‘सेल’ से जुड़ी दो लड़कियों की सिविल सेवा में धमाकेदार इंट्री
- Pallavi Priya
- Published on 24 Sep 2021, 6:26 pm IST
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हाइलाइट्स
- स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडियन लिमिटेड (सेल) के लिए यह गर्व का क्षण था। 2019 में यूपीएससी जैसी सपनीली परीक्षा में इस पीएसयू से जुड़ी दो महिलाओं ने अपने फौलादी इरादों के साथ सफलता हासिल की।
- कैसे दोनों की कहानियां विपरीत परिस्थितियों में लड़कर खुद को साबित करने की शानदार यात्राएं हैं...। जरूर जानिए इंडियन मास्टरमाइण्ड्स के साथ...!
भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की नवरत्न कंपनी ‘स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड’ (सेल) का एक बेहद लोकप्रिय स्लोगन है – “देयर इज ए बिट ऑफ ‘सेल’ इन एवरीबॉडी” यानी हर किसी की जिंदगी से जुड़ा हुआ है सेल। इस स्लोगन को एक बार फिर से नया मुकाम तब मिला जब ‘सेल’ से जुड़ी दो युवा महिलाओं ने 2020 में भारत की सबसे कठिन और प्रतिष्ठित यूपीएससी की सेविल सेवा परीक्षा पास करते हुए प्रशासनिक अधिकारी बनीं।
परीक्षा के अंतिम नतीजे आने के बाद से ही संजीता महापात्रा और सिमी करन के चेहरे पर एक खूबसूरत मुस्कान बिखरी हुई नजर आ रही थी, जिसे हर तरफ से कैमरे कैद करने के लिए जुटे हुए थे। लेकिन उनकी तस्वीरों में भी उनके चेहरे को देखकर उन फौलादी इरादों और हौसलों को समझा जा सकता था, जिसके तहत दोनों ने भारत की सबसे सपनीली परीक्षाओं में सेंध लगा दी। ‘सेल’ के तत्कालीन अध्यक्ष और केंद्रीय इस्पात मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (वर्तमान में केंद्रीय शिक्षा मंत्री) ने दोनों को उनकी सफलता पर बधाई दी थी।
संजीता महापात्रा और सिमी करन की सफलता भले ही एक जैसी हो, लेकिन उनकी सफलता की यात्राएं एक दूसरे से काफी अलग हैं। संजीता पांच साल से सेल में काम कर रही थीं। वह ओडिशा के राउरकेला की रहने वाली हैं। 2018 में यूपीएससी की तैयारी शुरू करने के लिए उन्होंने सेल में अपने सहायक प्रबंधक के पद से इस्तीफा दे दिया। दूसरी ओर, सिमी करन के पिता सेल के भिलाई स्थित संयंत्र में एक अधिकारी हैं।
शुरुआती बाधाएं और फिर बड़ी सफलता
इंडियन मास्टरमाइंड्स की टीम के साथ बात करते हुए संजीता कहती हैं, “मैं सेल में अपने कार्यकाल को जीवन के सबसे अद्भुत और रोमांचक अनुभवों में से एक मानती हैं। मैंने सेल में बहुत कुछ सीखा है। इसने एक पीएसयू (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम) के कामकाज के बारे में मेरी जानकारी बढ़ाई, मुझे उम्मीद है कि जब मैं सिविल सेवा अधिकारी की जिम्मेदारी में आउंगी तो इससे मुझे प्रशासन के कामों में बहुत मदद मिलेगी।”
संजीता एक निम्न मध्यम-वर्गीय परिवार से आती हैं, लेकिन इसने उन्हें पढ़ाई में लगातार बेहतर करने से नहीं रोका। वह हमेशा अच्छे अंकों के साथ पास होती रहीं। वह याद करती हैं कि एक समय परिवार की तंगहाली और कमजोर वित्तीय स्थिति ने उन्हें एक हिंदी माध्यम स्कूल में स्थानांतरित करने के लिए उनके पिता को लगभग मजबूर कर दिया था। लेकिन उनकी मां, जो कि ठीक से पढ़ी-लिखी भी नहीं हैं, ने इस कदम को न उठाने के लिए उनके पिता से मिन्नतें की।
संजीता थोड़ा भावुक होकर कहती हैं, “मेरी मां भले ही बहुत पढ़ी-लिखी महिला नहीं हैं, लेकिन बेहतर शिक्षा के मूल्यों को बहुत अच्छे से समझती हैं। वह हमेशा मेरी तरफ खड़ी रहीं और मुझे अपने आप को बेहतर बनाने के लिए जोर देती रहीं। यह उनका ही सपना था जिसने मुझे कुछ असफलताओं के बाद भी लगातार अपने प्रयासों को बेहतर करने के लिए प्रेरित किया।”
जॉब सिक्योरिटी को अलविदा
संजीता ने ओडिशा के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक किया। इसके बाद, वह सेल में नौकरी करने लगीं। हालांकि, आईएएस अधिकारी बनने का सपना कभी उनसे दूर नहीं हुआ। बी.टेक करते हुए भी उन्होंने यूपीएससी के लिए दो बार प्रयास किया लेकिन असफल रहीं। बाद में जब वह सेल में नौकरी करने लगीं, तब फिर से उन्होंने परीक्षा दी और एक बार फिर से असफल रहीं। लेकिन इन विफलताओं से उनका मनोबल नहीं टूटा। 2018 तक वो समझ चुकी थीं कि उनके केस में यूपीएससी की तैयारी और पूर्णकालिक नौकरी एक साथ नहीं हो सकती। इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी और उसी साल एक बार फिर अपना चौथा प्रयास किया।
