यूपीएससी का खुद का सपना रहा अधूरा, अपनी बेटियों के लिए ताने सुने, लेकिन उन्हीं बेटियों ने यूपीएससी में परचम लहराया
- Raghav Goyal
- Published on 2 Dec 2021, 10:30 am IST
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हाइलाइट्स
- बरेली के चंद्रसेन सागर जो खुद हासिल न कर सके, वह उनकी बेटियों ने कर दिखाया
- जो समाज कभी 5 बेटियों के लिए उन पर ताना मारता था, आज उनके सामने नतमस्तक होता है
- यह एक जीवंत उदाहरण है कि अगर बेटियों की परवरिश और शिक्षा में कोई भेदभाव न किया जाए तो वे सारे जमाने को जीतकर, पिता का सीना गर्व से चौड़ा कर सकती हैं
- चंद्रसेन सागर एंड फैमिली
इससे बेहतर और क्या हो सकता है कि किसी परिवार के तीन सदस्य – तीनों सगी बहनें – भारतीय प्रसाशनिक सेवाओं में हों! सुनने में यह बिल्कुल किसी नामुमकिन सपने जैसा लगता है, लेकिन है बिल्कुल सच। सिविल सेवाओं को भारत में युवाओं के बीच सबसे प्रतिष्ठित कैरियर के रूप में पहचाना जाता है, लेकिन इसमें सफल होना वास्तव में ‘हथेली पर सरसों उगाने’ या दूसरे शब्दों में कहें तो ‘दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर चढ़ने’ के समान है। हर साल 10 लाख से अधिक अभ्यर्थी यूपीएससी परीक्षा में शामिल होते हैं, जिनमें से 1000 से भी कम चयनित होते हैं। इसलिए परिवार के किसी एक भी व्यक्ति का यह परीक्षा पास करना किसी चमत्कार से कम नहीं समझा जाता है। इसमें सफल होना वास्तव में हरिवंश राय बच्चन की कविता की उन पंक्तियों के समान है जिसमें वो लिखते हैं- ‘तू न थकेगा कभी, तू न रुकेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।’
लेकिन यह एक बहुत ही दुर्लभ उदाहरण है, जहां उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में एक परिवार ने तीन आईएएस अधिकारी दिए हैं। 10 वर्षों तक अपने क्षेत्र में एक ब्लॉक प्रमुख के रूप में काम करने वाले चंद्रसेन सागर की तीन बेटियों ने यूपीएससी फतह कर अपने पिता को गौरवान्वित किया है। लेकिन यहां खास बात यह है कि यूपीएससी पास करके उनकी बेटियों ने अपने पिता के ही एक अधूरे सपने को पूरा किया है, जो वो खुद कभी न पूरा कर पाए।
प्रारंभिक जीवन
सागर ने उच्च शिक्षा हासिल करते हुए एमए-एलएलबी किया और वह हमेशा एक सिविल सेवक बनने के ख्वाब देखते थे, लेकिन अपने बहुतेरे प्रयासों के बाद भी वह सफल नहीं हो सके। बाद में वह राजनीति में आ गए और तरक्की करते हुए अपने क्षेत्र में ब्लॉक प्रमुक के पद तक पहुंचे, लेकिन नागरिक सेवाओं में जाने के जिस सपने को वह खुद नहीं पूरा कर पाए उसे अपने बच्चों के लिए जिंदा रखा।
सागर के बड़े भाई, डॉ. सियाराम सागर बरेली जिले के फरीदपुर से पांच बार विधायक रह चुके हैं, जुलाई 2019 में उनका देहांत हो गया। उनकी पत्नी मीना कुमारी सागर भी जिला पंचायत, बरेली की सदस्य रही हैं।
इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ बातचीत करते हुए चंद्रसेन सागर कहते हैं, “एक राजनीतिक पृष्ठभूमि से आते हुए, मैं कभी नहीं चाहता था कि मेरा कोई भी बच्चा मेरी राह पर चले और राजनीति में आए। मेरे घर में भी राजनीति पर कभी चर्चा नहीं होती और मैं इससे संबंधित सभी मुद्दों को अपने घर से बाहर ही निपटाता हूं।”
समय के साथ सागर की पत्नी मीना ने पांच बेटियों और एक बेटे को जन्म दिया। एक ऐसे समाज में जहां लड़कियों की तुलना में लड़के की चाहत अधिक होती है, सागर और उनकी पत्नी को सालों तक मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
