जब एक शिक्षक के बेटे को एक रिक्शा चालक के बेटे से मिली प्रेरणा, आईआरएस अधिकारी की अनोखी कहानी!
- Bhakti Kothari
- Published on 4 Nov 2021, 2:15 pm IST
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हाइलाइट्स
- एक युवा आईआरएस अधिकारी की कहानी जो सिविल सेवाओं के नाम तक से डरता था।
- लेकिन एक दिन उसे दुनिया के लिए नाउम्मीदी वाली जगह से प्रेरणा मिली और उसकी जिंदगी बदल गई।
- अवध किशोर पवार - आप नहीं जानते लेकिन सच्ची प्रेरणा आपको कहीं से भी मिल सकती है
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से ताल्लुक रखने वाले आईआरएस अधिकारी अवध किशोर पवार ने हमेशा एक दिन एक ऐसा व्यक्ति बनने का सपना देखा, जिसके ख्वाब हर कोई बुनता है। जब वह छोटे थे, वह विभिन्न अधिकारियों को शहर में आते देखते और कामना करते कि एक दिन वह भी उनके जैसे बन सकें। जैसे-जैसे वह बड़े हुए, ताकत और स्थिरता की भावना, जो एक अधिकारी की सेवाओं के साथ अपने आप ही आ जाती है, उन्हें सम्मोहित करती रही। लेकिन कईयों की तरह, सिविल सेवा परीक्षाओं की भारत की सबसे कठिन और अनिश्चितताओं वाली परीक्षा जैसी एक डराने वाली आभा ने उन्हें भी घेर लिया, जिसकी वजह से वो बेहद प्रतिष्ठित यूपीएससी से कुछ वक्त के लिए दूर हो गए।
इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए, वो कहते हैं, “मेरे शहर में कोई भी पहले यूपीएससी परीक्षाओं को पास नहीं कर पाया था। यह सभी की लीग से बाहर की बात थी। मैंने अपनी आंखों के ठीक सामने बहुत से लोगों को विफल होते देखा था, जिससे मुझे भी लगा कि यह मेरे बस का नहीं है। मुझे लगा कि मैं यूपीएससी परीक्षाओं जैसी कठिन परीक्षा को कभी पास नहीं कर सकता।”
प्रेरणा की वह छोटी सी किरण
अवध इंजीनियरिंग करने के बाद मुंबई में गोदरेज जैसी प्रतिष्ठित कंपनी में एक अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी कर रहे थे। यह कार्यालय में उनकी एक सामान्य रात थी और शायद उस दिन करने के लिए उनके पास कुछ ज्यादा काम नहीं था, उन्होंने उस वर्ष यूपीएससी पास करने वाले उम्मीदवारों के लेख पढ़ने शुरू कर दिए। तभी उनके सामने कुछ ऐसा आया, जिसने उनका जीवन ही बदल दिया। उनके सामने एक कहानी थी कि कैसे एक रिक्शा चालक के बेटे ने यूपीएससी पास किया और अब एक आईएएस अधिकारी का पद प्राप्त कर लिया है, इस प्रकार उसने अपने परिवार को दुखों से बाहर निकालकर, उनके लिए एक स्थायी जीवन का मार्ग दिया।
इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए, वो कहते हैं, “मैं हमेशा इस मानसिकता में था कि केवल बेहद पढ़े-लिखे और परिपक्व लोग ही यूपीएससी निकाल पाते हैं, लेकिन जब मैंने पढ़ा कि इतनी छोटी पृष्ठभूमि से आने वाले लोग, बहुत से संसाधनों के न होने के बावजूद भी इसे पास करने में सक्षम हैं, तो मुझे वह प्रेरक बल मिल गया जो जिसकी मुझे जरूरत थी। मुझे एहसास हुआ कि अगर वे ऐसा कर सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं कर सकता?” एक हल्की सी मुस्कान के साथ वो आगे कहते हैं, “हालांकि मैं अभी भी थोड़ा संशय में था, कि मैं इसे पास कर पाऊंगा या नहीं, लेकिन मुझे इतना पता चल चुका था कि कम से कम मुझे अब इसके लिए एक कोशिश तो करनी ही होगी।”
अपनी नौकरी को अलविदा कहने के बाद चुनौतियों का सामना
अवध ने अब सिविल सेवा में जाने का मन बना लिया था। और बिना किसी बाधा के तैयारी करने के लिए, गोदरेज में अपनी अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी से विदाई लेना आवश्यक था। लेकिन स्थिरता वाले जीवन और आय को अलविदा कहने का अपना नुक्सान भी है। उन चुनौतियों के बारे में बात करते हुए जिनका सामना उन्हें करना पड़ा, वो कहते हैं, “मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखता हूं और मेरे पिता ने अपना अधिकांश पैसा मुझे शिक्षित करने और इंजीनियर बनाने में खर्च किया था। मेरे पास एक स्थायी नौकरी थी और अच्छा पैसा था, इसलिए जब मैंने उन्हें सिविल सेवाओं के लिए नौकरी छोड़ने और तैयारी करने के अपने फैसले के बारे में बताया, तो वह मुझे ऐसा करने देने के लिए तैयार नहीं थे। हालांकि उनकी चिंताएं भी सही थीं। मुझे उन्हें समझाने के लिए बहुत कोशिश करनी पड़ी।”
