कैसे यूपीएससी की तैयारी में खुद से बेहतर छात्रों से करें मुकाबला, पढ़िए आदिवासी-जनजाति से आने वाले आईपीएस अरविंद मीणा की कहानी
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 22 Nov 2021, 6:05 pm IST
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हाइलाइट्स
- 2020 बैच के आईपीएस आधिकारी अरविंद कुमार मीणा के संघर्षों की दास्तान
- यूपीएससी के लिए क्या है सबसे जरूरी और कैसे खुद से बेहतर छात्रों से करें मुकाबला?
- यूपीएससी की यात्रा मानसिक तौर पर थका देती है, उससे कैसे उबरें?
- आईपीएस अरविंद कुमार मीणा
वैसे तो जीवन में सफलता पाना हर किसी का का लक्ष्य होता है, लेकिन जो आसानी से मिल जाए उसे सफलता नहीं कहते। जीवन चुनौतियों और अवसरों से भरा है, लेकिन केवल उन्हीं लोगों के लिए जो वास्तव में अवसरों को प्राप्त करने और चुनौतियों का सामना करने के लिए संघर्ष करते हैं। इसी की मिसाल हैं – 2020 बैच के आईपीएस और अभी हैदराबाद में ट्रेनिंग कर रहे आदिवासी-जनजाति से आने वाले अरविंद कुमार मीणा। बचपन में ही पिता को खो देने वाले अरविंद के परिवर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। लेकिन अपनी मेहनत और खुद पर भरोसे के सहारे वो सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले गए।
आईपीएस अरविंद ने पहले भारत सरकार के सार्वजनिक उपक्रम (पीएसयू) कॉल इंडिया में नौकरी प्राप्त की, फिर सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में सहायक कमांडेंट बने। और फिर साल 2019 में आईएफएस के चुने गए और अगले ही साल 2020 में पूरे देश में 676 रैंक और एसटी वर्ग में बेहतर रैंक के साथ आईपीएस के लिए चुने गए। उनकी सफलता की कहानी सिर्फ उनके मीणा समाज के लिए ही नहीं बल्कि सभी के लिए एक प्रेरणा है।
पिता का संघर्ष
अरविंद की यह सफलता इसलिए भी खास मायने रखती है, क्योंकि आर्थिक स्थिति बहुत खराब होने के बाद भी उनके पिता की जिद थी कि वो अपने बेटे को लाल बत्ती वाली गाड़ी में बैठे देखना चाहते हैं। भारत के कई आम परिवारों की तरह उनके पिता ने सिर्फ बड़े सपने ही नहीं देखे बल्कि उसके लिए बहुत त्याग किया। अरविंद को पढ़ाने के लिए गांव से दूर कस्बे में किराए पर रहते थे और खुद खाना बनाते थे, इस काम में अरविंद इतनी छोटी उम्र में ही अपने पिता की मदद करते थे। लेकिन जब कम उम्र में ही सर से पिता का साया उठ गया, तो उनकी मां ने उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी अपने सर ले ली।
इंडियन मास्टरमाइण्ड्स से बात करते हुए आईपीएस अरविंद कहते हैं, “पिता की मौत के बाद मां के लिए बहुत कठिन वक्त था। हमारे समाज में वैधव्य का जीवन बहुत मुश्किल होता है, ऊपर से गरीबी के साथ जीवन जीना बहुत कठिन था। लेकिन मेरा सफर आसान बन सका, क्योंकि मेरे परिवार ने मुझे मदद की। मेरे मामा ने आर्थिक सहयोग किया और मेरी मां हर कदम पर मेरे साथ थीं। यकीन मानिए, यूपीएससी की यात्रा में परिवार का समर्थन सबसे जरूरी चीज है।”
शुरुआत
राजस्थान के दौसा जिले के नाहरखोरा गांव से आने वाले आईपीएस अरविंद के पिता एक किसान थे और मां ग्रहणी हैं। उन्होंने एनआईटी रायपुर से बी.टेक. किया है। कॉलेज में पढ़ाई के वक्त ही अरविंद ने अपने पिता का सपना पूरा करने का मन बना लिया था। लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति की वजह से बी.टेक. के बाद कोल इंडिया में नौकरी करने लगे। लेकिन कुछ वक्त बाद ही वो यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली चले गए। उन्होंने कोचिंग भी जॉइन की। लेकिन अरविंद का कहना है कि उन्हें कोचिंग से ज्यादा अपनी सेल्फ-स्टडी से फायदा हुआ और उसी पर उन्होंने ज्यादा फोकस किया। अरविंद का वैकल्पिक विषय भूगोल था।
तैयारी
दिल्ली में तैयारी करते हुए अरविंद कई बार निराश हुए। हालांकि बेहद मेधावी होने की वजह से राजस्थान सरकार से उन्हें छात्रवृत्ति मिल गयी थी और परिवार का भी समर्थन था, लेकिन यूपीएससी की यात्रा में सबसे बड़ी समस्या मानसिक होती है। कई बार परीक्षा के माहौल और खुद से अधिक मेधावी उम्मीदवारों को देखकर छात्र मानसिक तौर पर बहुत परेशान हो जाते हैं।
अरविंद कहते हैं, “मैं देखता था कि दिल्ली में तैयारी करने वाले बहुत से छात्र बहुत मेधावी हैं। आईआईएम और आईआईटी से पढे हुए और इंग्लिश में धाराप्रवाह बोलने वाले लोगों के सामने, मैं खुद को कई बार कमतर समझने लगता था। इतना ही नहीं मन में एक हीन भावना भी आ जाती थी कि शायद मैं न कर पाउंगा। लेकिन इसी सोच और मानसिक अवस्था से आपको पार पाना होता है। इसीलिए जब भी मैं इस तरह निराश होता था, मैं घर वालों से से बात करता था, दोस्तों से मिलता था। और फिर वे सभी मुझे विश्वास दिलाते थे कि मैं बहुत मेधावी हूं और ये कर सकता हूं।”
यूपीएससी के लिए क्या चाहिए!
अरविंद कहते हैं कि यूपीएससी के लिए सबसे जरूरी चीज वही है – समर्पण और धैर्य। अगर ये दोनों आप में नहीं हैं तो यूपीएससी आपके लिए नहीं है, क्योंकि बहुत लंबी यात्रा होती है और इन्हीं दोनों के सहारे आप ये जंग जीत सकते हैं। इसके साथ ही अनुशासन और खुद पर भरोसा बहुत जरूरी है। परिवार का समर्थन हुआ तो आप हर मुश्किल से निकाल आएंगे। साथ ही इस यात्रा में हमेशा सीरियस मत रहिए, इसको एंजॉय भी करिए। अपनी फिजिकल फिटनेस का भी ध्यान रखिए, आगे चलकर उसकी बहुत जरूरत पड़ेगी।
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