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हाइलाइट्स
- एडीजीपी ममता सिंह ने नूंह हिंसा के दौरान एक शिव मंदिर के अंदर फंसे लोगों को जान पर खेलकर बचाया
- मानवाधिकार आयोग की कई जांचों में उनके योगदान के लिए सुप्रीम कोर्ट तक ने की है तारीफ
- उन्हें बहादुरी के लिए राष्ट्रपति पदक भी मिल चुका है
यह कोई हॉलीवुड थ्रिलर नहीं है, जहां सुपर हीरो लोगों को बचाते हैं। उन्हें सुरक्षित ठिकानों पर ले जाते हैं। यह दरअसल 31 जुलाई को हरियाणा के नूंह का एक असली दृश्य है। जहां एडीजीपी ममता सिंह और उनकी टीम की वीरता दिखाते हुए एक मंदिर के अंदर छिपे 2500 से अधिक लोगों को दंगाइयों से बचा लिया था। पथराव और गोलियों की बारिश के बीच ममता सिंह के नेतृत्व में पुलिस टीम ने लोगों की रक्षा करने और उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का शानदार काम किया। इसकी देश के हर कोने में तारीफ हुई।यूं तो नूंह में हालात लगभग सामान्य हो गए हैं। स्थिति भी नियंत्रण में है। फिर भी उस भयावह दिन को जीवित बचे लोग डरावने दिन के रूप में याद करते हैं।
इंडियन मास्टरमाइंड्स को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में इस घटना को याद करते हुए 1996 बैच की आईपीएस अधिकारी ममता सिंह ने कहा कि वह अभी भी महिलाओं और बच्चों के दर्दनाक चेहरों को नहीं भूल सकती हैं। वह इस समय भोंडसी में एडीजीपी, लॉ एंड ऑर्डर हैं। उन्होंने उस मनहूस दिन की पूरी कहानी विस्तार से बताते हुए कहा कि दरअसल भगवान उस दिन उनके साथ थे। इसीलिए वह किसी तरह उन लोगों को बचाने में कामयाब रहीं।
कठिनाई से मंदिर तक पहुंचीं
31 जुलाई को जब दंगे शुरू हुए, तो जगह-जगह से हिंसा की खबरें आने लगीं। पुलिस हेडक्वार्टर को खबर मिली कि नलहर के शिव मंदिर में काफी लोग फंसे हुए हैं। तब यह पता नहीं था कि कितनी बड़ी संख्या में लोग वहां फंसे हुए हैं। उस समय ममता सिंह के पास जो भी फोर्स उपलब्ध था, उसे लेकर मंदिर की ओर चल पड़ीं। पलवल के एसपी लोकेंद्र प्रताप सिंह (नूंह के एसपी छुट्टी पर थे) सहित कुछ पुलिसकर्मी भी उनके साथ गए। इनमें गुरुग्राम के कुछ पुलिस वाली भी थे। वहां तक पहुंचना बिल्कुल भी आसान नहीं था। जगह-जगह रुकावटें थीं।
उन्होंने कहा, ”पूरे रास्ते फायरिंग और पथराव होता रहा। किसी तरह सब कुछ कंट्रोल करती हुई मैं मुख्य मंदिर से लगभग 500 मीटर दूर एक स्थान पर पहुंची। वहां पहुंचने पर नजारा और भी भयावह था। मंदिर की ओर जाने वाली सड़कें बंद कर दी गई थीं। आगजनी हो रही थी। लगातार पथराव हो रहा था।”
वह समझ गईं कि मुख्य मार्ग से मंदिर तक नहीं पहुंचा जा सकता। इसलिए पुलिस टीम ने खेतों से होकर कच्चे रास्ते से मंदिर तक पहुंचने का फैसला किया। लेकिन, पुलिस की मौजूदगी की भनक मिलते ही दंगाइयों ने फायरिंग बढ़ा दी। अचानक पथराव भी बढ़ गया। चारों तरफ आग ही आग दिखाई देने लगी। हालात का फायदा उठाते हुए दंगाइयों ने श्रद्धालुओं की सभी गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया।
सुश्री सिंह ने कहा, “मंदिर के चारों ओर पहाड़ हैं। इसलिए दंगाइयों को छिपने की जगह मिल गई थी। साफ दिख रहा था कि वहां बड़ी संख्या में लोग जमा हैं। वे पहाड़ों और झाड़ियों में छुपकर फायरिंग कर रहे हैं। इस स्थिति को देखकर मैंने अपनी टीम को स्पष्ट निर्देश दिए कि अब वे बर्स्ट फायरिंग शुरू कर दें।”
लोगों को अंदर बंद कर दिया
