जब नौकरशाहों ने अपने बच्चों के लिए चुना सरकारी स्कूल!
- Raghav Goyal
- Published on 9 Nov 2021, 10:13 am IST
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हाइलाइट्स
- बनी-बनाई लकीरों को मिटाकर नई लकीरें खींचते हुए, कई आईएएस और अन्य अधिकारियों ने अपने बच्चों को आंगनबाड़ी और सरकारी स्कूलों में भेजना शुरू कर दिया है।
- इससे इन स्कूलों की कायापलट होने के साथ-साथ समाज में भी बड़ा संदेश गया है।
- यही नहीं, इससे उन परिवारों के बच्चों के भी दिन बहुरने लगे जो बेहतर पढ़ाई वाले स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला नहीं करा पा रहे हैं।
- उत्तर प्रदेश में आंगनवाड़ी स्कूल (क्रेडिट: फेसबुक/यूनिसेफ इंडिया)
भारत में अधिकांश मध्यम-वर्गीय या निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। कई सामाजिक क्षेत्रों में, अच्छी शिक्षा को ‘निजी स्कूलों’ के साथ जोड़ा जाता है और सरकारी स्कूलों और ‘आंगनबाड़ी’ स्कूलों को हमेशा कमतर आंका जाता है या हेय दृष्टि से देखा जाता है।
लेकिन कुछ दूर-दराज के क्षेत्रों में तैनात नेकनीयत नौकरशाहों के पास एक अपना तरीका है, जो इस मानसिकता को बदलने के लिए पर्याप्त है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां आईएएस अधिकारी समाज को संदेश देने के लिए जानबूझकर अपने बच्चों को आंगनबाड़ी स्कूल में दाखिला दिला रहे हैं। यह दो उद्देश्यों को पूरा करता है, पहला- यह उस क्षेत्र के सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों के साथ एक समान स्तर पर लाकर समान अवसर देता है, जहां दोनों के सफल होने की समान संभावना होती है। दूसरा- यह अन्य सरकारी अफसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है।
उत्तराखंड के चमोली जिले की डीएम स्वाति भदौरिया की ही कहानी देख लीजिए। चमोली एक ऐसा पहाड़ी जिला है जो ऊंची चोटियों और विशाल और दुर्गम घाटियों से घिरे एक मनोरम हिमालयी क्षेत्र में स्थित है, जहां के प्राकृतिक सौंदर्य की मनमोहक तस्वीर किसी को भी चकित कर दे। हालांकि यह मैदानी इलाकों की सुख-सुविधाएं से बहुत दूर है। इसकी प्राकृतिक सुंदरता के बावजूद यहां जीवन जीना बेहद कठिन है और सरकारी योजनाओं की पहुंच और उनका क्रियान्वयन भी यहां आसान नहीं होता है।
लेकिन 2012 बैच की आईएएस अधिकारी स्वाति भदौरिया ने अपने बेटे अभ्युदय का आंगनबाड़ी स्कूल में प्रवेश दिलाकर एक मिसाल कायम की। आईएएस स्वाति उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की रहने वाली हैं। प्रतिष्ठित फेम इंडिया मैगजीन उन्हें देश के शीर्ष 50 कलेक्टर की सूची में शामिल कर चुकी है। उनके पति नितिन भदौरिया भी आईएएस हैं। दोनों की शादी 2014 में हुई थी। शादी के बाद स्वाति ने अपना कैडर बदल लिया और उत्तराखंड चली गईं। स्वाति अक्सर अपने सेवा कार्यों को लेकर खबरों में रहती हैं।
हाल ही में उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने से आई आपदा के वक्त उन्होंने राहत-बचाव कार्यों में प्रशासनिक अमले का बढ़-चढ़कर नेतृत्व किया था। जब चमोली जिले में ऋषिगंगा नदी के मुहाने पर ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने से जलप्रलय आई थी, तो आपदा राहत की कमान जिलाधिकारी स्वाति ने ही संभाल रखी थी।
