दिहाड़ी मजदूर के बेटे आईआरएस अधिकारी सतीश मेनन की कहानी, जिनके पास पढ़ने के लिए किताबें भी नहीं थीं
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 15 Nov 2021, 2:02 pm IST
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हाइलाइट्स
- आईआरएस अधिकारी सतीश वी मेनन की कहानी, बिना कोचिंग के पास किया यूपीएससी
- किताबों के लिए भी नहीं होते थे पैसे, पुस्तकालय में करते थे पढ़ाई
- यूपीएससी-2014 में 342 वीं रैंक के साथ मिली सफलता, बने आईआरएस अधिकारी
- सतीश वी मेनन, यूपीएससी-2014, 342 वीं रैंक
भारत की सबसे कठिन और प्रतिष्ठित परीक्षा यूपीएससी की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों को हमेशा एक प्रेरणा की तलाश रहती है, जहां से वो खुद को हमेशा प्रेरित कर सकें और हर मुश्किल में कभी न हार मानने वाला दृष्टिकोण पा सकें। केरल के सतीश वी मेनन की कहानी जैसे इन्हीं उम्मीदवारों के लिए है। एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे सतीश ने हजार मुश्किलों के बाद भी अपनी मेहनत और लगन से सिविल सेवाओं में वो मुकाम हासिल किया, जिसके सपने देश के अधिकांश युवा देखते हैं।
सतीश ने बिना किसी कोचिंग के यूपीएससी-2014 की परीक्षा में देश भर में 342 रैंक हासिल करते हुए सफलता हासिल की। यह उनका तीसरा प्रयास था। वर्तमान में वो आईआरएस अधिकारी के रूप में केरल के कोच्चि में कार्यरत हैं। पैसे की कमी की वजह से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाने वाले सतीश ने जीवन में कभी भी उम्मीद नहीं छोड़ी। उन्होंने भौतिकी विज्ञान से अपनी पढ़ाई की और खर्चे के लिए ट्यूशन पढ़ाया। पैसे की तंगी की वजह से कई बार वो अपनी जरूरत की किताबें नहीं खरीद पाते थे, इसलिए पुस्तकालयों में जाके घंटों पढ़ाई करते थे।
क्लर्क की नौकरी छोड़ दी
मेनन को केरल की राज्य सेवा में तीन क्लर्क पदों के लिए भी चुना गया था। उनका परिवार चाहता था कि वो इतनी मुश्किलों के बाद मिली इस सरकारी नौकरी को वो जॉइन कर लें। लेकिन मेनन यूपीएससी की तैयारी जारी रखना चाहते थे और कोई भटकाव नहीं चाहते थे। उन्हें पूरी उम्मीद थी कि जल्द ही वो यूपीएससी पास कर लेंगे। आखिरकार परिवार को भी मानना पड़ा और नौकरी करने के बजाय यूपीएससी की तैयारी के लिए मेनन के फैसले को समर्थन दिया।
शुरुआत
भारत के सुदूर दक्षिणी राज्य केरल के एर्नाकुलम जिले से आने वाले मेनन के पिता एक दिहाड़ी मजदूर थे। जबकि उनकी मां एक गृहिणी हैं और उनकी बड़ी बहन एक स्कूल शिक्षक हैं। 12 वीं की पढ़ाई के बाद सतीश इंजीनियरिंग करना चाहते थे, लेकिन पैसे की तंगी की वजह से नहीं कर पाए। इसलिए आगे की पढ़ाई भौतिक विज्ञान यानी फिजिक्स के साथ करते हुए स्नातक और परास्नातक किया। अपने परिवार और पढ़ाई को सहारा देने के लिए, वो हाई स्कूल तक के छात्रों को ट्यूशन पढ़ाते थे। वो दिन में ट्यूशन पढ़ाते थे और रात को खुद पढ़ते थे। मेनन के पिता विश्वनाथन मेनन को अपनी बेटी की शादी के लिए अपनी सारी जमीन बेचनी पड़ी। इसलिए मेनन को ग्रामीण एर्नाकुलम में किराए के घर में रहना पड़ा। मेनन को ट्यूशन से हर महीने लगभग 10 हजार रुपए मिलते थे और उसी से परिवार का और उनका खर्च चलता था, क्योंकि उनके पिता को हर रोज काम नहीं मिलता था।
यूपीएससी तैयारी
किराए के घर में रहते हुए मेनन को इंटरनेट कनैक्शन की सुविधा नहीं मिली। साथ ही वहां कोई अंग्रेजी अखबार और पत्र-पत्रिका भी नहीं आती थी। लेकिन मेनन की कड़ी मेहनत और जिद के आगे हर मुश्किल आसान थी। मेनन हर सप्ताह पुस्तकालय जाते और देर तक पढ़ाई करते। वहीं वो अखबार और पत्रिकाएं पढ़ते और नोट्स बनाते।
सतीश कहते हैं, “इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी मेरे लिए एक बड़ी समस्या थी। मैं साइबर कैफे पर निर्भर था। साथ ही अंग्रेजी दैनिक या पत्रिकाओं की दैनिक आपूर्ति भी मेरे लिए सुलभ नहीं थी। अपनी तैयारी के लिए आवश्यक पुस्तकें प्राप्त करने के लिए, मुझे अक्सर एर्नाकुलम के एक सार्वजनिक पुस्तकालय का जाना पड़ता था।”
वो आगे कहते हैं, “शुरुआत में मेरे लिए अपनी वित्तीय जरूरतों के साथ तालमेल बिठाना बहुत मुश्किल था। मुझे अपने परिवार का भरण-पोषण करना था और अपनी पढ़ाई भी करनी थी। इसलिए कभी कोचिंग नहीं की। लेकिन जब परिणाम आए, तो आखिरकार मेरा संघर्ष एक खुशनुमा अंत में बदल गया।”
मेनन का मानना है कि यूपीएससी की यात्रा में सबसे जरूरी है उम्मीद का न खोना। साथ ही निरंतर मेहनत और पढ़ाई से कोई भी यूपीएससी पास कर सकता है। उनका कहना है कि लोगों को अब भी आश्चर्य होता है कि मेरे जैसे पृष्ठभूमि वाला भी यूपीएससी पास कर सकता है। जबकि सच ये है कि कोई भी यूपीएससी पास कर सकता है बस आप में वो होना चाहिए जो इस परीक्षा को चाहिए।
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