एक मिडिल क्लास परिवार, चार बच्चे, चारों आईएएस-आईपीएस अफसर
- Pallavi Priya
- Published on 29 Oct 2021, 2:10 pm IST
- 1 minute read
हाइलाइट्स
यदि एक ही परिवार के चार सगे भाई-बहन यूपीएससी जैसी देश की सबसे कठिन और प्रतिष्ठित परीक्षा पास कर लें, तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। लेकिन यूपी के मिश्रा परिवार के साथ यह कौतुक हुआ है।
- चारों भाई-बहिन एक साथ एक फ्रेम में
लगभग छह साल पहले तक, उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले का मिश्रा परिवार भारत के लाखों परिवारों की तरह ही एक आम परिवार था। सभी मध्यमवर्गीय परिवारों की समान विशेषताएं होती हैं, जैसे कड़ी मेहनत करने वाले माता-पिता अपने प्रतिभावान बच्चों के उज्जवल भविष्य को लेकर हमेशा अनिश्चितताओं से घिरे रहते हैं। ऐसे ज्यादातर परिवारों के सपने जल्द ही नेपथ्य में चले जाते हैं। लेकिन मिश्रा परिवार उल्लेखनीय रूप से इन सबसे अलग था। उनके एक या दो नहीं बल्कि चारों बच्चों ने सिर्फ तीन साल की अवधि में भारत की सबसे प्रतिष्ठित नौकरी के लिए यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा पास कर ली।
प्रख्यात मिश्रा परिवार उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के लालगंज तहसील का रहने वाला है। परिवार के मुखिया और बच्चों के पिता अनिल मिश्रा, एक ग्रामीण बैंक में प्रबंधक के रूप में काम करते थे। पत्नी और चार बच्चों के साथ छह लोगों का परिवार एक दो कमरे के छोटे से मकान में रहता था। मिश्रा परिवार के लिए उस वक्त जीवन अनवरत संघर्षों का दौर था। लेकिन अनिल मिश्रा अपने बच्चों को सर्वोत्तम संभव शिक्षा प्रदान करने के अपने दृढ़-संकल्प से कभी विचलित नहीं हुए। उनकी आंखों में बच्चों के बेहतर भावी भविष्य की तस्वीरें थीं। और आखिरकार मिश्रा परिवार की किस्मत ऐसे बदली, जैसे किसी ने आकर जादू की छड़ी घुमा दी हो।
चार भाई-बहनों में दो भाई योगेश और लोकेश और दो बहनें क्षमा और माधवी हैं। परिवार के सबसे बड़े बेटे, योगेश मिश्रा वर्तमान में यूपी के शाहजहांपुर के आयुध कारखाने में प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। बेटियों में से एक बेटी क्षमा, कर्नाटक में कोडागु जिले की एसपी हैं। वहीं दूसरी बेटी माधवी जो हजारीबाग नगर निगम में कमिश्नर थीं, अब रामगढ़ जिले की उपायुक्त हैं और सबसे छोटे बेटे लोकेश कोडरमा के उप विकास आयुक्त हैं, इससे पहले वो रांची सदर के एसडीएम के रूप में कार्यरत थे।
संघर्षों के लंबे दिन
इंडियन मास्टरमाइंड्स की टीम से अपने बचपन के बारे में बात करते हुए, योगेश कहते हैं, “हम लोग एक मध्यम-वर्गीय परिवार से आते हैं। हम सभी शुरू से ही पढ़ाई में अव्वल थे, इसलिए कहीं न कहीं हमारे पिता की हमेशा यही इच्छा रहती थी कि हम उन्हें एक दिन कुछ बड़ा हासिल करके गौरवान्वित करेंगे। आखिरकार उनकी इच्छा पूरी हुई और हम आज जो हैं उसे हासिल करने में सफल रहे।
वैसे चारों भाई-बहनों की उम्र में ज्यादा अंतर नहीं है, सभी एक-दूसरे से या तो एक-दो साल बड़े या छोटे हैं। योगेश और उनके भाई-बहनों ने जिले की लालगंज तहसील में ही एक प्राथमिक विद्यालय से शुरुआती पढ़ाई की और बाद में माध्यमिक शिक्षा के लिए राजकीय इंटर कॉलेज में दाखिला लिया। चारों भाई-बहनों ने अपनी 10 वीं और 12 वीं में अच्छे अंक हासिल किए। मध्यमिक शिक्षा पूरी होने के बाद सभी ने अपने कैरियर की तरफ देखना शुरू किया।