इंडियन मास्टरमाइंड्स से बातचीत में वो कहती हैं, “चमोली में अपने बच्चे के साथ अकेले रहने के दौरान, मैं एक बार एक आंगनवाड़ी स्कूल गई और बच्चों को एक-दूसरे के साथ बातचीत करते हुए और नई चीजें सीखते हुए देखकर चकित रह गई। अभ्युदय एक शर्मीला बच्चा था और आंगनबाड़ी स्कूल भेजने से पहले वह बहुत कम बोलता था।”
“लेकिन मैं हैरान थी कि सिर्फ दो महीने के वक्त में ही उसने कविताओं को याद करना और स्कूल की विभिन्न गतिविधियों में रुचि लेना शुरू कर दिया। उसका समग्र मनोवैज्ञानिक-विकास उसके व्यवहार में साफ झलकने लगा।”
एक ने दूसरे का नेतृत्व किया
अपने बच्चे को आंगनवाड़ी स्कूल में भेजने के निर्णय के क्षेत्र की डीएम के इस कार्य ने इलाके में एक तरह की सकारात्मक प्रतिक्रिया शुरू कर दी।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के पद से इतर, भदौरिया ने भी एक अभिभावक के रूप में नियमित तौर पर आंगनबाड़ी का दौरा करना शुरू किया। वो कहती हैं, “मुझे आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से उन चीजों के बारे में प्रतिक्रिया मिलनी शुरू हो गई जिन्हें निश्चित रूप से सुधारने की जरूरत थी। इनमें में से एक था – मिड-डे मील (मध्याह्न भोजन)। स्कूल में गैस के चूल्हे की अनुपलब्धता के कारण, श्रमिक अपने घरों से ही भोजन प्राप्त करते थे।” फिर डीएम ने गैस चूल्हा प्रदान करके स्कूल की मदद की, लेकिन सिर्फ यही सभी समस्याओं का अंत नहीं था। 20-25 दिनों के अंदर ही स्वाति अन्य कई गंभीर मुद्दों से परिचित हुईं।
इन मुद्दों पर करीबी नजर के साथ स्वाति ने ‘बचपन – बाल्यावस्था की प्रगति और पोषण के लिए बेहतर आंगनबाड़ी’ नाम की योजना शुरू की।
आईएएस स्वाति कहती हैं, “चमोली के आंगनबाड़ी स्कूलों में बिजली की व्यवस्था नहीं होने के कारण हमने जिले के हर आंगनबाड़ी स्कूल में मिनी सोलर प्लांट लगाए। हमने ‘प्रतिभा दिवस’ नाम से एक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी शुरू किया जिसमें छात्र नृत्य और संगीत गतिविधियों में भाग ले सकते हैं और प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।” इन तरीकों से स्वाति ने एक के बाद एक समस्याओं को हल करना शुरू किया, और इस तरह से आंगनवाड़ी स्कूलों का पुनरुद्धार शुरू हुआ।
वो आगे कहती हैं, “सीखने के शुरुआती साल ही बच्चे के लिए एक ठोस आधार के रूप में कार्य करते हैं। मैं वास्तव में आंगनबाड़ी को विकसित करना चाहती थी। आमतौर पर बनी इस धारणा को समाप्त करना चाहती थी कि बच्चों को सिर्फ बना-बनाया भोजन पाने के लिए इन स्कूलों में दाखिला दिया जाता है।”
एक बार जब स्वाति ने आंगनवाड़ी स्कूलों के मामलों में खुद को शामिल कर लिया, तो पीछे मुड़कर नहीं देखा। वो कहती हैं, “हमने शिक्षा विभाग और एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) की सहायता से एक गतिविधि-आधारित (एक्टिविटी-बेस्ड) मॉड्यूल भी शुरू किया। इसमें शिक्षक छात्रों को रचनात्मक तरीके से पढ़ाते थे, जो समग्र रूप से एक सकारात्मक माहौल बनाते थे। उदाहरण के लिए, उन्हें हिंदी और अंग्रेजी दोनों में ऑडियो किट की मदद से कविता (राइम्स) सिखाई गई। इससे बच्चे खुश होते और सीखने में रुचि पैदा करते।”
