आईएएस शुभम गुप्ता की कहानी, जो आम भारतीय मध्यमवर्गीय परिवारों की दास्तां होते हुए भी बहुत खास है
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 21 Dec 2021, 10:59 am IST
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हाइलाइट्स
- 2019-बैच के आईएएस अधिकारी शुभम गुप्ता की सफलता की कहानी एक औसत भारतीय मध्यम वर्गीय लड़के की कहानी है, जो बेहद कड़ी मेहनत करता है और बड़े ख्वाब देखता है
- शुभम के लिए यह सफलता इतनी आसान नहीं थी। वह अपने चार प्रयासों के बाद यूपीएससी पास करने में सफल रहे, अपने पूरे संघर्ष के दौरान उन्होंने सपने देखना कभी नहीं छोड़ा
- जीवन में व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए, उन्होंने अपने पिता की जूते की दुकान पर भी कुछ समय के लिए काम किया, लेकिन आईएएस बनने के अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए हर जगह निरंतर पढ़ाई भी करते रहे
सफलता की कुछ कहानियां बहुत खास इसलिए भी होती हैं, क्योंकि वो आम भारतीय मध्यमवर्गीय परिवारों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन कहानियों में भले ही आपको बहुत अभाव या गरीबी न दिखे, लेकिन ये कहानियां एक आम नायक के उन संघर्षों को बखूबी बयां करती हैं जो हमारे बीच से ही निकलकर अपनी मेहनत और जुनून के बल पर कामयाबी हासिल करते हैं और लोगों के लिए प्रेरणा बन जाते हैं। ये कहानी भी एक ऐसे ही खास शख्स और 2019 बैच के आईएएस अधिकारी शुभम गुप्ता की है। शुभम ने अपने चौथे प्रयास में देश भर में 6 वीं रैंक लाते हुए टॉप किया और आईएएस बने। वो इससे पहले भी 2016 में यूपीएससी पास कर चुके थे, तब दूसरे प्रयास में उनकी 363 वीं रैंक आई थी।
शुभम ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपने पिता के कारोबार में भी हाथ बंटाया। स्थितियां चाहे जैसी रही हों, शुभम ने बहुत कम उम्र से ही समस्याओं का सामना करना सीख लिया था। इंडियन मास्टरमाइण्ड्स के साथ विस्तार से बातचीत करते हुए शुभम ने अपने जीवन के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला। वर्तमान में शुभम महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले के एटापल्ली के सहायक कलेक्टर और परियोजना अधिकारी, आईटीडीपी के रूप में कार्यरत हैं।
शुरुआत
शुभम का परिवार मूलता राजस्थान के सीकर का रहने वाला है, लेकिन बाद में वे जयपुर में आकर बस गए। शुभम एक व्यापारिक परिवार से नाता रखते हैं। उनके पिता अब एक बिल्डर हैं, जो पहले जूतों का कारोबार करते थे। साल 2007 तक शुभम और उनका परिवार जयपुर में ही रहता था। लेकिन उनके पिता को व्यापार में घाटा होने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई और उन्हें जयपुर छोड़ना पड़ा। हालांकि, स्थितियां बेहतर होते ही साल 2011 में शुभम का परिवार वापस जयपुर आ गया था।
लेकिन जयपुर छोड़ने के बाद का वक्त शुभम और उनके परिवार के लिए मुश्किलों का सफर था। सफलता और उम्मीदों की आस लिए उनका परिवार गुजरात के वापी में अपने रिश्तेदारों के पास आ गया। कुछ वक्त बाद जूतों का कारोबार शुरू किया और फिर महाराष्ट्र के पालघर जिले के तटीय कस्बे दहानु में बस गए। यहीं से शुभम के संघर्षों की यात्रा शुरू होती है, जब साल 2008 में 8वीं पास करने के बाद शुभम के सामने एक नयी मुश्किल आ खड़ी होती है।
शिक्षा
दरअसल दहानु में हिंदी और अंग्रेजी मीडियम के स्कूल नहीं थे, अधिकतर पढ़ाई मराठी में होती थी। शुभम के लिए मराठी में पढ़ाई करना बेहद मुश्किल था। इसलिए उनके पिता ने उनका और उनकी बहन का दाखिला वापी स्थित श्री स्वामी नारायण गुरुकुल में करवाया। दहानु से स्कूल लगभग 80 किमी. की दूरी पर था, इसलिए वे अपनी बहन के साथ सुबह 4.30 पर उठकर 6 बजे की ट्रेन पकड़ते थे और स्कूल से अपने घर शाम 3 बजे तक वापस आते थे। उनके पिता का मानना था कि शिक्षा ही सब कुछ है, उसके बिना जीवन कुछ भी नहीं। इसलिए उन्होंने पढ़ाई के साथ कोई समझौता नहीं किया।
