सिरीसेट्टी संकीरथ की कहानी, जो 800 मीटर की दौड़ हारकर सब-इंस्पेक्टर नहीं बन पाए, लेकिन अब आईपीएस अधिकारी हैं!
- Indian Masterminds Bureau
- Published on 12 Nov 2021, 2:35 pm IST
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हाइलाइट्स
- उनका सपना पुलिस अधिकारी बनने का था, लेकिन एसआई यानी सब इंस्पेक्टर की परीक्षा में 800 मीटर दौड़ पूरी नहीं कर सके!
- लेकिन क्या एक व्यक्ति की सीखने की योग्यता या स्कूल और कॉलेज में उसके अंक, उसकी प्रतिभा के सही सूचक हो सकते हैं?
- आप इसे माने या न माने लेकिन सिरीसेट्टी संकीरथ एक ऐसे ही उदाहरण हैं और उनकी प्रेरणादायक उपलब्धि आम तौर पर प्रचलित धारणाओं के बिल्कुल विपरीत है।
- आईपीएस प्रोबेशनर सिरीसेट्टी संकीरथ (क्रेडिट: ट्विटर)
तीन साल पहले की बात है, तेलंगाना के बेल्ल्मपल्ली शहर के रहने वाले सिरीसेट्टी संकीरथ अपनी 800 मीटर की दौड़ कुछ सेकंड से हार गए और उनका पुलिस अधिकारी बनने का सपना रेत की तरह बिखर गया। लेकिन आज 3 साल बाद वही सिरिसेट्टी संकीरथ आईपीएस की अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद पुलिस अफसर बनने जा रहे हैं।
लेकिन संकीरथ ने आज 12 नवंबर को हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी से पास होने वाले प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारियों की ‘दीक्षांत परेड’ में 132 साथी आईपीएस प्रशिक्षुओं के साथ, कंधे से कंधा मिलाकर मार्च किया और आईपीएस अधिकारी बन गए। तीन साल पहले, 27 वर्षीय संकीरथ का सब-इंस्पेक्टर बनने के सपना तब टूट गया था, जब वो एसआई की परीक्षा में उम्मीदवारों की शारीरिक दक्षता जांच के लिए अनिवार्य 800 मीटर की दौड़ को पूरा करने में विफल रहे थे। ये कमाल की कहानी उस युवा की है जो कभी शारीरिक रूप से फिट नहीं था और एक औसत दर्जे से भी कमतर समझा जाता था। लेकिन आज वो बहुतों के लिए एक हीरो है।
हमारे समाज में बहुत पहले से लोग कहते आ रहे हैं कि किसी की स्कूली शिक्षा के दौर का प्रदर्शन उसकी बुद्धिमत्ता का असली पैमाना नहीं होता। हालांकि हमारे बीच बहुत से ऐसे लोग भी हैं, जो इसे सच नहीं मानते। लेकिन सिरीसेट्टी संकीरथ की सफलता ने ऐसे लोगों को फिर से गलत साबित कर दिया। एक औसत दर्जे के छात्र से भारत की सबसे प्रतिष्ठित नौकरी पाने तक की यात्रा में उन्होंने कई मानक स्थापित किए हैं। साल 2020 में आए यूपीएससी-2019 की सिविल सेवा परीक्षा के अंतिम परिणामों में संकीरथ ने अपने पांचवे प्रयास में 330 वीं रैंक पाकर जो सफलता हासिल की, उसके पीछे उनकी अथाह मेहनत और लगातार खुद को बेहतर बनाने की ललक छिपी हुई है।
सिरीसेट्टी को सातवीं कक्षा तक एक औसत दर्जे से भी कमतर बच्चा समझा जाता था। अंग्रेजीदां लोग अपनी भाषा में ऐसे बच्चों को ‘स्लो लर्नर’ कहते हैं, मतलब वो छात्र जिसकी सीखने की क्षमता बहुत धीरे-धीरे हो। हमारे समाज में ऐसे बच्चों से कोई बड़ी उम्मीद भी नहीं रखी जाती, इसीलिए उन बच्चों का आत्मविश्वास भी कमजोर होता जाता है और अधिकतर कुछ बड़ा हासिल करने से चूक जाते हैं। लेकिन संकीरथ के साथ ऐसा नहीं था, उनके शिक्षक उनका हौसला बढ़ाते थे और संकीरथ भी कड़ी मेहनत नाम की डोर को मजबूती से थामे हुए थे। वो भले ही चीजों को बहुत धीरे-धीरे समझते थे और बाकी बच्चों की तरह ‘स्मार्ट चाइल्ड’ के तमगे से बहुत दूर थे। लेकिन जीवन में आगे बढ़ने के साथ उन्होंने खुद को निखारा और उच्च शिक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने लगे।
उनकी कहानी यह बताती है कि औसत से नीचे कहा जाने वाला एक बच्चा भी जीवन में बड़ा मुकाम हासिल कर सकता है, अगर उसे कायदे से बिना किसी शर्त सहायता दी जाए और हमेशा उसका हौसला बढ़ाया जाए। साथ ही एक स्वस्थ माहौल और सही तालीम एक छात्र की वास्तविक क्षमता को निखार कर सबके सामने ला सकती है।
