ढाई साल के बच्चे से दूर रहकर और लाखों की नौकरी छोड़ आईएएस अफसर बनने वाली मां
- Raghav Goyal
- Published on 23 Sep 2021, 12:41 am IST
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हाइलाइट्स
- आईएएस अधिकारी अनु की दिलचस्प प्रेरणादायक कहानी, यूपीएससी की तैयारी के लिए अपने ढाई साल के बच्चे से दूर रहकर की तैयारी।
- तैयारी के लिए लाखों की कार्पोरेट की नौकरी छोड़ दी, शादीशुदा जिंदगी और परिवार में तालमेल भी बिठाया। आखिर में वो सब हासिल किया जिसके सपने देखे।
- अनु को केरल कैडर (2018 बैच) मिला है और वो उप-जिलाधिकारी के रूप में केरल राज्य में कार्यरत हैं।
- अपने पति और बेटे वियान के साथ अनु
सफलता का रास्ता कभी भी बिलकुल सीधा-सादा नहीं होता, इस रास्ते से गुजरने की चाहत रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को बेतहाशा चुनौतियों, जटिल परिस्थितियों और अवसरों का सामना करता होता है। 2017 की यूपीएससी परीक्षा में देश भर में दूसरी और महिलाओं में पहली रैंक हासिल करने वाली अनु कुमारी की कहानी कुछ ऐसी ही है।
यह अधिकांश मध्यवर्गीय परिवारों की अपरंपरागत बुद्धिमत्ता और उपलब्ध वित्तीय सुविधाओं के विपरीत जाकर हासिल की गयी सफलता है। यह कहानी आदर्श पालन-पोषण के बारे में बनाई गयी सदियों पुरानी धारणाओं को भी सिरे से खारिज करती है। एक कामकाजी महिला, एक पत्नी और एक मां होकर भी अनु की यह सफलता की यात्रा कई मायनों में अनोखी और प्रेरणादायक है। उनकी कहानी सुनकर किसी को भी यह एहसास हो जाता है कि अधिकांश लोग वास्तव में अपने जीवन के विभिन्न हिस्सों में इन स्थितियों से गुजरते हैं। लेकिन अनु की तरह उनके पास इन स्थितियों को अपनी सफलता में बदलने वाले साहस और दृढ़-विश्वास की कमी होती है।
शुरुआती दिन
दिल्ली की सीमा से लगे हुए हरियाणा के सोनीपत शहर की रहने वाली अनु का जन्म गांव में हुआ, लेकिन वह पली-बढ़ी शहर में। 12 वीं की पढ़ाई के बाद उन्होंने भारत के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में से एक दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज के नॉर्थ कैम्पस में बी. एससी. में दाखिला ले लिया। अनु को चुनौतियां और अवसर हमेशा साझे में मिले। उनका प्रवेश उच्च स्तर के शिक्षण संस्थान में तो हो गया था, लेकिन अब उन्हें हर दिन अपने घर से कॉलेज जाने के लिए लोकल ट्रेन से 90 किलोमीटर का सफर करना पड़ता था।
इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए अनु कहती हैं, “हर रोज इस तरह की यात्रा करना मेरे लिए बहुत कठिन था और मैं बहुत थक जाती थी। कुछ दोस्त जरूर साथ होते थे, जिससे सहारा मिलता था और बोरियत कम होती थी। इसके साथ ही, अलग-अलग क्लासेस के बीच में भी बहुत अंतर रहता था, मसलन एक सुबह 9 बजे से है तो दूसरी 2 बजे शुरू होती है। वे दिन आसान तो बिलकुल नहीं थे।”