शुभम भी इस बात को खूब समझते थे, इसलिए बेहद कम उम्र में इतने सघर्षों के साथ पढ़ाई पर पूरा ध्यान लगाए हुए थे। इसका असर भी दिखा, जब शुभम ने 2010 में 10 वीं की सीबीएससी बोर्ड की परीक्षा में पूरे वलसाड जिले में 10 सीजीपीए लेकर आए। शुभम ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में बीए आनर्स किया है। इसके बाद प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पीजी के लिए भी अप्लाई किया था, लेकिन यूपीएससी में सिलेक्शन के बाद छोड़ दिया।
अगली मंजिल
उधर बेटे की पढ़ाई बेहतर चल रही थी, तो इधर पिता ने भी कारोबार बढ़ाने की ठान ली। उन्होंने शुभम के स्कूल के पास ही वापी में एक जूते की दुकान खोली और उसकी जिम्मेदारी शुभम ने स्वयं ले ली। शुभम दुकान पर काम करते थे और साथ-साथ पढ़ाई भी किया करता थे। शुभम बताते हैं कि दुकान पर काम करते हुए उन्होंने कभी खुद को मालिक नहीं महसूस होने दिया। वो अधिकतर काम खुद ही करते थे, यहां तक कि कई बार माल ढुलाई भी, चाहे वो समान दुकान से बाहर पहुंचाना हो या अंदर।
यूपीएससी का ख्वाब
यूपीएससी का ख्वाब शुभम के मन में कहीं न कहीं बहुत पहले से था। वो खुद ये बात स्वीकारते हैं कि बचपन से ही उन्हें अधिकारी की नौकरी को लेकर एक आकर्षण था। उनके बड़े भाई आईआईटी से पढ़े हुए हैं और शुभम अक्सर उनसे भी यूपीएससी को लेकर जिक्र किया करते थे। लेकिन वास्तव में शुभम को यूपीएससी की प्रेरणा उनके पिता से मिली। उनके पिता अक्सर अधिकारियों से मिला करते थे और शुभम से कहते थे कि तुम भी कलेक्टर बन जाओ तो कितना अच्छा हो। अपने पिता की ये बातें शुभम का आत्मविश्वास बढ़ाती थीं और उन्हें हौसला देती थीं। शायद इसीलिए 11 वीं में आने के बाद शुभम ये तय कर चुके थे कि उन्हें यूपीएससी की तैयारी ही करनी है। फिर उन्होंने विज्ञान की जगह कॉमर्स ले लिया। बारहवीं के बाद वो दिल्ली आ गए और स्नातक के साथ ही यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी।
यूपीएससी की तैयारी
यूपीएससी की तैयारी को लेकर शुभम का नजरिया थोड़ा अलग है। उनका कहना है कि यूपीएससी की तैयारी के साथ आपको किसी से दूर जाने की या सब कुछ छोड़ने जरूरत नहीं है। पढ़ाई के साथ-साथ देश-दुनिया और बाकी चीजों से भी जुड़े रहें। शुभम सोशल मीडिया से दूर रहने, टीवी न देखने या कहीं न आने-जाने जैसी सलाह नहीं देते, बल्कि व्यावहारिक रहते हुए सभी में बैलेंस बनाकर चलने की बात करते हैं।
शुभम कहते हैं, “यूपीएससी में केवल आपके ज्ञान को नहीं परखा जाता, बल्कि आपका पूरा व्यक्तित्व और उसका विकास देखा जाता है। ओवरऑल डेवलेपमेंट देखा जाता है, आपकी पर्सनेलिटी चेक की जाती है। इस सबके लिए जरूरी है कि आसपास हो रही घटनाओं पर आप अपनी नजर बनाए रखें।”
…जब एक बार फिर से दिल टूटा
शुभम ने 2015 में पहला प्रयास दिया और उनका प्री भी नहीं पास हुआ। लेकिन 2016 में बेहतर तैयारी के साथ उन्होंने 363 वीं रैंक हासिल की और ‘भारतीय अंकेक्षण और लेखा सेवा’ (आईएएएस) में नियुक्ति ले ली। लेकिन उनका ख्वाब आईएएस बनना था, इसलिए अगले साल 2017 में फिर से परीक्षा दी। पर इस बार उनका प्री भी नहीं निकला।
शुभम कहते हैं, “अपने तीसरे प्रयास में फेल होने के बाद, मैंने यूपीएससी के सपने को छोड़ दिया था। मुझे लगा कि शायद आईएएस मेरे लिए है ही नहीं। लेकिन परिवार के समर्थन से मैं फिर उठ खड़ा हुआ और एक और प्रयास देने के लिए खुद को तैयार किया।” अबकी बार साल 2018 में अपने चौथे प्रयास में शुभम ने इंटरव्यू राउंड के लिए बहुत मेहनत की। और जब अंतिम परिणाम आए तो देश भर में छठवीं रैंक के साथ टॉपर्स की श्रेणी शामिल होते हुए शुभम आईएएस बन चुके थे।
यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए सलाह
यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए सलाह देते हुए शुभम कहते हैं, “मेरी बस दो सलाह हैं। पहली, सभी ये सोचे कि यूपीएससी परीक्षा पास करने के बाद लाइफ कैसी होगी। फील्ड में जाकर हम क्या करेंगे, इस पर विचार करें। आपके विचारों में यह स्पष्ट दिखना चाहिए कि आप सिविल सेवा में किस मकसद से आए हैं। आप सपना सिर्फ एलबीएसएनएए पहुंचना नहीं होना चाहिए, बल्कि उसके बाद क्या करेंगे ये सबसे जरूरी है। दूसरी सलाह यही है कि सिर्फ सिविल सेवा ही जीवन नहीं है। हार अंतिम सत्य नहीं है, कभी हो भी नहीं सकता। जीवन बॉक्सिंग रिंग की तरह है, लड़िए, चोट खाइए और फिर खड़े हो जाइए।”
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