भारत में ट्रांसजेंडर्सः अज्ञात, अनदेखे, अनसुने
- Pallavi Priya
- Published on 14 Jun 2023, 5:44 pm IST
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हाइलाइट्स
- मध्य प्रदेश के सीनियर आईपीएस अधिकारी वीरेंद्र मिश्रा ने लिखी है ट्रांसजेंडरों पर किताब
- वह फिलहाल मध्य प्रदेश स्टेट इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स में असिस्टेंट इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस हैं
- उनकी किताब है- ट्रांसजेंडर्स इन इंडियाः एन इंट्रोडक्शन, इससे पाठकों को थर्ड जेंडर को समझने में मिलेगी मदद
- Virendra Mishra has written a book on transgender
ट्रांसजेंडर समाज का वह वर्ग है, जिसे अलग जेंडर के रूप में जाना जाता है। इसलिए कि उनके जन्म से ही उनका जेंडर अलग रहता है। हम उन्हें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी हमेशा देखते हैं। सड़कों से लेकर सार्वजनिक स्थानों तक हम उन्हें केवल उत्सुकता से देखते हैं। फिर अनदेखा कर देते हैं। वे हमेशा हमारे लिए अज्ञात रहते हैं। वे कहां रहते हैं, क्या करते हैं और किन चुनौतियों का सामना करते हैं- ये पता करने में भी हमारी रुचि नहीं रहती है। वे सबसे ज्यादा उत्पीड़न का शिकार होने वाले और हाशिये पर रहने वाले समाज से ताल्लुक रखते हैं। काफी जद्दोजहद के बाद हालांकि पहचान पाने में कामयाबी मिली है, लेकिन इससे उनकी समस्याएं खत्म नहीं हुई हैं।
सामाजिक कार्यों के लिए पहचाने जाने वाले गुजरात के आईपीएस अधिकारी वीरेंद्र मिश्रा की नियुक्त 2020-21 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल जस्टिस में डायरेक्टर के पद पर हो गई। उन्हें ‘ट्रांसजेंडर बिल’ के प्रोविजनों को लागू करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। ऐसा करते हुए उन्हें इस समुदाय के साथ निकटता से बातचीत करने का अवसर मिला। उन्होंने महसूस किया कि आम जनता को वास्तव में उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है। इसलिए, वह ट्रांसजेंडर्स इन इंडिया: एन इंट्रोडक्शन नामक किताब लिखी।
इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ खास बातचीत में मध्य प्रदेश स्टेट इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स में असिस्टेंट इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस के पद पर कार्यरत वीरेंद्र मिश्रा ने अपनी किताब के विभिन्न आयामों के बारे में बताया।
इतिहास में मिली है जगहः
प्राचीन इतिहास और शास्त्रों (भारतीय और अन्य सभ्यता दोनों) में ट्रांसजेंडरों को बहुत आदर और सम्मान दिया गया है। आदिवासी संस्कृति में उन्हें भगवान के करीब का दर्जा दिया गया था और वे पुजारी थे। उनका उल्लेख महाभारत और रामायण दोनों में मिलता है।
मिश्रा ने रामायण की एक घटना का उल्लेख किया, जहां राम अपने पीछे चल रहे सभी महिला और पुरुषों को वापस जाने के लिए कहते हैं। जब वह 14 साल बाद वनवास पूरा कर वापस आते हैं, तो देखते हैं कि कुछ लोगों का समूह अभी भी उनका इंतजार कर रहा है। पूछने पर पता चलता है कि वे लोग ट्रांसजेंडर हैं। चूंकि भगवान श्रीराम ने सिर्फ पुरुष और महिलाओं को वापस जाने के लिए कहा था, इसलिए वे वहीं रुके हुए थे।
मिश्रा कहते हैं, ‘माफी मांगने के साथ-साथ भगवान राम उनके बलिदान और समर्पण की सराहना करते हैं। वह उन्हें वरदान देते हैं कि उनके बिना कोई भी सुख पूरा नहीं होगा। यह साबित करता है कि वे अचानक नहीं आए हैं, बल्कि पिछले युगों से समाज का हिस्सा रहे हैं।’
भेदभाव का करते हैं सामनाः
उन्होंने आगे कहा कि हमारे यहां उनका सम्मान करने की संस्कृति थी, लेकिन मुगलों और अंग्रेजों के आने के बाद उनकी हालत और भी खराब हो गई। मुगल काल में उनका यौन शोषण किया गया। उन्हें हरम से बाहर कर दिया गया। जब अंग्रेज आए, तो उन्होंने समलैंगिक आपराधिक जनजाति कानून- 1871 के तहत उन्हें अपराधी घोषित कर दिया। उनका सम्मान नष्ट कर दिया गया। उनके बारे में तरह-तरह की अफवाहें फैलाई गईं। इन सबका उन पर बहुत प्रभाव पड़ा।
मिश्र कहते हैं कि उनके पास बहुत कम नौकरियां बची थीं। इसलिए या तो वे यौनकर्मी बन गईं या भीख मांगने लगीं या फिर ‘घरानों’ से संबंधित थीं और ‘बधाई गीत’ गाती थीं। साथ ही उन्होंने कहा कि उनका जीवित रहना न केवल एक बड़ी चुनौती है, बल्कि एक चमत्कार भी है। इसलिए कि उन्हें अपनी पहचान के लिए संघर्ष करना पड़ता है। स्वीकार किए जाने के लिए अपने जननांगों को हटाना पड़ता है। अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों से निपटने के लिए स्टेरॉयड लेना पड़ता है। यह सब उन्हें नष्ट कर देता है। ऊपर से समाज में बाहर आना भी उनके लिए बहुत मुश्किल हो जाता है।
लंबा रास्ता हैः
मिश्रा ने अपनी पुस्तक में इनकी रक्षा करने वाले कानूनों और नियमों का भी उल्लेख किया है। उन्हें अब उम्मीद है कि लोग उन्हें कई तरह के बिजनेस में स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन उनका कहना है कि अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। मिश्रा कहते हैं, ‘सभी व्यक्ति को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है और ट्रांसजेंडरों को लगातार इससे वंचित रखा गया है। उन्हें आसानी से हमारे समाज में सम्मानजनक नौकरी और पद नहीं मिलता है। हालांकि, बिल के बाद बदलाव आए हैं, लेकिन अभी और भी बहुत कुछ करना बाकी है।
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