फीचर्स , बड़ों के बेमिसाल किस्से
चौथे स्टेज के कैंसर के बावजूद नीति आयोग की डायरेक्टर उर्वशी प्रसाद के कदम काम के साथ कर रहे हैं जुगलबंदी
- Jonali Buragohain
- Published on 19 Jul 2023, 9:55 am IST
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हाइलाइट्स
- उन्हें कैंसर का पता भी तब चला, जब वह चौथे स्टेज में पहुंच गया
- यह कैंसर का दुर्लभ किस्म का है, जिसे ALK-पॉजिटिव कहा जाता है
- वह ट्रेंड साल्सा, बाचाटा और बेली डांसर हैं
उर्वशी प्रसाद जब दिवंगत पिता का शोक मना ही रही थीं, तभी खबर मिली कि उन्हें कैंसर हो गया है। डॉक्टरों ने बताया कि यह कैंसर भी ऐसा-वैसा नहीं, बल्कि चौथे स्टेज का ALK- पॉजिटिव कैंसर है। स्टेज-4 का मतलब है कि कैंसर पहले ही शुरुआती अंग से आगे अन्य अंगों तक फैल चुका है। और, फिर वहीं से शुरू हुई जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई। न केवल कैंसर से, बल्कि अपने शरीर, दिमाग और भावनाओं के साथ भी। ताकि जीवन के सभी क्षेत्रों को सुचारू रूप से चलाया जा सके।नीति आयोग की डायरेक्टर के रूप में सुश्री प्रसाद के पास बहुत काम है। कड़ी दवाओं के साथ यह सब करना कतई आसान नहीं है, क्योंकि किसी भी कैंसर का इलाज शरीर को तोड़ देता है। तन को चाहिए आराम, लेकिन मन कहता है- अभी नहीं। बीमारी को अपने जीवन पर हावी नहीं होने देने का यह संकल्प ही है, जो उन्हें आगे बढ़ने में मदद करता है। इसलिए कि वह हर दिन तैयार होकर काम पर जाती हैं। लगन से अपनी सभी ड्यूटी को पूरी करती हैं।इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ एक विशेष बातचीत में उर्वशी प्रसाद ने कैंसर के साथ जीने और उससे पहले के जीवन के बारे में लंबी बात की।
झटके पर झटका
सुश्री प्रसाद नौकरशाहों के परिवार से आती हैं। माता-पिता दोनों आईएएस अधिकारी थे। पिता नरेश नंदन प्रसाद जिनेवा में वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइजेशन में असिस्टेंट डायरेक्टर जनरल थे। मां अंजलि प्रसाद विश्व व्यापार संगठन (WTO) जिनेवा में भारत की राजदूत के रूप में रिटायर हुईं।लड़ने की भावना और जीवित रहने का कौशल उनमें पिता से आया है। दुर्भाग्यवश, दो साल पहले उनके पिता का निधन हो गया। इससे उनके जीवन में एक बड़ा खालीपन आ गया। यह उनके लिए बहुत दर्दनाक पल था। ऐसा लग रहा था कि सारी ताकत खत्म हो रही है, क्योंकि वह गहरे डिप्रेशन में चली गई थीं।
उन्होंने कहा, “किसी ऐसे व्यक्ति को खोना, जो मेरी ताकत थे, मेरे लिए सबसे बुरी बात थी। इससे उबरने की कोशिश में मैं बीमार पड़ गई और मुझे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।”
लेकिन भाग्य को शायद कुछ और ही मंजूर था। जीवन ने उन्हें एक और क्रूर झटका दिया। वह सामान्य से अधिक थका हुआ महसूस करने लगीं। उनमें जो भी भूख बची थी, वह खत्म हो गई। पहले तो लगा कि यह डिप्रेशन की देन है। जब लक्षण कम होने के कोई संकेत नहीं दिखे, तो उन्होंने डॉक्टरों से मिलने का फैसला किया, जिन्होंने टेस्ट करा लेने की सलाह दी। अस्पतालों, डायग्नोस्टिक सेंटरों के कई चक्करों और रिपोर्टों के बाद जो रिजल्ट आया, वह ‘पॉजिटिव’ था। लेकिन, यह ‘पॉजिटिव’ रिजल्ट भयानक निगेटिव खबर लेकर आया, जिसने उन्हें पूरी तरह से स्तब्ध और अविश्वास में डाल दिया! टेस्ट रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा था- उन्हें चौथे स्टेज का एएलके-पॉजिटिव कैंसर है। यह बहुत ही दुर्लभ प्रकार का कैंसर होता है।
वह कहती हैं, “वह काफी कठिन समय था। पिता की मृत्यु के कारण मैं पहले से ही मानसिक रूप से टूटी हुई थी। ऊपर से अचानक इस बीमारी ने मुझे घेर लिया था।”
एएलके-पॉजिटिव कैंसर क्या है?
