कहानी उन सिविल सेवा अधिकारियों की, जिन्हें बोर्ड परीक्षाओं में मिले औसत नंबर लेकिन अपने जज्बे और मेहनत से पूरा किया यूपीएससी का सपना
- Raghav Goyal
- Published on 17 Nov 2021, 6:20 pm IST
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हाइलाइट्स
- आखिर क्यों यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए स्कूली शिक्षा के परिणाम, बहुत अधिक महत्व नहीं रखने चाहिए?
- तीन सिविल सेवा अधिकारियों ने इस बात को रेखांकित करते हुए अपनी सफलता के रहस्य से पर्दा उठाया है।
- सीबीएसई 2020 परिणाम के दौरान छात्रों को अपनी कक्षा 12 की मार्कशीट दिखाकर प्रोत्साहित करते हुए आईएएस अधिकारी नितिन सांगवान। (क्रेडिट: सोशल मीडिया)
क्या होगा अगर मैं बोर्ड परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन न कर पाऊं…? 12 वीं में मुझे 62 प्रतिशत मिले जबकि मेरे सबसे करीबी दोस्त ने 97 फीसदी अंक हासिल किए। मैं इतने अच्छे नंबर क्यों नहीं ला पाया…?
दसवीं और बारहवीं बोर्ड परीक्षाओं के बाद इस तरह के बहुत से सवाल बच्चों के दिमाग में आते रहते हैं। यहां तक कि बच्चों के माता-पिता भी बोर्ड परीक्षाओं में बेहतर प्रदर्शन करने को बहुत अधिक तरजीह देते हैं। लेकिन क्या ये नंबर वास्तव में मायने रखते हैं? हां, कुछ हद तक मायने रखते हैं, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि अगर किसी को अच्छे अंक या ग्रेड नहीं मिले तो उसके लिए दुनिया खत्म सी हो गई!
ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जिन्होंने कम नंबर आने के बाद भी जीवन में बड़ी ऊंचाइयां हासिल की हैं। मिलिए 2016 बैच के गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी नितिन सांगवान से, जिन्होंने रसायन विज्ञान में सिर्फ 24 अंक हासिल किए थे यानी न्यूनतम उत्तीर्ण अंक से ठीक एक ज्यादा।
साल 2020 के सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम घोषित किए जाने के बाद, सांगवान ने ट्विटर पर छात्रों को प्रोत्साहित करते हुए अपनी 12 वीं बोर्ड परीक्षा की मार्कशीट साझा की थी।
उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था, “12 वीं की परीक्षाओं में मुझे रसायन विज्ञान में 24 अंक मिले थे – पास होने के लिए जरूरी न्यूनतम नंबरों से सिर्फ 1 अंक ज्यादा। लेकिन इन नंबरों ने यह तय नहीं किया कि मैं अपने जीवन से क्या चाहता था। अंकों का बोझ लेकर न चलें। आपकी जिंदगी बोर्ड परीक्षा के परिणामों की तुलना में बहुत बड़ी है। परिणामों को अपने आत्मनिरीक्षण का एक अवसर माने, न कि आलोचना का।”
सांगवान अकेले नहीं हैं, जो पौराणिक गाथाओं में प्रचलित फीनिक्स पक्षी की तरह राख के ढेर से उठ खड़े हुए। 2009 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस अधिकारी अवनीश कुमार शरण ने भी तृतीय श्रेणी में अपनी दसवीं कक्षा उत्तीर्ण की थी। लेकिन आगे चलकर उन्होंने भी देश की सबसे कठिन परीक्षा सिविल सेवा को सफलतापूर्वक पास किया। उन्होंने भी ट्विटर पर अपनी मार्कशीट साझा की।
वहीं राजस्थान के रहने वाले पंजाब कैडर के आईपीएस अधिकारी आदित्य तो 30 प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल रहे, अंतत: उन्होंने यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा पास कर महान वैज्ञानिक एडिसन वाला कारनामा दोहराया। एडिसन हजारों असफल प्रयोगों के बाद बिजली का आविष्कार कर पाये थे।
इन सभी कहानियों से पता चलता है कि छात्रों को बोर्ड परीक्षाओं से भयभीत होने की जरूरत नहीं है और इन परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन नहीं करने पर उन्हें हतोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। इनका परिणाम किसी का भविष्य तय नहीं करता। हमेशा खुद को आत्म-विश्लेषण करने के लिए प्रेरित करना चाहिए और उन विषयों के अध्ययन की तरफ जाना चाहिए जिनमें अधिक रुचि हो।
ये सभी खबरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं। सांगवान के ट्वीट को अब तक लगभग 58 हजार लाइक्स, पंद्रह हजार रीट्वीट और हजारों कमेंट्स मिले हैं।
