मालदा की कम्प्युटर क्रांति
- Raghav Goyal
- Published on 20 Sep 2021, 11:44 pm IST
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हाइलाइट्स
- पश्चिम बंगाल के एक बेहद पिछड़े जिले मालदा में ‘कंप्यूटर कोडिंग’ सिखाकर 300 से अधिक युवा लड़कियों के जीवन को बदलने वाले एक आईएएस अधिकारी की कहानी।
- सहायक कलेक्टर नवीन चंद्रा द्वारा शुरू की गयी एक परियोजना इलाके के सरकारी स्कूलों में छात्राओं को कंप्यूटर की ‘कोडिंग और प्रोग्रामिंग’ की विशेष शिक्षा प्रदान कर रही है।
- ‘प्रोजेक्ट मैजिक- मालदा गर्ल्स गो कोडिंग’ शुरू करने के समय शिक्षकों और छात्रों के साथ सत्र लेते हुए सहायक कलेक्टर नवीन चंद्रा
अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित सिलिकॉन वैली की तर्ज पर पश्चिम बंगाल के मालदा क्षेत्र में एक नई सिलिकॉन वैली तैयार करने का आइडिया कैसा है…! अगर यह विचार आपको हंसने के लिए मजबूर कर रहा है तो रुकिए… और एक बार फिर से सोचिए। क्योंकि मालदा में तैनात एक युवा आईएएस अधिकारी ने यह कर दिखाया है। उन्होंने साबित कर दिया है कि अगर सच्चे दृढ़-संकल्प के साथ इरादे बुलंद हो तो सब कुछ हासिल किया जा सकता है। सहायक कलेक्टर नवीन कुमार चंद्रा द्वारा शुरू की गयी एक परियोजना इलाके के सरकारी स्कूलों में छात्राओं को कंप्यूटर की ‘कोडिंग और प्रोग्रामिंग’ की विशेष शिक्षा प्रदान कर रही है।
यह अनोखी पहल भारत से लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका तक बहुत तेजी से लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही है। दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन ‘गूगल इंक’ ने भी इस प्रोजेक्ट की तारीफ करते हुए इसके साथ साझेदारी की है। मालदा जैसी जगह के लिए आर्थिक रूप से यह बड़ी खबर है क्योंकि इससे पहले मालदा का देश की इकॉनमी में एक मात्र योगदान आमों की खेती के रूप में था, वह भी सिर्फ साल में केवल तीन महीने के लिए।
लेकिन अब सब कुछ बदल रहा है। 2018 बैच के पश्चिम बंगाल कैडर के आईपीएस अधिकारी नवीन कुमार चंद्रा जब तक मालदा में रहे, जिले की काया पलट करने में जीजान से जुटे रहे। ‘मालदा गर्ल्स गो कोडिंग’ टैगलाइन के साथ शुरू की गई उनकी योजना के तहत जिले के 2 गांवों की 40 लड़कियों को कंप्यूटर कोडिंग सिखाई जा रही है।
वर्तमान में मुर्शिदाबाद जिले के कांडी शहर में एसडीएम के रूप में कार्यरत नवीन कुमार नेइंडियन मास्टरमाइंड्स की टीम से बात करते हुए बताया कि यह योजना छात्रों को कंप्यूटर विज्ञान के क्षेत्र में उच्च शिक्षा के प्रवेश द्वार खोलने में मदद करेगी। यह योजना व्यापक रूप से कई अन्य मुद्दों पर भी काम कर रही है जिसका उद्देश्य बाल-विवाह समाप्त करना और जिले में महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देना भी है।
पश्चिम बंगाल के सबसे पिछड़ें जिलों में शामिल मालदा एक ऐतिहासिक शहर है, जिसकी पहचान प्रमुख रूप से विविध प्रकार के आमों की खेती से जुड़ी हुई है। लेकिन यहां किशोरावस्था में ही लड़कियों की जल्द से जल्द शादी कर देने की कुख्यात परंपरा का भी चलन है। इसे खत्म करने और महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से जिले के सहायक मजिस्ट्रेट व सहायक कलेक्टर और आईआईटी रुड़की से एम. टेक किए हुए नवीन कुमार ने लड़कियों को कोडिंग सिखाने के प्रोजेक्ट की शुरुआत की। नवीन ने अपनी इस योजना से इलाके की लड़कियों की जिंदगी में बड़े बदलाव की इबारत लिख दी।
