डायल-108 आने से बहुत पहले यह आईपीएस अधिकारी हाईवे पर ले आए थे हॉटलाइन
- Pallavi Priya
- Published on 24 Jun 2023, 3:25 pm IST
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हाइलाइट्स
- आईपीएस अधिकारी डॉ. अमर कुमार पांडेय ने धारवाड़ में 1996 में की थी जीवन रक्षा केंद्र की शुरुआत
- इसने 108 के आने से पहले दे दी थी इमरजेंसी में तुरंत रिस्पांस और हॉस्पिटल से पहले वाली देखभाल की सुविधा
- 1989 बैच के आईपीएस अधिकारी ही लंबे समय तक भगोड़ा रहे डॉन रवि पुजारी को भारत लाए थे
- Former DGP of Karnataka Dr. Amar Kumar Pandey started ambulances for highways
कई वर्षों तक देशवासियों को पुलिस, अग्निकांड या मेडिकल सहायता की जरूरत होने पर अलग-अलग नंबर डायल करने पड़ते थे। ये होते थे-100, 101 और 102 नंबर। ऐसा 2005 तक नहीं था, जब सभी तरह की इमरजेंसी के लिए एक ही हेल्पलाइन- डायल 108- शुरू की गई थी। लेकिन क्या आप जानते हैं, 1990 के दशक में ही एक आईपीएस अधिकारी ने हाईवे पर इमरजेंसी सेवाओं की शुरुआत कर दी थी। इस अधिकारी का नाम है- डॉ अमर कुमार पांडेय। वह कर्नाटक पुलिस के महानिदेशक के पद से रिटायर हो चुके हैं। उनकी ख्याती गैंगस्टर रवि पुजारी को वापस भारत लाने से अधिक हुई। लेकिन इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ उन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों पर लंबी बातचीत की।
बेंगलुरू से लगभग 425 किलोमीटर दूर धारवाड़ जिले में एनएच4 लगभग 250 किलोमीटर की दूरी कवर करता है। उस पर 1990 के दशक में तत्कालीन टू-लेन हाईवे पर बिना किसी डिवाइडर के ट्रैफिक चला करता था। उस पर हादसों में हर साल सैकड़ों लोगों की जान चली जाती थी। पीड़ितों को पुलिस का घंटों इंतजार करना पड़ता। पुलिस ही मौके पर पहुंच कर उन्हें अस्पताल ले जाती। इस बीच जान बचाने के लिए कीमती समय निकल जाता।
ऐसी कई घटनाओं ने 1996 में धारवाड़ के एसपी रह चुके डॉ. पांडेय को विचलित कर दिया। उन्होंने स्थानीय सांसदों (दरअसल यह जिला चार संसदीय क्षेत्रों के तहत आता) की मदद से हाईवे पर जीवन रक्षा केंद्र नाम से इमरजेंसी सेवा शुरू कराई।
उन्होंने कहा, “मेरी टीम ने चार मारुति ओमनी वैन को एंबुलेंस में बदल दिया, जिसकी शुरुआत पुलिस विभाग से हुई थी। बारह पुलिसकर्मियों को सेंट जॉन्स एम्बुलेंस में प्रशिक्षित किया गया था।”
पुलिस में शामिल हुए एक पूर्व सैनिक को अन्य पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षित करने में लगाया गया था। अगली चिंता टेलीफोन कनेक्शन की थी। पुलिस कंट्रोल रूम में परिजनों को सूचना देने के लिए एसटीडी फोन बूथ बनाए गए। इस तरह वायरलेस से सीआर ऑपरेटर के जरिए मौके से ही सूचना फोन से पीड़ित परिवार तक पहुंचने लगी।
रिटायर हो चुके अधिकारी ने प्रत्येक भूमिका के बारे में बताते हुए कहा, “प्रशिक्षित पुलिस गंभीर और मामूली चोटों के बीच अंतर कर सकती है। फिर वह हालात के हिसाब से इलाज भी कर सकती है। इस सेवा से हाईवे के किनारे के अस्पतालों को जोड़ लिया गया था। उन्हें पुलिस सीआर से इमरजेंसी के बारे में बता दिया जाता था।”
अस्पतालों को अग्रिम सूचना पहुंचाने को सुनिश्चित किया गया। ताकि डॉक्टरों सहित आवश्यक मदद के साथ अस्पताल तैयार रहे। इससे कई लोगों की जान बचाई जा सकी।
जल्द ही कर्नाटक के बेलगाम और मांड्या जिलों में भी जीवन रक्षा केंद्र की नकल की गई। यह लगभग एक दशक बाद आए 108 का अग्रदूत था। लेकिन अधिकारी यह दावा नहीं करते कि इसका आइडिया जीवन रक्षा केंद्र से लिया गया था।
न भुलाने वाली यादें
डॉ पांडेय बिहार से आए थे और उन्होंने कर्नाटक में 33 वर्षों तक नौकरी की। उन्होंने दक्षिणी राज्य में पुलिस अधिकारी के रूप में अपने समय का आनंद लिया। उनके लिए दोनों राज्यों में कई समानताएं थीं। दोनों ही राज्यों के लोग उदार और सहृदय लगे। वह अविभाजित धारवाड़ में एसपी के रूप में अपने कार्यकाल को बहुत याद करते हैं। वहां उन्होंने सरकार की मदद से पुलिस वालों के बच्चों के लिए एक आवासीय स्कूल भी खोला था। पुलिसकर्मियों के बच्चों के लिए यह अपनी तरह का पहला बोर्डिंग स्कूल था। उन्होंने पुलिस कर्मियों के लिए सहकारी मॉडल के आधार पर एक आवासीय कॉलोनी भी स्थापित की थी, जिसका नाम उन्होंने अमर नगर रखा।
कई गैंगस्टरों के दिलों में डर पैदा करने वाले इस अधिकारी ने युवा मामले और खेल विभाग में आयुक्त, निदेशक पुलिस अकादमी, बैंगलोर के महानिरीक्षक (मध्य) और आंतरिक सुरक्षा प्रभाग के अतिरिक्त महानिदेशक के रूप में भी काम किया। वह कहते हैं कि एक अधिकारी के रूप में अपने काम से उन्हें बहुत संतुष्टि मिली।
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