इसकी खोज 2007 में हुई। एएलके-पॉजिटिव कैंसर किसी के डीएनए में EML4 जीन और ALK (एनाप्लास्टिक लिंफोमा काइनेज) जीन की रिअरेंजमेंट को बताता है। इसके कारण EML4-ALK ओंकोजीन फ्यूजन होता है। ऑंकोजीन एक जीन है, जिसका म्यूटेशन होता है और कैंसर कोशिकाओं का कारण बन सकता है। एएलके रिअरेंजमेंट वाले कैंसर में एएलके जीन का हिस्सा म्यूटेट होता है। इसके कारण कोशिका की अनियंत्रित रिप्लिकेशन होती है। कैंसर का यह रूप मनुष्यों में अधिकतर फेफड़ों में होता है, लेकिन यह शरीर के अन्य भागों में भी हो सकता है। सुश्री प्रसाद के मामले में जब तक इसका पता चला, कैंसर पहले ही शुरुआती अंग से अन्य अंगों में फैल चुका था। दरअसल जीन, ALK बंद रहता है। लेकिन कुछ ट्रिगर इसे जगा सकते हैं। कई लोगों के लिए यह कैंसर खोज के चरण में ही मेटास्टेटिक हो जाता है।” यहां वह यह आशंका भी जाहिर करती हैं कि शायद उनके पिता की मृत्यु इसी वजह से हुई।
हर पल को महत्वपूर्ण मानना
इन झटकों से वह उबर रही हैं। दवाओं और कुछ दूसरे साइड इफेक्ट के कारण थकान जरूर रहती है। फिर भी वह न केवल रोजाना ऑफिस जाती हैं, बल्कि अपनी पसंदीदा गतिविधियों में एक्टिव भी रहती हैं। अगर वह दिन में पावर-प्वाइंट प्रेजेंटेशन दे रही हैं तो शाम को डांसिंग शूज पहनकर कुछ हैप्पी स्टेप्स कर रही होती हैं। वह कहती हैं, “मुझे नाचना पसंद है। यह मेरा जुनून है। मैंने कई वर्षों तक लैटिन नृत्य- साल्सा और बाचाटा- की ट्रेनिंग ली है। इतना ही नहीं, कोविड लॉकडाउन के दौरान मैंने ऑनलाइन बेली डांसिंग भी सीखी। ”जिन चीजों को करना उन्हें पसंद है, उसमें खुद डुबो देती हैं। उत्साहित रहने का यह उनका तरीका है। चाहे वह काम हो या अन्य गतिविधियां, वह वर्तमान का अधिकतम लाभ उठाने की कोशिश करती हैं। उन्होंने कहा, “भविष्य हमेशा अनिश्चित होता है। न केवल किसी सेहतमंद शख्स के लिए, बल्कि हर किसी के लिए। हममें से कोई नहीं जानता कि कल क्या होने वाला है। इसलिए जीवन जीने का सबसे अच्छा तरीका है- आज का अधिक से अधिक लाभ उठाने का प्रयास करना।”
कहना आसान है, करना नहीं
वैसे वह मानती हैं कि यह कहना जितना आसान है, करना उतना आसान नहीं है। चलते रहना या हर दिन प्रेरणा और ताकत पाना आसान नहीं है। वह कहती हैं, “मैं अपने आप को याद दिलाती रहती हूं कि मुझे अपने प्रत्येक दिन का अधिकतम लाभ उठाने का प्रयास करना है। यकीनन अभी बहुत सारी चुनौतियों से पार पाना है। दवाइयों के अपने साइड इफेक्ट होते हैं। फिर चिंताएं हैं। जैसे कि अगर कुछ गलत हो गया, तो क्या होगा। फिर भी आपको अपना जीवन सबसे अच्छे तरीके से जीने की जरूरत है। यही कारण है कि मैं वह सब कुछ करती हूं, जो मुझे करना पसंद है। वह भी उतने ही उत्साह के साथ करती हूं, जितना मैं बीमारी से पहले करती रही हूं।”
बेजोड़ है हर सर्वाइवर की कहानी