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) मीडिया लैब द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर ‘स्क्रैच’ और ‘सीएस50 कोर्स’ पाठ्यक्रम के तहत मालदा की छात्राओं को पढ़ाया जा रहा है। ‘सीएस50 कोर्स’ वही पाठ्यक्रम है जो हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रथम वर्ष के स्नातकों को पढ़ाया जाता है। नवीन को उम्मीद थी कि कोडिंग लर्निंग टूल से छात्राएं विभिन्न प्रोग्राम बनाएंगी और इससे उन्हें विभिन्न कहानियों, गेम और एनिमेशन बनाने में सहायता मिलेगी।
‘प्रोजेक्ट मैजिक – मालदा गर्ल्स गो कोडिंग’
इस प्रोजेक्ट की शुरुआत कैसे हुई, यह भी जानना दिलचस्प है। नवीन के अनुसार, मालदा में अपनी पोस्टिंग के बाद अधिकारियों के साथ बातचीत करते हुए उन्हें इस अभूतपूर्व कार्य को शुरू करने का खयाल आया था।
नवीन कहते हैं, “मेरी यहां तैनाती के बाद मुझे यह विचार आया और मैंने मालदा के बारे में पढ़ना शुरू किया। एक चीज जिसने मुझे बुरी तरह परेशान कर दिया कि यहां बाल-विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों की प्रथा अभी भी प्रचलन में थी। थोड़ा और अध्ययन करने पर मुझे महसूस हुआ कि कई कदम उठाए जाने के बाद भी इस बुराई के खिलाफ नए और व्यवहारिक समाधानों की कमी है। तभी मैंने यहां के सबसे बड़े मुद्दे रोजगार की कमी को लेकर कुछ करने का फैसला किया। हमने उन्हें रोजगारपरक स्किल्स प्रदान करने का फैसला किया और इस तरह इस प्रोजेक्ट का जन्म हुआ।”
इस प्रोजेक्ट की शुरुआत युवा महिलाओं को बेहतर आजीविका के अवसर प्रदान करने, उन्हें आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने और बाल-विवाह जैसी सामाजिक बुराई का विरोध करने के उद्देश्य से हुई थी। शुरुआत में, दो स्कूलों के 2 हेडमास्टर्स और कुछ शिक्षकों को चुना गया था जो प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने जा रहे थे। भावी छात्रों और शिक्षकों के समूह के बीच बैठकें और सेमिनार आयोजित किए गए जहां प्रोजेक्ट के बारे में सब कुछ बताया गया। इसके बाद योग्य लोगों को चुनने के लिए परीक्षा आयोजित की गई, जिसमें से 25 लड़कियों का चयन किया गया।
नवीन कुमार के अनुसार इस प्रोग्राम की पढ़ाई कोई भी कर सकता है। यहां अध्ययन करने के लिए कोई उम्र सीमा नहीं है। नवीन कहते हैं, “एमआईटी मीडिया लैब द्वारा विकसित किए गए सॉफ्टवेर और टूल सभी के लिए खुले हैं, कोई भी इसका उपयोग कर सकता है। यह कोर्स उन लोगों के लिए भी है जिनके पास इस क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं है और वे बिलकुल नए हैं। इसके लिए उम्र भी कोई मायने नहीं रखती क्योंकि यह बहुत बुनियादी ज्ञान से शुरू होता है और इसे किसी को भी सिखाया जा सकता है।”