इसके अलावा, भदौरिया ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए एक कोचिंग सेंटर भी शुरू किया है। स्वाति इसके बारे में बताते हुए कहती हैं, “पहले हम कोचिंग में भर्ती के लिए नाम देने वाले उम्मीदवारों की परीक्षा आयोजित करते हैं, परीक्षा में सफल उम्मीदवारों को मुफ्त में पढ़ाई करने का मौका दिया जाता है। हमारे शिक्षकों को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) फंड से निश्चित वेतन दिया जाता है। शिक्षकों का चयन उत्तराखंड के विभिन्न शहरों जैसे देहरादून और हरिद्वार से किया जाता है।”
इस बढ़ती प्रभावी सूची में और नाम
2009 बैच के आईएएस अधिकारी अवनीश शरण छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के कलेक्टर के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं और वर्तमान में राज्य के तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास मंत्रालय में कार्यरत हैं। शरण ने अपनी बेटी को शुरुआती छह महीने के लिए आंगनबाड़ी भेजा और फिर उसे सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाकर एक बड़ा संदेश दिया है। यह एक बड़ा तथ्य है कि जब सिविल सेवकों के बच्चे एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश करते हैं, तो स्कूल का पूरा माहौल बदल जाता है और यह बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों के लिए भी प्रेरणा का काम करता है।
ऐसा ही एक अन्य उदाहरण मध्य प्रदेश कैडर के 2012 बैच के आईएएस अधिकारी पंकज जैन का है जिन्होंने अपनी बेटी पंखुड़ी को एक आंगनबाड़ी स्कूल में भेजा। जैन के इस निर्णय को कई अन्य अधिकारियों ने भी सराहा। पंखुड़ी के दाखिले के बाद, अन्य अधिकारियों के बच्चों को भी आंगनबाड़ी स्कूलों में दाखिला दिया गया जिसके कारण जिले भर के स्कूलों का बेहतर तरीके से विकास हुआ और आम जनता में एक बड़ा संदेश गया।
जब अधिकारियों ने आंगनबाड़ी का दौरा करना शुरू किया, तो कर्मचारियों के बीच आत्म-प्रेरणा बढ़ी जिसके परिणामस्वरूप स्कूलों का समग्र विकास हुआ।
निजी स्कूलों में अधिक दबाव
पूर्व सिक्किम के जिला कलेक्टर और 2009 बैच के आईएएस अधिकारी राज यादव ने अपने दो बच्चों को एक सरकारी स्कूल में भर्ती कराया। इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ फोन पर बातचीत में उन्होंने कहा, “मैंने अपने बच्चों को शुरुआती छह महीनों के लिए एक निजी स्कूल में भेजा, लेकिन इससे उन्हें बहुत ज्यादा मानसिक दबाव में पाया। मैंने फिर उन्हें सिक्किम के सरकारी स्कूल में स्थानांतरित कर दिया।”
यादव की बेटी ज्योति तीसरी और बेटा आर्यन दूसरी कक्षा तक एक सरकारी स्कूल में पढ़े हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि ये सभी नौकरशाह एक ऐसा संदेश दे रहे हैं जो कहीं धुंधला सा हो गया था, लेकिन समाज में इसकी बड़े स्तर पर जरूरत है। और संदेश बिल्कुल साफ है- जब गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की बात आती है, तो एक सरकारी स्कूल किसी से पीछे नहीं है, हां कुछ कामियां जरूर हैं लेकिन उन्हें मजबूत इरादों और कोशिशों से सुधारा जा सकता है।
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