उन्होंने यह भी बताया कि हर कैंसर से बचे व्यक्ति की यात्रा अनोखी और अलग होती है। ऐसी कोई बात नहीं होती, जब सब पर लागू हो। उन्होंने कहा, “मैं हमेशा कहती हूं कि कैंसर कोई बीमारी नहीं है, यह 200 अलग-अलग बीमारियां हैं। हर किसी में अलग-अलग स्टेज में अलग-अलग किस्म का कैंसर होता है और उसके इलाज का तरीका भी बहुत अलग होता है। कुछ लोग कीमोथेरेपी लेते हैं, तो कुछ को रेडिएशन की जरूरत होती है, जबकि कुछ को सर्जरी की जरूरत पड़ती है।”जहां तक उनकी बात है, वह उस पारंपरिक कीमोथेरेपी का सहारा नहीं लेतीं, जिससे लोग परिचित हैं। इसके बजाय, वह मुंह के जरिये ही दवा लेती है, क्योंकि उन्हें जीन आधारित कैंसर है। इस प्रकार की दवाएं सामान्य कीमो की तरह इम्यून सिस्टम को प्रभावित नहीं करती हैं, क्योंकि वे केवल कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए होती हैं। फिर भी ये थकान, हाई कोलेस्ट्रॉल और हार्ट संबंधी समस्याओं जैसे साइड इफेक्ट जरूर पैदा करती हैं।
सलाह
कैंसर से लड़ने वालों के लिए कोई संदेश देने के बजाय, उन्होंने उनके आसपास के लोगों को संदेश देना पसंद किया। वह संदेश है: “कैंसर रोगियों के प्रति जजमेंटल मत बनो। उन्हें दोषी मत ठहराओ। सहयोगी बनें, लेकिन उन्हें सुकून भी दें। सबसे बड़ी बात जो आप कर सकते हैं, वह है बस उन्हें सुनना। कभी-कभी किसी को केवल समाधान देने की नहीं, बल्कि उनकी समस्याओं को सुनने वाले की जरूरत होती है।’
प्रभावशाली महिला
सुश्री प्रसाद अभी-अभी 1 जुलाई को 37 वर्ष की हो गईं। शादी हो चुकी है। उन्होंने बर्मिंघम यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है। एक मास्टर डिग्री कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से, तो दूसरी मास्टर डिग्री लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन से पब्लिक हेल्थ में ली है।अब तक उनका करियर सामाजिक और विकास क्षेत्रों में काम करते हुए बीता है। उन्होंने एक फाउंडेशन के साथ काम किया है, जो स्लम इलाकों में गरीबी में रहने वाले शहरी बच्चों की मदद करता है। एक ऐसे एनजीओ के साथ भी काम किया है, जो गरीब मरीजों की मदद करता है।वह बताती हैं, “मैं लगभग सात साल पहले सरकार के प्रमुख थिंक-टैंक नीति आयोग में शामिल हुई थी। यहां मेरा अधिकांश काम स्वास्थ्य और संबंधित क्षेत्रों के इर्द-गिर्द घूमता है।” इस समय वह वाइस चेयरमैन ऑफिस में डायरेक्टर हैं और विभिन्न नीतिगत मुद्दों पर काम कर रही हैं।कहना ही होगा कि उर्वशी प्रसाद के लिए यह कैंसर के साथ जीने का एक वर्ष रहा है। शायद उनके जीवन के सबसे कठिन वर्ष में से एक। वैसे तब सुखद आश्चर्य हुआ, जब भारत की सबसे बड़ी बिजनेस पत्रिका-बीडब्ल्यू बिजनेसवर्ल्ड- ने उन्हें ‘2023 में भारत की 100 सबसे प्रभावशाली महिलाओं में से एक’ के रूप में चुना।
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