सागर के घर जब पहले बच्चे ने जन्म लिया, तो उसका नाम अर्जित सागर रखा गया। सागर कहते हैं, “हम बहुत भाग्यशाली और खुश थे क्योंकि परिवार में पहला बच्चा बहुत सारी खुशियां लेकर आता है।” जब दूसरा बच्चे का जन्म हुआ, तो समाज ने ताने मारने और अजीब आलोचनाएं करना शुरू कर दिया क्योंकि यह भी लड़की थी। सौभाग्य से, सागर अपने सभी बच्चों को समान रूप से प्यार करते थे। वो जोर देकर कहते हैं, “मेरा हर बच्चा मुझे प्रिय है। मैं अपनी लड़की और लड़के के बीच अंतर नहीं करता।”
5 बेटियों और 1 बेटे की परवरिश
सागर के बच्चे अर्जित, अर्पित, अंशिका, अंकिता, आकृति और अमीश ने अपने गृह नगर बरेली में ही 12 वीं कक्षा तक की स्कूली शिक्षा पूरी की। हालांकि शहर में उनकी रुचि के कोई कॉलेज नहीं थे इसलिए उन्होंने विभिन्न अन्य कॉलेजों को उच्च अध्ययन के लिए चुना।
सबसे बड़ी बेटी, अर्जित सागर ने उत्तराखंड के पंतनगर में स्थित ‘जी.बी. पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय’ से बी.टेक की पढ़ाई पूरी की। दूसरी बेटी अर्पित सागर ने प्रयागराज के ‘मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान’ से बी.टेक और प्रतिष्ठित ‘आईआईएम कोलकाता’ से मास्टर्स की पढ़ाई पूरी की।
सबसे छोटी बेटी, अंकिता सागर ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित ‘श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स’ से अर्थशास्त्र ऑनर्स में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। अन्य दो बेटियों ने दिल्ली स्थित ‘राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान’ से अपना स्नातक किया। जबकि बेटे अमीश सागर ने दिल्ली विश्वविद्यालय के ‘देशबंधु कॉलेज’ से बी.ए. इतिहास में स्नातक किया है।
सागर कहते हैं, “जैसे ही हमारे बच्चे अपनी आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली शिफ्ट हुए, उनकी देखभाल के लिए मेरी पत्नी भी उनके साथ चली गईं। उनका खयाल रखने के अलावा, वह उन्हें सिविल सेवा परीक्षा में बैठने के लिए भी प्रेरित करती रहीं। यूपीएससी तैयारियों के दौरान मीना बच्चों के समर्थन और प्रेरणा का एक प्रमुख स्रोत बनी रहीं। इस दौरान मैं बरेली में अकेला रहता था।”
जब सपने सच हुए
साल 2009 में, सागर की जीवन भर की अधूरी इच्छा तब पूरी हुई, जब उनकी सबसे बड़ी बेटी अर्जित सागर ने सिविल सेवा परीक्षा पास करते हुए अपने दूसरे ही प्रयास में भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में शामिल हो गई। वह वर्तमान में मुंबई जोन में ‘कस्टम, जीएसटी और केंद्रीय उत्पाद शुल्क’ के संयुक्त आयुक्त के पद पर काम कर रही है।
लेकिन अच्छी खबरों का सिलसिला यहीं नहीं रुका। उनकी दूसरी बेटी, अर्पित सागर ने भी 2014 की सिविल सेवा परीक्षा पास की। दो बार असफल रहने के बाद अर्पित ने देश भर में 378 वीं रैंक हासिल की। उन्हें गुजरात कैडर मिला और वर्तमान में जिला विकास अधिकारी, नवसारी के पद पर काम कर रही हैं, इससे पहले वो जिला विकास अधिकारी, वलसाड के पद पर थीं।