खुशहाल पिता
संकीरथ के पिता सत्यनारायण बिजली क्षेत्र में काम करते हैं और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (SCCL) के अन्वेषण विभाग में कार्यरत हैं। वह अपने बेटे की सफलता के पीछे उसके धैर्य और दृढ़-संकल्प को मुख्य कारण मानते हैं। तेलंगाना टुडे को दिये गए एक साक्षात्कार में वो कहते हैं, “संकीरथ उच्च प्राथमिक विद्यालय तक एक औसत दर्जे का विद्यार्थी था। लेकिन बाद में उसने शिक्षकों के सहयोग से खुद को बेहतर किया और हर क्षेत्र में कुछ न कुछ सीखने की ललक पैदा की। उसने ईएएमसीईटी (EAMCET- तेलगु राज्यों की इंजीनियरिंग, कृषि और मेडिकल परीक्षा) में बेहतरीन प्रदर्शन के बाद कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक किया। फिर उसने 4 बार यूपीएससी की परीक्षा दी और असफल रहा लेकिन अपने पांचवे प्रयास में सफलता हासिल करते हुए आखिरकार अपने सपने को साकार कर लिया।”
सत्यनारायण अपने बेटे की सफलता का श्रेय पूरी तरह से बेल्लमपल्ली के ‘मदर्स कॉन्वेंट हाई स्कूल’ के शिक्षकों को देते हैं। उन्हें लगता है कि संकीरथ अपने शिक्षकों और उनके द्वारा दी जाने वाली बेहतर शिक्षा की वजह से ही आज इस मुकाम तक पहुंच पाए हैं।
बेहद खुशी के साथ वो बताते हैं कि संकीरथ देर रात तक पढ़ाई करता रहता था, कभी-कभी तो दिन में 16 घंटे अध्ययन करता ताकि बाकी लोगों से मुकाबला कर अपनी संभावनाएं बढ़ा सके। संकीरथ वर्तमान में आदिलाबाद जिले में ‘मिशन भगीरथ योजना’ में एक सहायक कार्यकारी अभियंता के रूप में कार्यरत हैं।
नृत्य से तनाव को हराया
संकीरथ को नृत्य का भी बहुत शौक है, उन्हें अक्सर नृत्य में ही तसल्ली मिलती थी। वह बेल्लमपल्ली के टेक्नो डांस अकादमी नियमित रूप से जाते थे। वो खुद भी मानते हैं कि नृत्य ने उन्हें तनाव से निपटने में बहुत मदद की। यूपीएससी परीक्षाओं की तैयारियों का दौर बहुत तनाव भरा होता है, खासकर जब परीक्षा नजदीक आती है। लेकिन इस मुश्किल यात्रा के दौरान नृत्य ने संकीरथ का तनाव कम करने में हमेशा साथ दिया। यूपीएससी में सफलता हासिल करने के बाद डांस अकादमी ने उन्हें सम्मानित भी किया।
अकादमी में मास्टर हनुमंडला मधुकर कहते हैं कि उन्हें बेहद खुशी है कि उन्होंने संकीरथ जैसे छात्र को पढ़ाया है। संकीरथ इस बात का एक जीता-जागता उदाहरण हैं कि शिक्षा और ज्ञान को सीखने की प्रक्रिया अत्यंत व्यक्तिपरक है, जो एक छात्र से दूसरे छात्र तक बदलती रहती है। सभी बच्चों से उनके साथियों के समान प्रदर्शन की उम्मीद करना कहीं से भी तर्कसंगत नहीं है। कुछ बच्चे ऐसी प्रतिभा के साथ पैदा होते हैं जो जीवन के बाद के दिनों में निखरकर सामने आती है। इसलिए हर बच्चा विशेष है, बस जरूरत है उसे सही दिशा देकर उत्साह बढ़ाने की।
मेहनत और सतत प्रयास
महान वैज्ञानिक आइंस्टीन के बारे में प्रचलित है कि बचपन में वो पढ़ने में अच्छे नहीं थे और एक औसत छात्र थे। एक दूसरे महान वैज्ञानिक थॉमस एल्वा एडिसन के बारे में कहा जाता है कि उन्हें हजारों प्रयासों के बाद बिजली का आविष्कार करने में सफलता मिली थी। संकीरथ के जीवन में दोनों वैज्ञानिकों की इन विशेष बातों का बहुत महत्व है, क्योंकि वो इन दोनों चीजों से गुजरे हैं। बचपन में आइंस्टीन की तरह बहुत धीमे छात्र रहे, लेकिन एडिसन की तरह हमेशा प्रयास करते रहे। आखिर में उन्हें बड़ी सफलता हाथ लगी, इसीलिए यह महत्व नहीं रखता कि स्थितियां कैसी हैं या कोई कितना बुद्धिमान या कमतर है! सच यही है कि सतत प्रयास और कड़ी मेहनत से हर मुकाम पाया जा सकता है।
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