प्रेरक: केरल की पहली आदिवासी महिला जो आईएएस अधिकारी बनी, कहानी कुरिचिया जनजाति की श्रीधन्या सुरेश की!
- Raghav Goyal
- Published on 12 Nov 2021, 10:06 am IST
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हाइलाइट्स
- एक गरीब परिवार में पैदा होने पर जिंदगी किसी के लिए भी कांटों से भरा सफर हो सकती है, लेकिन अगर कोई ईमानदारी से संघर्ष और सच्ची लगन से मेहनत करे तो इस सफर को फूलों से सजे रास्तों में बदला जा सकता है।
- अगर किसी को इस बात पर यकीन न हो तो उसे श्रीधन्या सुरेश के बारे में जरूर जानना चाहिए, वो केरल की पहली आदिवासी महिला हैं जो आईएएस अधिकारी बनी हैं।
- श्रीधन्या के माता-पिता स्थानीय बाजार में बेचते थे धनुष और तीर, बेहद गरीबी से निकलकर हासिल किया बड़ा मुकाम, 2018 में देश भर में मिली 410 वीं रैंक।
- अपने माता-पिता के साथ प्रथम आदिवासी महिला आईएएस अधिकारी श्रीधन्य सुरेश (क्रेडिट: ट्विटर)
अगर आप सफलता के सच्चे दृढ़-संकल्प के साथ जीतोड़ मेहनत करते हैं, तो कुछ भी आपको अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने से रोक नहीं सकता। संघर्ष सफलता की राह का सबसे अहम हिस्सा है। और इसे केरल की उस आदिवासी महिला से बेहतर कौन जान सकता है, जिन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में परचम लहराते हुए राज्य की पहली आदिवासी महिला आईएएस अधिकारी बनने का गौरव प्राप्त किया हो। उन्हें उनकी पहली पोस्टिंग भी कोरोना महामारी के बढ़ते मामलों के बीच मिली थी, जब वह सहायक कलेक्टर (ऑन ट्रेनिंग), कोझीकोड के रूप में नियुक्त की गईं।
श्रीधन्या सुरेश, केरल के वायनाड जिले के गांव पोजुथाना की रहने वाली हैं। वह कुरिचिया जनजाति के आदिवासी परिवार से आती हैं। श्रीधन्या ने अपने जीवन के मात्र 28 वर्षों में सभी उतार-चढ़ाव देख लिए। उनका परिवार दिहाड़ी मजदूर था, जो वायनाड की पोजुथाना ग्राम पंचायत के अंबालककोल्ली में काम करता था। बेहद गरीबी में जीवन जीने वाले उनके परिवार के लिए आर्थिक स्थिरता महज एक सपना थी और कुछ नहीं।
एक जनजातीय क्षेत्र में पले-बढ़े होना
श्रीधन्या के माता-पिता सुरेश और कमला स्थानीय बाजार में धनुष और तीर बेचकर अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करते थे। वे मनरेगा योजना पर भी अत्यधिक निर्भर थे। बड़े होने के दौरान, अपने बच्चे को औपचारिक शिक्षा प्रदान करना उनके माता-पिता के लिए एक बड़ा काम था। क्षेत्र के अधिकांश लोगों की तरह, वे भी बहुत कम आय वाले लोग थे।
इंडियन मास्टरमाइंड्स की टीम से बात करते हुए श्रीधन्या कहती हैं, “मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी क्योंकि हम उस समय बिना जमीन के दस्तावेजों के टूटे-फूटे घर में रहते थे। जब मैंने यूपीएससी 2018 की परीक्षा पास कर ली, उसके बाद मेरे परिवार को जमीन के दस्तावेज प्राप्त हुए हैं।”
श्रीधन्या ने अपनी शुरुआती शिक्षा वायनाड के स्थानीय स्कूलों में पूरी की। उन्हें शुरू से ही पढ़ाई से बहुत लगाव था, लेकिन अपने परिवार की वित्तीय स्थिति को देखते हुए, वह खुद को सिर्फ पढ़ाई तक सीमित नहीं रखना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने जूलॉजी (जीव विज्ञान) में आगे की पढ़ाई की और सेंट जोसेफ कॉलेज, देवगिरी, कोझीकोड में दाखिला लिया। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने कालीकट विश्वविद्यालय परिसर से ‘एप्लाइड जूलॉजी’ में पोस्ट-ग्रेजुएशन कोर्स में दाखिला ले लिया।
वो कहती हैं, “मेरे माता-पिता ने मेरे सपनों को पूरा करने के लिए अपनी अल्प आय के एक बड़े हिस्से का त्याग करके मुझे आगे बढ़ाया।” श्रीधन्या अपने माता-पिता की दूसरी संतान हैं, उनके एक बड़ी बहन और एक छोटा भाई है। उनकी बड़ी बहन एक सरकारी कर्मचारी है और भाई पॉलिटेक्निक का छात्र है।
जिला कलेक्टर ने दिशा दिखाई
पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद, उन्होंने काम करना शुरू कर दिया, क्योंकि वह भी परिवार में अपना योगदान देना चाहती थीं। श्रीधन्या ने केरल के अनुसूचित जनजाति विकास विभाग में एक क्लर्क के रूप में कार्य किया और एक आदिवासी होटल में वार्डन के पद पर भी नौकरी की।