पुलिस टीम ने मंदिर परिसर में मौजूद लोगों को कमरों और हॉल में बंद कर दिया। इसलिए जहां भी लोग दिख रहे थे, दंगाई फायरिंग कर रहे थे। ऐसे में पुलिस टीम ने पहले भीड़ को हटाकर जगह को कवर किया। फिर जवाबी कार्रवाई के लिए आगे बढ़ी। उन्होंने कहा, “उस समय हम और अधिक फोर्स के आने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन तेजी से अंधेरा हो रहा था। इसलिए हमने लोगों को निकालने की योजना बनाई।’ इसलिए कि अंधेरे में दंगाई मौका पाकर मंदिर में घुस जाते। अगर ऐसा हुआ होता, तो स्थिति हमारे हाथ से निकल जाती।”
लोगों को निकालना शुरू किया
निकासी के लिए महिलाओं, बच्चों और पुरुषों की टोली बनाई गई। सभी बहुत डरे हुए थे। इसलिए पुलिस के बार-बार कहने पर भी कोई बाहर आने को तैयार नहीं था। ऐसे में लोगों को विश्वास दिलाने के लिए ममता सिंह खुद आगे बढ़ीं। उन्होंने यह कहते हुए लोगों को बाहर निकलना शुरू कर दिया कि, “मैं सबसे आगे रहूंगी और आगे चलूंगी। किसी को डरने की जरूरत नहीं है।”वह एक ग्रुप के साथ आगे बढ़ गईं। एसपी लोकेंद्र सिंह बाकी लोगों के साथ मंदिर में ही रुक गए। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि सभी को एक साथ बाहर ले जाना बड़ा जोखिम था। इस दौरान गाड़ियां जलाई जा रही थीं। मंदिर की ओर जाने वाली सड़क पर भी 500 मीटर तक जली हुई सीएनजी गाड़ियां रह-रहकर आग उगल रही थीं। पुलिस के पास उस समय केवल तीन बसें और कुछ छोटी गाड़ियां ही थीं।
बाल-बाल बचीं
जलती हुई गाड़ियों को जेसीबी की मदद से रास्ते से हटाया गया। लोगों को खेतों के उबड़-खाबड़ रास्तों से सड़क तक पहुंचाने की योजना बनाई गई। जैसे ही ममता सिंह पहले ग्रुप के साथ सड़क तक पहुंचने की कोशिश कर रही थीं, वे बाल-बाल बच गईं। जैसे ही दंगाइयों ने देखा कि लोगों को मंदिर से निकालकर सड़क पर लाया जा रहा है, उन्होंने सड़क की ओर गोलीबारी शुरू कर दी। एक गोली सुश्री सिंह के बहुत करीब से गुजरी और पास में खड़ी एक कार में जा लगी। उस समय वहां पूरी तरह अफरा-तफरी मच गई, लेकिन किसी तरह वे सभी वहां से भागने में सफल रहे। एक से दो घंटे के अंदर सभी श्रद्धालुओं को मंदिर से बाहर निकालकर वाहनों में बैठाया गया। इसी बीच जेसीबी आई। रास्ता साफ किया। फिर सभी को गाड़ियों में बैठाकर सुरक्षित निकाल लिया गया।
सुश्री सिंह ने कहा, “स्थिति इतनी बदतर थी कि जब लोग आखिरी बस में चढ़ रहे थे और बस वहां से जा रही थी, तब भी गोलीबारी हो रही थी। सचमुच, यह सभी के लिए एक भयानक अनुभव था। हमने भारी फायरिंग की। तब 500 राउंड से ज्यादा फायरिंग की गई।”
चारों तरफ फायरिंग और आग
अब तक नूंह में 156 और पूरे हरियाणा में 286 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। दंगा सिर्फ एक जगह तक सीमित नहीं था। सबसे पहले इसकी शुरुआत नूंह के अडबर चौक से हुई, जहां एक पुलिसकर्मी के पेट में गोली भी लग गई। वहां दो-ढाई हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ पथराव कर रही थी। लेकिन जब पुलिस पहुंची, तो फायरिंग भी शुरू हो गई। एक पुलिसकर्मी को भी गोली लग गई। पुलिस ने पहले चौक पर स्थिति संभाली। फिर तिरंगा पार्क की ओर बढ़ी, जहां दंगाइयों पर लाठीचार्ज किया गया। फिर नल्हड़ मोड़ पर पुलिस ने स्थिति संभाली। इसके बाद पुलिस मंदिर की ओर बढ़ने लगी। भीड़ ने मंदिर के 500 मीटर के दायरे में सभी गाड़ियों को जला दिया था। वहां स्थिति को संभाला गया। फिर गोलियों और पत्थरों की बौछार के साथ-साथ चारों ओर भीषण आग के बीच से गुजरते हुए मंदिर के अंदर छिपे सभी लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।
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