योगेश उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं, “मेरी बहनें हमेशा अधिकारी बनना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने अपना ग्रेजुएशन करते हुए यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। दूसरी ओर, मैं और मेरा भाई लोकेश इंजीनियरिंग के लिए देश में सबसे प्रतिष्ठित आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी में जुट गए। लेकिन अच्छी रैंक न आने के कारण मुझे आईआईटी में प्रवेश नहीं मिला और मैंने एनआईटी, इलाहाबाद में दाखिला ले लिया। हालांकि लोकेश बेहतर रैंक के साथ आईआईटी में प्रवेश पा गया।”
बी.टेक. पूरा करने के बाद योगेश और लोकेश ने काम करना शुरू कर दिया, लेकिन वे दोनों अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें पता था कि उनके पास क्षमता है और उन्हें कुछ बड़ा हासिल करने के लिए आगे आना चाहिए। उनकी बहनें क्षमा और माधवी सिविल सेवाओं की तैयारी कर रही थीं। क्षमा यूपी की राज्य सेवाओं में नियुक्ति पा चुकी थीं और माधवी भारतीय राजस्व सेवा परीक्षा पास कर चुकी थीं। लेकिन यूपीएससी में दोनों को ही अब तक सफलता नहीं मिली थी। यह परिवार के लिए और खासकर योगेश के लिए बेचैनी भरा वक्त था। वह इस बात को समझते थे कि उनकी बहनें सक्षम और योग्य हैं लेकिन कहीं न कहीं कोई कमी रह जा रही है। इसलिए, उन्होंने फैसला किया कि पहले वो खुद परीक्षा पास कर दिखाएंगे और आखिरकार उनकी इस पारिवारिक मुहिम में छोटा भाई लोकेश भी उनके साथ आ गया। योगेश ने इस परीक्षा के पुराने पेपर्स का अध्ययन किया और उन सभी विषयों को विस्तार से पढ़ा।
पढ़ाई और तैयारियों के दौरान लगभग दो वर्षों का वक्त ऐसा रहा जब चारों भाई-बहन तैयारी कर रहे थे और उनके पास कोई नौकरी नहीं थी। इस वक्त उनके माता-पिता पर वित्तीय दबाव बहुत बढ़ गया था।
उन मुश्किल दिनों को याद करते हुए इंडियन मास्टरमाइंडस की टीम से बात करते हुए उनके पिता अनिल मिश्रा कहते हैं, “मेरे बच्चों की नौकरी अच्छी थी और वो ठीक-ठाक कमा भी रहे थे लेकिन अचानक उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। हम सब इसके लिए तैयार नहीं थे और अचानक हमें ऐसी परिस्थितियों से गुजरना पड़ा। लेकिन हमने अपने खर्चों पर अंकुश लगाया और अन्य कई उपाय किए। उपलब्ध संसाधनों के भीतर ही जीवन-यापन करने का प्रयास किया।”
अनिल मिश्रा आगे कहते हैं, “यह कहना झूठ होगा कि उस बेहद कठिन वक्त में नकारात्मक विचारों ने हमारे दिमाग में पनाह नहीं ली थी। साथ ही हम सभी इस परीक्षा की अनिश्चितताओं के बारे में भी जानते थे। लेकिन मैं और मेरी पत्नी हर तरह से आशाओं की डोर को पकड़े हुए थे और खुद को विश्वास दिला रहे थे कि सब बेहतर होगा। हमने हमेशा अपने बच्चों से यही कहा कि यदि तुम सभी अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ हो, तो कोई भी ताकत अपने लक्ष्य को प्राप्त करने से तुम्हें रोक नहीं सकेगी। अब मैं वास्तव में खुश हूं कि अपनी जीतोड़ मेहनत की वजह से आज वे इस मुकाम तक पहुंचे हैं। मुझे गर्व महसूस होता है जब उनके वरिष्ठ उनकी सराहना करते हैं और उनकी उपलब्धियों को प्रकाशित किया जाता है। मुझे लगता है कि यही वह खुशी है जिसके बारे में हर माता-पिता अपने बच्चों को लेकर सोचते हैं।”
पहला ब्रेक
बड़े बेटे योगेश ने जब यूपीएससी की तैयारी करने का फैसला किया तब वो नोएडा स्थित एक फर्म में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम रहे थे। उसके पास केवल एक ही प्रयास शेष था और वह इसमें कोई गड़बड़ी नहीं करना चाहते थे। उन्होंने वैकल्पिक विषय के रूप में समाजशास्त्र को चुना और दिन-रात पढ़ाई शुरू कर दी। साल 2014 में, वो यूपीएससी परीक्षा पास करते हुए रिजर्व लिस्ट से आईएएस अधिकारी के रूप में चयनित हुए।