साल 2016 में जब वह वायनाड में अनुसूचित जनजाति विभाग में परियोजना सहायक के रूप में काम कर रही थीं, तो वह उस व्यक्ति से मिलीं, जिसने सिविल सेवा परीक्षा के लिए उनके बचपन के ख्वाबों को दिशा देकर आगे बढ़ने का हौसला दिया था। सीराम संबासिवा राव, जो उस समय वायनाड के उप-जिलाधिकारी थे, ने उनकी बहुत मदद की और प्रेरित करते रहे। वो याद करते हुए कहती हैं, “संबासिवा राव सर ने मुझे सिविल परीक्षाओं में आने और अपने सपनों का पीछा करने के लिए बहुत हौसला दिया। वही वो व्यक्ति थे जिसने मुझे प्रेरित किया और उसके बाद मैंने सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी करने का फैसला कर लिया था।”
यूपीएससी में सफल होने के उनके तीन प्रयासों के दौरान उनकी कई लोगों ने मदद की, जिसके कारण वह अपने सतत प्रयासों को पूरी ऊर्जा के साथ जारी रख पाईं। वो कहती हैं, “मुझे अपने परिवार से मिल रहे समर्थन के अलावा, कुछ नेकदिल लोगों से भी मदद मिली। इनमें कुछ नाम मैं प्रमुख रूप से लेना चाहूंगी,जैसे कि ‘फॉर्च्यून आईएएस अकादमी’, ‘शंकर आईएएस अकादमी’, अनुसूचित जनजाति विकास विभाग, अनुसूचित जाति विभाग और मेरे कुछ अमूल्य मित्र। मुझे अपनी यूपीएससी तैयारी के लिए ‘फॉर्च्यून आईएएस अकादमी’ से छात्रवृत्ति भी मिली।”
प्रथम आदिवासी महिला आईएएस अधिकारी बनना
लगातार दो वर्षों तक असफलता का सामना करने के बाद, श्रीधन्या ने 2018 में देश भर में 410 वीं रैंक हासिल करते हुए अपने तीसरे प्रयास में सिविल सेवा परीक्षा पास कर ली। श्रीधन्या की कठिन परिस्थितियों से लड़ने के उनके जज्बे का अंदाजा इससे लगा लीजिये कि जब मुख्य परीक्षा का परिणाम आया तो उनके पास साक्षात्कार के लिए दिल्ली जाने तक के पैसे नहीं थे। तो उनके दोस्तों ने पैसे जुटाकर उनके दिल्ली जाने की व्यवस्था की।
इसके बाद जो हुआ वह इतिहास है, श्रीधन्या केरल की पहली आदिवासी महिला आईएएस अधिकारी बनीं। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और वायनाड से सांसद राहुल गांधी और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी उनकी प्रशंसा की। अब वह देश भर के युवाओं और खासकर जनजातीय समुदाय से जुड़े लोगों को प्रेरित कर रही हैं।
कोविड-19 के दौरान पहली पोस्टिंग
मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन से अपना प्रशिक्षण पूरा करने के बाद, श्रीधन्या ने अपनी पहली व्यक्तिगत फील्ड पोस्टिंग कोझिकोड के सहायक कलेक्टर (ट्रेनिंग पर) के रूप में जिलाधिकारी सीराम संबाशिव राव के अधीन की। वह बहुत उत्साहित थीं क्योंकि उन्हें उस व्यक्ति की निगरानी में काम करने का मौका मिला था, जिसने उन्हें पहले यूपीएससी पास करने के लिए प्रेरित किया था।
युवा आईएएस अधिकारी इससे थोड़ा-बहुत हैरान थीं, लेकिन इस बात से पूरी तरह अचंभित नहीं थी कि उनकी पहली नियुक्ति तब हुई जब पूरा देश महामारी से जूझ रहा था और विशेषतया केरल बुरी तरह से। उन्होंने इसे एक चुनौती के तौर पर लिया।
जैसा कि श्रीधन्या खुद कहती हैं, “यह बहुत ही अजीब समय है, हम उस वक्त में है जो हमने पहले कभी भी अनुभव नहीं किया है। मेरी पहली पोस्टिंग एक सहायक कलेक्टर के रूप में कोझीकोड जिले में हुई। हमारी दैनिक गतिविधियां, बैठकें, क्षेत्र-भ्रमण आदि कोविड-19 पर केंद्रित होती थीं। मैं कोझीकोड में ‘कोविद देखभाल केंद्रों’ की नोडल अधिकारी थी, हमने प्रत्येक पंचायत में ‘कोविड देखभाल केंद्रों’ की स्थापना की और जहां राज्य वापस लौटने वालों को 14 दिनों की अवधि तक क्वारंटाइन किया जाता था।”
अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए श्रीधन्या का दृढ़-संकल्प और कड़ी मेहनत कई लोगों के लिए सच्ची प्रेरणा का प्रतीक है। सभी संसाधनों और विशेषाधिकारों के साथ जो लोग एक खास पृष्ठभूमि से आते हैं और उनके पास सभी सुख-सुविधाएं होती हैं, उनके लिए भी ये सब पाना मुश्किल है जो श्रीधन्या ने अपनी मेहनत और लगन से हासिल किया है। और इसके लिए, वह खुद को अपने गरीब माता-पिता सहित कई लोगों का ऋणी मानती हैं।
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