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एक छापे ने डीएसपी को पहुंचा दिया इंडियन फॉरेस्ट सर्विस में, 5वीं रैंक के साथ पास किया IFS 2022
- Muskan Khandelwal
- Published on 7 Jul 2023, 9:54 am IST
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हाइलाइट्स
- मध्य प्रदेश में सतना के डीएसपी अजय गुप्ता ने अंतिम प्रयास में पाई सफलता
- अवैध शराब के अड्डे पर छापेमारी ने फॉरेस्ट सर्विस में जाने की इच्छा को और बढ़ाया
- छापे में बड़ी मात्रा में शराब नष्ट हो गई, इसने उन्हें गरीब आदिवासियों पर इसके प्रभाव के बारे में सोचने को मजबूर कर दिया
मध्य प्रदेश के इस पुलिस अधिकारी को इस साल इंडियन फॉरेस्ट सर्विस (आईएफएस) की परीक्षा पास करने से कोई रोक ही नहीं सकता था। यह उनका अंतिम प्रयास था और वह इसे क्रैक करने के लिए अडिग थे। आईएफएस अधिकारी बनने का यह सपना देखने वाले थे-पुलिस में डिप्टी सुपरिटेंडेंट (डीएसपी) अजय गुप्ता। उन्होंने बेहद बिजी शेड्यूल के बावजूद अंतिम प्रयास में 5वीं रैंक के साथ परीक्षा पास की।
इंडियन मास्टरमाइंड्स के साथ बात करते हुए श्री गुप्ता ने बताया कि किस बात ने उन्हें आईएफएस को करियर के रूप में चुनने के लिए प्रेरित किया।
बैकग्राउंड
मध्य प्रदेश के मुरैना में जन्मे और पले-बढ़े श्री गुप्ता ने इंदौर के एसजीएसआईटीएस कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की। बाद में उन्होंने एचपी, बैंगलोर में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में तीन साल तक काम किया। हालांकि, सरकारी नौकरी के प्रति उनके जुनून ने उन्हें सिविल सर्विस की तैयारी करने के लिए प्रेरित किया। 2018 में उन्हें मध्य प्रदेश स्टेट सर्विस में डीएसपी के रूप में चुना गया। तब से वह इस पद को पूरी ईमानदारी और मेहनत से संभाल रहे हैं। इसके अलावा, हाल ही में जब एमपीपीएससी परीक्षा-2020 के रिजल्ट घोषित किए गए, तो श्री गुप्ता पहली रैंक के साथ टॉपर बनकर उभरे।
क्यों आईएफएस ही
वैसे स्टेट सर्विस की परीक्षा में टॉप करने से उन्हें अपनी पसंद का पद मिल गया। इसके बावजूद, वह अभी भी आईएफएस में शामिल होने के लिए बेचैन थे। इंडियन फॉरेस्ट सर्विस में करियर बनाने के अपने निर्णय पर विचार करते हुए उन्होंने बताया कि एक डीएसपी के रूप में उनके अनुभवों ने उन्हें काफी कुछ समझाया। इस नौकरी ने हाशिए पर रहने वालों को पूर्ण सोशियो-इकोनॉमिक जस्टिस देने में सिस्टम की कमियों से रूबरू कराया। उन्होंने कहा, “मैंने इन कमियों को दूर करने में वन विभाग की अपार क्षमता देखी। तभी मेरे अंदर जमीनी स्तर पर लोगों के उत्थान में योगदान देने की तीव्र इच्छा विकसित हुई।”अवैध महुआ शराब उत्पादन के लिए जाने जाने वाले एक गांव में उनकी पुलिस टीम और एक्साइज डिपार्टमेंट द्वारा की गई छापेमारी के बाद उनकी प्रेरणा को और बढ़ावा मिला। दरअसल, उस छापेमारी के कारण काफी मात्रा में शराब नष्ट कर दी गई थी जबकि गरीब आदिवासी लोगों का जीवन उसी से चल रहा था। वे माफिया नहीं थे। इसने काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। यह नैतिक दुविधा उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, जिसने उन्हें आदिवासी लोगों की स्थायी आजीविका और सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में वन विभाग की क्षमता का पता लगाने के लिए प्रेरित किया।उन्होंने कहा, “छापे के बाद मैंने कई वन अधिकारियों से बात की। महसूस किया कि वे पहले से ही कई कार्यक्रम चला रहे हैं। जैसे- महुआ से तेल बनाकर आदिवासी लोगों की आजीविका को बढ़ावा देना।”
ऐसे की तैयारी
प्रीलिम्स की कठिनाई को पहचानते हुए उन्होंने कई टेस्ट पेपर हल किए। फंडामेंटल बुक्स का गहराई से अध्ययन किया। फिर पिछले वर्षों के प्रश्न पैटर्न का सावधानी से अध्ययन किया। ऑनलाइन संसाधन, विशेष रूप से यूट्यूब वीडियो, उनकी प्रीलिम्स की तैयारी में बहुत कारगर साबित हुए। इससे उन्हें अतिरिक्त जानकारी मिली।श्री गुप्ता ने मेन्स के लिए अपने ऑप्शनल सब्जेक्ट के रूप में कृषि इंजीनियरिंग और फॉरेस्ट्री को चुना। उन्होंने सामान्य ज्ञान और अंग्रेजी को अपेक्षाकृत मैनेजेबल पाया, और कृषि इंजीनियरिंग में अच्छा करने के लिए पिछले वर्षों के टॉपर्स के नोट्स से प्रेरणा ली
इंटरव्यू राउंड
इंटरव्यू को बेहतर बनाने के लिए वह व्यापक तैयारी में लगे रहे। साथ काम करने वालों, विभाग के सीनियर अधिकारियों और यहां तक कि आईएफएस अधिकारियों से सलाह लेते रहे। कई मॉक इंटरव्यू में भाग लेकर उन्होंने बेहतरीन अनुभव हासिल किए। इस दौरान कठिन सवालों को हल करने की अपनी क्षमता को उन्होंने जमकर निखारा।
पैनलिस्टों द्वारा पूछे गए सवालों के बारे में उन्होंने बताया कि अपने एक जवाब में उन्होंने मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के आदिवासी गांवों में एक पारंपरिक प्रथा हलमा के बारे में उल्लेख किया था। यह एक ऐसी प्रथा है, जहां जनजातीय समुदाय अपने में से किसी अन्य सदस्य के सामने आने वाली किसी विशेष समस्या को आदान-प्रदान के साथ हल करने के लिए एकजुट होते हैं। उन्होंने आगे कहा, “इस पर पैनलिस्ट ने मुझसे पूछा, मैं आईटी विभाग में हलमा अपनाने को कैसे देखता हूं।”इसके अलावा, उनसे फॉरेस्ट्री में ब्लॉकचेन पर अमल, पुलिसिंग में आईटी के प्रयोग के अलावा आदिवासी विकास के साथ आदिवासी संस्कृति को बचाने को कैसे संतुलित किया जाए, इसके बारे में भी पूछा गया।उन्होंने अंत में कहा, “मुझे वन सेवा में शामिल होना ही था, चाहे मेरा शेड्यूल कितना भी बिजी क्यों न हो! मुझे जो भी समय मिला, मैंने उसका उपयोग तैयारी के लिए किया।”
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