योगेश की इस सफलता ने उनकी दोनों बहनों और भाई लोकेश के लिए प्रेरणा का काम किया और अगले दो वर्षों में ही उन सभी ने यूपीएससी की परीक्षा में सफलता पा ली।
माधवी ने अपने जीवन में अपने बड़े भाई योगेश की भूमिका के बारे में बात करते हुए इंडियन मास्टरमाइण्ड्स से कहा, “वह हम सभी के लिए एक मार्गदर्शक और प्रेरणा थे। उनकी सफलता ने एक गेम-चेंजर की तरह हमारे जीवन में बड़ा बदलाव किया और कई मायनों में प्रेरित किया। उन्होंने न केवल तैयारी में हमारी मदद की बल्कि जब भी हमें कोई कमी महसूस हुई, हमारे आत्मविश्वास को भी बढ़ाया। वह एक ऐसे व्यक्ति थे जिनकी हमें हमेशा जरूरत पड़ती थी और उन्होंने भी हमें हर तरह से सहयोग दिया।”
सिविल सेवा परीक्षा पास करने वाली परिवार की दूसरी सदस्य माधवी ही थीं। माधवी ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में पोस्ट ग्रैजुएशन किया। 2015 बैच के झारखंड कैडर से देश भर में 62 वीं रैंक के साथ वो आईएएस अधिकारी बनी।
अगले साल 2016 में, लोकेश और क्षमा को भी आईएएस और आईपीएस के लिए एक साथ चुना गया। क्षमा ने हिंदी साहित्य से एमए तक की पढ़ाई की थी और कुछ साल पहले ही उनकी शादी हो गई थी लेकिन अपने पति के सहयोग से उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। सिविल सेवा परीक्षा में क्षमा ने वैकल्पिक विषय के रूप में हिंदी साहित्य को चुना। क्षमा देश भर में 172 वीं रैंक के साथ आईपीएस के लिए चुनी गईं। क्षमा के पति उत्तराखंड में जिला आपूर्ति अधिकारी हैं और वो अपनी सफलता में उनके योगदान को भी स्वीकारती हैं।
वहीं सबसे छोटे भाई लोकेश ने आईआईटी से इंजीनियरिंग की थी, इसीलिए उनका मानना है कि यूपीएससी की प्रारम्भिक और मुख्य परीक्षा के लिए रणनीति बनाने में उन्हें आसानी हुई। लोकेश ने अपने बड़े भाई की तरह मुख्य परीक्षा के लिए वैकल्पिक विषय के रूप में समाजशास्त्र को चुना और दूसरे प्रयास में 44 वीं रैंक के साथ आईएएस अधिकारी बने। उन्होंने पहले बिहार कैडर में प्रशिक्षण लिया और जिला छपरा में एसडीएम के पद पर काम किया, बाद में उन्हें झारखंड स्थानांतरित कर दिया गया।
क्षमा और लोकेश के बारे में बात करते हुए, माधवी कहती हैं, “मेरी बड़ी बहन क्षमा हमारे लिए दूसरी मां की तरह है। वह बहुत ही मददगार और परवाह करने वाली इंसान हैं। अपने कर्तव्यों के प्रति उनका समर्पण देखने लायक है, उनसे हम सब बहुत कुछ सीखते हैं। वहीं भाई लोकेश बहुत अलग है। वह सबसे छोटा है लेकिन हम सबमें सबसे शांत और शिष्ट व्यक्ति है।”
पिता सब के आदर्श
यह पूछे जाने पर कि उन्होंने सिविल सेवा को क्यों चुना, माधवी ने कहा, “इसकी मुख्य वजह हमारे पिता हैं। उन्होंने कभी भी बिना कोई लेक्चर दिए हमें अच्छी या बुरी चीजों के बारे में प्रेरित किया है। उन्होंने बस अपना जीवन जिया और एक मिसाल कायम की। हम सभी उन्हें अपना आदर्श मानते हैं और उनकी आंखों में चमक देखना चाहते हैं।”
वहीं गर्व से भरे और बेहद विनम्र अनिल मिश्रा कहते हैं, “बच्चों कि सफलता का श्रेय उनके शिक्षकों को जाता है। मेरे बच्चों ने जितना मैंने सोचा था, उससे कहीं अधिक हासिल किया है। लेकिन अभी यह अंत नहीं है। सबसे कठिन यात्रा तो अब शुरू हुई है। उन्हें हर उस स्थिति में खुद को साबित करना होगा जो उन्हें सौंपी गई है। मैं वास्तव में खुश हूं कि वे पहले से ही उस दिशा में काम कर रहे हैं। मैं हमेशा उनसे कहता हूं कि लोग आपको सिर्फ आपके काम के लिए याद करते हैं। इसलिए ईमानदारी से अपने कर्तव्य पथ-पर डटे रहो।”
END OF THE ARTICLE