दूसरी चुनौती जिसका वो सामना करने वाले थे, वह था अनिश्चितताओं का दौर जिसे यूपीएससी अपने साथ लेकर चलता है। अवध कहते हैं, “कोई भी निश्चित नहीं हो सकता है कि वह परीक्षाओं को पास कर पाएगा या नहीं। मैं ऐसे लोगों को जानता था जो कई प्रयासों के बाद भी असफल रहे थे। स्थायी नौकरी छोड़ने और घर पर बैठ कर तैयारी करने में एक बड़ा जोखिम था, लेकिन मुझे लगता है, मुझे यह करना ही था।”
लेकिन जो सबसे बड़ी बाधा थी, वह थी फंड यानी पैसे की। वो बताते हैं, “मेरे पिता एक शिक्षक थे और 6 वें वेतन आयोग के बाद ही उनका वेतन बढ़ा था, लेकिन 2005-2010 के आसपास शिक्षकों का वेतनमान बहुत अधिक नहीं था। उनके पास कोई बचत नहीं थी, क्योंकि उन्होंने अपना सारा पैसा मुझे शिक्षित करने में खर्च कर दिया था। इसलिए मैं निश्चित रूप से उनसे कुछ और नहीं मांग सकता था। मुझे गोदरेज में अपनी नौकरी से अपनी सारी बचत का इस्तेमाल करना था।”
हिंदी मीडियम पृष्ठभूमि से आने के कारण, उनके लिए अध्ययन सामग्री प्राप्त करना भी बहुत मुश्किल था, क्योंकि उनमें से अधिकांश अंग्रेजी में उपलब्ध थी। वो कहते हैं, “मैंने तैयारी के लिए गुणवत्तापूर्ण और बेहतर किताबों और अध्ययन सामग्री खोजने में बहुत समय गंवा दिया। इसके अलावा हर बार मुख्य परीक्षा पास करना, लेकिन इंटरव्यू लेवल से बाहर होना भी एक और बड़ा दर्द था।”
एक बार अपना मन बना लेने के बाद, कभी भी हार नहीं माननी है। अब यही उनका फलसफा बन चुका था, अवध ने यूपीएससी के लिए चौथी बार प्रयास किया, लेकिन फिर कोई फायदा नहीं हुआ। पर वो बहुत मशहूर हिन्दी कहावत है, “करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात ते, सिल पर पड़त निसान।” अर्थात् कुएँ के पत्थर पर बार-बार रस्सी को खींचने से निशान पड़ जाते हैं, इसी प्रकार बार-बार अभ्यास करने से हर कार्य सफल हो सकता है। अंततः साल 2015 में, अवध ने भी अपने पांचवें प्रयास में देश भर में 657 वीं रैंक के साथ यूपीएससी का किला फतह कर लिया।
तैयारी की रणनीति
अवध ने हमें बताया कि यूपी और बिहार के उम्मीदवारों की तुलना में, उसके पास ज्यादा लिंक नहीं थे। और इस प्रक्रिया के बारे में अधिक जानने के लिए, वह यूपीएससी टॉपर्स के साक्षात्कार पढ़ते थे। वह अपनी तैयारी की रणनीति उसी आधार पर बनाते थे। यहां तक कि उन्होंने अपने कोचिंग शिक्षकों के शिक्षाओं का ईमानदारी से पालन किया।
वो इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहते हैं, “समस्या यह है कि यदि किसी को शुरुआत से ही सही मार्गदर्शन नहीं मिलता है, तो उसके शुरुआती 2 या 3 प्रयास व्यर्थ ही जाते हैं, ठीक उसी तरह! मुझे भी इसका सामना करना पड़ा। मेरे पास एकमात्र सकारात्मक चीज यह थी कि मैं हमेशा किसी भी तरह से साक्षात्कार स्तर तक पहुंचने में कामयाब रहा, और इसलिए मैंने वहां कई अच्छे दोस्तों को बना लिया। मैं इन दोस्तों के साथ रहा और उन्होंने मेरा पूरे समय मार्गदर्शन किया। उनकी निरंतर प्रेरणा ने मुझे बहुत मदद की। उन लोगों के लिए, जो उचित कोचिंग नहीं पा सकते हैं, इनसाइट्स, विजन आईएएस और म्रूनाल (mrunal.org) जैसे ऑनलाइन पोर्टल ने अध्ययन करने के लिए उचित अनुपूरक प्रदान किए।”
आज के युवाओं के लिए एक संदेश
आज के युवाओं के लिए संदेश देते हुए, अवध का कहना है कि धैर्य आपकी सबसे बड़ी प्राथमिकता होना चाहिए। वो कहते हैं, “अधिकतर बार ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले युवा, बड़े और विकसित शहरों से आने वाले इच्छुक उम्मीदवारों के मुकाबले हीन भावना से भर जाते हैं और पीछे हो जाते हैं। लेकिन यह आपकी पृष्ठभूमि नहीं है जो आपको सिविल सेवाओं में पास कराती है, बल्कि आपकी कड़ी मेहनत और धैर्य है जिसकी मदद से आप सब हासिल कर सकते हो। उम्मीद का दामन कभी मत छोड़ो। मजबूत नींव बनाओ और प्रयास दर प्रयास करते रहो। आप सैकड़ों लोगों के साथ लाइन में हैं और आपको यह साबित करना होगा कि आप सर्वश्रेष्ठ हैं। अच्छी किताबें खरीदें, अच्छे दोस्त बनाएं जो आपको प्रेरित कर सकें और आपका मार्गदर्शन कर सकें।”
वह आगे कहते हैं, “स्मार्ट और कड़ी मेहनत ही सफलता की कुंजी है। खुद को शांत रहें और धैर्यचित रहें, आप एक दिन यह प्राप्त कर लेंगे!”
जी हां, निश्चित रूप आपको मीलों जाना है…, बस हौसला रखिए…।
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