अनु एक ठेठ मध्यम वर्गीय परिवार से आती हैं। अन्य मध्यम वर्गीय घरों की तरह ही, उनका भी अधिकांश समय किसी तरह से गुजारा करने के लिए कमाने में लगा हुआ था। उनके पिता बलजीत सिंह एक अस्पताल के एचआर विभाग में छोटी नौकरी करते थे, वहीं उनकी मां परिवार की कमाई बढ़ाने के लिए भैंस पालन का काम करती थीं। उनकी मां घर के सभी कार्यों से लेकर दूध दुहने और गोबर के उपले पाथने तक का काम खुद ही करती थीं। उनकी घर की छत पर उपलों के ढेर लगे रहते थे और वहीं अनु एक कोने में पढ़ाई किया करती थीं। शायद यहीं से अनु को हर विपरीत परिस्थितियों में एक महिला के संघर्ष करने की क्षमताओं का अंदाजा हुआ। और जीवन में संघर्ष तो खूब थे ही, साथ ही पैसों की तंगी भी। लेकिन बलजीत सिंह के परिवार ने इस तंगी को अपनी बेटी के शिक्षित होने और अधिकारी बनने के ख्वाबों के आड़े नहीं आने दिया।
अनु कहती हैं, “मैंने कक्षा 10 में 89 फीसदी और कक्षा 12 में 91 फीसदी अंक गणित और जीव विज्ञान दोनों विषयों के साथ पाए। मुझे डांसिंग और पेंटिंग का शौक था और इसीलिए स्कूल में पाठ्येतर गतिविधि (एक्स्ट्रा-करिकुलर एक्टिविटीज) में भी हिस्सा लेती थी। मेरी इंग्लिश बेहतर नहीं थी, लेकिन मैंने इसे सुधारने के लिए खूब मेहनत की, खासकर दिल्ली आने के बाद।” बड़ी संख्या में नौकरशाह देने वाले हिंदू कॉलेज में प्रवेश पाने के बाद अनु का आत्मविश्वास अब सातवें आसमान पर था। लेकिन असल चुनौतियां अभी भी कुछ साल दूर थीं।
प्राथमिकताओं को तरहीज
अनु ने 2006 में स्नातक की पढ़ाई पूरी की और उच्च-शिक्षा को लेकर योजनाएं बनाने लगीं। वो कहती हैं, “उस वक्त हिंदू कॉलेज में प्लेसमेंट के लिए बहुत सारी कंपनियां नहीं आती थीं, इसलिए मैं हंसराज कॉलेज में प्लेसमेंट के लिए गई। मुझे विप्रो की ओर से एक नौकरी का प्रस्ताव भी मिला, लेकिन उस वक्त मैं एमबीए करने के बारे में भी सोच रही थी और तभी मुझे आईएमटी, नागपुर में एमबीए (फाइनेंस) में प्रवेश मिल गया। मुझे पहली बार घर से दूर जाना पड़ रहा था।”
2008 में अपनी मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद अनु ने मुंबई में आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड कंपनी में नौकरी कर ली। वहां उन्होंने दो साल से अधिक समय तक काम किया। 2012 में, वह गुरुग्राम में शिफ्ट हो गईं और फिर उनकी शादी हो गई। उन्होंने लगभग नौ साल तक निजी क्षेत्र में नौकरी की और इस बीच वह एक प्यारे से बच्चे वियान की मां बन चुकी थीं।
साल 2016 में जब यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा-2015 का परिणाम घोषित हुआ, तो टीना डाबी ने अपने पहले ही प्रयास में परीक्षा में टॉप किया। इस खबर के बाद, यहीं से चीजें एक अलग दिशा में जाने लगीं। अनु के छोटे भाई ने उनकी वास्तविक क्षमताओं को महसूस किया और उन्हें बिना बताए ही यूपीएससी 2016 की प्रारंभिक परीक्षा के लिए फॉर्म भर दिया। उसने अनु से नौकरी छोड़ने और सिविल सेवाओं की तैयारी शुरू करने का आग्रह किया। जैसा कि कहावत है कि अगर कोई ईमानदारी से किसी लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ता है, तो अप्रत्याशित रूप से हर तरफ से मदद मिलने लगती है। अनु के साथ भी ऐसा ही हुआ, उनके यूपीएससी के फॉर्म भरे जाने के बाद उनके मामा ने उन्हें परीक्षा की तैयारी के लिए आर्थिक सहायता देने तक की पेशकश की, वो भी परीक्षा सफलतापूर्वक पास होने तक। हालांकि अनु उस वक्त बेहतर कमा रहीं थीं और लाखों रुपए उनकी सैलरी थी, लेकिन इस सबसे अनु में आत्मविश्वास की एक नई लहर उठने लगी।