इस बार एक कदम आगे जाते हुए उन्होंने प्री (प्रारंभिक) परीक्षा पास कर ली और मेंस (मुख्य परीक्षा) तक पहुंच गईं। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा और वह दुगुनी ऊर्जा के साथ तैयारियों में जुट गईं। आखिरकार 2019 में, उन्होंने 10 वीं रैंक हासिल करते हुए यूपीएससी में सफलता हासिल की।
अपने संघर्षों, सपनों और आकांक्षाओं के बारे में पूछे जाने पर संजीता ने इंडियन मास्टरमांड्स से कहा, “मेरा परिवार पैसों की तंगी से हमेशा जूझता रहा, इसका एक बड़ा कारण यह भी था कि मेरे पिता के पास स्थायी नौकरी नहीं थी। लेकिन इसका असर मेरी शिक्षा पर कम ही पड़ा। मुझे लगातार दूसरे लोगों का समर्थन मिलता रहा। स्कूल से लेकर कॉलेज तक मेरी शिक्षा प्रायोजित थी। मुझे हमेशा समाज से उस समय मदद मिली, जब मुझे जरूरत थी।”
“इसीलिए यूपीएससी में सफलता हासिल कर, मैं उन लोगों को कुछ वापस दे पाने के काबिल बन पाई हूं। मैं एक साधारण लड़की हूं और जादू की छड़ी घुमाकर दुनिया बदलने का सपना नहीं देखती हूं। मैं छोटे से ही शुरुआत करना चाहती हूं, लोगों से जुड़कर उनकी बुनियादी समस्याओं को समझना चाहती हूं। मैं अपना सर्वश्रेष्ठ देकर उन सभी के चेहरे पर मुस्कुरहट लाना चाहती हूं। मुझे उम्मीद है कि मैं इसे हासिल कर लूंगी।”
सेल की दूसरी विजयी कहानी
संजीता की तरह ही, दूसरी सफल उम्मीदवार सिमी करन का भी मानना है कि सेल ने उनके सपनों को साकार करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सिमी की सफलता कुछ ऐसी है जिसके लिए उम्मीद तो कई रखते हैं, लेकिन हासिल किसी-किसी को ही होती है। सिर्फ 22 साल की छोटी उम्र में, उन्होंने अपने पहले ही प्रयास में सिविल सेवा परीक्षा में 31 वीं रैंक हासिल की। यह अपने आप में बहुत बड़ा कारनामा है। अपने स्कूल के दिनों से ही सिमी एक मेधावी छात्र थीं। उन्होंने राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर ओलंपियाड (विज्ञान और साइबर) में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। 12 वीं में 98.4 फीसदी अंकों के साथ वह स्टेट टॉपर रहीं। इसके बाद आईआईटी प्रवेश परीक्षा पास कर अपनी उपलब्धियों में एक और नायाब हीरा जोड़ लिया।
सिमी की उपलब्धियों के बारे में उनकी मां सुजाता करन ने इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात की। उन्होंने कहा, “बचपन से वह बहुत जिज्ञासु थी। वह अखबारों में लोगों की तस्वीरों को देखकर बहुत उत्साहित रहती थी और मुझसे हमेशा इसके बारे में पूछती रहती थी। एक बार मैंने उससे कहा था कि जो लोग पढ़ाई में अच्छे होते हैं उन्हीं की फोटो अखबार में निकलती है। मुझे लगता है कि उसने मेरी इस बात को दिल से लगाकर गांठ बांध ली और हमेशा अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने लगी।”
आईआईटी मुंबई में पढ़ाई के दौरान, सिमी ‘अभ्यासिका’ नामक एक अभियान से जुड़ीं, जहां रविवार को कम पढ़े-लिखे वंचित बच्चों को पढ़ाया जाता था। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। और फिर मुंबई और देशभर के वंचित बच्चों के जीवन को संवारने और उनके लिए कुछ और बेहतर करने के उद्देश्य से उन्होंने यूपीएससी में जाने का फैसला किया।
सिमी ने शायद अपने इसी दृढ़-संकल्प की वजह से आईआईटी मुंबई से स्नातक करने के बाद भी कोई नौकरी नहीं की। उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी और पहले ही प्रयास में सफलता हासिल की।
अपनी उपलब्धियों पर सिमी कहती हैं, “मैंने अपना अधिकांश समय पढ़ाई में लगाया है। अब वह समय है जब मुझे अपनी शिक्षा का उपयोग अपने आसपास के उन लोगों को एक मौका देने के लिए करना होगा, जो किसी कारणवश जीवन में वंचित रह गए हैं।
सेल के चेयरमैन अनिल कुमार चौधरी कहते हैं, “हम संजीता महापात्रा और सिमी करन को लेकर बेहद उत्साहित हैं और भविष्य के लिए उन्हें शुभकामनाएं देते हैं। यह हम सभी के लिए गर्व और संतुष्टि का क्षण है। हमें उनके जैसी प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने और सहायता देने की उम्मीद करते हैं।”
अगर इस तरह की कुछ और सफलताएं सामने आती हैं तो हमें यकीन है कि सेल एक नए अतिरिक्त स्लोगन के साथ सामने आएगा जो शायद कुछ इस तरह से होगा – “देयर इज ए बिट ऑफ ‘सेल’ इन यूपीएससी टू” यानी यूपीएससी से भी कहीं न कहीं जुड़ा हुआ है ‘सेल’।
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