“एक और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि यहां लड़कियों को उनकी क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाया जाता है जिससे उन्हें कुछ भी समझने में कोई कठिनाई न हो। टूल्स में पूर्व-लिखित कोड होते हैं, जिन्हें छात्रों को बस ड्रैग और ड्रॉप (खींचना और छोड़ना) होता है। इसका उपयोग ज्यादातर कोडिंग को समझने के लिए किया जाता है। जब लड़कियां इसे सीखने में सफल हो जाती हैं, तो वे एचटीएमएल (HTML- कोडिंग की भाषा) भाषा सीखने के अगले चरण में पहुंच जाती हैं। हालांकि जिन लड़कियों के साथ हमने प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी वे पहले से ही एचटीएमएल में प्रशिक्षित थीं। लेकिन छात्रों का नया बैच इस टूल का उपयोग कर रहा है।”
छात्र सप्ताह के दिनों में अपने स्कूल जाते थे और प्रोजेक्ट की पढ़ाई सप्ताह के अंत मे छुट्टियों के दिन होती थी। शनिवार के दिन, गुरुग्राम से एक ऑनलाइन क्लास का लाइव आयोजन किया जाता था, जबकि प्रत्येक रविवार को एक प्रैक्टिस क्लास आयोजित की जाती थी। धीरे-धीरे बच्चों ने अपने स्किल्स (कौशल) विकास के साथ-साथ कंप्यूटर प्रोग्रामिंग पर भी पकड़ मजबूत कर ली।
मुश्किलों से लड़कर जीतना
इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को शुरू करने में किन समस्याओं का सामना करना पड़ा? इंडियन मास्टरमाइंड की टीम के इस सवाल पर नवीन कहते हैं, “कुछ समस्याएं हमेशा होती हैं। इस प्रोजेक्ट में हमारा लक्ष्य युवा लड़कियां थीं। सबसे कठिन काम था कि लड़कियों को स्कूल के वक्त के अलावा किसी और समय पर स्किल सीखने के लिए मनाना। कई बार और कई जगहों पर उनके माता-पाता को भी मनाना पड़ा। लेकिन हमने सेमिनार, स्कूल के शिक्षकों और इलाके के प्रभावशाली लोगों की मदद से इस समस्या को दूर कर लिया।”
नवीन को इस प्रोजेक्ट में उनके वरिष्ठ सहयोगियों की भी सहायता मिली। मालदा के जिला मजिस्ट्रेट राजर्षि मित्रा ने विशेष रूप से उनका मार्गदर्शन किया। नवीन साफ तौर पर कहते हैं कि अकेले ऐसा करना लगभग असंभव था। वरिष्ठों का समर्थन मेरे लिए निरंतर बना रहा। मित्रा जी हमेशा मेरी मदद करने के लिए मौजूद रहे। यहां तक कि मैं अपनी समस्या लेकर उनके पास आधी रात को भी जा सकता था।
गूगल कनेक्शन
प्रोजेक्ट की शुरुआत भले ही 30-40 छात्राओं के एक छोटे बैच के साथ हुई थी, लेकिन नवीन कुमार बड़े पैमाने पर जागरूकता फैलाना चाहते थे और कुछ ऐसा करना चाहते थे जिसका बड़ा प्रभाव पड़े। इसीलिए लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन (एलबीएसएनएए) में अपने ट्रेनिंग के दिनों से सीखी हुई बहुत सी बातों को उन्होंने अपने प्रोजेक्ट में लागू किया। इन्हीं में से एक था, बड़े कॉरपोरेट घरानों से एक बेहतर निमित्त के लिए मदद मांगना।
इस विचार ने उन्हें अपना खुद का लिंक्डइन प्रोफाइल बनाने और गूगल के वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने प्रोजेक्ट के बारे में बनाई गई वेबसाइट का लिंक साझा किया। नवीन कुमार याद करते हुए बताते हैं, “मैंने अमेरिका में गूगल के अधिकारियों से संपर्क किया और उन्हें इस पूरे प्रोजेक्ट के बारे में बताया। इस संबंध में मैंने एक मेल भेजा और उन लोगों ने गूगल इंडिया के अधिकारियों के जरिये मुझसे संपर्क किया। इसके बाद मुझे ‘गूगल फॉर एजुकेशन’ के साथ मिलकर काम करने का मौका मिला। ‘गूगल फॉर एजुकेशन’ हमेशा से इस तरह की पहल की तलाश में रहता है और ‘कोडिंग और प्रोग्रामिंग’ को बढ़ावा देता है।”