वो कहती हैं कि मैंने एक अच्छी नौकरी छोड़ने के बाद सीधे अपने पिता को फोन किया और उन्हें बताया कि मैं सिविल सेवाओं की तैयारी करने जा रही हूं। उन्होंने भी खुशी-खुशी मेरे फैसले का समर्थन किया। अनु आगे कहती हैं कि उन्हें खुदपर भरोसा था कि अगर यूपीएससी नहीं भी पास कर पाई तो भी शिक्षक की नौकरी या कुछ और बेहतर कर लूंगी।
बच्चे की परवरिश
नौकरी छोड़ना यूपीएससी की तरफ पहला कदम था। लेकिन दूसरा और सबसे मुश्किल, अनु के लिए अपने ढाई साल के बेटे वियान को संभालने का तरीका खोजना था। क्योंकि अब उन्हें बिना किसी खलल के पढ़ाई के लिए अधिक वक्त की जरूरत थी। उन्होंने महसूस किया कि अपने बेटे के साथ बिता रहे वक्त की वजह से उनकी तैयारी प्रभावित हो रही है। इसलिए प्रारम्भिक परीक्षा में उपस्थित होने से पहले वह अपनी मां के घर से लगभग 20 किलोमीटर दूर अपनी मौसी के यहां शिफ्ट हो गई और बेटे वियान को अपनी मां के यहां ही छोड़ दिया।
यह किसी को भी बहुत अजीब लग सकता है, लेकिन अगर अनु को प्रीलिम्स में बेहतर करना था तो यह जरूरी था। वह अपने पहले प्रयास में सफल नहीं हुई। लेकिन हतोत्साहित होने की बजाय इस विफलता से सीख लेकर वह यूपीएससी में दूसरे प्रयास के लिए और अधिक दृढ़ता और विश्वास के साथ आगे बढ़ीं।
फिर से एक नए दृढ़-संकल्प के साथ प्रीलिम्स की तैयारी शुरू कर दी। वह एक मां होने के बाद भी अपने इतने छोटे बेटे से रोजाना मिल नहीं पाती थीं, यह बहुत बड़ा त्याग था। जब भी वो दोनों एक-दूसरे को बहुत याद करते थे, अनु की मां वियान को मिलाने उनके पास लाया करती थीं। अनु कहती हैं कि उससे मिलना मेरे और वियान के लिए काफी भावनात्मक हुआ करता था।
बिग ब्रेक
आखिरकार वो बड़ा दिन आ गया, जिसके पीछे दो सालों की मेहनत, कड़ा संघर्ष और लंबे समय तक एक मां का अपने बच्चे से दूर रहने का त्याग छिपा था। साल 2017 के यूपीएससी परीक्षा के अंतिम परिणामों में अनु कुमारी ने दूसरी रैंक हासिल की। यह केवल अनु के लिए ही नहीं बल्कि उन सभी लोगों के लिए एक बहुत यादगार लम्हा था, जिन्होंने इतने सालों तक उनका साथ दिया।
अनु को उनके फेज दो के ऑनलाइन प्रशिक्षण को पूरा करने के बाद केरल कैडर (2018 बैच) मिला है और वो उप-जिलाधिकारी के रूप में केरल राज्य में कार्यरत हैं।
अनु कहती हैं, “एक महिला को खुद पर विश्वास होना चाहिए और किसी भी परिस्थिति से डरना नहीं चाहिए। आर्थिक स्वतंत्रता के बारे में उसे जरूर सोचना चाहिए और इस तरफ काम करना चाहिए। मैं आर्थिक तौर पर स्वतंत्र थी और बेहतर कमा रही थी, शायद तभी अपने बच्चे के भविष्य को लेकर नौकरी छोड़ते हुए भी मुझे डर नहीं लगा।”
अनु कुमारी की यह कहानी लाखों यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए एक प्रेरणा है। चाहे जैसी परिस्थितियां हों या कितनी भी जिम्मेदारियां हों, अगर कोई ठान ले तो कुछ भी मुमकिन है। साथ ही अनु की यात्रा इस बात की भी गवाही देती है कि जब हालात आपके पक्ष में न हों, तब भी सकारात्मक रवैया रखना कितना महत्वपूर्ण साबित होता है।
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