आईआरएस अधिकारी आदित्य प्रकाश की कहानी, जिन्होंने पहले ही प्रयास में यूपीएससी पास करने का वादा किया और कर के दिखाया!
- Bhakti Kothari
- Published on 18 Nov 2021, 10:10 am IST
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हाइलाइट्स
- जब डॉ. आदित्य प्रकाश भारद्वाज ने अपनी आंखें सिविल सेवा पर गड़ाईं, तो उन्होंने केवल एक ही प्रयास करने का फैसला किया।
- और आप जानते हैं, उन्होंने एक ही प्रयास में देश की सबसे कठिन परीक्षा में सेंध लगा दी, वो भी बिना किसी कोचिंग के। जानिए इस अद्भुत कहानी को इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ।
“सिस्टम में बदलाव लाने के लिए, आपको इसका हिस्सा बनना होगा”, यही वो ताना मारकर कहे गए शब्द थे, जिसने एक डॉक्टर आदित्य प्रकाश भारद्वाज के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया और उन्हें एक नई मंजिल की तलाश के साथ-साथ एक बेहतर सहृदयी इंसान बनने के लिए प्रेरित किया। देश में चल रहे राजनीतिक परिदृश्य पर चर्चा के दौरान आदित्य के एक दोस्त ने मजाक-मजाक में यही कटाक्ष उन पर किया था। और दोस्त की बात को अपने दिल पर लेते हुए, चिकित्सक ने अपना पेशा छोड़ दिया और सिविल सेवा परीक्षा के लिए जाने का फैसला कर लिया।
हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के नारनौल नामक एक छोटे से शहर से आकर डॉक्टर बनने वाले भारद्वाज परिवार के पहले व्यक्ति थे। साल 2013 में, जब वह अपनी मेडिकल पोस्ट-ग्रेजुएशन प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे थे, अपने एक दोस्त से मिलने दिल्ली गए। यही यात्रा उनके जीवन का एक निर्णायक मोड़ साबित हुई।
एक मिलनसार चिकित्सक से नौकरशाह बने भारद्वाज ने इंडिया मास्टरमाइंड्स से से बात करते हुए कहा, “उस समय, दिल्ली में भ्रष्टाचार-विरोधी अन्ना आंदोलन चल रहा था। आधी रात के वक्त दिल्ली से वापस आते समय हमने एक गहमा-गहम बातचीत शुरू कर दी। उसने मुझसे कहा कि यह लोग दुनिया को बदलना चाहते हैं, लेकिन परीक्षा पास कर सिस्टम में घुसना और अंदर से ही उसे बदलना, कहना आसान है और करना बहुत मुश्किल। उस समय, मैंने इसे सिविल सेवाओं में शामिल होने के लिए एक चुनौती के रूप में लिया और उससे कुछ किताबें मुझे उधार देने के लिए कहा।”
लेकिन अपनी वित्तीय असहजताओं के कारण, उन्होंने केवल एक ही प्रयास करने का फैसला किया। उनका परिवार उनके पेशेवर बदलाव के इस फैसले से खुश नहीं था। वह परिवार में एकमात्र रोजी-रोटी कमाने वाले थे। उस वक्त जब उन्हें परिवार का समर्थन करना चाहिए, तो वह एक साल की छुट्टी लेकर एक ऐसी परीक्षा की तैयारी करना चाहते थे जो कि पूरी तरह से उनके कार्यक्षेत्र से बाहर थी। अपने परिवार को समझाना उनके लिए सबसे मुश्किल काम था। उनके परिवार ने महीनों तक उनसे बात नहीं की और उन्हें अपने इस फैसले को अंजाम न देने के लिए राजी करने की भी कोशिश की। लेकिन वह अपने निर्णय पर अडिग रहे। वह रोहतक से दिल्ली चले गए जहां उनका मेडिकल कॉलेज था और अपनी तैयारी शुरू कर दी।
सिर्फ काम, और कुछ भी नहीं
यह उनके लिए बेहद मुश्किल दौर था। वह घंटों तक पढ़ाई करते थे। वो कहते हैं, “मैं पढ़ाई के लंबे घंटों के बीच में कभी-कभी टी. वी. देखने या संगीत सुनने या चाय पीने के लिए 5 मिनट का ब्रेक ले लेता था। मैं सप्ताह में सातों दिन अध्ययन करता था क्योंकि एक दिन की छुट्टी लेने का मतलब यह था कि पूरे सप्ताह के संघर्ष पर पानी फिर गया। मैंने मौज-मस्ती या बिना किसी काम के मुफ्त दिनों की सभी अवधारणाओं को अपने लिए खत्म कर दिया था। मैं त्योहारों के लिए घर भी नहीं गया और न ही मैंने उस साल अपना जन्मदिन मनाया।”
वो आगे कहते हैं, “मेरे अंदर कहीं न कहीं मेरे दिल को यह पता था कि मुझे इस कठिन परीक्षा में पास होने के लिए अपनी सुविधाओं और आराम का त्याग करना होगा, क्योंकि मेरे पास केवल एक ही मौका था और इसे बर्बाद करने के लिए सोच भी नहीं सकता था।”