भाग्यशाली लकीरों का बढ़ना निरंतर जारी रहा और यूपीएससी 2015 परीक्षा में सबसे छोटी बेटी आकृति सागर ने अपने दूसरे प्रयास में आल इंडिया 239 वीं रैंक हासिल करते हुए सफलता पायी और परिवार का नाम चारों तरफ फैल गया। उनकी शादी के बाद उन्हें एजीएमयूटी कैडर में स्थानांतरित किया गया था। उनकी शादी आईपीएस अधिकारी सुधांशु से हुई है। वर्तमान में वह दिल्ली में मध्य दिल्ली जिले की डीएम के पद पर तैनात हैं, साथ ही वो दिल्ली जल बोर्ड की अतिरिक्त सीईओ और निदेशक राजस्व का कार्यभार भी संभाल रही हैं। इससे पहले वो स्वास्थ्य विभाग में कोरोनावायरस प्रबंधन का काम देख रही थीं।
मामा और बड़ी बहनों से प्रेरित
इन सफलताओं की प्रेरणा के बारे में बताते हुए सागर कहते हैं, “मेरी पत्नी का भाई 1995 बैच के पश्चिम बंगाल कैडर से आईपीएस अधिकारी था। एक परिवार में एक प्रसाशनिक नौकरशाह होने से बच्चों में अधिक प्रेरणा का स्फुटन होता है और बच्चे कुछ बेहतर करने को प्रेरित होते हैं। मेरी बच्चों की सफलता में उनकी उपस्थिति एक प्रमुख कारक थी।”
चंद्रसेन सागर की सबसे छोटी बेटी आकृति सागर ने इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए कहा, “जैसा कि मेरे पिता का सिविल सेवाओं की ओर झुकाव था, हम सभी सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होना चाहते थे। 2003 में जब मेरी बड़ी बहन अर्जित सागर ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हुए परीक्षा की तैयारी शुरू की, तो मैंने भी उसी रास्ते पर चलने का मन बना लिया। हालांकि मैं उस समय छोटी थी। लेकिन एसआरसीसी, दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने भी परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी।”
वो आगे कहती हैं, “मेरे माता-पिता, बड़ी बहनों और मेरे मामा का समर्थन, मेरे आईएएस अधिकारी बनने की सफलता के पीछे प्रमुख कारण है। पहले से ही सेवा में मेरी बहनें, मेरी पढ़ाई में मदद करती थीं और मेरे पिता ने भी लंबे समय तक पूरे परिवार से दूर रहने का त्याग किया है।” आकृति बचपन से ही मेधावी थीं, उन्होंने 10 वीं कक्षा में अपने राज्य में दूसरा स्थान हासिल किया और 50,000 रुपये की अम्बेडकर छात्रवृत्ति प्राप्त की। इतना ही नहीं, उन्होंने 12 वीं कक्षा में भी अपने स्कूल में टॉप किया और आगे के पढ़ाई के लिए भारत के सबसे अच्छे कॉलेजों में से एक श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश प्राप्त किया।
आईएएस अधिकारी बनने के बाद, उन्होंने 2016 बैच के आईपीएस अधिकारी सुधांशु से शादी कर ली और उन्हें एजीएमयूटी कैडर में स्थानांतरित कर दिया गया। वह कई सामाजिक और महिला केंद्रित मुहिम का भी हिस्सा रही हैं।
जैसा कि वो कहती हैं, “मैंने नई दिल्ली में एसडीएम के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान बहुत सारे बच्चों को बाल श्रम से बचाया और बाद में उन्हें विभिन्न सरकारी योजनाओं में मदद मिली। एक बार मैंने एक बच्चे को बाल विवाह से भी बचाया था।”
पांच बहनों के परिवार से आने वाली आकृति विभिन्न महिला केंद्रित पहलों का अहम हिस्सा रही हैं। वो कहती हैं, “मुझे विभिन्न महिला केंद्रित पहलों को आगे बढ़ाने का अवसर मिला। ‘बेटी बचाओ – बेटी पढाओ’ योजना के तहत हमने उन कार्यक्रमों का आयोजन किया, जिसमें बालिकाओं को जन्म देने वाली माताओं को सुविधा और सम्मान दिया जाता है।”
चंद्रसेन की अन्य दो बेटियां इंजीनियर हैं। इन सभी खूबसूरत कारणों से बरेली का सागर परिवार कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है। एक शायर ने बहुत खूब लिखा है, “जरूरी नही रौशनी चिरागों से ही हो, बेटियां भी घर में उजाला करती हैं।”
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