सिर्फ 23 साल की उम्र में एसडीएम बनने वाले फर्रुखाबाद के अभिनेन्द्र की कहानी
- Ayodhya Prasad Singh
- Published on 31 May 2023, 12:48 pm IST
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हाइलाइट्स
- अभिनेंद्र सिंह ने यूपीपीसीएस-2022 में हासिल की है 32वीं रैंक
- नाबालिग होने के कारण वह 2020 की परीक्षा में नहीं बैठ पाए थे
- इंटरव्यू में पूछे गए थे दबाव से निपटने के कौशल और व्यवहार संबंधी सवाल
अगर बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि “पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं,” तो उत्तर प्रदेश में फर्रुखाबाद का यह लड़का इसे साबित भी करता है, जो यूपीएससी भी निकाल सकता है।
घर में 2016 बैच की एसडीएम बहन से प्रेरणा लेने वाले और पिता की लगातार देखरेख में रहने वाले अभिनेंद्र सिंह के लिए करियर के तौर पर सिविल सेवाओं को चुनना कतई कठिन नहीं था। दरअसल इसके लिए उन्होंने इतनी जल्दी शुरुआत कर दी, कि 2020 में उन्हें कम उम्र के होने के कारण यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षाओं में बैठने की अनुमति ही नहीं मिली।
लेकिन उन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचने से कौन रोक सकता है। जी हां, वह सिर्फ 23 साल की उम्र में 2021 में डेंगू से लड़ते हुए यूपीपीसीएस-2022 परीक्षा को 32वीं रैंक के साथ पास करके सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट बन गए।
इंडियन मास्टरमाइंड्स से बात करते हुए सिंह ने कहा, “मेरे जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव नहीं आए। लेकिन 2021 में परीक्षा से पहले डेंगू मेरे लिए एक बड़ा झटका था। मुझे ठीक होने और पढ़ाई को पटरी पर लाने में लगभग चार महीने लग गए। और फिर जहां चाह- वहां राह है।”
जल्द शुरुआतः
अभिनेंद्र सिंह ने अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री के बाद जुलाई, 2019 में तैयारी शुरू की। उन्होंने यूपीएससी की तैयारी की और बाद में स्टेट सिविल की परीक्षा भी दी।
अच्छी तैयारी के बावजूद वह 2020 में कम उम्र के होने के कारण यूपीएससी या पीसीएस की परीक्षा नहीं दे पाए। वह उस समय 20 वर्ष के थे और सिविल सेवाओं के लिए न्यूनतम उम्र के मानदंड को पूरा नहीं करते थे।
2021 में उन्हें दोनों को क्रैक करने का भरोसा था, लेकिन डेंगू की चपेट में आ गए। उनकी मेन्स परीक्षा यूपीएससी और पीसीएस दोनों में अच्छी नहीं रही। वह दोनों में फेल हो गए।
हालांकि 2022 में वह यूपीएसस-सीएसई मेन्स को क्लियर नहीं कर सके, लेकिन यूपीपीसीएस निकाल लिया और डिप्टी कलेक्टर बन गए।
पिता की प्रेरणाः
एक सेवानिवृत्त सैनिक और गृहिणी के बेटे सिंह अपने पांच भाई-बहनों के साथ बड़े हुए। सेंट एंथोनी सीनियर सेकेंडरी स्कूल, फर्रुखाबाद से ही 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 2019 में एमएनआईटी, इलाहाबाद से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक किया।
वह कहते हैं, “पिता ने मुझे सिविल सेवाओं के लिए प्रेरित किया। फिर बहन ने मार्गदर्शन किया। लेकिन इसी दौरान कोविड एक बड़ा झटका था, जिससे लगभग 6 महीने तक मेरी पढ़ाई बाधित रही।”
लेकिन सबसे बड़ा दुश्मन 2021 का डेंगू था, जिसने उन्हें चार महीने के लिए कमजोर बना दिया। यूपीएससी और यूपीपीसीएस मेन्स से पहले सिंह के प्लेटलेट्स 18,000 से नीचे आ गए थे। उनकी हालत नाजुक थी। उन्होंने कहा, “भले ही मैं ठीक हो गया और बुखार के साथ परीक्षा दी, लेकिन मैं बहुत थक गया था। ऐसे में यूपीएससी और यूपीपीसीएस दोनों मुख्य परीक्षाएं पास नहीं कर सका।”
बुनियादी ध्यानः
सिंह ने खुद तैयारी करने पर भरोसा किया। वह केवल अपने वैकल्पिक विषय मानव विज्ञान के लिए ऑनलाइन कोचिंग में शामिल हुए।
उन्होंने कहा, “मैं मुख्य रूप से यूपीएससी की तैयारी कर रहा था। पीसीएस में ऐसी बहुत-सी चीजें हैं, जो यूपीएससी में नहीं पूछी जातीं। और सिविल सेवाओं के लिए अध्ययन के नोट्स वास्तव में सहायक थे। मुझे वहां से लगभग 50 से 60 प्रश्न मिले।”
उनकी रणनीति थी रोजाना 6 से 8 घंटे सिंपल बेसिक्स की तैयारी। कहा, “मैं नियमित रूप से अखबार पढ़ता हूं। सिलेबस के बुनियादी अध्ययन के साथ जीएस के सभी पेपरों के लिए 5 से 10 पन्नों के छोटे नोट्स बनाता हूं।” उन्होंने मॉक टेस्ट सीरीज पर लगातार ध्यान लगाया।
आत्मविश्वास का महत्वः
हालांकि वह अपने इंटरव्यू में कई सवालों के जवाब नहीं दे पाए, फिर भी अच्छी रैंक हासिल करने में कामयाब रहे। कैसे? यह पूछने पर श्री सिंह ने कहा, “इंटरव्यू में वे न केवल आपके ज्ञान की जांच करते हैं, बल्कि आपके व्यवहार, दबाव से निपटने की कुशलता और कठिन हालात में प्रतिक्रिया की भी जांच करते हैं।”
उनसे सिविल इंजीनियरिंग से 10 प्रश्न पूछे गए थे और उनका उत्तर सबसे अच्छा नहीं था।
उनके सामने कुछ प्रश्न थे: मानव विज्ञान में मनोविज्ञान कहां से आता है? यूपी में कितने अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे हैं? और यूपी के स्मार्ट शहरों के नाम बताइए।
फिर भी इस युवा अचीवर का मानना है कि दृढ़ता और दृढ़ इच्छाशक्ति से कुछ भी हासिल किया जा सकता है।
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