अपनी तैयारी के दिनों को याद करते हुए, वह कहते हैं कि वह द हिंदू के संपादकीय लेख पढ़ा करते थे, लेकिन उन्हें उसकी शब्दावली को समझना मुश्किल लगता था। और वह अंग्रेजी में अपनी परीक्षा देने के लिए दृढ़ थे। इसलिए उन्होंने खुद को अपनी भाषा पर काम करने के लिए प्रेरित किया।
वो बताते हैं, “मैंने कभी भी एक से अधिक किताबों का अध्ययन नहीं किया। यदि मुझे किसी विशेष विषय का अध्ययन करना होता है, तो मैं पूरी तरह से एनसीईआरटी की किताबों के साथ जाऊंगा और उनका अध्ययन करूंगा, वहीं वैकल्पिक विषय की तैयारी के लिए पिछले दस वर्षों के प्रश्न पत्रों को दोहराऊंगा।”
‘मूनलाइटिंग‘ (पहली के साथ दूसरी नौकरी) डॉक्टर
ऐसी बहुत सी बाधाएं थीं, जिन्हें मुझे पार करना था। वित्तीय स्थिति उनमें से एक थी। जीवनयापन चलाने के लिए, मैंने स्थानीय अस्पतालों में एक डॉक्टर के रूप में सप्ताह के अंत में रात के वक्त अर्थात नाइट शिफ्ट में काम करना शुरू कर दिया, जिससे मुझे एक रात में 5000 रुपए की कमाई होने लगी।”
उन्होंने एंथ्रोपोलॉजी (मानव-विज्ञान) को अपने वैकल्पिक विषय के रूप में चुना, लेकिन कोचिंग क्लास के उनके एक शिक्षक ने उन्हें बताया कि चूंकि उन्होंने अब तक इस विषय का अध्ययन नहीं किया है, इसलिए इस विषय के साथ उस साल परीक्षा को पास करने के लिए उनकी संभावनाएं बिलकुल नगण्य हैं। साथ ही उन शिक्षक महोदय ने उनसे अगले साल की तैयारी के लिए भर्ती होने को कहा, क्योंकि वह इस साल परीक्षा पास करने के काबिल नहीं हैं। यह सब सुनकर, डॉ. भारद्वाज दुखी या निराश होने के बजाय और अधिक दृढ़ हो गए और बिना कोचिंग कक्षाओं की मदद के ही पूरी लगन के साथ खूब अध्ययन करने का निर्णय लिया।
और उनकी कड़ी मेहनत तब फलीभूत हो गई, जब उन्होंने अपने पहले ही प्रयास में देश भर में 250 रैंक के साथ यूपीएससी पास कर लिया। वह आईआरएस अधिकारी बन गए और वर्तमान में फरीदाबाद में आयकर उपायुक्त के पद पर तैनात है। सप्ताहांत में, डॉ. भारद्वाज मलिन बस्तियों के सरकारी स्कूलों का दौरा करते हैं और वहां पढ़ने वाले बच्चों को कैरियर परामर्श प्रदान करते हैं। वह उनसे कहते हैं, “अगर मैं यूपीएससी पास कर सकता, तो कोई भी कर सकता है!”
जन-हितैषी और सह्रदय अधिकारी
हाल ही में आई भयंकर महामारी के कारण स्कूल बंद हो गए थे, लेकिन वह कुछ ऐसे बच्चों को जानते थे जिनके माता-पिता दिहाड़ी मजदूर थे। इन परिवारों के पास अब खुद को सहारा देने का और रोज-रोटी चलाने का कोई साधन नहीं था। तभी डॉ. आदित्य इन लोगों के लिए कुछ करने का विचार लेकर आए। उन्होंने “वी केयर” पहल की स्थापना की और इन परिवारों को भोजन और राशन प्रदान करना शुरू किया। उन्होंने लगभग 150 परिवारों के साथ शुरुआत की, 5000 परिवारों तक पहुंचे और अब तक उन्होंने 5 लाख से अधिक परिवारों की मदद की है।
वह कहते हैं, “हमारे स्वयंसेवकों के समर्थन के बिना यह संभव नहीं होता। कोई भी यहां कैश नहीं लाता है। वे दान करते हैं। कुछ लोग स्वयंसेवा के लिए तैयार हैं, तो कुछ वितरण के लिए राशन लाते हैं, कुछ हमें खाना बनाने के लिए अपनी रसोई देकर मदद करते हैं और इस तरह हम एक बेहतरीन टीम बनाते हैं और उन गरीबों के जीवन में खुशियां लाने के लिए एकजुट होकर काम करते हैं।
सिर्फ महामारी के दौरान ही, भोजन और पानी की कमी के कारण फरीदाबाद में बड़ी संख्या में बंदरों की मौत हो गई। वो बताते हैं, “वे भोजन और पानी के लिए स्थानीय लोगों पर निर्भर थे और लोगों के आसपास नहीं होने के कारण, वे भूखे-प्यासे मर गए। इसलिए हमने अपने आवाजहीन दोस्तों के लिए भी कुछ करने का फैसला किया। उन्होंने बताया कि हम लोगों से दिन के भोजन से अतिरिक्त खाद्य सामग्री एकत्र करते हैं और रात में कुत्तों, गायों और बंदरों सहित आवारा पशुओं को खिलाते हैं।
डॉ. आदित्य ने फरीदाबाद में अरावली क्षेत्र के आसपास लगभग 200 पानी की बाल्टी और टब लगाए। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि ये बाल्टी और टब हर समय पानी से भरे रहें। वह न केवल गरीब परिवारों के जीवन को बचाने के लिए काम कर रहे हैं, बल्कि बच्चों की बेहतरी के लिए भी काम कर रहे हैं। उनके पशु बचाव और सुरक्षा मिशन अभी भी पूरे जोरों पर हैं।
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