चौथी बार किस्मत चमकी
नितिन सांगवान हरियाणा के एक मध्यम-वर्गीय परिवार से हैं। उनके लिए आईएएस अधिकारी बनना आसान नहीं था। 12 वीं कक्षा के बाद उन्होंने बी.ई. किया और फिर आईआईटी मद्रास से प्रबंधन पाठ्यक्रम में स्नातकोत्तर पूरा किया।
वह सिविल सेवा परीक्षा के अपने पहले प्रयास में असफल रहे। हालांकि अपने दूसरे प्रयास में वह सफल तो हुए, लेकिन डीएएनआईसीएस (DANICS – दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह सिविल सेवा) कैडर मिला जिससे वह अपने प्रदर्शन से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे। लेकिन तीसरी बार के नतीजों में उन्हें आईआरएस के लिए चुना गया।
पर सांगवान की सफलता की भूख अभी भी शांत नहीं हुई थी। उनके सपने को तो अभी मीलों जाना था। उन्होंने अपने चौथे प्रयास में, एक बार फिर से यूपीएससी परीक्षा पास की और साल 2015 में 28 वीं रैंक हासिल करते हुए गुजरात कैडर में आईएएस अधिकारी बने। वह अभी अहमदाबाद नगर निगम के उप-नगर आयुक्त और सीईओ स्मार्ट सिटी, अहमदाबाद हैं।
इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए सांगवान ने सिविल सर्विसेज के उम्मीदवारों को एक सलाह भी दी है। उन्होंने कहा, “बस कड़ी मेहनत करो, तुम सब हासिल कर लोगे। यकीन मानिए, सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं है।”
नितिन सांगवान को उनकी कुशल नेतृत्व क्षमता और उनके मेहनती स्वभाव के लिए भी जाना जाता है। 2016 में भारत के तत्कालीन माननीय राष्ट्रपति राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा उन्हें गोल्ड मेडल देकर सम्मानित किया गया था। ये पुरस्कार उन्हें सिविल सेवा की ट्रेनिंग के दौरान समूह में कार्य करने की कौशल और सहयोग भावना के लिए दिया गया था।
ज्ञान के मोती
सांगवान ने आगे बताया कि कैसे रसायन विज्ञान की परीक्षा में सिर्फ पास होने भर के अंक आने के बावजूद, उन्होंने सिविल सेवा परीक्षाओं में शानदार प्रदर्शन किया। वो कहते हैं, “मैंने लगातार मेहनत की, कई बार निराशा भी हाथ लगी लेकिन मैंने हमेशा सुधार की गुंजाइश रखी और खुद को बेहतर करता गया।”
यह पूछने पर कि उन्होंने सिविल सेवाओं का विकल्प ही क्यों चुना? वो कहते हैं, “सिविल सेवाएं किसी के लिए सिर्फ एक कैरियर भर नहीं है। यह आपको आम लोगों की सेवा करने का एक मौका देती हैं। इसीलिए मेरा झुकाव इस तरफ आया।”
एक प्रतिभाशाली व्यक्ति होने के अलावा, सांगवान को ड्राइंग और कार्टूनिंग का भी शौक है। उन्होंने एक बेस्टसेलर किताब ‘इसेन्शियल सोशियोलॉजी’ भी लिखी है, जिससे सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा में छात्रों को बहुत मदद मिलती है।
सांगवान ने एक आईएएस अधिकारी के रूप में सामने आई चुनौतियों का भी उल्लेख किया। वो कहते हैं, “प्रशासन में सबसे बड़ी चुनौती प्रौद्योगिकी अपनाने की धीमी गति है, चाहे आम जनता की बात हो या सेवा में कार्यरत कर्मचारी की।” लेकिन इस तरफ तेजी से काम किया जा रहा है।
अपनी कुछ और उपलब्धियों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “गुजरात के गिर सोमनाथ जिले के वेरावल में एक एसडीएम के रूप में अपने कार्यकाल पर मुझे गर्व है। वेरावल में मैंने बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हटाए जाने को सुनिश्चित किया, साथ ही शहर के सौंदर्यीकरण को बढ़ावा दिया और प्रशासन में बेहतर पारदर्शिता के लिए सभी रिकॉर्ड डिजिटाइज किए। इन्हें www.sdmveraval.blogspot.com पर चेक किया जा सकता है।
तरकश के दूसरे तीर
सांगवान से काफी पहले, 2009 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के एक आईएएस अधिकारी अवनीश कुमार शरण ने भी बिलकुल यही प्रतिबद्धता और ट्रैक रिकॉर्ड दिखाया था। सोशल मीडिया पर मशहूर आरजे रौनक के एक ट्वीट, जिसमें रौनक ने लोगों से अपनी 10 वीं और 12 वीं के स्कोर कार्ड को साझा करने के लिए कहा था, के जवाब में शरण ने अपनी मार्कशीट साझा की। उन्हें 10 वीं में मात्र 44.5 प्रतिशत अंक मिले थे, यानी वो थर्ड डिवीजन पास हुए थे।
