एमबीबीएस के बाद बनी आईएएस, आज भी करती हैं मरीजों का इलाज, पढ़िए कहानी डॉ आकांक्षा भास्कर की!
- Bhakti Kothari
- Published on 8 Nov 2021, 2:09 pm IST
- 1 minute read
हाइलाइट्स
- पहले एक डॉक्टर और फिर आईएएस बनने वाली आकांक्षा की कहानी में कई ट्विस्ट हैं।
- वह अभी भी लोगों का स्वेच्छा के साथ पूरी खुशी से इलाज करती हैं, उन्हें समाज के अपने ऊपर उस ऋण के बारे में बेहतर पता है, जिसने उन्हें सफलता की सीढ़ियां चढ़ने में मदद की थी।
- बेहतर स्वास्थ्य की लड़ाई – डॉ. आकांक्षा भास्कर
एक प्यारी बेटी, एक होनहार डॉक्टर, एक सफल आईएएस अधिकारी – आप जो चाहते हैं, इसमें से वो विशेषण पसंद कर लें। आईएएस डॉ. आकांक्षा भास्कर इन तीनों श्रेणियों में एक दम फिट बैठती हैं।
अधिकतर लोगों के लिए, एक डॉक्टर बनने के बाद उन्हें कुछ और पाने की जरूरत नहीं होती है और उनकी पेशेवर यात्रा शायद मंजिल तक पहुंची मान ली जाती है। लेकिन जिनके लिए मंजिल खुला आसमान हो, उनके लिए कोई भी यात्रा कभी खत्म नहीं होती, बल्कि अनवरत चलती रहती है। डॉ. भास्कर के लिए, यह तो बस शुरुआत भर थी।
भास्कर का मानना है कि एक आईएएस अधिकारी के रूप में उन्होंने जीवन के बहुत बड़े पटल को छुआ है और जीवन में बहुत कुछ हासिल किया है। एक डॉक्टर के रूप में एक बड़े शहर के किसी कोने में बैठकर अपने चिकित्सा कौशल का प्रदर्शन करते हुए, वह शायद यह सब न कर पातीं और इतने लोगों के जीवन में बदलाव की साक्षी भी नहीं बन पातीं।
सिविल सेवकों की दुनिया में आना
डॉ. भास्कर को जल्द ही इस बात का अहसास हो गया कि उनकी मेडिकल डिग्री उन्हें सिर्फ कुछ लोगों की मदद करने में सक्षम बनाएगी, वह भी केवल उन लोगों को जो खुद उनके पास आते हैं। लेकिन वह इससे भी अधिक कुछ और करना चाहती थीं, कहीं अधिक बड़े पटल पर कदम रखना चाहती थीं।
इंडियन मास्टरमाइंड्स से बातचीत करते हुए, वो कहती हैं, “मैं हमेशा से सिविल सर्विसेज में जाना चाहती थी। मैं एक डॉक्टर बन गई, क्योंकि मेरे पिता मुझे ऐसा करते हुए देखना चाहते थे। हालांकि ऐसा नहीं है कि चिकित्सा क्षेत्र मुझे पसंद नहीं है। यह मुझे पसंद है, लेकिन फिर मुझे यह भी महसूस हुआ कि मैं लोगों पर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती थी। मैं उन तक पहुंचना चाहती थी, जहां मैं लोगों की बीमारी का इलाज करने बजाए, बीमारी के होने से पहले ही उसे रोक सकूं।”
प्राचीन और शाश्वत शहर बनारस से आने वाली आकांक्षा जब अपने स्कूल के दिनों में थी, तो वो अपने पिता के बताए रास्ते पर ही चलती थीं। देश के अन्य कई माता-पिता की तरह, उनके पिता भी चाहते थे कि वह बड़े होकर डॉक्टर बनें। बाद में, उन्होंने अपने गृहनगर को छोड़ दिया और एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई के लिए कोलकाता स्थित ‘आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल’ चली गईं।
परीक्षा देना
2014 में वह कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई पूरी कर एक सफल चिकित्सक बन चुकी थीं। लेकिन उनका सपना सिविल सेवा में जाने का था और बाद में वह दिल्ली जाकर सिविल सर्विसेस की तैयारी करने लगीं। एमबीबीएस में स्नातक पूरा करने के बाद जैसे ही उनकी इन्टर्न्शिप खत्म हुई, डॉ. आकांक्षा ने सिविल सेवा परीक्षा की में बैठने का फैसला कर लिया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यूपीएससी भारत की सबसे काफी कठिन और चुनौतीपूर्ण परीक्षा है, लेकिन डॉ. आकांक्षा बिना किसी अप्रत्यक्ष भय के इसके लिए तैयार थीं।
