मोगली स्कूल: इस आईएफएस के प्रयासों से कतर्नियाघाट वन्यजीव क्षेत्र में संवर रही बच्चों की जिंदगी
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 7 Jan 2022, 10:41 am IST
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हाइलाइट्स
- साल 2018 शुरू हुआ था मोगली स्कूल, वन्य क्षेत्र के बच्चों के लिए साबित हुआ वरदान
- 2016 बैच के आईएफएस अधिकारी श्री आकाशदीप बधावन के प्रयासों से मोगली हो रहा है आधुनिक
- दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड निदेशक ने भी ‘मोगली स्कूल’ को सराहा
- उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के दुधवा-कतर्नियाघाट वन क्षेत्र में स्थित 'मोगली स्कूल' गांव के बच्चों के सपनों को पंख दे रहा है
कतर्नियाघाट वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी – उत्तर प्रदेश के दुधवा टाइगर रिजर्व के अंतर्गत आने वाला वन्यजीव अभयारण्य। बहराइच जिले में स्थित इस अभयारण्य की मोतीपुर रेंज में लगभग तीन साल पहले एक बीज बोया गया था। ‘मैन एनिमल कॉन्फ्लिक्ट’ और खासकर लेपर्ड के हमलों की वजह से यह इलाका बेहद संवेदनशील माना जाता है। यहां रहने वाले बच्चों की पढ़ाई और उन्हें जागरूक बनाने के लिए कतर्नियाघाट अभयारण्य के स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स (एसटीपीएफ) के सब-इंस्पेक्टर सत्येन्द्र कुमार ने मोगली विद्यालय बनाया था।
आज तीन साल बाद सत्येन्द्र कुमार का बोया बीज पोषित-पल्लवित होकर एक ऐसा विशाल वृक्ष बन चुका है, जिसके नीचे लगभग 350 बच्चों का भविष्य संवर रहा है। कतर्नियाघाट वन्य क्षेत्र के प्रभागीय वनाधिकारी (डीएफओ) और 2016 बैच के आईफस अधिकारी आकाशदीप बधावन के प्रयासों से मोगली पाठशाला आधुनिक और बेहतर हो रही है। उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि आज इस अनूठे विद्यालय और उसमें पढ़ रहे बच्चों की निरंतर काउंसिलिंग की जाती है और उन्हें दिलचस्प व मनोरंजन तरीके से पढ़ाया जाता है। ये बच्चे अब जंगल में लकड़ी बीनने के बजाय अपने सुनहरे और सुरक्षित भविष्य को बुनने में लगे हुए हैं।
मोगली स्कूल
मोगली विद्यालय में पढ़ाई के प्रति बच्चों की रुचि कम न हो, इसके लिए आकाशदीप समय-समय पर नए तरीके ईजाद करते रहते हैं। हाल ही में उन्होंने बच्चों को खेल सामग्री कैरमबोर्ड, वॉलीवाल, फुटबॉल, बैटमिंटन और क्रिकेट किट आदि दिए थे
आईफस अधिकारी और डीएफओ आकाशदीप ने इंडियन मास्टरमाइण्ड्स से एक खास बातचीत में कहा, “वन्य क्षेत्रों और उसके आस-पास बहुत से समुदाय रहते हैं जिनका जीवन जंगल पर निर्भर है और ये कहीं न कहीं हाशिए पर रहे समाज से आते हैं। मोतीपुर बफर रेंज में मानव वन्यजीव संघर्ष बहुत आम है, खासकर ‘मैन वर्सेज लेपर्ड’ का संघर्ष। हर महीने हम औसतन एक लेपर्ड को रेस्क्यू करते हैं। अभी पिछले महीने ही 2 बच्चों को लेपर्ड ने मारा था। इसीलिए स्थानीय निवासियों को जागरूक करना और उनका समर्थन पाना बहुत जरूरी है, क्योंकि हम जानवरों को कहीं दूसरी जगह ले नहीं जा सकते और टाइगर रिजर्व होने के नाते रास्ते भी नहीं बंद कर सकते। लेकिन उन्हें जागरूक करने और उनमें भरोसा जगाने के लिए हमने कुछ गतिविधियां शुरू की। उन्हीं में से एक है मोगली स्कूल को और विस्तार देना और उसे बेहतर बनाना है।”
आकाशदीप आगे कहते हैं, “पहले हम उनको बुला के सिर्फ पढ़ाते थे। लेकिन बाद में हमे अहसास हुआ कि उन्हें अच्छी किताबों के साथ-साथ व्यावहारिक और आधुनिक शिक्षा भी देनी होगी। हमारे यहां हर रोज औसतन लगभग 90 बच्चे पढ़ने आते हैं, वहीं कुल बच्चों की संख्या 350 के आस-पास है। अब बच्चों के माता-पिता भी जागरूक हो रहे हैं और उनका भी हमे खूब समर्थन मिल रहा है। उन्हें लगता है कि फॉरेस्ट डिपार्टमेंट हमारी भी परवाह करता है। हम मोगली स्कूल में बच्चों के लिए उनकी आधिकारिक ड्रेस की भी व्यवस्था का प्रयास कर रहे हैं।”
कैसे चलता है मोगली स्कूल!
मोतीपुर का रेंज कैम्पस बहुत बड़ा है। बच्चों के लिए उसी कैम्पस में स्कूल चलाया जाता है। यहां एक ऑडिटोरियम भी है, फॉरेस्ट विभाग उसी में प्रोजेक्टर लगाकर आधुनिक तरीके से बच्चों को पढ़ाने की योजना बना रहा है। आकाशदीप के अनुसार इंटरैक्टिव ई-लर्निंग से बच्चे ज्यादा सीखेंगे और उन्हें पढ़ाई में मजा भी आएगा। शिक्षकों के रूप में वन कर्मी, पशु चिकित्सक (वेटनरी), एसटीपीएफ के जवान, पीएसी के जवान और विभाग के तमाम लोग अपनी सेवाएं देते हैं।
आकाशदीप कहते हैं, “हमारा आइडिया ये है कि बच्चों को बेसिक शिक्षा के साथ-साथ इकोलॉजी (पारिस्थितिकी विज्ञान), फोटोग्राफी, वाइल्डलाइफ, टूर गाइड, वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी इत्यादि की भी पढ़ाई कराई जाए। छोटे बच्चों के साथ-साथ अब बड़े बच्चे भी आ रहे हैं, तो उनको कुछ ऐसा पढ़ाया जाना चाहिए जिससे कि वो आत्मनिर्भर बन सकें और उनकी आय का साधन भी हो। इसके लिए हम उनकी ट्रेनिंग भी करवाएंगे। वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट इंडिया, डबल्यूडबल्यूएफ जैसे कई संस्थान है जो ट्रेनिंग करवाते हैं। मेरा मानना है कि आर्थिक आत्मनिर्भरता आएगी तो इनके साथ-साथ इस क्षेत्र के लिए भी यह बेहतर होगा।”
मोगली स्कूल के लिए आकाशदीप व्हाट्सएप ग्रुप्स के माध्यम से फंड इकठ्ठा करते हैं। इसमें उनके कई दोस्तों ने भी डोनेट किया है। हाल ही में उनके एक दोस्त ने किताबें भेजी थीं जिन्हें देख बच्चे बहुत खुश हुए। आकाशदीप कहते हैं कि हमने एक छोटा सा प्रयास किया था और फिर लोग जुड़ते गए, कारवां बनता गया।
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