सपने देखे और सफलता को नए सिरे से परिभाषित करने की हिम्मत दिखाई, मिलिए आईएएस आरती डोगरा से!
- Pallavi Priya
- Published on 25 Oct 2021, 10:02 am IST
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हाइलाइट्स
- 2006 बैच के राजस्थान कैडर की इस आईएएस अधिकारी ने साबित किया है कि आपकी हाइट कभी भी आपकी सफलता की राह में नहीं आ सकती
- साथ ही जो चीज आपको कमजोर लगती हो, उसे ही अपनी ताकत बना लो
- वो इस देश के लाखों लोगों के लिए एक ऐसी प्रेरणा हैं, जिसने अपने जज्बे से हर कठिनाई को छोटा बना दिया
- बच्चों के साथ आईएएस आरती डोगरा (क्रेडिट: सोशल मीडिया)
यदि आप खुद पर और अपने सपनों पर विश्वास करते हैं, तो त्वचा की रंगत, ऊंचाई और शरीर के प्रकार और खूबसूरत नैन-नक्श जैसे परिपूर्णता के सामाजिक मानक आपको अपनी सफलता की कहानी लिखने से रोक नहीं सकेंगे। राजस्थान कैडर की 2006 बैच की आईएएस अधिकारी आरती डोगरा ने अपनी दृढ़ता और सफलता के शिखर पर पहुंचने की क्षमता और लगन से यह फिर से साबित कर दिया है।
आरती की हाइट यानी लंबाई मात्र 3 फुट और 2 इंच है, जो कि भारत की महिलाओं की औसत लंबाई से भी बहुत कम है। लेकिन आरती की नजर में उनकी लंबाई कभी भी बाधा नहीं थी, हालांकि इसकी वजह से जीवन की कुछ प्रत्यक्ष बाधाओं के बावजूद, आरती ने भारत की सबसे प्रतिष्ठित और कठिन परीक्षा यूपीएससी उत्तीर्ण की, और अपने अभिनव अभियानों और ‘बुनको बिकानो’ जैसे मिशन के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से भी प्रशंसा प्राप्त कर चुकी हैं।
अपने मूल कैडर राजस्थान के कई जिलों में सफलतापूर्वक सेवाएं देने के बाद, डोगरा वर्तमान में राज्य के मुख्यमंत्री की संयुक्त सचिव के रूप में सेवारत होकर, उनकी एक विश्वसनीय अधिकारी बनी हुई हैं।
प्रारंभिक संघर्ष
डोगरा अब भले ही एक बहुत ही सक्रिय और मेहनती अधिकारी के रूप में जानी जाती हैं, लेकिन उनके लिए यह यात्रा कभी भी आसान नहीं रही। उनका जन्म देहरादून में हुआ था, उनके पिता राजेंद्र डोगरा भारतीय सेना में कर्नल और उनकी मां कुमकुम एक स्कूल में प्रिंसिपल हैं। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं। उसके माता-पिता को डॉक्टरों ने उसके जन्म के समय बताया था कि वह सामान्य शारीरिक विकास नहीं कर पाएंगी, उन्होंने सलाह दी कि आरती को दिव्यांग बच्चों के लिए संचालित विशेष स्कूलों में भेजें। लेकिन आरती के माता-पिता ने डॉक्टरों की सलाह को किनारे रख, समाज के तानों को अनदेखा कर दिया। उन्होंने आरती की बेहतरी के अलावा कभी भी किसी और चीज के बारे में नहीं सोचा और जीवन के हर पड़ाव पर उनका साथ दिया।
डोगरा के माता-पिता ने उन्हें देहरादून के प्रतिष्ठित ‘वेल्हम गर्ल्स स्कूल’ में भर्ती कराया। उनके माता-पिता ने न केवल उनकी शिक्षा का समर्थन किया, बल्कि उन्हें खेल और सह-पाठयक्रम गतिविधियों के लिए भी खूब प्रोत्साहित किया। अपना स्कूल पूरा करने के बाद, डोगरा दिल्ली आ गईं। उन्होंने आगे लेडी श्रीराम कॉलेज, डीयू से अर्थशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई पूरी की।
हालांकि, वह फिर से अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए उत्तराखंड वापस आ गईं और साथ ही उन्होंने खुद को शिक्षण कार्यों में भी शामिल कर लिया। लेकिन, उनके लिए सिर्फ मंजिल नहीं थी। उन्हें तो बड़े लक्ष्य हासिल करने थे और अपने माता-पिता को गर्व से भरना था।
एक दिन उनकी मुलाकात मनीषा पवार से हुई, जो उस समय देहरादून की कलेक्टर थीं। इस मुलाकात ने उन पर बहुत गहरा असर डाला और उन्होंने यूपीएससी की तैयारी करने का मन बना लिया। उनके कॉलेज दिनों की तरह ही, यूपीएससी की तैयारी भी उनके लिए आसान नहीं थी। उनकी लंबाई, रूप-रंग और दिखावट के लिए उनका मजाक उड़ाया जाता था, लेकिन इससे उन्होंने कभी भी उम्मीद की रोशनी नहीं खोई। वह परीक्षा को पास करने पर अपना पूरा ध्यान लगाए थीं। पढ़ाई को लेकर उनकी दृढ़ता और समर्पण व्यर्थ नहीं गया और उन्होंने अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास कर ली।