वो कहती हैं, “मैं एक मेडिकल छात्र थी, इसलिए पाठ्यक्रम से मुझे कभी डर नहीं लगा, भले ही यह बहुत बड़ा और चुनतियों से भरा हुआ था। एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान मुझे खूब सारा पढ़ने की आदत थी और इसलिए, मुझे इसकी तैयारी में कोई बड़ी चुनौती नहीं मिली।”
उन्होंने सिविल सिविल की परीक्षा में मुख्य विषय के रूप में मेडिकल सब्जेक्ट लिया था। साल 2015 में डॉ. आकांक्षा ने 76 वीं रैंक के साथ भारत की सबसे प्रतिष्ठित सिविल परीक्षा पास करते हुए अपने सपनों को पूरा किया।
पश्चिम बंगाल में तैनात डॉ. भास्कर को जब भी अपनी नौकरशाह की व्यस्त नौकरी से मौका मिलता है, वह सरकारी अस्पतालों में मरीजों की मदद के लिए पहुंचती हैं। वह उनका मुफ्त में इलाज करती हैं। यह समाज को कुछ सकारात्मक रूप में वापस देने का उनका अपना तरीका है, जो कि समाज से पहले उन्हें मिला।
किस बात ने उन्हें प्रेरित किया?
इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ विशेष बातचीत में, डॉ. आकांक्षा ने हमें बताया कि आखिर कैसे उन्हें सिविल सेवक बनने के लिए प्रेरणा मिली। वो कहती हैं, “मैं हमेशा इस बारे में पढ़ती रहती थी कि कैसे सिविल सेवक लोगों के लिए असल में अच्छा काम कर रहे हैं। उस समय सोशल मीडिया उतना लोकप्रिय नहीं था जितना अब है, लेकिन प्रिंट मीडिया में ऐसे कई सिविल सेवकों की कहानियां निकलती थीं, जो अपने जिलों या राज्यों के लिए अद्भुत काम कर रहे थे।”
उनके काम करने का तरीका भी अपना अलग है। एक जन-साधारण व्यक्ति के रूप में, वह खुद को रख कर देखती हैं कि किसी जगह का एक अच्छा और मेहनती जिला कलेक्टर सिस्टम में कैसे बदलाव लाएगा, जिससे कि लोगों का जीवन अधिक आरामदायक और सुलभ बन सके। वो कहती हैं, “मैं अपने क्षेत्र में सड़कों को सुधारने या बेहतर स्वच्छता सेवाओं देने वाले अधिकारियों और ऐसी कई कहानियों की के बारे में पढ़ती रहती थी। इस प्रकार के छोटे-छोटे हस्तक्षेप बहुत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली तो नहीं थे, लेकिन इसने निश्चित रूप से मदद की और कई लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाया। यह वही चीज है, जो मैं हमेशा से करना चाहती थी और इसी आकांक्षा के साथ सिविल सेवा में आई थी।”
डॉ. भास्कर के पास सिविल सेवा के उम्मीदवारों को देने के लिए कई महत्वपूर्ण संदेश हैं। उनका कहना है, “अगर आपके इरादे सही हैं और आप सही तरीके से ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, तो आप जरूर यहां तक पहुंचेंगे। सेवा में आने के बाद भी, आपको उसी प्रेरणा स्तर को बनाए रखना महत्वपूर्ण है, जिसके साथ आप परीक्षा की तैयारी कर रहे थे।”
जो युवा सिविल सेवा में जाने के इच्छुक नहीं हैं, वह उनके लिए भी संदेश देते हुए कहती हैं, “विशेष रूप से अब, जब सार्वजनिक क्षेत्र में और सोशल मीडिया पर सभी प्रकार की जानकारी उपलब्ध है, तो मैं चाहती हूं कि हर कोई अधिक सतर्क नागरिक बने। अपने देश के बारे में जानिए और इसे आगे बढ़ने में मदद करिए। यह अधिक सावधान नागरिक होने में या बनने में मदद करता है, क्योंकि तब वे समाज में सार्थक बदलाव ला पाते हैं।”
डॉ. भास्कर ने कोविड-19 से लड़ने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हम जल्द ही इसके बारे में आपको और विस्तार से बताएंगे।
END OF THE ARTICLE