इसके बाद गूगल एक सर्टिफिकेशन और ट्रेनिंग प्रोग्राम (प्रमाणन और प्रशिक्षण) के साथ आगे आया। इसके तहत कोर्स को सफलतापूर्वक पूरा करने वाले छात्रों को गूगल द्वारा सर्टिफिकेट दी जाने की व्यवस्था की गई। साथ ही गूगल ने प्रोजेक्ट से जुड़े हुए मालदा के सभी शिक्षकों को प्रशिक्षित करने की भी पहल की और उन्हें सर्टिफिकेट भी दिया। इससे शिक्षकों और छात्रों दोनों को सीखने का मौका मिला और उनके अनुभव में चार चांद लगे।
इस तरह के नवीन उपायों से महिलाओं के जीवन में कितना बदलाव आया है? इस बारे में बोलते हुए नवीन कुमार कहते हैं, “इस पर अभी ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता और इस नजरिए से यह परियोजना अभी भी अपने शुरुआती स्तर पर है। लेकिन निश्चित रूप से इस प्रोजेक्ट से लड़कियों में आत्मविश्वास बढ़ा है। उनकी महत्वकांक्षा बढ़ी है और उनमें से ज्यादातर अब कॉलेज में पढ़ाई करने और इंजीनियरिंग और अन्य कोर्स करने के लिए तैयार हैं।”
सबसे बड़ी बात यह है कि इस परियोजना ने अन्य नौकरशाहों की दूर-दृष्टि बढ़ाने में मदद की और उन्हें इस बात के लिए प्रेरित किया कि समाज में ऐसे मूलभूत मुद्दों पर एक बेहतर मॉडल के साथ काम किया जाए तो चीजें बेहतर हो सकती हैं। शायद इसीलिए इस प्रोजेक्ट को हर जगह सराहा भी गया है।
यह पूछे जाने पर कि क्या वह अन्य क्षेत्रों में भी इस परियोजना को दोहराएंगे? नवीन कहते हैं, “हां, बिल्कुल, यह पहले से ही कुछ जगहों पर दिखने लगा है। मेरे बैच के साथियों ने इसे अपने जिलों में ले जाने के लिए मदद मांगी है। साथ ही मेरे कुछ वरिष्ठों ने भी कहा है कि इसे अन्य जगहों पर भी लागू करना चाहिए। यह मेरे लिए बहुत बड़ा ईनाम है। अब मालदा में भी इस प्रोजेक्ट का विस्तार किया जा रहा है। मुझे उम्मीद है कि आने वाले कई सालों में यह लोगों के जीवन में बेहतर बदलाव लाता रहेगा।”
ये अनोखी परियोजना मुख्य रूप से उस विश्वास की वजह से आगे बढ़ी, जिसके साथ नौकरशाह अपने काम की शुरुआत करता है। नवीन कुमार खुद कहते हैं, “मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि इस प्रोजेक्ट में हमारी अपील का सबसे बड़ा केंद्र बिंदु यह है कि हम जो स्किल्स सामने ला रहे थे, वह मालदा जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में छात्रों के अंदर कहीं छुपी हुई है। ग्रामीण भारत में शायद ही कभी लोगों को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के बारे में जानने का मौका मिला हो। हम जिस स्किल्स को बढ़ावा दे रहे हैं, वह भविष्य है। अब सभी देश आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तरफ बढ़ रहे हैं और शायद भविष्य इसी का होने वाला है। मालदा जैसे टियर 3 शहरों में यह सब करना दिखाता है कि वास्तव में चीजें जमीनी स्तर पर की जा रही हैं। बस विश्वास और हौसले की जरूरत है।
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