लगभग 15 वर्षों की उनकी प्रशासनिक अवधि के दौरान, उन्हें राजस्थान के अजमेर, बीकानेर और कुछ अन्य जिलों के डीसी सहित कई शीर्ष पदों पर नियुक्त किया जा चुका है। इससे पहले, उन्हें जोधपुर डिस्कॉम की प्रबंध निदेशक का पद भी सौंपा गया था। वह इस तरह के महत्वपूर्ण पद पर सेवा देने वाली पहली महिला आईएएस थीं। आरती डोगरा ने खुद को सबसे सक्षम और कुशल आईएएस अधिकारियों में से एक के रूप में स्थापित किया है और यह साबित किया है कि आपकी सफलता और सतत बेहतर कार्यों के लिए अगर कुछ मायने रखता है, तो वह है धैर्य और दृढ़ संकल्प, इन सबके बीच आपकी लंबाई, बनावट, रंग-रूप और इन पर लोगों के ताने कोई मायने नहीं रखते।
राष्ट्रपति द्वारा सम्मान प्राप्त करना और फिर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रशंसा
प्रशासन में अपने करियर की शुरुआत से ही, डोगरा ने सुर्खियां बटोरीं, पहले अपने छोटे कद के कारण और बाद में अपने प्रभावी अभियानों और बेहतरीन प्रदर्शन के कारण। बीकानेर के डीसी के रूप में, आरती ने खुले में शौच मुक्त समाज बनाने के लिए ‘बुनको बीकानो’ अभियान शुरू किया। यह स्वछता मिशन लोगों के व्यवहार और मानसिकता परिवर्तन पर केंद्रित था। यह अभियान एक बड़ी सफलता साबित हुआ, डोगरा के प्रयासों के कारण और 200 से अधिक पंचायतों में स्थानीय समुदाय की अगुवाई के साथ, जिले को ओडीएफ घोषित किया गया। उनकी इस उपलब्धि के कारण, उन्हें न केवल राज्य सरकार से नई पहचान मिली, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी उनकी सराहना की। इसके साथ ही उन्होंने अन्य योजनाओं जैसे ‘मिशन फॉर एनीमिया’ और ‘मां’ को भी लॉन्च किया।
जब वह बीकानेर की डीएम थीं, तब उन्होंने ‘डॉक्टर्स फॉर डॉटर्स’ नाम का एक प्रोग्राम लॉन्च किया, जहां उन्होंने डॉक्टरों को उनके स्वयं के अस्पतालों में पैदा हुए अनाथ, गरीब और असहाय लड़कियों को गोद लेने के लिए प्रोत्साहित किया। नतीजतन, 40 डॉक्टरों ने 40 बालिकाओं की बुनियादी शिक्षा, भोजन और उनके आश्रय की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली, और यह प्रवृत्ति अभी भी जिले में मजबूत से आगे बढ़ रही है।
कईयों के लिए प्रेरणा
अजमेर में चुनाव अधिकारी के रूप में उनकी भूमिका ने भी खूब ध्यान आकर्षित किया। दिव्यांग जनों के बीच चुनाव में उनकी भूमिका के लिए जागरूकता पैदा करने के लिए, उन्हें राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया। उनकी दिन-रात की मेहनत और उनके अंतहीन प्रयासों के परिणामस्वरूप, विशेष रूप से विकलांग नागरिकों की तारफ से रिकॉर्ड तोड़ मतदान हुआ। पिछले राजस्थान के चुनावों में लगभग 59.88% दिव्यांग मतदाता मतदान केन्द्रों पर वोट डालने के लिए निकले।
उन्होंने बूथ स्तर के अधिकारियों को सहायता प्रदान करने और मतदाताओं को उनके संबंधित बूथों पर प्रेरित करने का जिम्मा सौंपा। उन्होंने जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों में ‘दिव्यांग रथों’ की व्यवस्था की, ताकि उन्हें मतदान केंद्रों और वोट डालने में मदद मिल सके। उन्होंने मतदान प्रक्रिया के दौरान इन लोगों के सघर्षों को कम करने के लिए, प्रत्येक ग्राम पंचायत में कम से कम दो के औसत के साथ 874 व्हील चेयर सुनिश्चित कीं।
आरती डोगरा केवल लड़कियों के लिए ही नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा हैं, जो समाज के पारंपरिक ताने-बाने को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। उनके कुटुम्ब की ताकत दिन दूनी और रात चौगनी बढ़ती रहे और लोगों को ऐसे ही प्रेरणा मिलती रहे, यही दुआ है।
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