हालांकि, उन्होंने बारहवीं कक्षा प्रथम श्रेणी में 65 प्रतिशत अंक पाते हुए पास की और खुद को थोड़ा बेहतर किया था। लेकिन स्नातक करते हुए वह फिर से फिसले और 60.7 फीसदी अंकों के साथ बमुश्किल प्रथम श्रेणी में आ पाये थे। देखा जाये तो शरण का कैरियर अंकों के मामले में पीछे रहा, लेकिन कठिन परिश्रम और लगन से आखिरकार वो सिविल सेवाओं में चयनित हो गए।
कठोर परिश्रम जाया नहीं होता
इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए शरण कहते हैं, “औसत अंकों को प्राप्त करना आपके लिए दुनिया का अंत नहीं है, हमेशा एक ऐसा रास्ता खुला होता है जहां से आप चीजों को बदल सकते हैं। लगातार कड़ी मेहनत और सतत प्रयासों के माध्यम से आप सिविल सेवाओं में जा सकते हैं।”
यह पूछे जाने पर कि सिविल सेवाओं का ही विकल्प क्यों चुना? वो कहते हैं, “यह सेवाएं आपको देश और नागरिकों के लिए काम करने का अवसर देती हैं। और इसीलिए, मेरे पास इस परीक्षा को पास करने के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं था।”
यूपीएससी परीक्षाओं में शामिल होने जा रहे सिविल सेवा के इच्छुक उम्मीदवारों को शरण ने कुछ जरूरी बिन्दुओं के माध्यम से ऐसी सलाह दी है, जिसकी उन्हें बहुत जरूरत पड़ेगी – a) प्रेरणा जरूर बनाएं, यह भले ही एक क्षणिक भावना लगे, लेकिन आपको बेहतर करने के लिए हमेशा प्रेरित करेगी; b) अनिश्चितता और बैकअप प्लान, यह परीक्षा अनिश्चितताओं से भरी है इसलिए आपके पास एक बैकअप योजना होनी चाहिए; c) अनुशासन, दैनिक लक्ष्यों का निर्धारण करें और अनुशासित रहें; d) सकारात्मकता, हमेशा बेहतर सोचें और सकारात्मक रहें; e) किस्मत, थोड़ा बहुत तो आपको किस्मत का सहारा चाहिए ही होगा, इसलिए खुद पर भरोसा रखें, किस्मत भी साथ देगी।
अन्य उदाहरण
ऐसा ही एक अन्य उदाहरण राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के रहने वाले एक आईपीएस अधिकारी आदित्य का भी है, जिन्होंने बोर्ड परीक्षा में 67 प्रतिशत अंक हासिल किए थे और अंग्रेजी में बहुत कमजोर थे। अंग्रेजी अखबार के कुछ पन्ने पढ़ने में ही उन्हें घंटों लग जाते थे, पर उनका सपना सिविल सेवा अधिकारी बनने का था। उन्होंने हार नहीं मानी और लगभग 30 प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल होने के बाद भी सिविल सेवा परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए तैयारी करते रहे।
तीन साल तक संघर्ष करने के बाद, आखिरकार उन्होंने अपने चौथे प्रयास में परीक्षा पास कर ली और आईपीएस अधिकारी बने। वह वर्तमान में पंजाब के संगरूर जिले में असिस्टेंट पुलिस अधीक्षक (एएसपी) के रूप में तैनात हैं।
इसी तरह, महाराष्ट्र कैडर के 2010 बैच की आईएएस अधिकारी सुमन रावत चंद्रा भी कहती हैं, “वे सभी प्यारे बच्चे जिन्हें अपने स्कूल परीक्षा परिणामों में 90 फीसदी से अधिक अंक नहीं मिले हैं, निराश न हों क्योंकि यह जीवन का अंत नहीं है। आशावादी रवैये के साथ कड़ी मेहनत करें और अपने डर पर विजय हासिल करें…और फिर यह दुनिया आपकी होगी…!” चंद्रा वर्तमान में महाराष्ट्र में कार्यरत हैं, वो बुलढाणा जिले की मजिस्ट्रेट और कलेक्टर भी रह चुकी हैं।”
इन उदाहरणों से सीखते हुए, बोर्ड परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले छात्रों को इस बात का तनाव नहीं लेना चाहिए कि परीक्षाओं का परिणाम क्या होगा, बल्कि उन्हें सदैव आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि वे कहां पर पीछे रह रहे हैं। हमेशा खुद में सुधार लाकर बेहतर होने के रास्ते पर अडिग होना चाहिए। जो कुछ भी आप चाहते हैं, उसे प्राप्त करने के लिए खुद को बेहतर बनाएं और पूरी लगन से मेहनत वाले रास्ते पर चलते रहें। किसी शायर ने कहा भी है – ‘हौसलों से मिलता है सफलता का मुकाम, आसान नहीं है इस दुनिया में कमाना नाम।’
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